भारत की मिट्टियाँ (Soils of India) – भारत देश अपनी विशाल भू-आकृति, ऊँचे-नीचे इलाकों और अलग-अलग मौसम की वजह से मिट्टी के प्रकार में भी विविधता रखता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार भारत में कुल 8 मुख्य प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं। यह टॉपिक हर राज्य के हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा 2026 में जरूर आता है। इस लेख में हम हर मिट्टी का नाम, क्षेत्रफल, रंग, बनावट, फसलें, कमी और सुधार – सब कुछ सरल भाषा में समझाएँगे।

भारत की मिट्टियाँ – भारत में कितने प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं – High School Board Exam-2026
Soils of India | भारत की 8 मुख्य मिट्टियों की पूरी जानकारी
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)

यह भारत की सबसे उर्वर मिट्टी है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा (करीब 15 लाख वर्ग किलोमीटर) घेरती है। इसमें रेत, महीन गाद और मिट्टी (क्ले) का संतुलित मिश्रण होता है। मुख्य रूप से यह नदियों के मैदानों, तटीय इलाकों और डेल्टा क्षेत्रों में फैली हुई है। पर्वतों की तलहटी में बने गिरिपाद मैदानों (जहाँ कई नदियों की जलोढ़ सामग्री एकत्र होकर समतल भूमि बनाती है) में भी यह पाई जाती है।
भू-वैज्ञानिक इसे दो भागों में बाँटते हैं:
- बांगर (पुरानी जलोढ़): ऊँचे इलाकों में स्थित, कंकड़ और कैल्शियम कार्बोनेट से भरपूर, भूरे-काले रंग की। खादर से करीब 30 मीटर ऊँचाई पर मिलती है।
- खादर (नई जलोढ़): हर साल नदियों की बाढ़ से ताज़ी मिट्टी जमा होती है, इसलिए यह बांगर से कहीं ज्यादा उपजाऊ है।
पोषक तत्व: पोटाश, फॉस्फोरिक एसिड, चूना और कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में। कमी: नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी।
यह मिट्टी गेहूं, चावल, गन्ना और सब्जियों जैसी फसलों के लिए आदर्श है।
2. काली मिट्टी (Black Soil / Regur Soil)
काली मिट्टी, जिसे रेगुर या कपासी मिट्टी भी कहते हैं, गहरे काले रंग की होती है और कपास की खेती के लिए सबसे बढ़िया मानी जाती है। यह भारत के करीब 5.46 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। इसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी से निकले लावा के टूटने और घिसने से हुई है, जिसमें चट्टानों की बनावट और मौसम ने अहम भूमिका निभाई। काला रंग मैग्नेटाइट, लोहे, एल्यूमिनियम सिलिकेट और ह्यूमस की वजह से आता है।
इस मिट्टी की खासियत यह है कि गीली होने पर यह चिपचिपी हो जाती है और सूखने पर दरारें पड़ जाती हैं। पानी रोकने की अपनी बेहतरीन क्षमता के कारण यह कपास, मोटे अनाज, तिलहन, सूरजमुखी, अरंडी, सब्जियाँ और खट्टे फलों के लिए आदर्श है, हालाँकि इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और कार्बनिक पदार्थों की कमी रहती है।
कपास की खेती के लिए विश्व प्रसिद्ध।
- दूसरा नाम: कपासी मिट्टी, रेगुर
- क्षेत्रफल: 5.46 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र, कर्नाटक
- बनावट: ज्वालामुखी लावा से बनी, चिपचिपी, सूखने पर दरारें
- रंग: काला (लोहा, मैग्नीशियम की वजह से)
- फसलें: कपास, ज्वार, बाजरा, तिलहन, सूरजमुखी, अरंडी
- कमी: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कार्बनिक पदार्थ
- खास: पानी अच्छे से सोखती है, सूखे में भी फसल देती है
3. लाल मिट्टी (Red Soil)
लाल मिट्टी भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 5.18 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यह पुरानी क्रिस्टलीय चट्टानों के टूटने-घिसने से बनी है। इसकी बनावट जगह के अनुसार बदलती है – नीचे के इलाकों में यह दोमट जैसी मुलायम होती है, जबकि ऊँची जगहों पर कंकड़ बिखरे रहते हैं।
सामान्य रूप से यह कम उर्वर होती है और अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई जरूरी रहती है। ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आलू, बाजरा और मूंगफली अच्छी उगती है, जबकि निचले भागों में रागी, चावल और तंबाकू जैसी फसलें ली जा सकती हैं। इसमें घुलनशील नमक मौजूद रहते हैं, लेकिन फॉस्फोरिक एसिड, कार्बनिक पदार्थ, ह्यूमस, चूना और नाइट्रोजन की कमी आम है।
लोहे की वजह से लाल रंग।
- क्षेत्रफल: 5.18 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र, ओडिशा, झारखंड
- बनावट: पुरानी क्रिस्टलीय चट्टानों से बनी, ऊपर कंकड़, नीचे दोमट
- फसलें:
- ऊँची जगह: बाजरा, मूंगफली, आलू
- नीची जगह: चावल, रागी, तंबाकू
- कमी: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, चूना, ह्यूमस
- खास: सिंचाई जरूरी, कम उपजाऊ
4. लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
लैटेराइट मिट्टी भारत के करीब 1.26 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। यह भारी बारिश (200 सेमी से ज्यादा) वाले इलाकों में चूना और सिलिका के बह जाने से बनती है। आमतौर पर यह झाड़ियों और चरागाह के लिए इस्तेमाल होती है, लेकिन रासायनिक खाद डालने पर चावल, रागी और काजू जैसी फसलें उगाई जा सकती हैं। इसमें लोहे का ऑक्साइड और एल्यूमिनियम ऑक्साइड भरपूर होता है, पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरिक एसिड, पोटाश, चूना और कार्बनिक पदार्थों की कमी रहती है।
भारी बारिश से चूना-सिलिका धुल जाता है।
- क्षेत्रफल: 1.26 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: केरल, कर्नाटक, गोवा, असम, पश्चिमी घाट
- बनावट: लौह ऑक्साइड + एल्यूमिनियम से भरी
- फसलें: उर्वरक डालकर – चावल, रागी, काजू, चाय
- कमी: नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस, चूना
- खास: ईंट बनाने में भी इस्तेमाल होती है
5. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)
पर्वतीय या जंगली मिट्टी भारत के लगभग 2.85 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। मौसम और पर्यावरण की वजह से इसकी बनावट जगह-जगह अलग-अलग होती है। यह अभी भी बन रही मिट्टी है और ह्यूमस की भरपूर मात्रा के कारण अम्लीय होती है। इसमें खेती के लिए खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ती। ज्यादा बारिश वाले इलाकों में ह्यूमस और भी अधिक होता है। इस मिट्टी में चाय, कॉफी, मसाले और उष्णकटिबंधीय फल आसानी से उगाए जा सकते हैं।
जंगलों और पहाड़ों में पाई जाती है।
- क्षेत्रफल: 2.85 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल
- बनावट: ह्यूमस से भरपूर, अम्लीय
- फसलें: चाय, कॉफी, मसाले, सेब, आड़ू, गेहूं, मक्का
- कमी: पोटाश, फॉस्फोरस, चूना
- खास: उर्वरक की जरूरत नहीं, जैविक खेती के लिए बेस्ट
6. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)
शुष्क या मरुस्थलीय मिट्टी मुख्य रूप से सूखे और अर्ध-सूखे इलाकों में फैली है और भारत के करीब 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को घेरती है। बालू की ज्यादा मात्रा के कारण यह रेतीली बनावट वाली होती है। यह ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों के लिए उपयुक्त रहती है। हालांकि सिंचाई उपलब्ध होने पर गेहूं और कपास की खेती भी सफलतापूर्वक की जाती है, जैसे राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में देखा जाता है। इसमें घुलनशील नमक और फॉस्फोरस की मात्रा अधिक रहती है, जबकि कार्बनिक पदार्थ और नाइट्रोजन की कमी आम बात है।
रेगिस्तान में रेतीली।
- क्षेत्रफल: 1.42 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: राजस्थान, कच्छ, गुजरात
- बनावट: बालू ज्यादा, पानी नहीं रुकता
- फसलें: ज्वार, बाजरा; सिंचाई से – गेहूं, कपास (जैसे गंगानगर)
- कमी: नाइट्रोजन, कार्बनिक पदार्थ
- अधिक: फॉस्फोरस, घुलनशील लवण
7. लवणीय-क्षारीय मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)
लवणीय और क्षारीय मिट्टी भारत के सूखे व अर्ध-सूखे इलाकों जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और तमिलनाडु में पाई जाती है, जो कुल 1.70 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र घेरती है। यह सोडियम व मैग्नीशियम की अधिकता से क्षारीय और कैल्शियम-पोटैशियम की मौजूदगी से लवणीय होती है। सामान्य रूप से खेती के लिए अनुपयुक्त रहती है और स्थानीय भाषाओं में रेह, कल्लर, ऊसर, कार्ल, रकार या चोपेन जैसे नामों से जानी जाती है। फिर भी, इसमें चूना और जिप्सम मिलाकर सिंचाई करने पर चावल, गन्ना, गेहूं तथा तंबाकू जैसी नमक सहन करने वाली फसलें सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं।
नमक ज्यादा, खेती मुश्किल।
- क्षेत्रफल: 1.70 लाख वर्ग किमी
- कहाँ मिलती है: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, यूपी, बिहार
- स्थानीय नाम: रेह, ऊसर, कल्लर, चोपन
- बनावट: सोडियम, मैग्नीशियम ज्यादा
- सुधार: जिप्सम + चूना + सिंचाई
- फसलें: चावल, गन्ना, गेहूं (लवण सहन करने वाली)
8. दलदली मिट्टी (Peaty & Marshy Soil)
दलदली और गीली मिट्टी अत्यधिक नमी वाली परिस्थितियों में कार्बनिक पदार्थों के जमा होने से बनती है। यह मुख्य रूप से समुद्र तटीय इलाकों और जलजमाव वाले क्षेत्रों में मिलती है। इसमें घुलनशील नमकों की मात्रा ज्यादा रहती है, पर पोटाश और फॉस्फोरस की कमी होती है। सामान्य खेती के लिए यह अनुपयुक्त है, लेकिन कम जलभराव वाले स्थानों में धान की फसल अच्छी तरह उगाई जाती है।
पानी भरे इलाकों में।
- कहाँ मिलती है: केरल (कुट्टनाड), बंगाल, ओडिशा तट
- बनावट: कार्बनिक पदार्थ + पानी
- फसलें: धान (कम पानी में)
- कमी: पोटाश, फॉस्फोरस
- अधिक: घुलनशील लवण
निष्कर्ष – भारत की मिट्टियाँ और खेती
निष्कर्ष: भारत की विशाल भू-विविधता और अलग-अलग मौसम की वजह से ही यहाँ मिट्टियाँ भी कई प्रकार की हैं। इसी कारण देश में तरह-तरह की फसलें सफलतापूर्वक पैदा की जाती हैं।







