सबाल्टर्न स्टडीज: इतिहास के अध्ययन की पद्धति | Subaltern Studies – Hindi Notes 2025

By Santosh kumar

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सबाल्टर्न स्टडीज क्या है?

Subaltern Studiesसबाल्टर्न स्टडीज औपनिवेशिक काल में लिखे गए इतिहास की उस पद्धति का नाम है जिसमें सामान्य जन, निम्न वर्ग, किसान, मजदूर, आदिवासी, महिलाएँ एवं अन्य हाशिए के लोगों की भूमिका को जानबूझकर नजरअंदाज कर दिया गया था। इस पद्धति का उद्देश्य उन अनदेखी की गई घटनाओं, व्यक्तियों और सूचनाओं को पुनः खोजकर इतिहास के माध्यम से सामने लाना है।

ब्रिटिश इतिहासकारों एवं भारतीय अभिजात वर्ग ने इतिहास को अपने-अपने नजरिए से लिखा, जिसमें आम जनता की कोई जगह नहीं थी। सबाल्टर्न स्टडीज इन्हीं छिपी हुई परतों को उजागर करता है और अतीत के उन रहस्यों को सामने लाता है जो जानबूझकर दबाए गए थे।

Subaltern Studies
छवि स्रोत- द हिन्दू

सबाल्टर्न स्टडीज की विषय-वस्तु

सबाल्टर्न स्टडीज इतिहास के अध्ययन की एक ऐसी पद्धति है जो अपने समय की महत्वपूर्ण घटनाओं एवं उनके परिणामों का गहन विश्लेषण करती है। इसमें निम्नलिखित विषय शामिल किए जाते हैं:

  • सामान्य जनता के दैनिक जीवन का अध्ययन
  • जाति एवं वर्ग के समाजशास्त्रीय पहलू
  • कृषि एवं औद्योगिक क्रांतियों का प्रभाव
  • राजनीतिक आंदोलनों का विश्लेषण
  • संस्कृति, कला एवं साहित्य का विकास
  • युद्ध एवं उनके सामाजिक-आर्थिक परिणाम

यह पद्धति मुख्य रूप से ब्रिटिश इतिहास के प्रभावों पर केंद्रित रहती है तथा समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक नेतृत्व, स्वतंत्रता संग्राम, साहित्य (उपन्यास, कविता), कला एवं संस्कृति के विभिन्न आयामों का अध्ययन करती है।

सबाल्टर्न स्टडीज का महत्व

सबाल्टर्न स्टडीज का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि:

  • यह हमें उस काल के सभी पहलुओं की गहरी समझ प्रदान करता है।
  • यह इतिहास की मजबूत नींव तैयार करता है।
  • यह वर्तमान समस्याओं एवं परिस्थितियों को समझने में सहायक है।
  • विभिन्न समाजों, राज्यों, संस्कृतियों एवं जातियों की विविधता एवं समानता को उजागर करता है।
  • अलग-अलग भाषाओं, धर्मों एवं परंपराओं की अभिव्यक्ति को सामने लाता है।

इस प्रकार सबाल्टर्न स्टडीज न केवल अतीत को समझने का माध्यम है बल्कि वर्तमान चुनौतियों से निपटने का भी एक मजबूत औजार है।

कुछ आवश्यक परिभाषाएँ

  • उपनिवेशवाद (Colonialism): किसी शक्ति द्वारा दूसरे क्षेत्र पर सैन्य, आर्थिक एवं प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना। भारत में यह 1757 से 1947 तक चला।
  • उत्तर-औपनिवेशिक (Post-colonial): उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद का काल। इसमें पूर्व उपनिवेशित देशों का स्वतंत्र विकास तथा साम्राज्यवाद के बचे हुए प्रभावों का अध्ययन होता है। भारत, हांगकांग, जिम्बाब्वे जैसे देश आज भी इन प्रभावों को महसूस करते हैं।
  • सबाल्टर्न (Subaltern): इतालवी मार्क्सवादी विचारक एंटोनियो ग्राम्शी (1891-1937) द्वारा प्रयुक्त शब्द। ग्राम्शी को 1926 में मुसोलिनी की सरकार ने कैद कर लिया था और 1937 में उनकी मृत्यु तक वे जेल में रहे। जेल में उन्होंने “Prison Notebooks” लिखीं। उनके अनुसार, जिस समाज में कोई वर्ग दूसरे पर प्रभुत्व रखता है, वहाँ निम्न वर्ग “अधीनस्थ वर्ग” या “सबाल्टर्न” कहलाता है।

“सबाल्टर्न” शब्द का चयन एवं अर्थ

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार सबाल्टर्न का अर्थ है – निम्न पद, निम्न रैंक, अधीनस्थ स्थिति।
क्या इसका मतलब यह है कि सबाल्टर्न लोग हीन हैं? बिल्कुल नहीं।
परंपरागत इतिहास में राजा-महाराजा, सेनापति, बड़े नेता ही महत्वपूर्ण माने गए। आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी को “छोटी” समझकर नजरअंदाज कर दिया गया। सबाल्टर्न स्टडीज इन्हीं अनदेखी आवाजों को इतिहास में स्थान दिलाता है तथा उनकी स्वतंत्र एजेंसी (agency) को मान्यता देता है।

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भारत में सबाल्टर्न स्टडीज का प्रारंभ (1982 से)

1982 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने “Subaltern Studies” शृंखला शुरू की। यह पश्चिम में प्रशिक्षित भारतीय विद्वानों (रणजीत गुहा, गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक, दीपेश चक्रवर्ती, परथा चटर्जी आदि) का प्रयास था कि भारत का अपना इतिहास वापस लिखा जाए।

इन विद्वानों का मुख्य लक्ष्य था:

  • अभिजात वर्ग (elite) केंद्रित इतिहास से मुक्ति
  • यूरोकेंद्रित (Eurocentric) दृष्टिकोण का विरोध
  • “कैंब्रिज स्कूल” एवं “नेशनलिस्ट स्कूल” दोनों की सीमाओं को पार करना
  • वर्ग, जाति, लिंग, भाषा, नस्ल एवं संस्कृति के आधार पर सबाल्टर्न की पहचान करना

रणजीत गुहा ने तर्क दिया कि औपनिवेशिक काल में राजनीतिक प्रभुत्व तो था, लेकिन पूर्ण सांस्कृतिक आधिपत्य (hegemony) नहीं था। इसलिए सबाल्टर्न वर्गों ने अपना स्वतंत्र प्रतिरोध किया।

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प्रमुख विद्वान एवं उनके योगदान

  • रणजीत गुहा: “Elementary Aspects of Peasant Insurgency in Colonial India” – किसान विद्रोहों का स्वतंत्र चरित्र सिद्ध किया।
  • गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक: नारीवाद, विघटनवाद एवं मार्क्सवाद के आधार पर “Can the Subaltern Speak?” निबंध। सती प्रथा के उदाहरण से दिखाया कि सबाल्टर्न की आवाज हमेशा दबा दी जाती है।
  • दीपेश चक्रवर्ती: “Provincializing Europe” – यूरोपीय इतिहास को सार्वभौमिक मानने की आलोचना।
  • परथा चटर्जी: राष्ट्रवाद के दो क्षेत्र – भौतिक एवं आध्यात्मिक।

सबाल्टर्न स्टडीज की कार्यपद्धति

  • औपनिवेशिक अभिलेखों को “अनाज के खिलाफ” (against the grain) पढ़ना (वाल्टर बेंजामिन का विचार)।
  • लोकगीत, मौखिक परंपराएँ, अफवाहें, लोककथाएँ, धार्मिक ग्रंथ आदि को स्रोत मानना।
  • अभिजात वर्ग के दस्तावेजों को नए दृष्टिकोण से पुनर्व्याख्या करना।

सबाल्टर्न स्टडीज का वैश्विक संदर्भ

  • 1930s: सी.एल.आर. जेम्स की “The Black Jacobins” – हैती में गुलाम विद्रोह का अध्ययन।
  • 1960s: न्यू लेफ्ट आंदोलन, नागरिक अधिकार आंदोलन, नारीवादी आंदोलन।
  • जाति, वर्ग, लिंग (race, class, gender) का त्रिकोणीय विश्लेषण।
  • एडवर्ड सईद की “Orientalism” (1978) ने “अन्य” (Other) की अवधारणा को चुनौती दी।

सबाल्टर्न स्टडीज की आलोचनाएँ

  • कुछ विद्वानों का कहना है कि यह पद्धति अति-स्थानीय हो जाती है।
  • कुछ इसे अति-रोमांटिक मानते हैं।
  • पश्चिमी सिद्धांतों से पूर्ण मुक्ति असंभव बताई जाती है।

फिर भी, सबाल्टर्न स्टडीज ने इतिहास-लेखन को पूरी तरह बदल दिया है। यह सिद्ध कर दिया कि इतिहास केवल विजेताओं का नहीं, पराजितों, चुप रहने वालों और हाशिए पर धकेले गए लोगों का भी होता है।

निष्कर्ष

सबाल्टर्न स्टडीज ने साबित किया कि इतिहास कोई स्थिर किताब नहीं है। यह हर पीढ़ी के साथ बदलता और विस्तारित होता है। यह हमें सिखाता है कि जब तक हम आम आदमी, किसान, मजदूर, महिला, दलित, आदिवासी की आवाज को इतिहास में स्थान नहीं देंगे, तब तक हमारा इतिहास अधूरा रहेगा। यही सबाल्टर्न स्टडीज की सबसे बड़ी देन है।

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