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Chhatrapati Shivaji Maharaj Children | शिवाजी महाराज की संतान, प्रमुख युद्ध, प्रशासन, युद्ध पद्धति, वाघ नख और सम्पूर्ण इतिहास

By The History Point

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क्षत्रपति शिवाजी महाराज और बघनख शिवाजी महाराज की संतान शिवाजी महराज की पत्नियां शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक पुरंदर की संधि सूरत की लूट शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक
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छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680 ईस्वी) का नाम हिन्दू पद पादशाही के जन्मदाता के रूप में जाना जाता है। शिवजी महाराज ने मुग़ल शासन के सबसे शक्तिशाली राजा औरंगजेब के समय में महाराष्ट्र में मराठों की सत्ता स्थापित की। सामान्य कद-काठी के होते हुए भी शिवानी महाराज ने मुग़ल सेना से डटकर मुकाबला किया और महाराष्ट्र में मुगलों को कभी चैन नहीं लेने दिया और अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित की।

हाल ही में सिनेमाघरों में एक फिल्म ‘छावा’ आई जिसे देखने के बाद बहुत से लोग शिवाजी महाराज के विषय में जानना चाहते हैं विशेषकर Chhatrapati Shivaji Maharaj Children यानि उनके संतान के विषय में जानना चाहते हैं।

इस ऐतिहासिक लेख में हम शिवाजी महाराज शिवाजी महाराज की संतान, प्रमुख युद्ध, प्रशासन, युद्ध पद्धति, वाघ नख और सम्पूर्ण इतिहास के बारे में जानेंगे। इसके आलावा शिवाजी महाराज से संबंधित परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के भी उत्तर देंगे। एक टेबल के माध्यम से शिवाजी महाराज द्वारा लड़े गए युद्धों का परिचय भी देंगे। अतः शिवाजी महाराज के जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

Shivaji
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नाम शिवाजी महाराज
पुरा नाम छत्रपति शिवाजीराजे भोसले
जन्म 19 फरवरी 1630 ईस्वी
जन्मस्थान शिवनेरी के दुर्ग, महाराष्ट्र
पिता का नाम शाहजीराजे भोंसले
माता का नाम जीजाबाई जाधवराव
पत्नियां सईबाई निंबालकर
सोयराबाई मोहिते
पुतलाबाई पालकर
सकवरबाई गायकवाड
काशीबाई जाधव
सगुणाबाई शिर्के
गुंवांताबाई इंगले
लक्ष्मीबाई विचारे
संतान सम्भाजी, रानूबाई, सखूबाई, अंबिकाबाई, राजाराम, दीपाबाई, कमलाबाई और राजकुवरबाई
जाति कुर्मी सिसोदिया राजपूत
घराना भोंसले
पुरंदर की संधि 1665 ईस्वी
राज्याभिषेक 6 जून 1674 ईस्वी
राजधानी रायगढ़
मृत्यु 3 अप्रैल 1680
मृत्यु का स्थान रायगढ़
मृत्यु का कारण पेचिस
मृत्यु के समय आयु 50 वर्ष
उत्तराधिकारी संभाजी

Shivaji Maharaj Early Life | शिवाजी महाराज का प्रारम्भिक जीवन

महान सैनिक और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के जनक शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी के दुर्ग, महाराष्ट्र में 19 फरवरी 1630 ईस्वी में हुआ। शिवाजी के पिता का नाम शाहजीराजे भोंसले था, जो एक कुर्मी कुल में जन्में शक्तिशाली सामंत राजा थे। शिवाजी महाराज की माता का नाम जीजाबाई जाधवराव था जो जाधव कुल की कन्या थीं, शिवाजी महाराज के जीवन पर उनकी माता जीजाबाई का बहुत प्रभाव पड़ा। शिवाजी का अधिकांश बचपन उनकी माता के आंचल में ही गुजरा।

शिवाजी के एक बड़े भाई संभाजीराजे था जो अधिकांशतः अपने पिता शाहजीराजे भोसले के साथ ही रहते थे। शिवाजी के पिता की एक अन्य पत्नी का नाम तुकाबाई मोहिते था जिनसे एक पुत्र व्यंकोजीराजे था। शिवाजी महाराज ने राजनीती और युद्ध की औपचारिक शिक्षा ली थी और प्रशासनिक व्यवस्था का अध्ययन किया था। वे अपने समय की घटनाओं और वातावरण से पूर्णरूपेण परिचित थे।

उन्होंने देश की गुलामी को समझा और अपने अंदर स्वाधीनता का वृक्ष अलग लिया। शिवाजी महराज की माता एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं और उनके गुण ही शिवाजी के अंदर भी गए। शिवाजी महाराज ने कुछ विश्वासपात्र साथियों का एक संगठन तैयार किया।

शिवाजी महाराज का विवाह और पत्नियां (Chhatrapati Shivaji Maharaj Spouse)

शिवाजी महाराज में उस समय प्रचलित बहुपत्नी प्रथा के अनुसार वैवाहिक परिपाटी का पालन किया और कुठ 8 विवाह किया। उन्होंने पहली शादी 14 मई 1640 को सइबाई निंबाळकर (सई भोसले) से की जो शिवाजी की प्रमुख पत्नी और शिवाजी के उत्तराधिकारी पुत्र शम्भाजी की माता थी। शिवाजी ने राजनीतिक महत्व को देखते हुए वैवाहिक संबंधों को बढ़ाया उनकी आठ पत्नियों की सूची नीचे देखिये-

विवाह का वर्षपत्नी का नामसंतान के नाम
1640सईबाई निंबालकरसम्भाजी, रानूबाई, सखूबाई, अंबिकाबाई
1641सोयराबाई मोहितेराजाराम, दीपाबाई
1656पुतलाबाई पालकरकोई संतान नहीं
1657सकवरबाई गायकवाडकमलाबाई
1659काशीबाई जाधवकोई संतान नहीं
1660सगुणाबाई शिर्केराजकुवरबाई
1661गुंवांताबाई इंगलेकोई संतान नहीं
1662लक्ष्मीबाई विचारेकोई संतान नहीं

शिवाजी महाराज के जीवन पर प्रभाव डालने वाले लोग

जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि शिवाजी महाराज के जीवन पर उनकी माता जीजाबाई, का बहुत प्रभाव था। मगर इसके आलावा दादाजी कोंडदेवसमर्थ रामदास, और संत तुकाराम जैसे धार्मिक और राजनीतिक गुरुओं का भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इन लोगों ने शिवाजी के अंदर गौ, देव, और ब्राह्मण रक्षण की भावना को जागृत किया, साथ ही हिंदू पद पादशाही (हिंदू साम्राज्य) की स्थापना की भावना को प्रेरित किया। नीचे संक्षेप में इन लोगों के योगदान को रेखांकित किया गया है:-


1. जीजाबाई (शिवाजी महाराज की माता)

जीजाबाई शिवाजी महाराज की माता थीं जो देवगिरि के राज-परिवार के महान शक्तिशाली जागीरदार यादवराज की पुत्री थी। उन्होंने अपने पुत्र के अंदर धार्मिक और राष्ट्रवाद की भावना का जागृत किया। वे ही शिवाजी महाराज की प्रथम गुरु थीं। उन्होंने बचपन से ही अपने पुत्र के अंदर हिंदू धर्म, संस्कृति और स्वराज्य के प्रति समर्पण की भावना को जागृत किया।

माता जीजाबाई ने शिवाजी महाराज को गौ, देव, और ब्राह्मण रक्षण के महत्व को समझाया। यही कारण है कि शिवाजी ने अपने शासनकाल में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया, मंदिरों की रक्षा की, और ब्राह्मणों का सम्मान किया। जीजाबाई ने शिवाजी को हिंदू पद पादशाही (हिंदू साम्राज्य) के सपने को साकार करने के लिए प्रेरित किया।


2. दादाजी कोंडदेव ( शिवाजी महाराज के राजनीतिक गुरु)

दादाजी कोंडदेव शिवाजी के राजनीतिक गुरु, संरक्षक और शिक्षक थे, जिन्होंने शिवाजी महाराज को प्रशासन, युद्ध कला, और राजनीति की शिक्षा दी। इसके अलावा उन्होंने शिवाजी को धर्म और राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा दी। वे शिवाजी महाराज को अपने पुत्र के सामान मानते थे। दादाजी ने शिवाजी को यह सिखाया कि एक सच्चे नेता का कर्तव्य अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करना है। उनके प्रभावी मार्गदर्शन ने शिवाजी को एक कुशल योद्धा और न्यायप्रिय शासक बनने को प्रेरित किया।

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3. समर्थ रामदास ( शिवाजी महाराज के धार्मिक गुरु)

समर्थ रामदास शिवाजी महाराज के धार्मिक गुरु और एक आध्यात्मिक गुरु और मराठा संस्कृति के प्रतीक थे। उन्होंने शिवाजी को धर्म और राष्ट्र के प्रति समर्पण की शिक्षा दी। रामदास का पवित्र गुरु मन्त्र था-

“जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” देव, गौ, भ्रह्माण रक्षणीय हैं। ऐसे घोर समय धर्म का नाश हो रहा है और देशवासियों का जीवन मृत्यु से भी अधिक दुःखमय है। ऐसे घोर समय परमेशवर ने तुम्हें उत्पन्न किया है, उठो सारे महाराष्ट्र को एकजुट करो और धर्म को पुनर्जीवित करो अन्यथा स्वर्ग से हमारे पूर्वज हमें दिक्कारेंगे। “

इस तरह के प्रेरणादायी उद्घोष ने शिवाजी को हिंदू पद पादशाही के सपने को साकार करने के लिए प्रेरित किया। समर्थ रामदास ने शिवाजी को यह समझाया कि एक सच्चे राजा का कर्तव्य अपनी प्रजा और धर्म की रक्षा करना है। उनकी रचना “दासबोध” शिवाजी के लिए एक प्रेरणादायी मार्गदर्शक ग्रंथ थी, जिसमें नैतिकता, धर्म, और नेतृत्व के सिद्धांतों का वर्णन था।


4. संत तुकाराम

संत तुकाराम एक महान संत और भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे। उन्होंने शिवाजी को भक्ति और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनके उपदेशों ने शिवाजी के अंदर गौ, देव, और ब्राह्मण रक्षण की भावना को और मजबूत किया। संत तुकाराम ने शिवाजी को यह सिखाया कि एक सच्चे नेता का कर्तव्य अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करना है।

ऐसे गुरुओं और धार्मिक प्रवृति मि माता ने शिवाजी महाराज को हिन्दू पद पादशाही के सिद्धांत को लागू करने की प्रेरणा दी और उन्होंने जल्द ही एक सेना एकत्र कर विजय अभियान शुरू किये।

शिवाजी महाराज का विजय अभियान

शिवाजी महाराज ने 19 वर्ष की आयु में अपने देश को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त कराने के लिए विजय अभियान शुरू किये और सबसे पहल उन्होंने बीजापुर साम्राज्य में फैली अराजकता से लाभ उठाने के लिए 1646 ईस्वी में तोरण के किले पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात रायगढ़ के किले को जीतकर उसका जीर्णोद्धार कराया। अपने चाचा संभाजी मोहते से सूपा का किला जीता। दादा जी कोंडदेव की मृत्यु (7 March 1647) के उपरांत शिवाजी महाराज ने अपने पिता की समस्त जागीर पर कब्ज़ा कर लिया। पोरबंदर, बारामती, इन्दुपुरा और कोण्डाणा के किलों को भी जीत लिया।

कहा जाता है कि शिवाजी ने यह विजय अभियान अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए शुरू किया था। बीजापुर के नवाब ने शिवाजी के पिता शाहजी राजे को अपमानित कर उनकी जागीर से उन्हें बेदखल कर दरबार से निकाल दिया था, और उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

शिवाजी महाराज अपने पिता के जीवन को संकट में नहींडालना चाहते थे अतः उन्होंने छापे मारने बंद कर दिए। उन्होंने दक्षिण के मुग़ल राज्यपाल राजकुमार मुराद से पात्र-व्यवहार कर मुग़ल सेना में भर्ती होने की इच्छा भी जताई। शिवाजी की इस चाल से बीजापुर का नवाब डर गया और उसने शिवाजी महाराज के पिता को आज़ाद कर दिया। उनकी रिहाई में कुछ मुसलमान जागीरदारों का भी प्रयास था जिनमें शारजाखां और रणदुल्लाखां के नाम प्रमुख हैं। शाहजी को कुछ शर्तों के साथ 1649 ईस्वी में आज़ाद कर दिया गया।

शिवाजी महाराज ने 1649 से 1655 ईस्वी तक खुदको शांत रखा। इस बीच शिवाजी महाराज ने इन 6 वर्षों के दौरान अपनी शक्ति को संगठित और मजबूत किया तथा अपने शासन में सुधार किया।

बीजापुर के साथ संघर्ष 1657-62 ईस्वी

जैसे ही बीजापुर के सुल्तान नवाब मोहम्मद आदिल शाह की मृत्यु नवम्बर 1656 में हुई और उसका अनुभहीन 18 वर्षीय पुत्र गद्दी पर बैठा बीजापुर एक अवसर के रूप में सामने आया और इसका सबसे पहले फायदा मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने फायदा उठाया। 1657 ईस्वी में उसने मेरे जुमला की सहायता से बीदर, कल्याणी और पुरंदर के किलों पर अधिकार कर लिया।

ऐसे में बीजापुर सुलतान ने औरंगजेब को कुछ और जिले तथा युद्ध हर्जाने के रूप में बड़ी धनराशि देना स्वीकार किया और संधि कर ली। वास्तव में यह समय औरंगजेब के लिए अनुकूल नहीं था क्योंकि 1657 ईस्वी में शाहजहां की बीमारी की सूचना पाकर औरंगजेब के लिए उत्तर भारत की ओर लौटना आवश्यक हो गया था अतः उसने संधि करना उचित समझा।

शिवाजी महाराज और अफजल खां (1659 ईस्वी)

जैसे ही औरंगजेब उत्तर भारत लौटा बैसे ही बीजापुर सुलतान ने शिवाजी को सबक सिखाने की ठानी। अफजल खान ने एक बड़ी से सेना का संगठन किया और शिवजी को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ने का प्रण लिया। अफ़ज़ल खान ने शिवाजी को “पहाड़ी चूहा” कहा और बेड़ियों में जकड़कर लाने की शेखी बघारी।

1659 ईस्वी में, जब बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह II ने सेनापति अफजल खान को शिवाजी को परास्त कर गिरफ्तार के लिए भेजा। अफजल खान एक शक्तिशाली और क्रूर सेनापति था, मगर जब वह युद्ध मैदान में पहुंचा तो उसे अहसास हुआ कि पर्वतीय प्रदेश में शिवाजी को परास्त करना असंभव है तो उसने एक चाल खेली। अफ़ज़ल खान कृष्णजी भास्कर एक हिन्दू मंत्री को दूत बनाकर शिवाजी के पास भेजा और बातचीत का प्रस्ताव शिवाजी महाराज के पास भेजा।

शिवाजी महाराज ने दूत का अच्छे से स्वागत और सम्मान किया। शिवाजी महाराज ने कृष्णजी भास्कर को हिन्दू धर्म और संस्कृति के लिए सच बोलने के लिए कहा। कृष्णजी ने ज्यादा कुछ ने बोलते हुए सिर्फ इतना कहा कि अफ़ज़ल खान की नियत ठीक नहीं है। िस्टना इशारा पाकर शिवाजी महराज सतर्क हो गए।

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क्षत्रपति शिवाजी महराज और बघनख (Chhatrapati Shivaji Maharaj Wagh Nakh)

प्रतापगढ़ का युद्ध (1659)-शिवाजी और अफ़ज़ल खान के बीच नियत स्थान पर भेंट हुई। शिवाजी पहले से ही अफ़ज़ल खान की मंशा से परिचित थे और अपने कपड़ों के अंदर लोहे का कवच पहनकर गए थे। अफ़ज़ल खान ने जैसे ही शिवाजी महाराज पर हमला किया बैसे ही उन्होंने अपने बघनख से उनके पेट में जबरदस्त प्रहार किया जिससे अफ़ज़ल खान होश खो बैठा और शिवजी महाराज ने पानी कटार से उसका वध कर दिया। अफ़ज़ल खान के मरते ही उसकी सेना में भगदड़ मच गई। उसके बाद मराठा सेना ने मुसलिम सेना को बुरी तरह मारा।

अफ़ज़ल खान की पराजय के बाद शिवाजी महाराज और बीजापुर के बीच कई युद्ध हुए मगर हर बार शिवाजी महाराज की विजय हुई और अंततः दोनों के बीच संधि हो गई और शिवाजी द्वारा जीते गए दुर्ग और किलों पर उनका शिकार स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार बीजापुर और शिवाजी के बीच शांति की स्थापना हुई।

क्षत्रपति शिवाजी महाराज और बघनख शिवाजी महाराज की संतान शिवाजी महराज की पत्नियां शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक पुरंदर की संधि सूरत की लूट शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

क्षत्रपति शिवाजी महाराज और मुग़ल

बीजापुर सल्तनत को पराजित करने के बाद शिवाजी महाराज का दुस्साहस और बढ़ गया और उन्होंने अब मुग़ल अधिकृत प्रदेशों पर आक्रमण करने शुरू कर दिए। ऐसे में औरंगजेब कैसे शांत बैठता और उसने शाइस्ता खां को दक्षिण का राज्यपाल नियुक्त कर शिवाजी को काबू में करने के आदेश दिए।

शिवाजी और शाइस्ता खान

शाइस्ता खान ने प्रारम्भ में मराठा सेना को काबू में रखा और शिवाजी के अधिकार वाले कुछ किलों पर कब्जा कर लिया। लेकिन गुरिल्ला युद्ध पद्धति से मराठा सेना ने मुग़ल सेना को खूब परेशान किया। शाइस्ता खान की समझ में नहीं आ रहा था आखिर करे तो क्या करे।

अंततः उसने पुणे के किले में रहने का फैसला किया। मगर शाइस्ता खान यह भूल गया कि शिवाजी का बचपन उसी किले में बीता था और वे उसके कोने-कोने से परिचित थे। 1663 ईस्वी में शिवाजी ने 400 साथियों को साथ लेकर पुणे के किले में शाइस्ता खान के निवास पर आक्रमण कर दिया। शाइस्ता खान उस समय सोया हुआ था मगर उसकी दासी ने उसे जगाया। इससे पहले कि शाइस्ता खान हमला करता शिवाजी महराज ने उसका अंगूठा काट डाला। शाइस्ता खान के पुत्र ने आत्मसमर्पण किया मगर उसकी हत्या कर दी गई। अपना काम पूरा कर मराठे भाग निकले।

इस घटना के अगले दिन राजा जसवंत सिंह शाइस्ता खान से मिलने गए। शाइस्ता खान ने कहा “मैं तो सोचता था कि महाराजा रात्रि को मेरी रक्षा करते हुए युद्ध में काम आ गए।” दरअसल शाइस्ता खान को शक था कि इस हमले में जसवंत सिंह का हाथ है। इस घटना ने शाइस्ता खान का सम्मान काम कर दिया और औरंगजेब ने उसे दक्षिण से हटाकर 1663 ईस्वी में बंगाल का राज्यपाल नियुक्त कर दिया।

सूरत पर आक्रमण 1664

सूरत एक बंदरगाह और व्यापारिक शहर था और धन-धन्य से परिपूर्ण था। शिवाजी महाराज के सूरत पर आक्रमण को सूरत की लूट के नाम से भी जाना जाता है। सूरत पर शिवाजी महाराज का आक्रमण 1664 में हुआ, अपने चुनिंदा 4000 सैनिकों के साथ सूरत शहर को लूट लिया गया।

1664 में, शिवाजी महाराज ने अपनी 4000 सेना के साथ सूरत पर आक्रमण किया। उन्होंने शहर को घेर लिया और मुगल अधिकारियों से भारी कर वसूला। सूरत के व्यापारियों और निवासियों को नुकसान पहुंचाए बिना, शिवाजी महाराज ने केवल मुगल खजाने और संपत्ति को ही निशाना बनाया। इस हमले में मराठा सेना के हाथ बड़ी मात्रा में धन, जवाहरात और अन्य कीमती सामान लगा, जिससे मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। अंग्रेज और डच इस लूट से बच गए क्योंकि उन्होंने अपनी रक्षा सफलतापूर्वक की।

शिवाजी महाराज और राजा जयसिंह

जिस समय शहज़ादा मुअज़्ज़म दक्षिण का राज्यपाल था, औरंगजेब ने शिवाजी और मराठा सेना को काबू में करने के लिए राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा । राजा जयसिंह ने राजा जसवंत से बागडोर अपने हाथ मेले ली। राजा जयसिंह, आमेर (जयपुर) के कछवाहा राजपूत शासक और मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार के एक प्रमुख हिन्दू राजपूत सेनापति थे। 1665 में, औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को कुचलने के लिए राजा जयसिंह को दक्कन भेजा। जयसिंह एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे, और उन्होंने शिवाजी महाराज के विरुद्ध एक प्रभावशाली और रणनीतिक रूप से शक्तिशाली अभियान चलाया।

राजा जयसिंह ने शिवाजी महाराज को काबू में करने और उनकी शक्ति को कमजोर करने के लिए एक व्यापक योजना बनाई। उन्होंने मुगल सेना के साथ मिलकर कई मराठा किलों पर कब्जा कर लिया, जिसमें प्रतापगढ़ और पुरंदर जैसे महत्वपूर्ण किले शामिल थे। शिवाजी की राजधानी “रायगढ़” की ओर बढ़ती मुग़ल सेनाओं को रोकने के लिए पुरंदर की लड़ाई में शिवाजी महाराज को मुगलों के सामने झुकना पड़ा, और उन्होंने राजा जयसिंह के साथ संधि करने का निश्चय किया।

इस संधि को “पुरंदर की संधि” (1665) के नाम से जाना जाता है। इसके तहत शिवाजी महाराज ने मुगलों को 23 किले सौंपे और अपने बेटे संभाजी को मुगल दरबार में भेजने पर सहमति जताई।

पुरंदर की संधि (1665)

शिवाजी महाराज और राजा जयसिंह के बीच 1665 ईस्वी में “पुरंदर” की संधि हुई। इस संधि के कुछ प्रावधान इस प्रकरर थे:-

किलों का हस्तांतरण: शिवाजी महाराज ने मुगलों को अपने जीते हुए 23 किले सौंपने पर सहमति जताई, जबकि उन्होंने मात्र 12 किले अपने पास रखे। यह कदम शिवाजी की एक रणनीतिक सोच का हिस्सा था, ताकि उन्हें समय मिले और इस बहाने शिवाजी अपनी शक्ति और सेना को पुनर्गठित कर सकें।

संभाजी को मुगल दरबार में भेजना: शिवाजी महाराज ने अपने बेटे संभाजी को मुगल दरबार में भेजने पर सहमति दी। हालांकि, शिवाजी महाराज के लिए इस शर्त को स्वीकार करना अत्यंत कठिन फैसला था मगर उस समय साम्राज्य की रक्षा के लिए उन्हें यह कठोर निर्णय और शर्त को स्वीकार करना पड़ा। इसके बदले में संभाजी को मुग़ल दरबार में “मनसब पाँचहज़ारी” बनाना और एक जागीर देना भी तय हुआ।

मुगल सेवा में शामिल होना: शिवाजी महाराज ने मुगल सेवा में यानी दरबार में सेवा देना और शामिल होने और औरंगजेब के प्रति निष्ठा दिखाने का वादा किया। इसके बदले में, उन्हें मुगल साम्राज्य में एक मान्यता प्राप्त सामंत के रूप में स्वीकार किया गया।

इस संधि के अनुसार यह भी तय हुआ कि शिवाजी महाराज अन्य मनसबदारों की तरह मुग़ल दरबार में नियमित हाज़िरी के लिए नहीं आएंगे। दक्षिण के युद्धों में उन्होंने औरंगजेब की सहायता इस शर्त पर करना स्वीकार किया कि “यदि उन्हें कोंकण प्रदेश का कुछ भाग जिसकी आय लगभग 4 लाख हुण थी प्रतिवर्ष थी हुए बलाक का कुछ प्रदेश जिसकी वार्षिक आय 5 लाख हुण थी दे दिया जाए तो वे औरंगजेब को 13 किस्तों में 40 लाख हुण 13 वर्षों में चूका देंगे। इस विजय ने राजा जयसिंह का मान बहुत बढ़ा दिया।

राजा जयसिंह ने शिवाजी को बड़ी-बड़ी उच्च आशाएं दिलाकर मुग़ल दरबार में जान के लिए राजी कर लिया और उनकी जीवन रक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। इस तरह जयसिंह शिवाजी महाराज को आगरा लाने के प्रयास में सफल हुए।

शिवाजी महाराज अपने पुत्र संभाजी के साथ 1666 ईस्वी में मुग़ल दरबार आगरा पहुंचे। मगर आशा के विपरीत उनका रूखा स्वागत हुआ। इस व्यवहार से शिवाजी नाराज हुए और औरंगजेब से उनकी तू तू मैं मैं हो गई।

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आगरे के किले से भागने की योजना

शिवाजी महाराज ने अगर के किले से भागने की योजना बनाई। उन्होंने बीमारी का बहाना बनाया और गरीबों और ब्राह्मणों को दान देने के लिए मिठाई के टोकरे मंगवाए। शुरुआत में इन टोकरों की रोज जाँच की गई। मगर जब यह सिलसिला कुछ दिन चलता रहा तो मुग़ल पहरेदारों ने टोकरों की निगरानी बंद कर दी। इसके बाद शिवाजी महाराज ने 1666 में अपने प्रसिद्ध अग्रा भागने (टोकरे में छुपकर) की योजना बनाई और कामयाव हुए। शिवाजी महाराज महाराष्ट्र पहुंचे और प्रजा ने जमकर खुशियां मनाई।

औरंगजेब ने शिवाजी के भागने में राजा जयसिंह को जिम्मेदार बताया और दक्षिण से बापस बुला लिया मगर रास्ते में ही 1668 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई।

शिवाजी और मुग़लों के बीच कुछ समय के लिए शांति स्थापित हो गई क्योंकि अफगान युद्दों में व्यस्तता ने मुग़ल शक्ति को कमजोर किया। शज़दा मुअज़्ज़म विलासी प्रवृत्ति का था। मुअज़्ज़म और जसवंत सिंह ने औरंगजेब से शिवाजी को “राजा” की उपाधि देने की सिफारिस की। इसके बाद संभाजी को “मनसब पंचहजारी” बना दिया गया और बरार में शिवाजी को एक जागीर भी दे दी गई।

कुछ समय के लिए इस अस्थाई शांति के बाद 1670 ईस्वी में मुग़लों और शिवाजी महाराज के बीच एक बार फिर युद्ध छिड़ गया। शिवाजी ने मुग़ल सेना से निकाले गए सैनिकों को अपनी सेना में शामिल किया और खानदेश के कुछ जिलों पर नियंत्रण कर उनसे “चौथ’ बसूलने का आश्वाशन लिया। 1670 में शिवाजी महारज ने सूरत को दूसरी बार लूटा। इस लूट में 66 लाख का धन प्राप्त हुआ। 1670-74 में मार्था सेना ने सभी जगह विजय प्राप्त की और दक्षिण से मुग़ल सत्ता लुप्तप्राय हो गई।

शिवाजी महराज का राज्याभिषेक 1674 और विवाद

शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक 1674 में हुआ, जो मराठा इतिहास का एक ऐतिहासिक और गौरवशाली क्षण था। शिवाजी महाराज ने रायगढ़ के किले में अपना राज्याभिषेक कराया और “क्षत्रपति” की उपाधि धारण की। रायगढ़ को शिवाजी ने अपनी राजधानी बनाया और हिन्दू पद पादशाही का स्वप्न पूर्ण किया।

क्षत्रपति शिवाजी महाराज और बघनख शिवाजी महाराज की संतान शिवाजी महराज की पत्नियां शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक पुरंदर की संधि सूरत की लूट शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक

लेकिन यहां एक घटना का जिक्र करना आवश्यक है जो शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय घटी। इस घटना के अनुसार महराष्ट्र के ब्राह्मणों ने शिवाजी का राज्याभिषेक करने से यह कहकर मन कर दिया कि वे क्षत्रिय नहीं हैं और वे उन्हें शासक के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। इस स्थिति में शिवाजी महाराज ने काशी (वाराणसी) के प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान गंगाभट्ट को बुलाया। गंगाभट्ट ने शिवाजी महाराज की वंशावली की जाँच की और शिवाजी महाराज को सिसोदिया राजपूत वंश से संबंधित सिद्ध किया। हैं

हालांकि, शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से पहले एक बड़ी चुनौती सामने आई। कुछ ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से इनकार कर दिया, क्योंकि वे शिवाजी को क्षत्रिय वंश का नहीं मानते थे। उस समय के सामाजिक और धार्मिक मानदंडों के अनुसार, केवल क्षत्रिय वंश के राजा ही राज्याभिषेक के हकदार माने जाते थे। ब्राह्मणों का तर्क था कि शिवाजी महाराज का वंश स्पष्ट रूप से क्षत्रिय नहीं था, और इसलिए वे उनका राज्याभिषेक नहीं कर सकते थे। इसके बाद, गंगाभट्ट ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया।

इस चुनौती का सामना करने के लिए, शिवाजी महाराज ने एक बुद्धिमान और रणनीतिक कदम उठाया। उन्होंने काशी (वाराणसी) के प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान गंगाभट्ट को बुलाया, जो वंशावली और धार्मिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ थे। गंगाभट्ट ने शिवाजी महाराज के पूर्वजों की वंशावली का अध्ययन किया और यह सिद्ध किया कि शिवाजी महाराज सिसोदिया राजपूत वंश से संबंध रखते हैं, जो एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय वंश है। इसके बाद, गंगाभट्ट ने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया।

6 जून 1674 को, शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर हज़ारों लोगों ने भाग लिया, और रायगढ़ किले को सजाया गया। गंगाभट्ट ने वैदिक मंत्रों के साथ शिवाजी महाराज को ‘छत्रपति’ की उपाधि दी, जिसका अर्थ है ‘सम्राट’ या ‘सर्वोच्च शासक’।

शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680

1674 ईस्वी में राज्याभिषेक के बाद शिवाजी महाराज ने दक्षिण की विजय की योजना बनाई। मगर शिवाजी महराज 3 अप्रैल 1680 में परलोक सिधार गए और उनकी दक्षिण विजय की योजना पूर्ण न हो सकी। लेकिन अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने जिंजी, वेलूर और कई अन्य मह्त्वपूण किले जीते। इस तरह शिवाजी महाराज की मृत्यु के समय मराठा साम्राज्य पश्चिमी घात से लेकर कल्याण और गोवा के बीच कोंकण प्रदेश और पर्वतीय प्रदेश के कुछ पूर्वी जिलों तक फैला हुआ था।

दक्षिण में कर्णाटक के पश्चिम में बेलगांव से तुंगभद्रा के तट तक मद्रास प्रेजिडेंसी के विलारी तक फैला हुआ था। हालांकि जिंजी और वेलूर और कुछ अन्य जिले उनकी मृत्यु तक पूर्णतः उनके हाथ में नहीं आये।

ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार शिवाजी महाराज को पेचिश (अतिसार) और बुखार जैसी स्वास्थ्य समस्याएं थीं, जो कई हफ्तों तक चलीं और अंततः उनकी मृत्यु का कारण बनीं। उस समय उनकी उम्र लगभग 52 वर्ष थी। उनकी मर्त्य के विषय में यह भी कहा जाता है की उन्हें जहर दिया गया था। जो भी लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य कमजोर हो गया। उनके पुत्र संभाजी ने उनके उनके बाद मराठा साम्राज्य की बागड़ोर संभाली। रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज का अंतिम संस्कार किया गया।

शिवाजी महाराज की गुरिल्ला युद्ध शैली

1शिवाजी महाराज ने मुगल सेना के विरुद्ध जिस रणनीति का प्रयोग किया उसे इतिहास में गुरिल्ला युद्ध शैली कहा जाता है। गुरिल्ला शब्द का अर्थ है ‘छोटे दल’। शिवाजी महाराज का बचपन पर्वतीय क्षेत्रों में बीता था और वे सीधे युद्ध करने के बजाय दुश्मन पर छुपकर बार करने में माहिर थे जिससे दुश्मन उनकी स्थिति का पता नहीं कर पाते थे। यह एक ऐसी पद्धति थी जिसमें मराठा सैनिक अचानक हमला कर दुश्मन को सम्भलने का मौका नहींदेते थे और कार्यवाही को अंजाम देकर तुरंत पहाड़ों में जाकर छिप जाते थे।
 

रात्रि के समय में छिपकर आक्रमण करना भी इन मराठा योद्धाओं की एकप्रमुख विशेषता थी। आपको बता दें कि शिवाजी की सेना में तोपखाना नहीं था, इसलिए ये योद्धा तलवारबाजी और लघु हथियारों के इस्तेमाल में निपुण थे। उनकी इस रणनीति ने मुग़ल सेना की नाक में दम कर दिया था। वीर शिवाजी महाराज ने अपनी इस युद्ध शैली के कुशल सञ्चालन से देश को मुसलिम आक्रमण और साम्राज्य के विस्तार से रोका।

शिवाजी महाराज द्वारा लड़े गए युद्धों की सूची

युद्धवर्षविरुद्धपरिणाम
रायगढ़ का युद्ध1646आदिलशाही सेना (मुल्ला अली)शिवाजी महाराज ने जीत हासिल की और रायगढ़ किले पर कब्जा किया।
तोरणा की लड़ाई1647आदिलशाही सेनाशिवाजी महाराज ने तोरणा किले पर विजय प्राप्त की।
तंजावुर की लड़ाई1656मदुरै के नायक राजाशिवाजी महाराज ने तंजावुर शहर पर कब्जा किया।
कल्याण की लड़ाई1657मुगल सेनाशिवाजी महाराज ने कल्याण शहर पर विजय प्राप्त की।
प्रतापगढ़ का युद्ध1659आदिलशाही सेना (अफजल खान)शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध किया और प्रतापगढ़ किले पर अधिकार किया।
पावनखिंड की लड़ाई1660आदिलशाही सेना (सिद्दी मसूद)शिवाजी महाराज ने विजय प्राप्त की और विशालगढ़ किले को सुरक्षित किया।
सोलापुर की लड़ाई1664आदिलशाही सेनाशिवाजी महाराज ने सोलापुर शहर पर कब्जा किया।
पुरंदर की संधि1665मुगल सेना (राजा जयसिंह)शिवाजी महाराज ने 23 किले मुगलों को सौंपे, लेकिन स्वतंत्रता बरकरार रखी।
उमरगढ़ की लड़ाई1666मुगल सेनाशिवाजी महाराज ने उमरगढ़ किले पर कब्जा किया।
शिंदे वंश के साथ युद्ध1670-71शिंदे वंशशिवाजी महाराज ने शिंदे वंश को हराया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
बरार और खानदेश की विजय1673-74स्थानीय शासकशिवाजी महाराज ने बरार और खानदेश क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।

शिवाजी महराज के उत्तराधिकारी और संतान (Chhatrapati Shivaji Maharaj Children)

छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) मराठा साम्राज्य के संस्थापक और महान योद्धा थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके सबसे बड़े बेटे संभाजी ने उनका स्थान ग्रहण किया। शिवाजी महाराज ने आठ विवाह किये थे और उनकी कई अन्य संतान भी थीं जिनका विवरण इस प्रकार है:-

1. संभाजी महाराज (1657-1689)– ये शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र थे जो उनकी प्रथम पत्नी सईबाई से पैदा हुए थे। उन्होंने शिवाजी की मृत्यु 1680 के बाद मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। 1689 में मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने उन्हें गिरफ्तार किया और भयंकर यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया।

2. राजाराम महाराज (1670-1700)– शिवाजी महाराज की दूसरी पत्नी सोयराबाई मोहिते से दो संतान पैदा हुई राजाराम और दीपाबाई संभाजी के मृत्यु के बाद राजाराम ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली उन्होंने 1689 से 1700 तक शासन किया।

3. शिवाजी महाराज की अन्य संतान– शिवाजी महाराज की अन्य संतानों में उनकी प्रथम पत्नी से पैदा हुई पुत्रियां रानूबाई, सखूबाई, अंबिकाबाई प्रमुख हैं। इसके आलावा दूसरी पत्नी सोयराबाई मोहिते से एक बेटी दीपाबाई पैदा हुई। चौथी पत्नी सकवरबाई गायकवाड से एक पुत्री कमलाबाई छठी पत्नी सगुणाबाई शिर्के से एक पुत्री राजकुवरबाई पैदा हुई। इस तरह शिवाजी महाराज के दो पुत्र और 6 पुत्रियां थी और कुल मिलकर 9 संतान थीं।

पत्नी का नामसंतान के नाम
सईबाई निंबालकरसम्भाजी, रानूबाई, सखूबाई, अंबिकाबाई
सोयराबाई मोहितेराजाराम, दीपाबाई
पुतलाबाई पालकरकोई संतान नहीं
सकवरबाई गायकवाडकमलाबाई
काशीबाई जाधवकोई संतान नहीं
सगुणाबाई शिर्केराजकुवरबाई
गुंवांताबाई इंगलेकोई संतान नहीं
लक्ष्मीबाई विचारेकोई संतान नहीं

उत्तराधिकार और विरासत

शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 के बाद, उनके सबसे बड़े पुत्र संभाजी ने मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली और 1689 में औरंगजेब द्वारा उनकी क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई। इसके बाद उनके दूसरे पुत्र राजाराम ने मराठा साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली। उनके वंशजों ने मराठा साम्राज्य को भारतीय इतिहास में एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित किया।

शिवाजी महाराज की विरासत आज भी भारतीय इतिहास और संस्कृति में हिन्दू पद पादशाही और धर्म की रक्षा के लिए जानी जाती है। शिवाजी महाराज ने एक जागीरदार की संतान से ऊपर उठकर एक स्वतंत्र विशाल मराठा साम्राज्य की नींव रखी।

शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था

शिवाजी महराज एक स्वतंत्र और निरंकुश शासक थे मगर उन्होंने कभी भी निरंकुश होकर शासन नहीं किया और उन्होंने मंत्रियों की एक परिषद् के माध्यम से शासन किया। इन मंत्रियों की संख्या 8 थी जिसके कारण इसे अष्टप्रधान कहा जाता था। ये इस प्रकार थी:-

पद का नामशिवाजी के समय मंत्री का नामजिम्मेदारी/कार्य
पेशवा (प्रधानमंत्री)मोरोपंत पिंगलेराज्य के सभी प्रशासनिक कार्यों का संचालन और निरीक्षण करना।
अमात्य (वित्त मंत्री)रामचंद्रपंत अमात्यराज्य के वित्त, आय-व्यय और लेखा-जोखा का प्रबंधन करना।
सचिव (गृह मंत्री)/शरु-नबीस अन्नाजी दत्तोराज्य के आंतरिक मामलों, दस्तावेज़ों और पत्राचार का प्रबंधन करना।
मंत्री (इतिहासकार)/वाकया नबीस दत्ताजी पंतराज्य के नीतिगत मामलों पर विचार करना और सलाह देना। दरबार और राज्य की दैनिक कार्यवाही को लिखना।
सुमंत (दबीर/विदेश मंत्री)दत्ताजी त्रिम्बकविदेशी संबंधों और राजदूतों का प्रबंधन करना।
न्यायाधीश (न्याय मंत्री)न्यायधीश रामदासन्यायिक मामलों, कानून और न्याय व्यवस्था का प्रबंधन करना।
सेनापति (सेना प्रमुख)/सरे-नौबत हंबीरराव मोहितेसेना का नेतृत्व करना, सैन्य योजनाएं बनाना और युद्ध का प्रबंधन करना।
पंडितराव (धर्माधिकारी).दानाध्यक्ष, सदर मोहतसिब मोरो पंतधार्मिक मामलों, दान-पुण्य और धर्मशास्त्रों का प्रबंधन करना।

इस तरह शिवाजी ने एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की। न्यायाधीश और पंडित राव को छोड़कर सभी मंत्रियों को युद्ध में भाग लेना पड़ता था। राज्य के अठारह राजकीय विभाग थे जो अलग-अलग मंत्रियों के हिस्से में थे।

प्रांतीय शासन

शिवाजी महाराज ने अपने राज्य को चार सूबों में विभाजित किया। प्रत्येक सूबे के लिए अलग-अलग राज्यपाल नियुक्त किये। सूबों को बहुत से जिलों में बांटा गया था। जागीर देने की प्रथा को समाप्त कर दिया गया और नगद वेतन दिया जाता था।

सेना की व्यवस्था

शिवाजी एक कुशल योद्धा और सैन्य व्यवस्था के विशेषज्ञ थे। मराठा सेना की एक विशेषता यह थी कि वे 6 माह युद्धों में भाग लेते थे और 6 माह खेती-बाड़ी करते थे। लेकिन शिवाजी ने इस व्यवस्था को बदल कर एक कुशल प्रशिक्षित स्थाई सेना का गठन किया और सैनिकों को नियमित नगद वेतन दिया जाता था। शिवाजी की सेना में पदों की व्यवस्था थी। घुड़सवार सेना में 25 सरदारों का एक घट होता था। 25 पैदल (मावले) सैनिकों पर एक हवलदार होता था। 5 हवलदारों पर एक जुमलादार 10 जुमलादारों पर एक हज़ारी होता था। अन्य उच्च पद पांच हज़ारी और घुड़सवार सेना का सरे-नौबत या सेनापति होता था।

प्रत्येक 25 पैदल सैनिकों के लिए एक रसोइया और पनिहारा होता था। घुड़ सवार सेना को दो भागों में बांटा गया था- बरगीर और सिलेदार। बरगीर सवारों को घोडा और हथियार राज्य की ओर से मिलता था और सिलेदार को घोड़ा और हथियार खुद ही जुटाने होते थे। शिवाजी महाराज की सेना में हिन्दू और मुसलमान सैनिक होतेथे जो बिना किसी भेदभाव के पूर्ण निष्ठां से काम करते थे। शिवाजी ने एक जल सेना भी तैयार की यह समुद्री बेड़ा कोलाबा में तैनात रहता था।

शिवाजी की राजस्व प्रणाली ( चौथ और सरदेशमुखी )

छत्रपति शिवाजी महाराज की राजस्व प्रणाली एक व्यवस्थित और प्रभावी कर प्रणाली पर टिकी थी, जिसने मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थितिऔर विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी राजस्व प्रणाली में चौथ और सरदेशमुखी दो प्रमुख कर थे, जो आय का मुख्य स्रोत थे। यह प्रणाली न केवल राज्य के लिए धन जुटाने में सहायक थी, बल्कि यह जनता पर अत्यधिक बोझ डाले बिना न्यायसंगत भी थी।

चौथ (Chauth): चौथ एक प्रकार से सुरक्षा प्रदान करने के बदले विजित प्रदेशों से बसूला जाता था और यह उस राज्य की कुल आय का चौथा हिस्सा 25% (एक चौथाई) होता था इस कर के बदले शिवाजी महाराज उस क्षेत्र को दुश्मनों के आक्रमण और लूटपाट से सुरक्षा प्रदान करते थे। चौथ कर नकदी (नगद) या फसल (अनाज) के रूप में लिया जाता था।

सरदेशमुखी (Sardeshmukhi): सरदेशमुख बहुत से देशमुखों अथवा दसियों का अधिकारी जिसे उसकी सेवा के लिए धन दिया जाता था जो सरदेशमुखी कहलाता था। शिवाजी ने स्वयं को वंशानुगत “सरदेशमुखी” माना और 10% अतिरिक्त सरदेशमुखी कर बसूल किया।

कर प्रणाली की विशेषताएं: शिवाजी महाराज ने कर की दर को 30% से बढ़ाकर 40% कर दिया, ताकि राज्य की आय में वृद्धि हो सके। यह वृद्धि अन्य अनावश्यक करों को हटाकर की गई थी, जिससे जनता पर बोझ कम हुआ। कर नकदी (नगद) और अनाज दोनों रूपों में लिया जाता था, जिससे किसानों को भुगतान करने में सुविधा होती थी।

न्याय व्यवस्था

शिवाजी महराज ने कोई नई न्याय व्यवस्था स्थापित नहीं की प्राचीन शैली के आधार पर ही न्याय व्यवस्था थी। नियमित रूप से कोई विशेष न्यायलय अथवा नियम नहीं थे। ग्रामीण स्तर पर ग्राम पाँचहितेन ही न्याय करती थीं। पटेल फौजदारी के मुकदमें सुनते थे। हाज़िरे मजलिस अपील का अंतिम न्यायालय था। न्यायवस्था में मनुस्मृति जैसे गंथों का सहारा लिया जाता था।

छत्रपति शिवाजी महाराज से जुडी प्रमुख तिथियां और घटनाएं 

तारीखघटना
19 फरवरी 1630शिवाजी महाराज का जन्म।
14 मई 1640शिवाजी महाराज और साईबाई का विवाह।
1642शिवाजी महाराज और सोयराबाई का विवाह।
1646शिवाजी महाराज ने पुणे के पास तोरण दुर्ग पर अधिकार किया।
1656शिवाजी महाराज ने चन्द्रराव मोरे से जावली जीता।
10 नवंबर 1659शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध किया।
5 सितंबर 1659संभाजी का जन्म।
1659शिवाजी महाराज ने बीजापुर पर अधिकार कर लिया।
6–10 जनवरी 1664शिवाजी महाराज ने सूरत पर आक्रमण कर बहुत सी धन-सम्पत्ति प्राप्त की।
1665शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के साथ पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किए।
1666शिवाजी महाराज आगरा कारावास से भाग निकले।
1667औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को राजा की उपाधि दी और कर लगाने का अधिकार दिया।
1668शिवाजी महाराज और औरंगजेब के बीच शांति संधि।
1670शिवाजी महाराज ने दूसरी बार सूरत पर धावा बोला।
1670राजाराम का जन्म।
1674शिवाजी महाराज का रायगढ़ में छत्रपति के रूप में राज्याभिषेक।
18 जून 1674जीजाबाई (शिवाजी की माता) की मृत्यु।
3 अप्रैल 1680शिवाजी महाराज की मृत्यु।

निष्कर्ष

इस प्रकार शिवाजी महाराज ने हिन्दू पद पादशाही और हिन्दू धर्मं के उत्थान में योगदान दिया और एक स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने शक्तिशाली मुग़ल सेना को अपनी विशेष गुरिल्ला युद्ध पद्धति से अनेकों बार पराजित किया। यह दुर्भाग्य है की इस वीर योद्धा के उत्तराधिकारी संभाजी अपने पिता के समान वीर और कुशल रणनीतिकार साबित नहीं हुए। शिवाजी के मृत्यु के बाद उनका साम्राज्य बिखर गया।

शिवाजी महराज के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs

प्रश्न-शिवाजी की माता का नाम क्या था?

उत्तर-शिवाजी की माता का नाम जीजाबाई जाधवराव था।

प्रश्न- शिवाजी महाराज के पिता कौन थे?

उत्तर- शिवाजी महाराज के पिता का नाम शाहजीराजे भोंसले था जो बीजापुर रियासत के जमींदार अथवा जागीरदार थे।

प्रश्न- शिवाजी का राज्याभिषेक कब और कहाँ हुआ?

उत्तर- शिवाजी महाराज का राज्यभिषेक 6 जून 1674 को रायगढ़ के किले में हुआ।

प्रश्न- शिवाजी की राजधानी कहाँ थी?

उत्तर- शिवाजी की राजधानी रायगढ़ थी।

प्रश्न-शिवाजी की कितनी पत्नियां थीं?

उत्तर- शिवाजी महाराज ने आठ विवाह किये।

प्रश्न- शिवाजी ने अफ़ज़ल खान को कब मारा?

उत्तर- शिवाजी महाराज ने बीजापुर के सेनापति अफ़ज़ल खान को 1659 ईस्वी में मौत के घाट उतारा।

प्रश्न-शिवाजी महराज की कितनी संतान थीं?

उत्तर- शिवाजी महाराज की 9 संतान थी 2 पुत्र और 7 पुत्रियां।

प्रश्न-पुरंदर की संधि कब और किसके बीच हुई?

उत्तर- पुरंदर की संधि (1665) मुग़ल राज्यपाल राजा जय सिंह और शिवाजी महाराज के बीच हुई।

प्रश्न- शिवाजी महाराज की हाइट कितनी थी?

उत्तर- शिवाजी महाराज की ऊंचाई लगभग 5 फुट 7 इंच (170 सेमी) के आसपास रही होगी।

प्रश्न- शिवाजी महाराज का जन्म और मृत्यु कब हुई?

उत्तर- शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 ईस्वी को और मृत्य 3 अप्रैल 1680 को हुई।

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