---Advertisement---

सती प्रथा किसने बंद की: इतिहास, सच्चाई और अंत की पूरी कहानी | History of Sati Pratha

By thebio Admin

Updated On:

Follow Us
सती प्रथा, सती प्रथा क्या है, सती प्रथा किसे कहते हैं, सती प्रथा पर रोक, सती प्रथा की कहानी, सती प्रथा कब बंद हुई, सती प्रथा का अंत कब हुआ, सती प्रथा से क्या समझते हैं, सती प्रथा का अंत किसने किया, सती प्रथा पर रोक किसने लगाई, सती प्रथा पर रोक किसने लगाई थी, सती प्रथा कभी sanatan dharma का हिस्सा नहीं था,
---Advertisement---

सती प्रथा भारतीय इतिहास का एक ऐसा बदनुमा दाग है जिसने न जाने कितनी ही निर्दोष महिलाओं को जीवित ही मृत्यु की सैया तक पहुँचाया था। यह कुप्रथा केवल महिलाओं के अधिकारों को कुचलती ही नहीं थी, बल्कि समाज में अमानवीय अंधविश्वास और क्रूरता को प्रोत्साहन देती थी। यह प्रथा क्या थी, कैसे शुरू हुई, और किसने इसे बंद किया, इन सभी सवालों के जवाब इस लेख History of Sati Pratha में विस्तार से दिए गए हैं। सती प्रथा का का भारतीय समाज में प्रारम्भ और उसके प्रसार की समस्या विवाह और पारिवारिक प्रणाली के इतिहास के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।

ऐतिहासिक रूप से देखें तो सती प्रथा पितृसत्तात्मक वैवाहिक पद्धति का एक अनिवार्य अंग थी। प्राचीन काल और मध्यकाल में विवाह का सबंध व्यक्ति-विशेष से नहीं बल्कि समस्त कुल या परिवार अथवा सामाजिक पद्धति से था। अतएव सती प्रथा के स्वरूप को समझने के लिए उस सामाजिक प्रणाली की प्रकृति को समझना आवश्यक है जिसने इसको जन्म दिया।

Sati Pratha, सती प्रथा,
सती प्रथा क्या है,
सती प्रथा किसे कहते हैं,
सती प्रथा पर रोक,
सती प्रथा की कहानी,
सती प्रथा कब बंद हुई,
सती प्रथा का अंत कब हुआ,
सती प्रथा से क्या समझते हैं,
सती प्रथा का अंत किसने किया,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई थी,
सती प्रथा कभी sanatan dharma का हिस्सा नहीं था,

Sati Pratha Kya Hai?: सती प्रथा क्या है?

सती प्रथा वास्तव में एक कुप्रथा थी, जिसके परिप्रेक्ष में ब्राह्मण ग्रन्थ और उनके बनाये वो नियम थे जिन्हें धार्मिक मान्यता देकर समाज के लिए अनिवार्य बनाया गया, जिसमें यह भ्रांति फैलाई गई कि यदि विधवा (किसी भी आयु की हो) अपन मृत पति की चिता पर ज़िंदा जलेगी तो उसकी आने वाली सात पीढ़ियों को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। पीस प्रथा का सबसे घ्रणित पहलु यह था कि अगर विधवा स्त्री अपनी मर्जी से चिता में नहीं जलती तो उसे जबरन लिटाया जाता था और आग लगा दी जाती थी।

इसके आलावा विधवा किसी भी आयु की हो उसे जलना ही होता था। यहाँ तक कि 10 साल की विधवा बालिका को भी जलाया जाता था। और इस सबके पीछे था ब्राह्मणीय पाखंड जो आज़ादी की बाद तक प्रचलित रहा। एक प्राचीन भारतीय सामाजिक प्रथा थी, जिसमें एक विधवा महिला अपने मृत पति की चिता पर स्वेच्छा से या सामाजिक दबाव में आत्मदाह कर लेती थी।

यह प्रथा मुख्य रूप से उच्च वर्गीय हिंदू समाज विशेषकर राजपूत और कहीं-कहीं ब्राह्मणों में प्रचलित थी और इसे पतिव्रता धर्म की पराकाष्ठा माना जाता था। सती शब्द की उत्पत्ति देवी सती से हुई है, जिन्होंने अपने पति भगवान शिव के अपमान से व्यथित होकर यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था।

यह भी पढ़िए
Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: प्रारम्भिक जीवन, माता-पिता, उपलब्धियां, पत्नी, संतान, मृत्यु का कारण और मकबरामुगल शासक बाबर का इतिहास: एक महान विजेता और साम्राज्य निर्माता | History of Mughal Emperor Babur
रूसी क्रांति 1917: इतिहास, कारण और प्रभाव | Russian Revolution 1917: History, Causes and Effects in Hindiपुष्यमित्र शुंग का इतिहास और उपलब्धियां | History of Pushyamitra Shunga in Hindi

सती शब्द की उत्पत्ति, अर्थ, परिभाषा

शब्द सती (सती) संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है और मूल भाव “सत्” (सत्) शब्द में है, जिसका अर्थ है “सत्य,” “पवित्रता,” या “सद्गुण।” अपने मूल संदर्भ में, सती एक ऐसी स्त्री को संदर्भित करता था जो इन गुणों को समेटे हुए थी, विशेष रूप से एक ऐसी स्त्री जो पतिव्रता और सदाचारी थी। समय के साथ, यह शब्द विशेष रूप से एक विधवा द्वारा अपने पति की चिता पर स्वयं को ज़िंदा जलने की प्रथा से जुड़ गया, जो उसकी अपने पति के प्रति अटूट भक्ति और निष्ठा का प्रतीक माना जाता था।

अर्थ और परिभाषा:

  1. मूल अर्थ: प्राचीन हिंदू ग्रंथों में, सती एक ऐसी स्त्री को कहा जाता था जो पवित्र, सतीत्वपूर्ण और अपने पति के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित होती थी। यह शब्द एक आदर्श हिन्दू पत्नी का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता था, जो धर्म (धार्मिकता) के सिद्धांतों का पालन पूरी सत्यनिष्ठा से करती थी।
  2. ऐतिहासिक प्रथा: मध्यकाल तक, सती शब्द एक विधवा द्वारा अपने पति की चिता पर खुदको ज़िंदा जलाने की क्रिया का पर्याय बन गया। यह प्रथा एक पत्नी की भक्ति और निष्ठा की परम अभिव्यक्ति के रूप में देखी जाती थी, हालांकि यह सार्वभौमिक रूप से प्रचलित नहीं थी और अक्सर क्षेत्रीय और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होती थी।
  3. आधुनिक व्याख्या: आज, सती शब्द मुख्य रूप से ऐतिहासिक प्रथा से जुड़ा हुआ है, जिसे 19वीं शताब्दी से भारत में व्यापक रूप से निंदा की गई है और इसे गैरकानूनी घोषित किया गया है। यह शब्द अब एक अमानवीय और दमनकारी प्रथा का प्रतीक बन गया है, जो पितृसत्तात्मक परंपराओं और ब्राह्मणीय पाखंड में छुपा है।

ऐतिहासिक संदर्भ:

सती की अवधारणा का उल्लेख कुछ प्राचीन ग्रंथों, जैसे वेद और पुराण, में मिलता है, लेकिन प्रारंभिक हिंदू धर्म में यह एक व्यापक या अनिवार्य प्रथा नहीं थी। यह मध्यकाल में, विशेष रूप से ब्राह्मण ग्रंथों की कुछ व्याख्याओं और क्षेत्रीय रीति-रिवाजों के प्रभाव में, प्रचलित हुई। भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने सामाजिक सुधारक राजा राम मोहन राय के नेतृत्व में 1829 के बंगाल सती विनियमन अधिनियम के माध्यम से इस प्रथा को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

History of Sati Pratha: सती प्रथा का इतिहास

सती प्रथा भारतीय इतिहास में एक विवादास्पद और क्रूर अमानवीय सामाजिक प्रथा रही है, जिसमें विधवा स्त्री को अपने मृत पति की चिता पर ज़िंदा जलकर आत्मदाह करना पड़ता था। यह प्रथा मुख्य रूप से उच्च वर्गीय हिंदू समाज में प्रचलित थी और इसका उद्भव, प्रसार और अंत कई ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक कारकों से जुड़ा हुआ है। नीचे सती प्रथा के इतिहास को विस्तार से समझने का प्रयास गया है:

सती प्रथा,
सती प्रथा क्या है,
सती प्रथा किसे कहते हैं,
सती प्रथा पर रोक,
सती प्रथा की कहानी,
सती प्रथा कब बंद हुई,
सती प्रथा का अंत कब हुआ,
सती प्रथा से क्या समझते हैं,
सती प्रथा का अंत किसने किया,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई थी,
सती प्रथा कभी sanatan dharma का हिस्सा नहीं था,

सती प्रथा का उद्भव और प्रारंभिक इतिहास

  1. प्राचीन काल में सती प्रथा
    सती प्रथा का सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य 510 ईस्वी के एरण अभिलेख (गुप्तकाल का ) में मिलता है, जहाँ गोपराज की पत्नी के सती होने का वर्णन है। इसके अलावा, ग्रीक इतिहासकार अरस्तोबुलस (सिंकंदर के अभियानों में साथ चलता था ) ने 327 ईसा पूर्व में भारत की कुछ जनजातियों में विधवाओं द्वारा सती होने की प्रथा का वर्णन किया है।
  2. धार्मिक और सांस्कृतिक आधार
    सती प्रथा का नाम देवी सती से लिया गया है, जिन्होंने अपने पति शिव के अपमान को सहन न कर पाने के कारण यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया था। हालाँकि, यह कथा सती प्रथा से सीधे जुड़ी नहीं है, क्योंकि देवी सती विधवा नहीं थीं।
  3. प्रारंभिक प्रसार
    सती प्रथा मुख्य रूप से राजपूत और क्षत्रिय समुदायों में प्रचलित थी, जहाँ इसे सम्मान और वीरता का प्रतीक माना जाता था। यह प्रथा 5वीं से 9वीं शताब्दी के बीच उत्तरी भारत में फैली और बाद में दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों में भी देखी गई।

मध्यकाल में सती प्रथा का प्रसार

  1. राजपूत और युद्धकालीन प्रथा
    मध्यकाल में सती प्रथा राजपूत शासकों में विशेष रूप से प्रचलित हुई। युद्ध के दौरान, जब राजपूत शासक की मृत्यु हो जाती थी, तो उनकी पत्नियाँ सती होकर अपनी “इज्जत”(सतीत्व) बचाती थीं। इसका एक उदाहरण चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का है, जिन्होंने अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय जौहर (सामूहिक रूप से महल की स्त्रियां अग्निकुंड में कूद जाती थीं ) किया।
  2. इस्लामिक आक्रमण और सती प्रथा
    कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मुस्लिम आक्रमणों के दौरान सती प्रथा का प्रसार हुआ, क्योंकि महिलाएँ अपने सम्मान की रक्षा के लिए सती होना पसंद करती थीं। इसका कारण यह था कि मुस्लिम आक्रांता विजय प्राप्त करने के बाद सुन्दर हिन्दू स्त्रियों को उठाकर ले जाते थे और उनकी इज़्ज़त-आबरू लूटते थे।
  3. सती के विभिन्न रूप
    सती प्रथा के अलग-अलग रूप थे, जैसे जौहर (सामूहिक आत्मदाह) और अनुगमन (विधवा का अकेले सती होना)। इनमें से कुछ प्रथाएँ राजस्थान और मध्य भारत में विशेष रूप से प्रचलित थीं।

सती प्रथा का अंत और सुधार आंदोलन

  1. ब्रिटिश काल में सती प्रथा
    19वीं शताब्दी में औपनिवेशिक शासन के दौरान सती प्रथा के खिलाफ सामाजिक आंदोलन शुरू हुआ। राजा राममोहन राय ने इस प्रथा के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई और ब्रिटिश सरकार को सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने के लिए प्रेरित किया।
  2. 1829 का बंगाल सती एक्ट
    लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1829 में बंगाल सती एक्ट पारित किया, जिसके तहत सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसके बाद यह प्रथा धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
  3. आधुनिक काल में सती प्रथा
    1987 में राजस्थान के देवराला गाँव में रूप कंवर के सती होने की घटना के बाद भारत सरकार ने सती (निवारण) अधिनियम पारित किया, जिसमें सती प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया।

सती प्रथा के कारण और प्रभाव

आर्थिक कारण
कुछ मामलों में सती प्रथा का उपयोग विधवा के परिवार को आर्थिक लाभ पहुँचाने के लिए किया जाता था, क्योंकि विधवा की संपत्ति पर उसके पति के परिवार का अधिकार हो जाता था।

Also Readनवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं और स्थल: एक विस्तृत अध्ययन- Neolithic Age in Hindi

धार्मिक और सामाजिक कारण
सती प्रथा को धार्मिक शुद्धता और पुण्य के साथ जोड़ा गया था। माना जाता था कि सती होने से महिला के परिवार की आने वाली सात पीढ़ियों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके पीछे धार्मिक पाखंड की सामाजिक स्वकृति थी और यह विधवाओं की जीवन लीला को निगलने वाली कुप्रथा थी।

पितृसत्तात्मक समाज
यह प्रथा पुरुष प्रधान समाज का प्रतीक थी, जहाँ विधवा स्त्री को समाज में कोई स्थान नहीं दिया जाता था। इसके आलावा स्त्री को यह सिद्ध करना होता था कि वह एक पतिव्रता नारी है और पति की मृत्यु के बाद उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

सती प्रथा कब और किसने शुरू की?

सती प्रथा कब और किसने शुरू की इसके विषय में कोई ठोस ऐतिहासिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन रामायण में भी यह दिखाया गया है कि माता सीता भी धरती में समा गईं थी, लेकिन यह माना जाता है कि यह प्रथा प्राचीन भारतीय समाज में राजपूत वर्ग (प्राचीन काल में योद्धा वर्ग ) से प्रारम्भ हुई थी। इस प्रथा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक घटनाओं में मिलता है। गुप्त काल (510 ईस्वी के एरण अभिलेख) के दौरान इसके प्रमाण मिलते हैं, और यह मध्यकाल में राजपूत समाज में विशेष रूप से प्रचलित हुई। इसे हिंदू धर्म के के पवित्र कार्यों के रूप में देखा जाता था, हालांकि वेदों में इस कुप्रथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता।

यह प्रतीत होता है कि गुप्त और गुप्तोत्तर काल के आसपास महाकाव्यों और पुराणों के मूल पाठों में इसके प्रसंग बाद में जोड़े गए ताकि इसे धार्मिक स्वकृति प्राप्त हो सके। सती का सबसे पुराना अभिलेखीय प्रसंग प्रारंभिक छठी शताब्दी (510 ई०) के पहले का नहीं है। बाद के समय में अभिलेखों से बहुत उदाहरण मिलते हैं।

मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग और राजस्थान में सती-स्मारक शिलाएँ प्रकाश में आई हैं। अपने देश में दो प्रकार के स्मारक शिलाभिलेख मिलते हैं। दक्षिण भारत में “वीरकल” नामक वीर-स्मारक शिलाएँ मिलती हैं जिन पर गाँव-घर, गोधन अथवा मालिक के संरक्षण में बलिदान होने वाले की स्मृति अंकित है।

सती प्रथा क्यों शुरू हुई?

सती प्रथा के पीछे कई कारण थे:

  1. धार्मिक विश्वास: यह माना जाता था कि पति के साथ सती होने से महिला और उसके परिवार की सात पीढ़ियों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  2. पुरुष प्रधानता: समाज में महिलाओं को पुरुषों के बिना अधूरा माना जाता था।
  3. सुरक्षा का भय: युद्ध के समय महिलाओं को दुश्मनों के हाथों अपमानित होने का डर होता था।
  4. सामाजिक दबाव: महिलाओं पर सती होने का दबाव डाला जाता था, इसे उनका धार्मिक कर्तव्य समझा जाता था। जो स्त्री सती होने को तैयार नहीं होती थी तब उसे जबरन आग में धकेल दिया जाता था।

सती प्रथा का अंत कब और किसके द्वारा किया गया?

सती प्रथा का अंत लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 4 दिसंबर 1829 को किया था। यह निर्णय भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान लिया गया था। इसके पीछे मुख्य रूप से राजा राममोहन राय के प्रयास थे, जिन्होंने सती प्रथा के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया और ब्रिटिश सरकार को इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने के लिए प्रेरित किया।

सती प्रथा का अंत कैसे हुआ?

कानूनी प्रावधान: इस अधिनियम के तहत, सती प्रथा को बढ़ावा देने या इसमें शामिल होने वाले लोगों को कड़ी सजा का प्रावधान किया गया।

राजा राममोहन राय का योगदान: राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को एक अमानवीय और अंधविश्वासपूर्ण प्रथा बताया। उन्होंने इसके खिलाफ जनजागरूकता फैलाई और ब्रिटिश सरकार से इस पर रोक लगाने की मांग की। चूँकि जब राजा राममोहन राय के बड़े भाई की मृत्यु हुई तब ुबकि भाभी को सती होने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

लॉर्ड विलियम बेंटिक का निर्णय: राजा राममोहन राय के प्रयासों से प्रभावित होकर, लॉर्ड विलियम बेंटिक ने 1829 में बंगाल सती विनियमन अधिनियम पारित किया, जिसके तहत सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।

हालाँकि मिहल काल में सम्राट अकबर ने सती प्रथा को बंद कराने के प्रयास किये थे मगर तब हिन्दुओं ने इसे उनके खिलाब मुसलमानों के अत्याचार के रूप में देखा और कहा कि अकबर हिन्दू धर्मं को नुकसान पहुंचा रहा है।

भारत की पहली सती महिला कौन थी?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सती प्रथा के चलन का प्रारम्भ मां पार्वती के सती रूप के साथ हुआ, कहा जाता है कि जब उन्होंने अपने पति भगवान शिव के पिता दक्ष के द्वारा अपमानित किये जाने से क्षुब्ध होकर अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था.

राजस्थान में सती प्रथा का इतिहास

राजस्थान में सती प्रथा का इतिहास काफी पुराना और जटिल है। यह प्रथा मध्यकाल में विशेष रूप से प्रचलित हुई और राजपूत समाज में इसका गहरा प्रभाव था। राजस्थान के इतिहास में सती प्रथा को राजपूत वीरता, सम्मान और स्त्री के सतीत्व से जोड़कर देखा जाता था। यह प्रथा मुख्य रूप से युद्ध के समय या राजपूत शासकों की मृत्यु के बाद उनकी पत्नियों द्वारा स्वेच्छा से या सामाजिक दबाव में आकर की जाने वाली क्रिया थी।

राजस्थान में सती प्रथा का ऐतिहासिक संदर्भ:

सती प्रथा का अंत:
सती प्रथा को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक के शासनकाल में बंगाल सती विनियमन अधिनियम के तहत गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। राजस्थान में भी इस प्रथा को समाप्त करने के लिए सामाजिक सुधारकों और ब्रिटिश प्रशासन ने कड़े कदम उठाए। हालाँकि, कुछ मामले 20वीं सदी तक भी सामने आए, जैसे 1987 में राजस्थान के देवराला गाँव में रूप कंवर सती प्रकरण, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी।

राजपूत संस्कृति और सती प्रथा:
राजस्थान में सती प्रथा का संबंध राजपूत वीरता और सम्मान की संस्कृति से था। युद्ध के दौरान जब राजपूत शासक या सैनिक मारे जाते थे, तो उनकी पत्नियाँ या महिलाएँ सती होकर अपने पति के साथ चिता पर बैठ जाती थीं। इसे “जौहर” के साथ भी जोड़ा जाता था, जो एक ऐसी प्रथा थी जिसमें महिलाएँ युद्ध में हार की स्थिति में दुश्मनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए स्वयं को अग्निकुंड में सामूहिक रूप में समर्पित कर देती थीं।

प्रसिद्ध उदाहरण:

रानी पद्मिनी का जौहर: चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी और अन्य महिलाओं ने 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान जौहर किया था। यह घटना राजस्थान के इतिहास में सती और जौहर प्रथा का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण माना जाता है।

सती प्रथा,
सती प्रथा क्या है,
सती प्रथा किसे कहते हैं,
सती प्रथा पर रोक,
सती प्रथा की कहानी,
सती प्रथा कब बंद हुई,
सती प्रथा का अंत कब हुआ,
सती प्रथा से क्या समझते हैं,
सती प्रथा का अंत किसने किया,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई,
सती प्रथा पर रोक किसने लगाई थी,
सती प्रथा कभी sanatan dharma का हिस्सा नहीं था,
रानी पद्मावती का जौहर

कर्णवती का जौहर: 1535 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णवती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण के समय जौहर किया था।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
राजस्थान में सती प्रथा को समाज में सम्मान और वीरता का प्रतीक माना जाता था। हालाँकि, यह प्रथा महिलाओं के लिए एक दमनकारी और अमानवीय परंपरा थी, जिसमें उन्हें सामाजिक दबाव और परंपराओं के कारण अपना जीवन समाप्त करना पड़ता था।

भारत में अंतिम सती की घटना कहाँ घटी?

राजस्थान के दिवराला गावं जिला सीकर में 4 सितंबर 1987 को अपने पति की मृत्यु के बाद 18 वर्षीय रूप कंवर ने उसकी चिता में जलकर जान दी थी। दिसंबर 1829 में लार्ड विलियम बैंटिक द्वारा रोक लगाए जाने के लगभग 158 साल बाद होने वाली इस घटना ने पुरे विश्व का ध्यानाकर्षित किया।

राजस्थान में सती प्रथा पर कब प्रतिबंध लगाया गया था?

राजस्थान में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध, अलवर के शासक ने 1830 ईसवी में लगाया था, जबकि डूंगरपुर, बांसवाड़ा, और प्रतापगढ़ के शासकों ने 1840 ईसवी में इसे इसे अवैध और दंडनीय अपराध घोषित किया। 1862 ईसवी के बाद, राजस्थान के सम्पूर्ण क्षेत्र में इस प्रथा के विरुद्ध आदेश जारी किए गए थे।

निष्कर्ष

सती प्रथा भारतीय समाज के लिए एक कलंक थी, जिसने महिलाओं के अधिकारों को कुचल दिया। राजा राममोहन राय और लॉर्ड विलियम बेंटिक के प्रयासों से इस प्रथा का अंत हुआ, लेकिन आज भी इसकी यादें समाज को झकझोर देती हैं। यह लेख सती प्रथा के इतिहास, कारण और अंत की पूरी कहानी बताता है, ताकि हम अपने अतीत से सीख ले सकें और भविष्य में ऐसी क्रूर प्रथाओं को दोबारा न होने दें।


सती प्रथा से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs

Q.  सती प्रथा क्या है?

Ans. सती प्रथा एक ऐतिहासिक प्रथा थी जिसमें एक विधवा अपने मृत पति की चिता पर स्वेच्छा से या सामाजिक दबाव में आकर स्वयं को अर्पित कर देती थी।

Q. सती शब्द का अर्थ क्या है?

Ans. “सती” शब्द संस्कृत के “सत्” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “सत्य” या “पवित्र”। यह एक ऐसी महिला को संदर्भित करता है जो पवित्र और सद्गुणी होती है।

Q. सती प्रथा की उत्पत्ति कहाँ हुई?

Ans. सती प्रथा की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई, लेकिन यह मध्यकाल में विशेष रूप से राजपूत समाज और राजस्थान में प्रचलित हुई।

Q. क्या सती प्रथा का उल्लेख वेदों में है?

Ans. वेदों में सती प्रथा का सीधा उल्लेख नहीं है, लेकिन कुछ पुराणों और महाकाव्यों में इसका संदर्भ मिलता है।

Q. सती प्रथा को कब और किसने प्रतिबंधित किया?

Ans. सती प्रथा को 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक के शासनकाल में बंगाल सती विनियमन अधिनियम के तहत प्रतिबंधित किया गया।

Q.  राजस्थान में सती प्रथा का इतिहास क्या है?

Ans. राजस्थान में सती प्रथा राजपूत वीरता और सम्मान से जुड़ी थी। चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी और करनावती के जौहर इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

Q. जौहर और सती में क्या अंतर है?

Ans. जौहर युद्ध के समय महिलाओं द्वारा दुश्मनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए किया जाता था, जबकि सती पति की मृत्यु के बाद उसकी चिता पर स्वयं को अर्पित करने की प्रथा थी।

Q. सती प्रथा का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण क्या है?

Ans. चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी का जौहर सती प्रथा का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।

Q.  क्या सती प्रथा स्वेच्छा से की जाती थी?

Ans. कुछ मामलों में महिलाएँ स्वेच्छा से सती होती थीं, लेकिन अक्सर यह सामाजिक दबाव और परंपराओं के कारण होता था।

Q. सती प्रथा को समाप्त करने में किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?

Ans. राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने के लिए अथक प्रयास किए और ब्रिटिश सरकार को इसके खिलाफ कानून बनाने के लिए प्रेरित किया।

Q. सती प्रथा का हिंदू धर्म से क्या संबंध है?

Ans. सती प्रथा हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है, लेकिन कुछ ग्रंथों और परंपराओं में इसका संदर्भ मिलता है।

Q. क्या सती प्रथा आज भी प्रचलित है?

Ans. नहीं, सती प्रथा को कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया जा चुका है, लेकिन कुछ दुर्लभ मामले 20वीं सदी में भी सामने आए हैं।

Q. 1987 का रूप कंवर सती प्रकरण क्या था?

Ans. 1987 में राजस्थान के देवराला गाँव में रूप कंवर नामक एक महिला को सती होने के लिए प्रेरित किया गया, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी।

Q. सती प्रथा के खिलाफ कानून क्या है?

Ans. सती प्रथा (निवारण) अधिनियम, 1987 के तहत सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया है और इसे बढ़ावा देने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है।

Q. सती प्रथा का महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?

Ans. सती प्रथा ने महिलाओं को सामाजिक और मानसिक रूप से प्रभावित किया, जिसमें उन्हें जबरन या दबाव में अपना जीवन त्यागना पड़ता था।

Q. सती प्रथा का विरोध किसने किया?

Ans. राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और अन्य सामाजिक सुधारकों ने सती प्रथा का विरोध किया।

Q. सती प्रथा का सांस्कृतिक प्रभाव क्या था?

Ans. सती प्रथा को राजपूत समाज में वीरता और सम्मान का प्रतीक माना जाता था, लेकिन यह महिलाओं के लिए एक दमनकारी प्रथा थी।

Q. सती प्रथा का उल्लेख किन ग्रंथों में मिलता है?

Ans. सती प्रथा का उल्लेख कुछ पुराणों, महाकाव्यों और मध्यकालीन ग्रंथों में मिलता है, जैसे विष्णु पुराण और देवी भागवत पुराण

Q. सती प्रथा को क्यों समाप्त किया गया?

Ans. सती प्रथा को महिलाओं के अधिकारों और मानवीय मूल्यों के विरुद्ध माना गया, जिसके कारण इसे समाप्त किया गया।

Q. सती प्रथा के बारे में आधुनिक दृष्टिकोण क्या है?

Ans. आधुनिक समय में सती प्रथा को एक अमानवीय और दमनकारी प्रथा के रूप में देखा जाता है, जिसे समाज और कानून दोनों ने अस्वीकार कर दिया है।

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

Leave a Comment