प्राचीन भारतीय इतिहास में पुष्यमित्र शुंग एक विवादस्पद शासक के रूप में जाना जाता है, जिसने अंतिम मौर्य शासक ब्रहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की नींव रखी। पुष्यमित्र की गिनती ब्राह्मण धर्म के उद्धारक के रूप में की जाती है। उनका शासनकाल लगभग 185 ईसा पूर्व से 149 ईसा पूर्व तक रहा।
पुष्यमित्र अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ के सेनापति थे, लेकिन उन्होंने धोखे से बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य वंश का अंत कर दिया और शुंग वंश की नींव रखी। पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल में भारतीय ब्राह्मण हिन्दू सनातन संस्कृति को पुनर्जीवित किया और वैदिक धर्म को पुनः स्थापित किया। इस लेख में हम History of Pushyamitra Shunga in Hindi के माध्यम से पुष्यमित्र के विषय में जानेंगे।

Pushyamitra Shunga in Hindi: शुंग वंश का संस्थापक कौन था?
शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था जिसने अंतिम मौर्य शासक ब्रहद्रथ की हत्या करने शुंग वंश की नींव रखी। पुष्यमित्र शुंग एक ब्राह्मण थे मगर उन्होंने क्षत्रिय कर्म अपनाया और मौर्य सेना में सेनापति का पद हासिल किया। पुष्यमित्र ने अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति से बहुत से छोटे राज्यों पर विजय प्राप्त की और एक मजबूत वंश की स्थापना की।
नाम | पुष्यमित्र शुंग |
जन्म | तीसरी शताब्दी ई.पू. |
जन्मस्थान | मगध |
वंश | शुंग वंश |
शासन | 185 ईसा पूर्व से 149 ईसा पूर्व |
पिता | पुष्यधर्मन ( प्रामाणिक नहीं ) |
पत्नी | देवमाला |
संतान | अग्निमित्र ( 149 BC to 141 BC ) |
मृत्यु | 149 ईसा पूर्व |
उपलब्धि | 2 अश्वमेध यज्ञ किये |
Pushyamitra Shunga History | पुष्यमित्र शुंग का इतिहास क्या है?
पुष्यमित्र शुंग का इतिहास जितना विवादस्पद है उतना ही रोमांचकारी भी है और महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए जाना जाता है। मौर्य वंश का अंत कर शुंग वंश की नींव राखी और 36 वर्षों तक शासन किया। उसके शासनकाल में विदेशी आक्रमणकारियों, यवन आक्रमण, विदर्भ युद्ध और अश्वमेध यज्ञ जैसी महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुईं। उन्होंने भारत की सीमाओं को मजबूत किया और हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार किया, जो बौद्ध धर्म के कारण अवनति में चला गया था।
पुष्यमित्र शुंग कौन था?
पुष्यमित्र शुंग का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन बड़े होकर उन्होंने सैन्य कर्म को चुना। अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ के समय वे मौर्य सेना के सेनापति थे। मगर एक दिन जब सम्राट बृहद्रथ सेना का निरीक्षण कर रहे थे तो उनकी धोके से हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की। पुष्यमित्र ब्राह्मण साम्राज्य की नीव रखी, उनकी पत्नी का नाम देवमाला था और उनके पुत्र का नाम अग्निमित्र था जिसने उनके बाद शासन संभाला।
शुंग वंश का इतिहास जानने के स्रोत
शुंग वंश भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण शासनकाल है, जिसने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी विशेष पहचान बनाई। इस वंश के इतिहास को जानने के लिए साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों की समीक्षा अति आवश्यक है। पुराणों, साहित्यिक ग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों का सहारा लेकर शुंग वंश की ऐतिहासिक पहचान को उजागर किया जा सकता है।
पुराणों में शुंग वंश का उल्लेख
शुंग वंश के इतिहास को जानने के लिए पुराण प्राथमिक स्रोत हैं। मत्स्य पुराण, वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण में शुंग वंश के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इन पुराणों में वर्णन मिलता है कि, पुष्यमित्र शुंग इस वंश का संस्थापक था। पार्जिटर जैसे इतिहासकारों ने मत्स्य पुराण के विवरण को विश्वसनीय माना है। इसके अनुसार, पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक शासन किया।
पुरातात्विक साक्ष्य
अयोध्या का धनदेव लेख
अयोध्या ( साकेत ) में एक शिलालेख मिला जिसे पुष्यमित्र के राज्यपाल धनदेव ने खुदवाया था। इस लेख में जो विवरण मिलता है उसके अनुसार, पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए थे, जो उनकी सैन्य और राजनीतिक शक्ति और धार्मिक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
हर्षचरित
हर्षचरित की रचना बाणभट्ट ने की थी। इस ग्रंथ में पुष्यमित्र के बारे में जानकारी मिलती है कि उन्होंने अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहद्रथ की हत्या करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। हर्षचरित में पुष्यमित्र को “अनार्य” और “निम्न जातीय” कहा गया है, हालांकि यह विवरण पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जाता। लेकिन यह सत्य है या नहीं इस पर शोध किया जाना आवश्यक है।
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पतंजलि कृत महाभाष्य
महाभाष्य की रचना पुष्यमित्र के राजपुरोहित पतंजलि ने की थी। इस ग्रंथ में यवन आक्रमण का विवरण मिलता है। पतंजलि ने बताया है कि यवनों ने साकेत (वर्तमान अयोद्ध्या ) और माध्यमिका को रौंद डाला था।
गार्गी संहिता
गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है, जिसमें यवन आक्रमण का विवरण मिलता है। इसके अनुसार, यवनों ने साकेत, पंचाल, और मथुरा को रौंदते हुए हुए कुसुमध्वज (पाटलिपुत्र) तक जा पहुंचे थे।
कालिदास कृत मालविकाग्निमित्र
महाकवि कालिदास द्वारा रचित नाटक मालविकाग्निमित्र से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था। अग्निमित्र ने विदर्भ को विजय कर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। कालिदास ने यवन आक्रमण का भी उल्लेख किया है, जिसमें अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु नदी के तट पर यवनों को पराजित किया था।
थेरावली
जैन लेखक मेरुतुंग द्वारा रचित जैन ग्रन्थ थेरावली में भी पुष्यमित्र का उल्लेख मिलता है। हालांकि, मेरुतुंग का समय 14वीं शताब्दी है, इसलिए इसका विवरण पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जाता।
हरिवंश
हरिवंश ग्रंथ में पुष्यमित्र का अप्रत्यक्ष रूप से विवरण मिलता है। इसमें उन्हें ‘औद्भिज्ज’ (अचानक उत्पन्न होने वाला) और ‘सेनानी’ कहा गया है। साथ ही, उन्हें ‘कश्यपगोत्रीय ब्राह्मण’ बताया गया है।
दिव्यादान
दिव्यादान में पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अंतिम शासक और बौद्ध धर्म का संहारक बताया गया है। हालांकि, यह विवरण विश्वसनीय नहीं माना जाता।
शुंग वंश की उत्पत्ति
शुंग शासकों के नाम के अंत में ‘मित्र’ शब्द जुड़ा होने के कारण, कुछ विद्वानों ने उन्हें पारसीक कहा है। महामहोपाध्याय पंडित हर प्रसाद शास्त्री ने उन्हें ‘मिथ्र’ (सूर्य) का उपासक कहा है। हालांकि, भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह मत अस्वीकार किया जाता है। भारतीय साहित्य में शुंगों को ब्राह्मण कहा गया है। महर्षि पाणिनि ने शुंगों को ‘भारद्वाज गोत्र का ब्राह्मण’ बताया है। इस प्रकार, शुंग ब्राह्मण पुरोहित थे।
शुंग वंश के बारे में जानकारी देने वाले पुरातात्विक साक्ष्यों में अयोध्या का लेख, बेसनगर का लेख, और भरहुत लेख प्रमुख हैं। बेसनगर का लेख यवन राजदूत हेलियोडोरस द्वारा खुदवाया गया था, जो गरुड़ स्तंभ पर अंकित है। यह लेख मध्यभारत में भागवत धर्म की लोकप्रियता का प्रतीक है। भरहुत लेख भरहुत स्तूप की एक वेष्टिनि पर खुदा हुआ है, जो शुंगकालीन कला का शानदार उदाहरण है।
इसके अलावा, साँची, बेसनगर, और बोधगया जैसे स्थानों पर मिले स्तूप और शुंगकालीन कला के नमूने, उस समय की स्थापत्य कला की उच्च गुणवत्ता को दर्शाते हैं।
पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम
पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम देवमाला था। इसके आलावा परिवार में उनके पुत्र अग्निमित्र और पौत्र वसुमित्र भी शामिल थे, जिन्होंने उनके शासनकाल में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।
पुष्यमित्र शुंग के पुत्र
पुष्यमित्र शुंग के पुत्र का नाम अग्निमित्र था। अग्निमित्र ने विदिशा में शासन किया और विदर्भ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने यज्ञसेन को पराजित कर विदर्भ को शुंग साम्राज्य का हिस्सा बना लिया।
पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति
पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति की बात की जाये तो वह ब्राह्मण अथवा वैदिक धर्म का उद्धारक था। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ जैसे वैदिक अनुष्ठानों को पुनः शुरू किया। हालांकि, कुछ बौद्ध ग्रंथों में उन्हें बौद्ध धर्म के विरोधी के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन इसके कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। उनके शासनकाल में सांची और भरहुत स्तूपों का निर्माण हुआ, जो बौद्ध धर्म के प्रति उनकी उदारता को दर्शाता है।
पुष्यमित्र शुंग का राजकवि कौन था?
पुष्यमित्र शुंग के राजकवि का नाम पतंजलि था। पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की और उन्होंने पुष्यमित्र के अश्वमेध यज्ञ में मुख्य पुरोहित के रूप में भी भाग लिया। पतंजलि ने यवन आक्रमण का विवरण भी दिया है, जो पुष्यमित्र के शासनकाल की महत्वपूर्ण घटना थी।
पुष्यमित्र शुंग की उपलब्धियाँ
पुष्यमित्र शुंग भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारत में एक नए वंश की नीव रखी। उनके शासनकाल को उनकी सैन्य उपपलब्धियों, धार्मिक सुधारों और प्रशासनिक कुशलता के लिए जाना जाता है।
पुष्यमित्र शुंग का उदय
पुष्यमित्र शुंग के प्रारंभिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। दिव्यावदान नामक ग्रंथ के अनुसार, उनके पिता का नाम पुष्यधर्म था। पुष्यमित्र मौर्य सम्राट ब्रहद्रथ के प्रधान सेनापति थे। एक दिन सेना के निरीक्षण के दौरान, पुष्यमित्र ने धोखे से ब्रहद्रथ की हत्या कर दी और स्वयं सिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस घटना का उल्लेख पुराणों और हर्षचरित दोनों में मिलता है।
पुष्यमित्र की उपाधि और शासन
पुष्यमित्र को ‘सेनानी’ (सेनापति) की उपाधि दी गई थी इसका कारण यही था कि वे ब्रहद्रथ के सेनापति थे, जबकि उनके पुत्र अग्निमित्र को ‘राजा’ कहा गया। शासक बनने के बाद, पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए, जो उनकी शक्ति और धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं।
मौर्य साम्राज्य का पतन और शुंग वंश की स्थापना
सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद, मौर्य साम्राज्य उत्तरोत्तर कमजोर होता चला गया। अशोक उत्तराधिकारी शासक निर्बल साबित हुए, जिससे साम्राज्य शिथिल पड़ गया। ऐसे संकटकाल में, पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य की बागडोर संभाली और यवन आक्रमणों को नाकाम करके और व्यवस्था स्थापित की।
वैदिक पुनर्जागरण का युग
पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म के पोषक और अनुयायी थे। उन्होंने वैदिक धर्म की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की, जो अशोक के समय बौद्ध धर्म को संरक्षण दिए जाने के कारण कमजोर हो गया था। इसी कारण, उनके शासनकाल को वैदिक पुनर्जागरण का काल भी कहा जाता है।
विदर्भ युद्ध और अग्निमित्र की भूमिका
मालविकाग्निमित्र नाटक से पता चलता है कि पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र विदिशा के उपराजा (राज्यपाल) थे। लेकिन इसी बीच विदर्भ के शासक यज्ञसेन ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। अग्निमित्र ने यज्ञसेन के खिलाफ सैन्य कार्यवाही का नेतृत्व किया और विदर्भ को दो भागों में बाँट दिया। इस युद्ध के बाद, शुंग साम्राज्य का विस्तार नर्मदा नदी के दक्षिण जा पहुंचा।
यवन आक्रमण और पुष्यमित्र की सैन्य सफलता
पुष्यमित्र के शासनकाल में यवनों (यूनानियों) ने भारत पर आक्रमण किया। यवन आक्रमणकारी साकेत और माध्यमिका (चित्तौड़) तक पहुँच गए। पुष्यमित्र के पुरोहित पतंजलि ने अपने ग्रंथ महाभाष्य में इस आक्रमण का उल्लेख किया है। गार्गी संहिता में भी यवनों के आक्रमण का वर्णन मिलता है, जिसमें बताया गया है कि यवनों ने साकेत, पंचाल, और मथुरा को जीत लिया, लेकिन आपसी संघर्ष के कारण वे मध्यदेश में टिक नहीं सके।
अश्वमेध यज्ञ और धार्मिक प्रतिष्ठा
अयोध्या अभिलेख के अनुसार, पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए। ये यज्ञ न केवल उनकी धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं, बल्कि उनकी सैन्य शक्ति और प्रभुत्व का भी प्रतीक हैं।
पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु कैसे हुई?
पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ईसा पूर्व में हुई। उनकी मृत्यु के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई। उनके बाद उनके पुत्र अग्निमित्र ने शासन संभाला।
शुंग वंश का अंतिम शासक कौन था?
शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था। उनकी हत्या के बाद शुंग वंश का अंत हो गया और कण्व वंश ने शासन संभाला।
पुष्यमित्र शुंग की दूसरी राजधानी कौन सी थी?
पुष्यमित्र शुंग की मुख्य राजधानी पाटलिपुत्र थी, लेकिन उनकी दूसरी राजधानी विदिशा थी। विदिशा में उनके पुत्र अग्निमित्र ने शासन किया।
क्या पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों का संहार किया?
पुष्यमित्र शुंग के ऊपर यह आरोप लगाया जाता है कि उसने ब्राह्मण धर्म को आगे बढ़ने के लिए बौद्ध धर्म को हानि पहुंचाई और बौद्धों को मरवाया। यह एक विवाद है जो इतिहासकारों और विद्वानों के बीच लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। मुख्य रूप से बौद्ध ग्रंथों और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के विवरणों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विरोधी और स्तूपों एवं बौद्ध विहारों का विनाशक बताया गया है। लेकिन क्या ये आरोप सही हैं? आइए, इस विषय पर कुछ तथ्यों के साथ विस्तार से चर्चा करते हैं।
क्या कहते हैं बौद्ध ग्रंथों?
बौद्ध ग्रंथ ‘दिव्यावदान’ और तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के अनुसार, पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म के प्रति कठोर हिंसात्मक नीति अपनाई। दिव्यावदान में उल्लेख किया गया है कि पुष्यमित्र ने जनता से अशोक की प्रसिद्धि का कारण जानने के बाद 84,000 स्तूपों को नष्ट करने का निर्णय लिया। उसने अपने ब्राह्मण पुरोहित की सलाह पर बुद्ध की शिक्षाओं को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की।
कहा जाता है कि पुष्यमित्र ने पाटलिपुत्र स्थित कुक्कुटाराम महाविहार को नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन एक आसमानी गर्जन सुनकर वह भयभीत हो गया और लौट आया। इसके बाद, उसने अपनी सेना के साथ मार्ग में पड़ने वाले कई स्तूपों और विहारों को नष्ट किया तथा बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की। शाकल में उसने यह घोषणा की कि जो कोई उसे एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाकर देगा, उसे ईनाम में 100 दीनार दिए जाएंगे। तारानाथ और क्षेमेंद्रकृत ‘अवदानकल्पलता’ में भी पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का संहारक बताया गया है।
क्या ये आरोप सही हैं?
हालांकि बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विनाशक बताया गया है, लेकिन इतिहासकारों का एक वर्ग इन आरोपों को मिथ्या और निराधार बताता है। बौद्ध ग्रंथों में अक्सर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने और गैर-बौद्धों के प्रति काल्पनिक विवरण देने की प्रवृत्ति देखी गई है।
शुंग काल के दौरान साँची और भरहुत से प्राप्त कलाकृतियों को देखकर पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग बौद्ध धर्म का विनाशक नहीं था। भरहुत की एक वेष्टनी (Railing) पर ‘सुगनरजे‘ (शुंगों के राज्यकाल में) खुदा हुआ है, जो शुंगों की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है। इस दौरान साँची और भरहुत के स्तूप न केवल सुरक्षित रहे, बल्कि उन्हें राजकीय संरक्षण और व्यक्तिगत आर्थिक सहायता भी मिलती रही।
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल
पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया, जो 184 ईसा पूर्व से 148 ईसा पूर्व तक माना जाता है। उसने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद शुंग वंश की स्थापना की। पुष्यमित्र ने ब्राह्मण धर्म को राज्याश्रय दिया, जिससे बौद्ध अनुयायियों को निराशा हुई। संभव है कि कुछ बौद्ध भिक्षु यवनों से जा मिले हों और पुष्यमित्र ने उन्हें दंडित करने के लिए कड़े कदम उठाए हों।
शुंग वंश का अंत कैसे हुआ था?
शुंग वंश का अंत अंतिम शासक देवभूति की हत्या के साथ हुआ। देवभूति की हत्या उसके मंत्री वासुदेव कण्व ने की, जिसके बाद कण्व वंश ने शासन संभाला। इस तरह शुंग वंश का अंत हुआ और कण्व वंश का उदय हुआ।
निष्कर्ष
पुष्यमित्र शुंग एक महान शासक थे, जिन्होंने शुंग वंश की स्थापना की और भारतीय सनातन संस्कृति को पुनर्जीवित किया। उनके शासनकाल में भारत की सीमाओं को सुरक्षित किया गया और वैदिक धर्म को पुनः स्थापित किया गया। उनकी धार्मिक नीति और सैन्य उपलब्धियों ने उन्हें इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
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Q. पुष्यमित्र शुंग कौन थे?उत्तर: पुष्यमित्र शुंग शुंग वंश के संस्थापक थे। वे मौर्य साम्राज्य के अंतिम शासक बृहद्रथ के सेनापति थे और उन्होंने बृहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की स्थापना की।
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Q. शुंग वंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर: शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग थे।
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Q. पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति क्या थी?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति वैदिक धर्म को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित थी। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ जैसे वैदिक अनुष्ठानों को पुनः शुरू किया।
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Q. क्या पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों को सताया था?
उत्तर: कुछ बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म के विरोधी के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं।
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Q. पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 148 ईसा पूर्व में प्राकृतिक कारणों से हुई।
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Q. पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम क्या था?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग की पत्नी का नाम देवमला था।
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Q. पुष्यमित्र शुंग के पुत्र का नाम क्या था?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग के पुत्र का नाम अग्निमित्र था।
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Q. शुंग वंश का अंत कैसे हुआ?
उत्तर: शुंग वंश का अंत देवभूति की हत्या के साथ हुआ, जिसके बाद कण्व वंश ने शासन संभाला।
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Q. पुष्यमित्र शुंग की दूसरी राजधानी कौन सी थी?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग की दूसरी राजधानी विदिशा थी।
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Q. पुष्यमित्र शुंग का राजकवि कौन था?
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग का राजकवि पतंजलि था, जिन्होंने महाभाष्य की रचना की।