भारत पर भले ही पथम मुसलमान आक्रमण करने वाला मुहम्मद बिन कासिम था और उसके बाद महमूद गजनवी ने भारत को 17 बार लूटा, मगर इन दोनों ने भारत में मुस्लमान शासन स्थापित करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। भारत पर पहग्ली बार साम्राज्य विस्तार की नियत से आक्रमण करने वाला आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी था। उसने भारत में कई हमले किये जिनमें कई बार उसे शिकस्त का सामना भी करना पड़ा। मगर अंततः वह भारत में मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा।
मुहम्मद गौरी का पूरा नाम मुइज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम था और वह गुर वंश से संबंधित था। इस लेख में हम मुहम्मद गौरी के प्रारम्भिक जीवन, उसके भारत पर आक्रमण, पृथ्वी राज चौहान और गौरी के बीच के संघर्ष के साथ मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बारे में अनसुलझे सवालों के बारे में चर्चा करेंगे। इसके साथ ही भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना के बारे में जानेंगे। इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

नाम | मुहम्मद गौरी |
पूरा नाम | शहाब-उद-दीन मोहम्मद ग़ोरी, अन्य नाम मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी |
जन्म | 1149 ईस्वी |
जन्मस्थान | गोर (Ghor) गज़नी, अफगानिस्तान |
पिता | बहाउद्दीन साम |
माता | नाम ज्ञात नहीं |
वंश | गोर (Ghor) वंश |
शासन अवधि | 1173–1202 |
भाई | ग़ियासुद्दीन मुहम्मद |
संतान | कोई पुत्र संतान नहीं |
मृत्यु | 15 मार्च 1206 |
मृत्यु का स्थान | झेलम,वर्तमान पाकिस्तान क्षेत्र |
मृत्यु का कारण | खोखरों ने हत्या की |
मक़बरा | सोहावा झेलम, पाकिस्तान |
Muhammad Ghori History: मुहम्मद गौरी का प्रारम्भिक जीवन
मोहम्मद गौरी गोरी वंश (Ghurid Dynasty) का शासक था। वह वर्तमान में अफगानिस्तान के क्षेत्र गोर (Ghor) में 1149 ईस्वी में जन्मा था। उसके पिता का नाम पिता का नाम बहाउद्दीन साम था, जो गोरी वंश के संस्थापक अला-उद-दीन हुसैन का भाई था। इस वंश का उदय 12वीं सदी में हुआ था। इस वंश के शासकों ने वर्तमान अफगानिस्तान, ईरान और भारतीय उपमहाद्वीप तक शासन किया। गुर वंश 13 शताब्दी के बाद लगभग समाप्त हो गया। लेकिन इस वंश के मुहम्मद गौरी ने वो काम किया जो उससे पहले कोई मुस्लिम आक्रमणकारी नहीं कर पाया और वह काम था हिन्दुओं के देश भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना।
गोरी वंश का अभ्युदय
वर्तमान अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में गजनी और हेरात के मध्य गुर जिला स्थित है। यह एक पहाड़ी और दुर्गम इलाका था, जिसके कारण यह प्राकृतिक रूप से सुरक्षित और रणनीतिक रूप से भी सुरक्षित था। गोरी वंश की स्थापना अला-उद-दीन हुसैन ने की थी। उसने 12वीं सदी में गौर क्षेत्र पर स्वतंत्र सत्ता स्थापित की। अला-उद-दीन हुसैन ने गजनवी साम्राज्य की कमजोरी का फायदा उठाकर स्वतंत्र गौर वंश की नीव रखी।
गौरी वंश का विस्तार गियास-उद-दीन और मोहम्मद गौरी के समय में गौर वंश ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गियास-उद-दीन ने खुदको मजबूत करने के लिए अपने भाई मोहम्मद गौरी को अपना सेनापति नियुक्त किया। गियास-उद-दीन की मृत्यु के बाद मुहम्मद गौरी शासक बना और उसने अपने साम्राज्य का विस्तार भारत की ओर करने का बीड़ा उठाया।
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मुहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमण
मुहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमण के संबंध में बहुत से कारणों का उल्लेख किया जाता है। मुहम्मद गौरी खुदको महमूद गजनवी का उत्तराधिकारी मनाता था और पंजाब और मुल्तान व सिंध का वैधानिक उत्तराधिकारी समझता था। इसके आलावा वह कट्टर मुस्लमान था और भारत के हिन्दुओं पर विजय प्राप्त कर इस्लाम की श्रेष्ठता साबित करना चाहता था। अतः उसने भारत पर आक्रमण की शृंखला शुरू की।
मुहम्मद गौरी का पहला आक्रमण कहाँ हुआ था?
मुल्तान पर आक्रमण 1175 ईस्वी- मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण का प्रारम्भ 1175 ईस्वी में शुरू किया। उसके आक्रमण का पहला शिकार मुल्तान बना जब 1175 में उसने मुल्तान के शासक जो कारामातियों के सम्प्रदाय के थे और कट्टर इस्लाम को नहीं मानते थे तथा सूअर का मांस भी खाते थे। इसलिए गौरी ने सबसे पहले मुल्तान के शासक को पाजित किया और उस परअधिकार कर लिया। मुल्तान एक समृद्ध और व्यापारिक केंद्र था जो सिंध नदी के किनारे अवस्थित था।
उच्च पर आक्रमण 1175 ईस्वी– मुल्तान पर अधिकार करने के बाद गौरी ने सिंध के ऊपरी भाग में स्थित उच्च पर आक्रमण किया। उच्च के भट्टी शासक और और उसकी पत्नी के मध्य समबन्ध ख़राब दौर से गुजर रहे थे और गौरी ने इसका फायदा उठाया। गौरी ने भट्टी शासक की पत्नी को वचन दिया कि यदि वह अपने पति का अंत कर देगी तो वह उसकी बेटी से विवाह करेगा। महिला ने वैसा ही किया और उसने अपने पति को ज़हर दे दिया। गौरी ने उसकी बेटी से विवाह किया मगर उसे मुख्य रानी के पद से बंचित रखा।
मगर विद्वान इस कहानी पर संदेह प्रकट करते हैं और कहते हैं कि भट्टी राजपूतों का सिंध के किसी भाग पर अधिकार ही नहीं था। सम्भवतः उस समय उच्च पर उस समय किसी मुसलमान शासक का शासन था। 1182 ईस्वी में गौरी ने सिंध के निचले भाग पर आक्रमण किया और सुमरा वंश के शासक को अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
अन्हिलवाड़ा (पट्टन) पर आक्रमण 1178 ईस्वी– मुहम्मद गौरी ने अपने अकमण जारी रखते हुए 1178 ईस्वी में गुजरात के अन्हिलवाड़ा पर आक्रमण किया। अन्हिलवाड़ा गुजरात के शक्तिशाली बघेला वंश के शासक भीम द्वितीय की राजधानी थी। युद्ध अत्यंत भयंकर हुआ और मुहम्मद गौरी के सेना में भगदड़ मच गई। गौरी ने मुश्किल से भागकर अपनी जान बचाई। इसके बाद गौरी ने अफगानिस्तान पहुंचकर अपनी क्षेत्र विस्तार की नीति का पुनर्मूल्यांकन किया और उसने पंजाब और उत्तर भारत पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
मुहम्मद गौरी का पंजाब पर आक्रमण- 1179 से 1186 ईस्वी
गुजरात में मिली भारी पराजय से सबक लेते हुए मुहम्मद गौरी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए सबसे पहले पंजाब पर अधिकार करने की योजना बनाई। इस क्रम में उसने पंजाब पर कई बार आक्रमण किया-
वर्ष | आक्रमण क्षेत्र | शासक |
1179 ईस्वी | पेशावर | खुसरो मालिक |
1181 ईस्वी | स्यालकोट | खुसरो मालिक |
1186 ईस्वी | लाहौर | खुसरो मालिक |
जब इन आक्रमणों की शृंखला से खबराए खुसरों मालिक ने देखा कि गौरी उसे पंजाब से निकलने पर तुला है तो उसने खोखरों के साथ संधि कर ली। खुसरो मालिक ने खोखरों की मदद से स्यालकोट का घेरा डाला परन्तु सफलता नहीं मिली। जब 1186 ईस्वी में गौरी ने पंजाब के लाहौर पर आक्रमण किया और लाहौर का घेरा दाल दिया। गौरी को इस आक्रमण के लिए जम्मू के शासक चंद्रदेव ने आमंत्रित किया था।
तमाम कोशिशों के बाद भी गौरी खुसरो मालिक को पराजित करने में असफल रहा। ऐसे में गौरी ने दूसरी चाल चली और खुसरो मालिक को दोस्ती के लिए बुलाया। गौरी ने खुसरो के बेटे को अपनी क़ैद से मुक्त कर दिया। लेकिन जन खुसरो मालिक गौरी के स्वागत के लिए आगे बढ़ा तभी उसे क़ैद कर लिया गया और अंततः 1192 में उसकी हत्या कर दी गई।
इस प्रकार अब तक मुहम्मद गौरी पंजाब, सिंध और मुल्तान पर अधिकार कर चुका था और उसकी विजय की महत्वकांशा जाग उठी थी। अब उसने दिल्ली अजमेर के चाहमान या चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान III पर आक्रमण की योजना बनाई।
तराइन के युद्ध 1191-92 ईस्वी
भारत पर अधिकार करने के लिए दिल्ली के शासक को हराना आवश्यक था। ऐसे में गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण की योजना बनाई। दिल्ली पर उस समय शक्तिशाली पृथ्वीराज चौहान तृतीय का शासन था। इन दोनों शासकों के बीच तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ईस्वी) और तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ईस्वी) हुए।

तराइन का प्रथम युद्ध- 1191 ईस्वी
मुहम्मद गौरी के भारत में बढ़ते क़दमों के रस्ते में सबसे बड़ा रोड़ा शक्तिशाली राजपूत वंश थे। राजपूत अपने अद्भुद शौर्य और वीरता के लोइये जाने जाते थे। मुहम्मद गौरी ने 1191 ईस्वी में तबरहिंद (वर्तमान भटिंडा) पर आक्रमण किया, जो पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य का भाग था। पृथ्वीराज चौहान ने इस चुनौती से निपटने के तुरंत अपनी सेना तैयार की। फरिश्ता के वर्णानुसार पृथ्वीराज की सेना में 2 लाख अश्वारोही और 3 हज़ार हाथी थे। इसके आलावा 50 हज़ार से अधिक पैदल सैनिक थे। कई राजपूत शासकों ने पृथ्वीराज को सहायता दी मगर कन्नौज का शासक जयचंद इससे दूर रहा, क्योंकि पृथ्वीराज ने उसकी बेटी संयोगिता का अपहरण किया था।
युद्ध का मैदान तराइन (हरियाणा), थानेश्वर से 14 मील दूर था। 1191 ईस्वी में दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। पृथ्वीराज चौहान के भाई गोविंदराज के जबड़े पर मुहम्मद गौरी ने तगड़ा प्रहार किया, इसके बदले में गोविंदराज ने गौरी की भूंजा में तलवार के बार से गहरा घाव कर दिया। गौरी मूर्छित होने ही वाला था कि एक खिलज़ी सैनिक उसे घोड़े पर बैठकर युद्ध क्षेत्र से भाग निकला। राजपूत सेना ने 40 मील तक भागती दुश्मन सेना का पीछा किया और सरहिंद का घेरा डाल दिया मगर कुछ हासिल नहीं हुआ।
तराइन का द्वितीय युद्ध-1192 ईस्वी
तराइन के प्रथम युद्ध में मिली पराजय से मुहम्मद गौरी लगभग पागल सा हो गया। उसने हर उस सैनिक और अधिकारी को सार्वजानिक रूप से अपमानित और दण्डित किया जो युद्ध क्षेत्र से भगा था। वह पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने को आतुर था और 1192 ईस्वी में में 1,20000 सैनिकों की विशाल सेना के साथ गज़नी शहर से चल पड़ा। मुहम्मद गौरी ने एक बार फिर तराइन के निकट डेरा डाल दिया। पृथ्वीराज चौहान अपने 150 से अधिक सहयोगी राजाओं के साथ युद्ध मैदान में निकल पड़ा। सुबह से शाम तक युद्ध होता रहा मगर कोई परिणाम नहीं निकला।
शुरुआत में युद्ध में हिन्दू सेनाओं को कुछ सफलता हाथ लगी। लेकिन शाम के समय मुसलमान सेना ने 12000 अश्व सेना के साथ हिन्दू सेना के शिविर पर इतना भयंकर आक्रमण किया कि शिविर हिन्दू सैनिकों को खून से भर गए। इस धोके से हुए हमले के कारण पृथ्वीराज चौहान की युद्ध में पराजय हुई। गोविन्दराय और खंडेराय भी युद्ध में मरे गए। ऐसे में पृथ्वीराज चौहान ने हाथी से उतारकर बचने का प्रयास किया मगर उसे सिर्सुटि नाम नगर के पास गिरफ्तार कर लिया गया।
पृथ्वीराज चौहान के मृत्यु कैसे हुई
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं और किसी एक तथ्य को स्वीकार करना अत्यंत कठिन है। पृथ्वीराज चौहान के मृत्यु के विषय तीन मत प्रचलित हैं जिनके बारे में हम नीचे जान सकते हैं-
प्रथम मत– इस मत के अनुसार तराइन के द्वितीय युद्ध में पराजय के बाद पृथ्वीराज चौहान को मुह्हमद गौरी के सैनिकों ने गिरफ्तार कर अजमेर ले जाया गया जहां उसकी हत्या कर दी गई।
द्वितीय मत– इस मत के अनुसार पृथ्वीराज चौहान को गिरफ्तार कर गजनी ले जाया गया जहाँ उसका सार्वजानिक अपमान किया गया और उसकी हत्या कर दी गई।
तृतीय मत- इस मत के अनुसार पृथ्वीराज चौहान को गिरफ्तार कर ग़ज़नी ले जाया गया और उसके साथ उसका राजकवि चंदरबरदाई भी था। इस कथा के अनुसार जब पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गोरी के सामने पेश किया तब तक उसकी ऑंखें फोड़ दी गई थी। इसके बावजूद पृथ्वीराज चुहान ने अपने अद्भुद धनुष प्रतिभा के प्रदर्शन किया और चंदरबरदाई के योजनानुसार एक इसारे से मुहम्मद गौरी की हत्या कर दी। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान की भी हत्या कर दी गई। हालाँकि इतिहासकार इसे सिर्फ एक दंत कथा मानते हैं।
सर्वाधिक माने मत यही है कि पृथ्वीराज चौहान को गिरफ्तार करके अजमेर ले जाकर हत्या कर दी गई।
मुहम्मद गौरी के अन्य आक्रमण
तराइन के द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने विजय प्राप्त की और शीघ्र ही उसने आगे की विजयों के लिए सेना को तैयार किया। उसने कई राजपूत राज्यों सहित अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
कन्नौज पर आक्रमण- चंदावर का युद्ध 1194
जिस समय पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई तब सुना कि कन्नौज के शासक ने बहुत जश्न मनाया। यह भी कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण के लिए कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचंद ने ही मुहम्मद गौरी को आमंत्रित किया था। हालाँकि भाग्य में कुछ और ही लिखा था। अगला शिकार कन्नौज ही बना और मुहम्मद गोरी ने भारत के इस प्रसिद्ध धार्मिक और राजनीतिक महत्व के शहर पर 1194 ईस्वी में आक्रमण किया।
चंदावर का युद्ध 1194
1194 ईस्वी में जयचंद और गौरी की सेनाएं चंदावर के मैदान में आमने-सामने हुई। दोनों ओर से भयंकर युद्ध हुआ जिसमें प्रारम्भ में हिन्दू सेनाओं को सफलता मिली। मगर अचानक एक तीन जयचंद की आंख में आकर लगा जिससे वह बेहोश होकर हाथी पर गिर गया। यह खबर सुनते ही हिन्दू सेना में भगदड़ मच गई। इसके बाद मैदान मुसलमान सेना के हाथ लगा। गौरी सीधे असनी के किले की ओर बढ़ा जहाँ जयचंद का कोष संग्रहित था।
बनारस में 10 हज़ार मंदिरों को नष्ट कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनाई गईं। 14 हज़ार हाथियों की पीठ पर बहुमूल्य मणि, रत्न, सोना, चांदी और ढेर सारा धन लूटकर गज़नी पहुंचा दिया गया। इसके बाद भारत की धार्मिक और रजनीतिक नगरी पर मुसलमानों का अधिकार हो गया।
बिहार की विजय- 1195-96
मुहम्मद गौरी ने 119596 में एक बार फिर भारत पर आक्रमण किया और इस बार उसने चुनार के निकट जाटों और राजपूतों को परास्त किया। इसके बाद उसने बिहार के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह बापस लौट गया।
इसके बाद मुहम्मद गौरी कुछ वर्षों के लिए मध्य एशिया में तुर्कों के साथ युद्ध में व्यस्त रहा। उसकी अनुपस्थिति में उसके सिपेहसालार कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में विजित प्रदेशों का प्रबंध संभाला ,उसने अजमेर में मुसलिम शक्ति को मजबूत किया। उसने भीमदेव की राजधानी अन्हिलवाड़ा पर आक्रमण किया और उसके सेनापति कुंवरपाल को पराजित किया। कुंवरपाल की हत्या कर राजधानी को लूटा गया और बहुत सा धन हाथ लगा। इसके बाद कुबुद्दीन ऐबक ने कई भारतीय राज्यों पर आक्रमण किया जिनक विवरण नीचे दिया गया है।
बुंदेलखंड की विजय 1197-98
ऐबक ने अपने साम्राज्य विस्तार के क्रम में बुंदेलखंड पर आक्रमण किया और उसने राजपूतों से बदायूं जीत लिया। इसके बाद पुनः बनारस पर आक्रमण किया जो स्वतंत्र हो चुका था। उसने चांदवाड़ा और कन्नौज पर पुनः अधिकार किया जो स्वतंत्र हो चुके थे। उसने मालवा और कालिंजर पर भी अधिकार किया।
1202-03 ईस्वी में ऐबक ने चंदेल शासक परमार देव की युद्धकालीन सबसे सुरक्षित राजधानी कालिंजर पर आक्रमण किया। चंदेल शासक ने वीरता से युद्ध लड़ा। ऐबक संधि को तैयार था मगर उससे पहले ही चंदेल राजा की मृत्यु हो गई। मुस्लिम सेनाओं ने किले को घेर लिया और उसमें पानी की आपूर्ति बंद कर दी। अंततः मुस्लिम सेनाओं ने किले पर अंधकार कर लिया। इस तरह महोवा, कालिंजर और खुजराहो पर ऐबक ने अधिकार कर लिया।
बिहार की विजय- 1197 ईस्वी
जिस समय कुतुबुद्दीन ऐबक जहाँ उत्तर भारत के राज्यों के साथ युद्ध में व्यस्त था तो उसके सेनापति इख्तियारुद्दीन-मुहम्मद-बख्तियार-खिलजी ने बिहार और बंगाल की विजय की योजना बनाई। इस सेनापति की एक कास विशेषता थी जब वह सीधा खड़ा होता था तो उसके हाथ (भुजाएं) उसकी टांगों की पिंडलियों को छूती थीं। 1197 ईस्वी में बख्तियार खिलज़ी ने बिहार की राजधानी औदन्तपुरी को लूटा। बिहार का कायर शासक बिना युद्ध के ही भाग खड़ा हुआ। बिहार सिर्फ हिन्दू मंदिरों को ही नहीं तोडा गया बल्कि बौद्ध बिहारों और भिक्षुओं का संहार किया गया।
बंगाल की विजय 1204-05
बिहार की विजय से उत्साहित बख्तियार खिलज़ी ने बंगाल के सेन वंश के शासक लक्ष्मण सेन पर आक्रमण की योजना बनाई और 1204-05 ईस्वी में उसने बंगाल पर आक्रमण किया। लक्ष्मण सेन एक आलसी शासक था जिसने अपनी सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया था। बख्तियार खिलजी ने चतुराई से काम लिया और मात्र 18 अश्वारोहियों के साथ बंगाल की राजधानी नादिया पहुँच गया और बाकि सेना उसने पीछे छोड़ दी। लोगों ने सोचा कोई घोड़ों का सौदागर होगा। इसके बाद बखीतियार खिलज़ी ने राजा के महल पर हमला किया। राजा भोजन कर रहा था। लेकिन उसने युद्ध के बजाय महल से भागना उचित समझा और पूर्वी बंगाल में जाकर छिप गया।
इसके बाद मुस्लमान सेना ने महल के अंदर लूटपाट और रक्तपात किया। असंख्य हाथी और खजाना मुसलमान सेना के हाथ लगा। उसके बाद शेष सेना ने बंगाल में लूटपाट की और लखनौती पर कब्जा क्र लिया। बख्तियार खिलजी ने यहीं से बापस लौटना सही समझा और उसने सम्पूर्ण बंगाल को विजय करने का कोई प्रयास नहीं किया।
तिब्बत पर आक्रमण 1205
भारत में अपनी विजय से उत्साहित बख्तियार खिलज़ी ने भारत की सीमा से बाहर तिब्बत पर आक्रमण की योजना बनाई और 1205 ईस्वी में वह तिब्बत जा पंहुचा जहाँ उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। तिब्बत के लोगों ने सड़कों को तोड़ डाला, फसलों को नष्ट कर दिया। बख्तियार की सेना में खलबली मच गई। बमुश्किल बख्तियार अपनी जान बचाकर वहां से निकला। उसकी समस्त सेना लगभग नष्ट हो गई। कामरूप (वर्तमान) की सेना ने लौटती मुस्लिम सेना पर जबरदस्त हमला किया और उसे नदी में धकेल दिया।
मुहम्मद गौरी का पुनः भारत में आगमन
जिस समय भारत में उपरोक्त घटनाएं घट रही थीं उसी समय अँधखुद के स्थान पर तुर्कों ने मुहम्मद गौरी को पराजित किया। जैसे ही उसकी इस पराजय की खबर भारत पहुंची, और यह अफवाह भी फैली कि मुहम्मद गौरी मारा जा चूका है। इस खबर के फैलते ही खोखरों ने अपने प्रमुख रायपाल के नतृत्व में विद्रोह करके मुल्तान के राज्यपाल को पराजित कर दिया। उन्होंने पंजाब को लूटा और पंजाब-गज़नी के बीच के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया।
इस बात की जानकारी जब मुहम्मद गौरी को मिली तो उसने पुनः भारत पर हमला किया। उसने कुतुबुद्दीन के साथ मिलकर खोकरों को उनकी उदंडता के लिए दण्डित किया और झेलम तथा चनाब के बीच अंसख्य खोकरों की हत्या की गई। असंख्य खोखर दास बनाये जिनकी संख्या इतनी अधिक थी कि एक दीनार में 5 दास मिलते थे। 1206 ईस्वी में मुहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई और उसके बाद उसका गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक भारत का सुल्तान बना।
मुहम्मद गौरी की मृत्यु 1206 ईस्वी
1206 ईस्वी में मुहम्मद गौरी तुर्कों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए लाहौर पहुंचा जहाँ से वह गज़नी जाने वाला था। जब वह गज़नी लौट रहा था तभी मार्ग में खोखरों ने शिया विद्रोहियों के साथ मिलकर 15 मार्च 1206 ईस्वी को उसकी हत्या कर दी। सुल्तान का शव गज़नी ले जाया गया और राजधानी में दफनाया गया। यहाँ आपको बता दें कि मुहम्मद गौरी की मृत्यु के संबंध में दो विचारधाराएं प्रचलित हैं जिसके तहत:-
मुहम्मद गौरी मृत्यु का प्रथम कारण
हत्या- मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बारे में पहला विचार उसकी हत्या का है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार भारत की पहाड़ी खोखर जनजाति के लोगों ने मुहम्मद गौरी की हत्या की। खोखर पंजाब की एक वीर और शक्तिशाली जनजाति थी, क्योंकि पंजाब पर आक्रमण के समय मुहम्मद गौरी ने हज़ारों खोखरों को मौत क घाट उतारा था तो उसी का बदला लेने के लिए खोखरों ने उसकी हत्या की।
मुहम्मद गौरी मृत्यु का द्वितीय कारण
धोखे से मृत्यु– इस विचार के अनुसार मुहम्मद गौरी की सख्त प्रशासनिक नीति से गज़नी के कुछ सरदार अप्रसन्न थे जिसके कारण उन्होंने धोखे से उसकी हत्या कर दी।
मुहम्मद गौरी की मृत्यु का स्थान
मुहम्मद गौरी की मृत्यु के स्थान के विषय में उपलब्ध स्रोतों के अनुसार उसकी मृत्यु दमयक, झेलम (Damyak) नामक स्थान पर हुई और यह स्थान वर्तमान में पाकिस्तान स्थित पंजाब में है। उस समय यह क्षेत्र भारत का था जिस पर मुहम्मद गौरी ने अधिकार कर लिया था।

मुहम्मद गौरी की विरासत
मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद उसका कोई वैध वारिस नहीं था क्योंकि उसके कोई पुत्र संतान नहीं थी। इसलिए भारत में उसके उत्तराधिकारी के रूप में उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की नींव रखी। गज़नी में ताजुद्दीन यल्दूज ने शासन पर अधिकार किया। और बंगाल में बख़्तयार ख़िलजी ने बतौर सुल्तान शासन शुरू किया। मुल्तान पर नासिरुद्दीन क़ुबाचा ने बतौर सुल्तान शासन संभाला इसके आलावा गौर साम्राज्य पर ग़ियासुद्दीन महमूद (बतौर ग़ौर का अमीर) शासन सँभाला। इस तरह मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य कई भागों में बाँट गया और 13 वीं शताब्दी केअंत तक गौर साम्राज्य समाप्त हो गया।
भारत पर तुर्कों की विजय (मुहम्मद गौरी) का प्रभाव
मोहम्मद गौरी के से पूर्व मुहम्मद बिन कासिम और महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर आक्रमण किये मगर उन्होंने राज्य स्थापित करने में कोई रूचि नहीं दिखाई। इसके बाद तुर्क आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किये। तुर्कों ने भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था पर गहरा पराभव डाला। मुहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम शासन की एक मजबूत नींव राखी जिसे उसके गुलाम और सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने और दृढ़ता प्रदान की। तुर्कों के आक्रमण के बाद भारत पर होने वाले प्रभावों को क्रमबद्ध रूप से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है:-
राजनीतिक प्रभाव
तुर्कों के आक्रमण का सबसे प्रथम प्रभाव यह था कि भारत के केंद्रीय भाग में मुस्लिम शासन स्थापित हुआ और उसके गुलाम कुतुब्बुदीन ऐबक ने भारत में गुलाम वंश की स्थापना की जिसने लम्बे समय अटक भारत पर शसन किया। इस विजय के बाद तुर्कों ने उत्तरी भारत के दो शक्तिशाली राजाओं- पृथ्वीराज चौहान और जयचंद का अंत कर राजपूतों की शक्ति को कमजोर कर दिया।
तुर्कों ने भारत में कंद्रीकृत शासन की नीव राखी जिसमें सामंतवाद के लये कोई स्थान नहीं था और सुल्तान ही सर्वोच्च शक्ति का स्रोत था। राज्यों को केंद्रीय शासन के अधीन लाने की व्यवस्था ने साम्राज्य को स्थिरता और सुरक्षा प्रदान की।
सामाजिक प्रभाव
भारत में तुर्कों के आक्रमण ने भारत की सामाजिक व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया। यहाँ तक की खान-पान पर भी प्रभाव डाला। भारत की अनेक दबी-कुचली जातियों ने राजपूतों और ने सवर्ण जातियों के अत्याचार से बचने के लिए इस्लाम धर्म अपना लिया और हिन्दू व्यवस्था को आघात पहुंचा। इस प्रकार भारत में एक नई संस्कृति ने अपने पैर जमाये जिसने भारत को लम्बे समय तक प्रभावित किया।
आर्थिक प्रभाव
जिस समय भारत पर तुर्कों ने आक्रमण शुरू किया उस समय भारत एक धनि देश था जिसमें प्रजा और राजा दोनों पर खूब धन था। तुर्कों ने शहरों और मंदिरों को बुरी तरह लूटा जिसमें उनके हाथ बहुत जयादा धन आया। इस धन से उन्होंने अपने देश में जाकर विकास किया और इसका इस्तेमाल साम्राज्य विस्तार के साधनों को जुटाने में किया। तुर्कों ने भारत के साथ व्यापार के नए मार्गों को शुरू किया जिससे व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला।
सांस्कृतिक प्रभाव
तुर्कों ने भारत में एक स्थायी मुस्लिम शासन की स्थापना की जिससे उन्होंने यहाँ एक नई तरह की संस्कृति को जन्म दिया। मुस्लिम वास्तुकला और शैलियों का विकास किया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद जैसी मुस्लिम शैली की इमारतों का निर्माण कराया। तुर्कों ने फ़ारसी साहित्य का विकास किया और कई हिन्दू ग्रंथों का फ़ारसी भाषा में अनुवाद कराया। भारत में एक मिली जुली संस्कृति का विकास हुआ जिसने भाषा, धर्म, खान-पान और वस्त्रों तक को प्रभावित किया।
सैनिक प्रभाव
भारतीय राजाओं की अपेक्षा तुर्कों की सेना ज्यादा चपल और रणनीति में कुशल थी। उसके तेज दौड़ने वाले ऊँचे घोड़ों ने कहीं अधिक तेजीसे सेंक मैदान में पराभव डाला। एक मजबूत सैन्य संघठन की सहायता से तुर्कों ने केंद्रीकृत शासन की स्थापना की। भारतीय शासकों की सैन्य कमजोरी जगजाहिर हो गई और आगे अन्य भारतीय राज्यों को भी मुसलमानों ने आसानी से पराजित कर दिया।
मुहम्मद गौरी से संबंधित अक्सर पूछे जान वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न- मुहम्मद गौरी कौन था?
उत्तर- मुहम्मद गौरी जिसका पूरा नाम शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी था एक तुर्क शासक और सेनापति था जिसने भारत में मुस्लिम शसन की नीव रखी।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी का सेनापति कौन था?
उत्तर- भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक उसका गुलाम और सेनापति था
प्रश्न- मोहम्मद गौरी किस वंश का था?
उत्तर- मुहम्मद गौरी अफगानिस्तान के गोरी वंश (Ghurid Dynasty) से संबंधित था। इस वंश का संस्थापक मुहम्मद गौरी का चाचा अला-उद-दीन हुसैन था।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- मोहम्मद गौरी का जन्म 1149 ईस्वी में हुआ था।
प्रश्न-मोहम्मद गौरी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
उत्तर- मुहम्मद गौरी की मृत्यु 15 मार्च, 1206 ईस्वी में हुई। उसकी हत्या पंजाब की खोखर जनजाति ने की।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी को किसने मारा?
उत्तर- मुहम्मद गौरी की हत्या पंजाब की खोखर जनजाति द्वारा की गई।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी का पूरा नाम क्या था?
उत्तर- उसका पूरा नाम शहाब-उद-दीन मोहम्मद ग़ोरी था उसे मुइज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ौरी और मोहम्मद ग़ोरी नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी का मकबरा कहाँ है?
उत्तर-मुहम्मद गौरी का मकबरा अफगानिस्तान के गज़नी शहर मरण है।
प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच कितनी बार युद्ध हुआ था?
उत्तर- मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच दो युद्ध हुए- तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ईस्वी) और तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ईस्वी) जिसमें पथम में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई और दूसरे में मुहम्मद गौरी की विजय हुई।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी की भारत में सर्वप्रथम हार कहाँ और कैसे हुई?
उत्तर- 1178 ईस्वी में अन्हिलवाड़ा (गुजरात) के युद्ध में मुहम्मद गौरी को भारत में पहली बार चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय ने पराजित किया।
प्रश्न- मोहम्मद गौरी के गुलाम कौन थे?
उत्तर- मुख्य रूप से मुहम्मद गौरी के तीन गुलाम थे- कुतुबुद्दीन ऐबक, ताजुद्दीन यल्दोज और नासिरुद्दीन कुबाचा .
प्रश्न- पृथ्वीराज चौहान की कब्र कहाँ है?
उत्तर- पृथ्वीराज चौहान की कब्र क्र बारे में कोई ठोस जानकरी उपलब्ध नहीं है, कुछ लोगों के अनुसार उसे अजमेर में दफनाया गया। एक घटना में फूलन देवी के हत्यारे शेर सिंह राणा ने अफगानिस्तान से पृथ्वीराज चौहान की तलवार और अस्थियां लाने का दवा किया। राणा ने गाज़िबाद के डासना में बनाये मंदिर में उनकी अस्थियों को रखा।
प्रश्न- जयचंद को गद्दार क्यों कहते हैं?
उत्तर- तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ईस्वी) में जयचंद ने मुहम्मद गौरी का साथ दिया था हालाँकि इसके कोई ऐतिहासिक स्रोत उपलब्ध नहीं हैं। यही कारण हैं कि लोग जयचंद को गद्दार कहते हैं।
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