वर्तमान समय में भारत की राजनीति में मुग़लों से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है मानों मुग़लों से पहले भारत पर किसी मुसलमान ने शासन ही नहीं किया। हाल ही में महराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र अथवा मकबरे का बारे में विवादस्पद ब्यानबाजी ने नागपु को दंगों की आग में झोंक दिया। इस लेख में हम औरंजजेब की कब्र और उसके मकबरे इ जुड़ा इतिहास आपके साथ साझा कर रहे हैं। औरंगजेब का मकबरा किसने बनवाया था | Tomb of Aurangzeb History In Hindi के माध्यम से हम आपको विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं।

औरंगजेब का मकबरा इतिहास | Tomb of Aurangzeb History
औरंगजेब भारतीय इतिहास और मुग़ल इतिहास में सबसे विवादस्पद व्यक्तित्व है और अब उसका मकबरा जो खुल्दाबाद शहर (छत्रपती संभाजीनगर ज़िले(औरंगाबाद)) महराष्ट्र में है, यह स्थान महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 25 किलोमीटर दूर स्थित है। आप इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर सकते हैं कि दिल्ली में शासन करने वाले मुग़ल सल्तनत के अंतिम शक्तिशाली महगल शासक औरंगजेब को आखिर खुल्दाबाद में ही क्यों दफनाया गया? इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब तलाशेंगे और आपको बताएँगे इसके पीछे का इतिहास। अतः लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
औरंगजेब की कब्र या मकबरे तक जाने के लिए सबसे पहले आपको जिस दरबाजे से प्रवेश करना है उसे नगरखाना के नाम से जाना जाता है जिससे आप खुल्दाबाद में प्रवेश करेंगे। आप जैसे ही खुल्दाबाद शहर में प्रवेश करेंगे आपको दांईं तरफ औरंगजेब के मक़बरा सामने दिख जायेगा। आपको बता दें वर्तमान में यह मक़बरा भारतीय पुरातत्व विभाग ( एएसआई ) के संरक्षण में है जिसे एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। लेकिन जैसा माहौल भारतीय राजनीति में चल रहा है हमें नहीं लगता यह बहुत दिन संरक्षित रह पायेगी।
कैसा है औरंगजेब का मक़बरा?
औरंगजेब जिसने अपने जीवन में कभी संगीत अथवा अन्य त्योहारों और मनोरंजन के साधनों का प्रयोग नहीं किया इसी बात को ध्यान में रखकर उसकी मृत्यु के पश्चात् इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि उसकी कब्र और मकबरा बिना किसी तड़क भड़क और सज-सजा के बनाया जाय। यही कारण है कि औरंगजेब का मक़बरा बिना किसी अतिरिक्त तड़क भड़क और सज सज्जा के बहुत सरलता से निर्मित किया गया है। यहाँ सिर्फ मिटटी दिखती है मकबरे को साधारण सी सफ़ेद चादर से ढक दिया गया है, कब्र के ऊपर एक पौधा रोपा गया है।
औरंगजेब जैसा कि इतिहास में उसके विषय प्रसिद्ध है कि उसे ज्यादा तड़क- भड़क और साज-सज्जा पसंद नहीं थी। इसीलिए उसने मृत्यु से पूर्व अपने मकबरे को साधारण ढंग से बनाने का आदेश दिया था। औरंगजेब ने मृत्यु से पूर्व अपनी बसीयत में स्पष्ट लिखा था कि उसका मकबरा बिना छत का होना चाहिए और यह साधारण होना चाहिए और इसे ‘सब्जे’ (‘सब्जा’ या ‘तुलसी’ के बीज, जिन्हें ‘मीठी तुलसी’ ) के पौधे से ढंका होना चाहिए।
इस मकबरे के पास एक पत्थर लगा है जिस पर औरंगजेब का पूरा नाम खुदा हुआ है – “अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर“। सम्भवतः बहुत कम लोग उसके पुरे नाम से परिचित होंगे। जैसा ज्ञात है कि औरंगजेब 1618 ईस्वी में पैदा हुआ था और उसकी मृत्यु 1707 में हुई थी। जो पत्थर वहां पर लगा है उस पर हिजरी कैलेंडर के अनुसार औरंगजेब के जन्म और मृत्यु की तारीख खुदी हुई है।
औरंगाबाद में ही क्यों दफनाया गया औरंगजेब ?
अब एक प्रश्न मन में यह आता है कि आखिरऔरंगजेब को औरंगाबाद, महारष्ट्र में क्यों दफनाया गया। औरंगजेब की मृत्यु वर्ष 1707 में हुई ( महाराष्ट्र के अहमदनगर में ) और उसके शव को खुल्दाबाद लाया गया था। तो इसके पीछे की कहानी इस वाक्य में छुपी है-
औरंगजेब मृत्यु से पूर्व अपनी वसीयत करके गया था जिसमें उसने लिखा था कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसे उसके गुरु सैयद जैनुद्दीन ( एक सूफी संत ) के निकट ही दफनाया (सुपुर्दे-खाक) किया जाये।
इस विषय में इतिहासकार डॉ० दुलारी कुरैशी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा हैं कि “औरंगजेब ने जो वसीयत लिखी थी उसमें स्पष्ट लिखा था कि वह (औरंगजेब ) ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन को अपना गुरु (पीर मानते ) हैं। आपको बता दें कि जैनुद्दीन की मृत्यु औरंगजेब से काफी पहले ही हो चुकी थी।
यह बात भी सर्वविदित है कि औरंगजेब भले ही इस्लामिक रुढ़िवादी और कट्टर धर्मांध था पर वह एक विद्वान भी था। इतिहासकार डॉ० कुरैशी के अनुसार “औरंगजेब पढ़ाई में बहुत समय व्यतीत करता था और ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन को को अपना गुरु मानता था। यही कारण था कि वह मरने के बाद अपने गुरु की कब्र के बगल में दफ़न होना चाहता था और उसकी इच्छानुसार उसे उसके गुरु की कब्र के पास ही दफनाया गया।
औरंगजेब ने अपने मकबरे के संबंध में बहुत साफ़-साफ लिखा था की यह कैसा होना चाहिए।
डॉ० कुरैशी आगे बताते हुए कहते हैं कि “औरंगजेब ने जो वसीयत की उसमें लिखा था कि जितना पैसा मैंने ( औरंगजेब ) कमाया है उसे ही अपने मकबरे में इस्तेमाल करूँगा, इसके अतरिक्त उसने सब्जे का एक छोटा पौधा लगाने की भी वसीयत की थी। ज्ञात हो कि औरंगजेब राजकोष से अपने निजी खर्च के लिए धन नहीं लेता था इसके लिए वह टोपियां सिलता था। उसने अपनी हस्त लिपि में कुरान शरीफ भी लिखी थी।
औरंगजेब के मकबरे का निर्माण किसके द्वारा कराया गया?
औरंगजेब की मृत्यु 1707 के बाद उसकी वसीयत और इच्छानुसार उसके पुत्र आज़म शाह ने उसके मकबरे का निर्माण खुल्दाबाद (छत्रपती संभाजीनगर ज़िले (औरंगाबाद)) महराष्ट्र) में कराया था। औरंगजेब की अंतिम इच्छानुसार जैसा कि हम पहले बता चुके हैं उसे एकदम साधारण से मकबरे (बिना छत के) में सैयद जैनुद्दीन सिराज (औरंगज़ेब के गुरु) के बराबर में दफनाया गया था। इस मकबरे के निर्माण में उस समय मात्र 14 रुपए 12 आने का खर्चा आया था।
इससे पहले के बनाये गए जितने भी मुग़ल बादशाहों मकबरे बने वह इस्लामिक वास्तुकला के अनुसार भव्य और सुंदर बनाये गए और सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किये जाते थे लेकिन औरंगजेब का मकबरा मात्र लकड़ी से बना था। जिसमें सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं थे। यह वास्तव में अचम्भित करता है कि एक क्रूर और लड़ाकू शासक ने अपने मकबरे को इतना साधारण बनाने के लिए क्यों कहा?
अंग्रेज गवर्नर लार्ड लिटन (1876-1880) जब औरंगजेब की मजार (कब्र) देखने गया में तो वह यह देखकर अचम्भित हुआ की इतने शक्तिशाली और महान सम्राट का मकबरा साधारण कैसे हो सकता है? इसके पश्चात् लिटन ने कब्र की सुरक्षा हेतु संगमरमर की ग्रिल मकबरे के इर्द गिर्द लगवाई।
मुसलामानों के लिए खुल्दाबाद है धरती पर स्वर्ग
खुल्दाबाद धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से मुसलामानों के लिए अत्यंत महत्व रखता है यहाँ हिन्दुओं के लिए भद्र मारुती मंदिर अतिरिक्त मुस्लिम सूफी संतों का स्थान और मुग़ल सम्राट औरंगजेब के अलाबा कई अमीरों की कब्रें भी हैं। खुल्दाबाद को पहले ‘पृथ्वी पर स्वर्ग’ भी कहा जाता था।
इस संबंध में इतिहासकार संकेत कुलकर्णी ने खुल्दाबाद के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि
“काबुल, बुखारा, कंधार, समरकंद, ईरान, इराक और दूर-दूर से सौफी संत खुदलाबाद पहुँचते थे।
खुल्दाबाद दक्षिण भारत में इस्लाम धर्म का प्रमुख केंद्र और सूफी-संतों का गढ़ रहा है, देश-विदेश के सूफी संत यहाँ एकत्र होते थे और उनकी कब्रें यहीं खुल्दाबाद में स्थिति हैं। आज यही प्रसिद्धि औरंगज़ेब के लिए मरने के बाद भी मुसीबत बानी हुई है। ताजा बिबाद ने मृत औरंगज़ेब को ज़िंदा कर दिया है। लेकिन हम इतिहास की दृष्टि से देखें तो औरंगज़ेब एक राजा था जिसने राजतन्त्र में शासन किया और उसकी जगह कोई भी होता वह क्रूरता से ही शासन करता चाहे वह हिन्दू शासक होता या कोई अन्य धर्मालम्बी। क्या ब्रिटिश हुकूमत उदार थी? कितने अंग्रेजों की कब्र भारत में हैं।

खुल्दाबाद कैसे बन गया प्रमुख इस्लामी केंद्रबिंदु?
इतिहासकारों ने इस संबंध में बताया है की 1300 ईस्वी में दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने अपने शिष्य मुंतज़ीबुद्दीन बख्श को 700 सूफी संतों और फकीरों के साथ दक्कन में इस्लाम धर्म के प्रचार हेतु देवगिरि के लिए रवाना किया था। यह वह समय था जब खिलजी सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरि के शासक रामदेवराय यादव को पराजित करअपने अधीन कर लिया था।
इस प्रकार सूफी संत मुंतज़ीबुद्दीन ने राजधानी दौलताबाद को अपनी धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनाया और अपने साथ आये सूफी संतों और फकीरों को इस्लाम धर्म के प्रसार के लिए दक्षिण भेजा। 1309 में दौलताबाद में ही मुंतज़ीबुद्दीन का देहांत हो गया और उसे यहीं दफनाया गया। उसकी कब्र खुल्दाबाद में एक पहाड़ की तलहटी में बनाई गई।
17 वीं शक्तिशाली मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने जैनुद्दीन शिराजी कि दरगाह ( कब्र ) का भ्रमण किया था और 14 शताब्दी में किये गए उनके कार्यों से प्रेरित होकर ही औरंगजेब ने दक्षिण में विजय अभियान को अंजाम दिया था। औरंगजेब ने जैनुद्दीन की कब्र को चूमा और उन्हें अपना गुरु अथवा पीर स्वीकार किया।
इस संबंध में इतिहासकार कुलकर्णी ने बताया कि “औंरगजेब ने कहा था कि मेरी मृत्यु भारत के किसी भी कोने में हो लेकिन मेरा अंतिम संस्कार यहीं जैनुद्दीन शिराजी के पास ही किया जाये।”
यह भी पढ़िए-
कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत: | महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण |
मुहम्मद बिन कासिम: भारत पर आक्रमण | औरंगज़ेब का इतिहास: |
औरंगजेब का रहा महाराष्ट्र से गहरा नाता
जब शाहजहाँ (19 जनवरी 1628 –31 जुलाई 1658) मुगल बादशाह था तब उसने अपने तीसरे बेटे औरंगजेब को दक्षिण की ओर विशेष रूप से दौलताबाद भेजा था। औरंगजेब 1636 से 1644 तक दक्षिण का सूबेदार यहाँ रहा और यह उसकी पहली सूबेदारी थी। इस विषय में इतिहासकारों का कहना है कि औरंगजेब को औरंगाबाद बहुत बहुत पसंद था इसीलिए औरंगजेब ने दौलताबाद की जगह औरंगाबाद को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया।
इतिहासकार डॉ. कुरैशी इस संबंध में कहते हैं, ”सम्राट औरंगजेब ने दौलताबाद से एलुरु तक पूरे दक्कन का भ्रमण किया था. उसने यातायात के लिए दौलताबाद से एलुरु तक सड़क का निर्माण भी कराया था.” . वर्ष 1652 में औरंगजेब को फिर से औरंगाबाद की सूबेदारी मिली और वह यहां लौट आया। 1652 और 1659 के बीच औरंगजेब ने औरंगाबाद में बहुत से निर्माण कार्य किये। उसके द्वारा कराये गए निर्माण कार्यों को हम फोर्ट आर्क और हिमायत बाग़ के रूप में देख सकते हैं।
औरंगजेब ने मुगल सल्तनत को लगभग पूरे भारत में फैला दिया था, लेकिन महाराष्ट्र में मराठा आक्रमण बढ़ता जा रहा था। औरंगजेब 1681-82 में दक्कन लौट आया। औरंगजेब ने मुग़ल साम्राज्य को सबसे विस्तृत किया। यहीं दक्कन में 1707 में औरंगजेब ने अंतिम सांस ली। औरंगजेब की मृत्यु ३ मार्च 1707 में अहमदनगर, महाराष्ट्र में हुई थी।
खुल्दाबाद पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण स्थल है
खुल्दाबाद की पहचान औरंगजेब के मकबरे तक ही सीमित नहीं है। यहां है भाद्र मारुति का प्रसिद्ध मंदिर। औरंगजेब की पोती बानी बेगम के पास एक बगीचा है। उस बगीचे के बगल में एक झील है। मगर अब यह एक राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है जिसने देश में हिन्दू-मुसलमानों के बीच वैमनस्य को बढ़ाने में योगदान दिया है। हालाँकि अधिकांश लोग इस मुद्दे को सिर्फ राजनीतिक दृष्टि से ही देखते हैं जिसके लिए सत्ताधारी सरकार इस मुद्दे को भुनाना चाहती है।
अकबरुद्दीन ओवैसी की यात्रा के बाद राजनीतिक बयानवाजी हो सकती है, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि खुल्दाबाद पर्यटन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। मगर ऐतिहासिक महत्व को दरकिनार करते हुए कटटरवादी हिन्दू नेताओं ने इसे हिन्दुओं के अपमान से जोड़ दिया है।
संकेत कुलकर्णी ने इसका ऐतिहासिक महत्व बताते हुए खुलासा किया कि “सातवाहन शासकों से संबंधित अवशेष भी यहाँ से पाए गए हैं। यहाँ सिर्फ औरंगजेब की ही कब्र नहीं हैं इसके अतिरिक्त 12 से 15 अन्य प्रसिद्ध सूफी संतों की कब्रें हैं जिन्हें दरगाह कहा जाता और प्रतिवर्ष यहाँ भव्य उर्स का आयोजन किया जाता है।”
खुल्दाबाद सिर्फ इस्लामी संस्कृति और धर्म का गढ़ नहीं है यहाँ हिन्दू देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं। भद्रा मारूति ऐसा ही प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थान है जहाँ हिन्दू अनुयायी हनुमान जयंती पर दर्शन के लिए आते हैं।
औरंगाबाद के महत्व को औरंगजेब की दृष्टि से देखा जाये तो उसके लिए यह स्थान पवित्र था और उसने अपनी बेगम का मकबरा औरंगाबाद में ही निर्मित कराया, इस मकबरे को दक्कन का ताज कहकर भी पुकारा जाता है। औरंगाबाद औरंगजेब को कितना प्यार था इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि उसने अपनी जिंदगी के 87 वर्ष में से लगभग 37 वर्ष औरंगाबाद में ही गुजारे और अंततः यहीं दफ़न हुआ।
औरंगजेब की कब पर विवाद क्यों उभरा है?
हाल ही में एक हिंदी फिल्म “छावा” आई जिसमें शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी और पुत्र संभाजी के साथ औरंगजेब की क्रूरता को दर्शाया गया और जिस प्रकर ावनवीय क्रूरताओं से संभाजी की हत्या की गई उसे देखने के बाद कई हिन्दू संगठनों ने औरंगज़ेब के प्रति अपनी नफ़रत को दर्शाया और महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने औरंगज़ेब की कब्र को महराष्ट्र से हटाने की मांग की। महारष्ट्र के मुख्यमंत्री दवेंद्र फडणवीस ने भी इस मांग का समर्थन कर इस मुद्दे को और हवा दी।
निष्कर्ष
इस प्रकार राजतन्त्र में हुए अत्याचार को लोकतंत्र में भुनाया जा रहा है और औरंगज़ेब के बहाने हिन्दू मुसलमानों के बीच वैमनस्य का बीज बोया जा रहा है। देश को गुमराह कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में माहिर भारत की सत्ताधारी पार्टी ने अपनी सत्ता को किसी भी कीमत पर बनाये रखने के लिए इस प्रकार के विवादित मुद्दों को हवा दी है।
मगर क्या इससे इतिहास बदल जायेगा? क्या औरंगज़ेब ने जो व्यवहार किया वो सभी हिन्दुओं के साथ था? उसने जो व्यवहार किया वो अपने प्रतिद्व्न्दी शासक के साथ किया और उसकी जगह संभाजी होते तो सम्भवतः वह भी औरंगज़ेब के साथ वैसा ही व्यवहार करते। बेहतर हो कि ऐसे महत्वहीन मुद्दों की बजाय देश की प्रगति के विषय में सोचा जाए।
औरंगज़ेब के मकबरे के विषय में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न- FAQs
प्रश्न- औरंगज़ेब का मकबरा कब और किसने बनवाया?
उत्तर- औरंगजेब की मृत्यु 1707 के बाद उसके मकबरे का निर्माण उसके पुत्र आज़म शाह ने कराया।
प्रश्न- औरंगजेब की मृत्यु कब और कहाँ हुई?
उत्तर- औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च, 1707 को अहमदनगर (महाराष्ट्र) में हुई थी।
प्रश्न- औरंगज़ेब का मक़बरा कहाँ हैं?
उत्तर- खुल्दाबाद, औरंगाबाद महराष्ट्र।
प्रश्न- औरंगजेब के मकबरे में कितना खर्चा आया?
उत्तर- औरंगजेब के मकबरे के निर्माण में 14 रूपये 12 आने का खर्च आया था।
प्रश्न- औरंगजेब का गुरु कौन था?
उत्तर- सैयद जैनुद्दीन सिराज जिनके बराबर में औरंगज़ेब की कब्र है।
प्रश्न- औरंगजेब की कब्र कहाँ है?
उत्तर- खुल्दाबाद, औरंगाबाद महराष्ट्र।
प्रश्न- भारत का पहला मकबरा किसने बनवाया था?
उत्तर- भारत का पहला उद्यान-मकबरा, मुग़ल सम्राट हुमायूँ का है जो उसकी पत्नी हाजी बेगम ने 1572 ईस्वी में बनवाया।
प्रश्न- जहांगीर का मकबरा किसने बनवाया था?
उत्तर- जहांगीर के मक़बरे का निर्माण पाकिस्तान स्थित लाहौर में रावी नदी के तट पर शाहदरा बाग़ में उसकी पत्नी नूरजहां द्वारा बनवाया गया। यह 1927-1637 तक 10 वर्ष में बनकर तैयार हुआ। इसके निर्माण में 3 लाख रुपये का खर्चा आया था।
प्रश्न- शाहजहाँ का मकबरा कहाँ है?
उत्तर- शाहजहां का मक़बरा आगरा स्थित ताजमहल है जिसे उसने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में 1631-43 के बीच बनवाया था। जब 1658 में शाहजहां की मृत्यु हुई तो उसकी इच्छानुसार उसे भी मुमताज़ की कब्र के पास दफनाया गया।
अगर आपको इतिहास पढ़ना पसंद है तो ये भी पढ़िए
- समुद्रगुप्त का जीवन परिचय और उपलब्धियां
- मुगल सम्राट अकबर: जीवनी,
- सती प्रथा किसने बंद की:
- मुगल शासक बाबर का इतिहास: एक महान विजेता और साम्राज्य निर्माता
- रूसी क्रांति 1917: इतिहास, कारण और प्रभाव
- पुष्यमित्र शुंग का इतिहास और उपलब्धियां
- नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं और स्थल: एक विस्तृत अध्ययन
- Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: प्रारम्भिक जीवन, माता-पिता,