Nathuram Godse History: नाथूराम गोडसे जिनका पूरा नाम नाथूराम विनायक गोडसे भारतीय इतिहास का एक ऐसा व्यक्ति हैं, जिनका नाम आज भी विवादों से घिरा हुआ है। उनका जन्म 19 मई 1910 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती नामक छोटे से कस्बे में हुआ था। वे एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार से थे, लेकिन उनकी कटटर हिंदुत्व विचारधारा ने उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद का प्रतीक बना दिया। भले ही आज़ादी से पूर्व गोडसे का देश के प्रति योगदान शून्य था मगर गाँधी की हत्या ने उसे कुछ लोगों का हीरो बना दिया!
गोडसे मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा जैसे कट्टर हिन्दू संगठनों से जुड़ा था। हालांकि, वे सबसे ज्यादा महात्मा गांधी की हत्या के लिए कुख्यात हैं। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में उन्होंने गांधी जी को गोली मार कर हत्या कर दी, जो स्वतंत्र भारत की पहली बड़ी राजनीतिक हत्या थी, वो भी एक निहत्ते बूढ़े की।
गोडसे का मानना था कि गांधी जी ने भारत के विभाजन में मुसलमानों का पक्ष लिया और हिंदुओं के हितों की अनदेखी की। यह घटना न केवल भारत के इतिहास को बदल गई, बल्कि आज भी राजनीतिक बहसों का विषय बनी हुई है। गोडसे ने अपनी अदालती बयानबाजी में स्पष्ट कहा था कि उन्होंने यह कदम राष्ट्रहित में उठाया है। कुछ इतिहासकार उन्हें एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी के रूप में देखते हैं, जिनकी कार्रवाई ने देश में साम्प्रदायिक तनाव को और बढ़ा दिया। गोडसे आज भी एक विवादस्पद व्यक्तित्व है।

| नाम | नाथूराम गोडसे |
| पूरा नाम | नाथूराम विनायक गोडसे |
| जन्म | 19 मई 1910 |
| जन्मस्थान | महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती, ब्रिटिश भारत |
| पिता | विनायक वामनराव गोडसे |
| माता | लक्ष्मीबाई गोडसे |
| भाई-बहन | छह भाई-बहन, एक जुड़वां भाई गोपाल गोडसे, गाँधी की हत्या में सहयोगी, एक भाई द्वारका गोडसे, विनायक गोडसे, सुनीता गोडसे |
| धर्म | हिन्दू |
| जाति | चितपावन ब्राह्मण |
| पहचान | महात्मा गाँधी का हत्यारा |
| फांसी | 15 नवंबर 1949 (39 वर्ष) |
Nathuram Godse Family: परिवार और प्रारंभिक जीवन
नाथूराम गोडसे एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में जन्मा, जो महाराष्ट्र की परंपरागत हिंदू संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ था। उनके पिता विनायक वामनराव गोडसे डाक विभाग में पोस्टमास्टर थे और परिवार की आर्थिक स्थिति मध्यम थी। मां लक्ष्मीबाई गोडसे एक गृहिणी थीं, जो पारंपरिक मूल्यों को महत्व देती थीं। नाथूराम परिवार के छह भाई-बहनों में दूसरे थे। उनका एक जुड़वां भाई गोपाल गोडसे भी था, जो बाद में हत्या के मुकदमे में सह-आरोपी बना।
बचपन में नाथूराम को कई गंभीर बीमारियां हुईं, जैसे कि काली खांसी और बुखार। उस समय के अंधविश्वासों के कारण परिवार ने उन्हें लड़की का नाम ‘नाथू’ रखा था, ताकि बुरी नजर न लगे। लेकिन जैसे-जैसे वे स्वस्थ हुए, नाम बदलकर नाथूराम कर दिया गया।
गोडसे का परिवार धार्मिक और रूढ़िवादी था। नाथूराम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बारामती में ही पूरी की। वे एक होनहार छात्र थे और बाद में पुणे के ब्राह्मण कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया और ब्रह्मचर्य का पालन किया। उनके भाई द्वारका गोडसे ने बाद में बताया कि नाथूराम हमेशा से ही न्याय और हिंदू एकता के प्रति समर्पित थे। परिवार का प्रभाव उनकी विचारधारा पर गहरा पड़ा, खासकर पिता की नौकरी के कारण वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे। हालांकि, हत्या के बाद पूरा परिवार बदनामी का शिकार हो गया और उनके रिश्तेदारों को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।
| स्कूल | स्थानीय स्कूल बारामती (हाई स्कूल ड्रॉपआउट) |
गतिविधियां और राजनीतिक सफर
नाथूराम गोडसे का राजनीतिक सफर 1920 के दशक में शुरू हुआ। वे युवावस्था में ही आरएसएस के स्वयंसेवक बन गए, जहां उन्होंने शाखाओं में भाग लिया और शारीरिक प्रशिक्षण लिया। आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के विचारों से वे प्रभावित हुए। लेकिन 1930 के दशक में आरएसएस से मतभेद हो गया, क्योंकि वे महसूस करने लगे कि संगठन पर्याप्त आक्रामक नहीं है। इसके बाद वे हिंदू महासभा से जुड़ गए, जो अधिक कट्टर हिंदू राष्ट्रवाद पर जोर देती थी।
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गोडसे ने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया। उन्होंने मराठी भाषा के अखबार ‘अग्रणी’ (बाद में ‘पूर्ण’) का संपादन किया, जिसमें वे हिंदू हितों, मुस्लिम लीग की नीतियों और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लेख लिखते थे। वे विनायक दामोदर सावरकर के कट्टर अनुयायी थे, जिन्हें वे ‘वीर सावरकर‘ कहते थे। सावरकर की किताब ‘हिंदुत्व’ ने उनकी सोच को कट्टर आकार दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में गोडसे सक्रिय रहे, लेकिन वे गांधी जी की अहिंसा नीति से असहमत थे। वे मानते थे कि गांधी जी का मुसलमानों के प्रति नरम रवैया हिंदुओं के लिए घातक है। 1940 के दशक में वे हिंदू महासभा के पुणे और अहमदाबाद इकाइयों के प्रमुख बने। बंटवारे के समय वे शरणार्थी शिविरों में सक्रिय थे और पंजाब-बंगाल के हिंदू शरणार्थियों की मदद करते थे। उनकी गतिविधियां मुख्य रूप से प्रचार, सभाएं और संगठन निर्माण तक सीमित रहीं, लेकिन आंतरिक रूप से वे हिंसक कार्रवाई की योजना बना रहे थे।
महात्मा गांधी की हत्या: क्यों और कैसे

गोडसे की गांधी के प्रति नफरत बंटवारे के समय चरम पर पहुंची। वे गांधी जी को भारत विभाजन का सबसे बड़ा जिम्मेदार मानते थे। विशेष रूप से, 1948 में गांधी जी का फैसला कि भारत पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान करे, ने उन्हें भड़का दिया।
गोडसे का तर्क था कि यह पैसा हिंदू शरणार्थियों की पीड़ा को नजरअंदाज करता है और मुसलमानों का तुष्टिकरण है। वे गांधी को ‘राष्ट्रपिता‘ नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रभ्रष्टाचारक‘ मानते थे। इससे पहले, 20 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस में एक बम फेंकने की साजिश नाकाम हो गई थी, जिसमें मदनलाल पाहवा शामिल था।
30 जनवरी 1948 को शाम करीब 5:17 बजे दिल्ली के बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) में प्रार्थना सभा हो रही थी। गोडसे सफेद खादी का धोती-कुर्ता पहने, सिर पर गांधी टोपी लगाए वहां पहुंचे। वे नारायण आप्टे, विष्णु करकरे और अन्य साजिशकर्ताओं के साथ थे। गोडसे ने गांधी जी के पास जाकर पहले घुटनों पर झुककर प्रणाम किया, ताकि संदेह न हो। फिर, उन्होंने अपनी जेब से बेरेटा सेमी-ऑटोमैटिक पिस्तौल (कैलिबर .380) निकाली और करीब 2-3 फीट की दूरी से तीन गोलियां दाग दीं।
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पहली गोली छू गई, लेकिन दूसरी और तीसरी सीने और पेट में लगीं। गांधी जी तुरंत गिर पड़े और अंतिम शब्दों में कहा, “हे राम!”। मृत्यु दो मिनट के अंदर हो गई। यह हत्या आठ लोगों की साजिश का हिस्सा थी, जिसमें आप्टे मुख्य साजिशकर्ता था। गोडसे ने बाद में अदालत में कहा,
“मैंने गांधी को मारा क्योंकि उन्होंने हिंदू राष्ट्र को नष्ट किया।”
हत्या के बाद गिरफ्तारी
हत्या के तुरंत बाद गोडसे ने पिस्तौल फेंक दी और चिल्लाए, “पुलिस! मुझे गिरफ्तार कर लो! मैंने ही गांधी जी को मारा है!”। भीड़ में हंगामा मच गया, लेकिन दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल चांगन लाल ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया। घटनास्थल पर ही पूछताछ शुरू हो गई। गोडसे ने बिना झिझक अपना अपराध कबूल कर लिया।
उसी रात नारायण आप्टे को मुंबई से गिरफ्तार किया गया। अन्य साजिशकर्ता जैसे विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे, दिगंबर बडगे और शंकर किस्तैया को अगले कुछ दिनों में पकड़ा गया। मदनलाल पाहवा पहले ही हिरासत में था। जांच एजेंसी ने पाया कि साजिश हिंदू महासभा के कुछ सदस्यों से जुड़ी थी, हालांकि सावरकर को इस साजिश से बरी कर दिया गया। गिरफ्तारी के समय गोडसे शांत थे और उन्होंने कहा कि वे राष्ट्र के लिए बलिदान दे रहे हैं।
गिरफ्तारी के बाद सजा: अदालती कार्यवाही और फांसी

गिरफ्तारी के बाद 8 मई 1948 को दिल्ली के रेड फोर्ट (लाल किला) में विशेष अदालत का मुकदमा शुरू हुआ। यह तीन सदस्यीय विशेष ट्रिब्यूनल थी, जिसके मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आत्मा चरण (Atma Charan) थे। अन्य दो जज जस्टिस गोपीनाथ और जस्टिस मेहरचंद खन्ना थे। मुकदमा गोपनीय रखा गया, क्योंकि देश में अशांति का खतरा था। गोडसे ने अदालत में लंबा बयान दिया, जो बाद में उनकी किताब “मैंने क्यों मारा गांधी को” (Why I Assassinated Mahatma Gandhi) के रूप में प्रकाशित हुआ। उन्होंने गांधी की नीतियों का विस्तार से विरोध किया।
मुकदमा 10 जून 1949 तक चला। 10 फरवरी 1949 को अंतरिम फैसला आया, जिसमें गोडसे और आप्टे को फांसी, जबकि अन्य पांच को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। पंजाब हाईकोर्ट में अपील खारिज हो गई। अंतिम फैसला 8 नवंबर 1949 को आया। 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल (पंजाब) में सुबह 8 बजे गोडसे और आप्टे को फांसी पर लटका दिया गया। गोडसे की उम्र तब 39 वर्ष थी। फांसी से पहले उन्होंने हिंदू मंत्र पढ़े (“नमस्कारं करोमि, सर्वं विश्वेन संनादति…” -RSS की शुरुआती पंक्तियाँ)। उनकी अस्थियां गंगा में विसर्जित की गईं। सजा को न्यायसंगत माना गया, लेकिन कुछ ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध कहा।
| गिरफ्तारी | 30 जनवरी 1948 |
| पहली सुनवाई | 8 मई 1948 |
| सुनवाई का स्थान | दिल्ली के रेड फोर्ट (लाल किला) |
| न्यायधीश | जस्टिस आत्मा चरण जस्टिस गोपीनाथ जस्टिस मेहरचंद खन्ना |
| मुक़दमा कब तक चला | 10 जून 1949 तक |
| अंतरिम फैसला | 10 फरवरी 1949 |
| अंतिम फैसला | 8 नवंबर 1949 |
| कुल गवाहियां | 149 गवाहों की गवाही हुई |
| प्रमुख गवाह | डिगंबर बडगे (Digambar Badge) |
| गोडसे और आप्टे को फांसी | 15 नवंबर 1949 |
| फांसी का स्थान | अंबाला सेंट्रल जेल (पंजाब) में सुबह 8 बजे |
निष्कर्ष: क्या गोडसे स्वतंत्र भारत का पहला आतंकवादी था? और आज क्यों आदर्श?
नाथूराम गोडसे को निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत का पहला आतंकवादी कहा जा सकता है। 1947 में आजादी के ठीक एक साल बाद हुई यह हत्या एक सुनियोजित साजिश थी, जो धार्मिक कट्टरता और राजनीतिक हिंसा पर आधारित थी।
इतिहासकार जैसे रामचंद्र गुहा और अन्य इसे ‘आतंकवाद का प्रारंभिक रूप’ मानते हैं, क्योंकि इसमें संगठित समूह ने नागरिक नेता को निशाना बनाया। यह घटना ने भारत में सुरक्षा कानूनों को सख्त करने का आधार दिया, जैसे कि अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट।
वर्तमान में कुछ लोग, खासकर दक्षिणपंथी और हिंदुत्व समर्थक समूह, गोडसे को आदर्श मानते हैं। कारण? वे मानते हैं कि गोडसे ने ‘हिंदू हितों की रक्षा’ की। बंटवारे के दौरान लाखों हिंदुओं की हत्याओं और विस्थापन का दोष वे गांधी पर लगाते हैं। सोशल मीडिया, किताबें और सभाओं में उन्हें ‘शहीद‘ कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, 2019 में महाराष्ट्र में गोडसे की मूर्ति लगाने की कोशिश हुई, जो विवादास्पद रही। भाजपा के कुछ सदस्यों ने उनकी प्रशंसा की, हालांकि पार्टी ने आधिकारिक रूप से निंदा की। उनकी किताब आज भी भूमिगत रूप से बिकती है। लेकिन यह ध्रुवीकरण का प्रतीक है – एक तरफ वे हीरो, दूसरी तरफ खलनायक। ज्यादातर इतिहासकार और समाज इसे गलत मानते हैं, क्योंकि हिंसा लोकतंत्र के लिए खतरा है। गोडसे का मामला हमें सिखाता है कि कट्टरता कैसे इतिहास के साथ समाज को तोड़ सकती है।
संदर्भ
- विकिपीडिया: “Nathuram Godse” (अंग्रेजी और हिंदी संस्करण)।
- ब्रिटानिका: “Assassination of Mahatma Gandhi”।
- बीबीसी न्यूज: “The mystery surrounding Mahatma Gandhi’s killer” (2019)।
- हिस्ट्री.कॉम: “The Assassination of Gandhi”।
- किताब: “Why I Killed Gandhi” by Nathuram Godse (उनका स्वयं का बयान, संपादित संस्करण)।
- किताब: “Gandhi: The Years That Changed the World” by Ramachandra Guha (2018)।
- द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के पुरालेख (1948-1949 की खबरें)।
- सरकारी दस्तावेज: “Report of the Commission of Inquiry into the Conspiracy to Murder Mahatma Gandhi” (सरकारी रिपोर्ट)।





