मलिक काफूर कौन था? हज़ार दिनारी से दिल्ली की गद्दी का असली मालिक तक | Malik Kafur Biography in Hindi

By Santosh kumar

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वो शख्स जिसने 1000 दीनार में दिल्ली की तक़दीर बदल दी

Malik Kafur Biography: साल था 1297 ईस्वी० गुजरात में दिल्ली की सेना ने एक छापेमार हमला किया। नुसरत ख़ाँ नाम के एक सेनापति की नज़र पड़ी एक असाधारण ख़ूबसूरत युवक पर। वो न तो आम ग़ुलाम था, न ही कोई साधारण सिपाही। उसकी आँखों में चमक थी, चाल में नज़ाकत और चेहरे पर ऐसी रौनक कि देखने वाला देखता रह जाए। नुसरत ख़ाँ ने उसे 1000 स्वर्ण दीनार (हज़ार दीनार) में ख़रीद लिया।

  • बस यहीं से शुरू होती है उस शख्स की कहानी जिसे इतिहास मलिक काफूर या हज़ार दिनारी के नाम से जानता है।
  • जो कभी ग़ुलाम था, वही दस साल के अंदर दिल्ली सल्तनत का सबसे ताक़तवर इंसान बन बैठा।
  • जिसके हाथों अलाउद्दीन खिलजी भी कठपुतली बन गए।
  • और जिसने दक्षिण भारत के चार बड़े-बड़े हिंदू साम्राज्यों को घुटनों पर ला दिया।

असल में था कौन मलिक काफूर? – जन्म, जाति और रहस्य

पूरा नाममलिक काफूर (उपनाम: हज़ार दिनारी)
असली नामअज्ञात (ग़ुलाम बनने से पहले का नाम मिट गया)
जन्म स्थानगुजरात (संभवतः खंभात या आस-पास का इलाका)
जन्म वर्ष (लगभग)1275–1280 के आस-पास
मूल धर्महिंदू (बाद में इस्लाम कबूल किया)
जाति/पृष्ठभूमिकुछ इतिहासकार कहते हैं खत्री या व्यापारी परिवार; कुछ कहते हैं निम्न वर्ग
ख़ास पहचानकिन्नर (हिजड़ा/ख्वाजासरा) – बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक
ख़रीदा गया1297 ई. में नुसरत ख़ाँ द्वारा 1000 दीनार (हज़ार दीनार) में
पहला मालिकनुसरत ख़ाँ → फिर अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में पहुँचा
सबसे बड़ा संरक्षकसुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (1296–1316)
सबसे बड़ी उपाधिमलिक नाइब (उप-राजा), नाइब-ए-मुमलिकत, ताज-उल-मुल्क
सबसे बड़ा कारनामादक्षिण भारत की 4 बड़ी हिंदू राजधानियों पर विजय (1307–1311)
विजित राज्य1. देवगिरि (यादव) 2. वारंगल (काकतीय) 3. द्वारसमुद्र (होयसल) 4. मदुरै (पांड्य)
सबसे मशहूर लूटकोहिनूर हीरा (संभावित), सैकड़ों हाथी, हज़ारों घोड़े, टनों सोना-चाँदी
अलाउद्दीन की मौत में भूमिकाकई इतिहासकारों का आरोप: धीरे-धीरे ज़हर दिया
सत्ता काल (अलाउद्दीन के बाद)जनवरी 1316 से फरवरी 1316 (केवल 35–40 दिन)
अंतिम पदशिहाबुद्दीन उमर (6 साल का बच्चा) का रीजेंट (नायब-ए-सुल्तानत)
मौतफरवरी 1316 – मुबारक ख़ाँ के सिपाहियों ने सोते हुए तलवारों से क़त्ल कर दिया
मौत की उम्र (लगभग)36–40 साल
क़ब्रअज्ञात (दिल्ली में ही कहीं दफ़्नाया गया, कोई मज़ार नहीं)
सबसे बड़ा सबक1000 दीनार का ग़ुलाम 10 साल में पूरे हिंदुस्तान का मालिक बना – और फिर सब खो दिया

मलिक काफूर का असली नाम क्या था? कोई नहीं जानता।
उसका जन्म कब और कहाँ हुआ? ठीक-ठीक कोई नहीं बता सकता।

लेकिन जो बातें इतिहासकार मानते हैं, वो ये हैं:

  • वह मूलतः गुजरात का निवासी था।
  • हिंदू परिवार में जन्मा था (कुछ इतिहासकार कहते हैं खत्री या कोई व्यापारी जाति)।
  • वह एक किन्नर (हिजड़ा) था – यानी न पुरुष था, न स्त्री। उस ज़माने में ऐसे लोगों को “ख्वाजासरा” या “नपुंसक” कहा जाता था।
  • देखने में इतना ख़ूबसूरत था कि लोग उसे “गुजरात का चाँद” कहते थे।

जब अलाउद्दीन की सेना गुजरात पर हमला करने आई, तो मलिक काफूर को युद्धबंदी बना लिया गया। पहले वह किसी अमीर के पास रहा, फिर बाज़ार में बिका और आख़िर में 1000 दीनार में नुसरत ख़ाँ ने ख़रीदकर दिल्ली भेज दिया।

दिल्ली पहुँचा और सुल्तान का दिल जीत लिया

जब मलिक काफूर दिल्ली पहुँचा तो उसकी उम्र शायद 20-22 साल रही होगी।
उसे सबसे पहले सुल्तान के निजी ख़िदमतगार (personal attendant) के तौर पर रखा गया।

अलाउद्दीन खिलजी उस ज़माने का सबसे ख़ूंख़ार और सबसे चालाक सुल्तान था। उसने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या करके गद्दी हथिया ली थी। लेकिन जब उसने मलिक काफूर को देखा तो कुछ और ही हो गया।

काफूर सिर्फ़ ख़ूबसूरत नहीं था – वह बेहद होशियार, वफ़ादार और सैन्य रणनीति का माहिर था।
धीरे-धीरे वह सुल्तान का सबसे करीबी बन गया।
लोग कहते हैं कि अलाउद्दीन उससे इतना प्रभावित था कि रात को भी उससे सलाह लेता था।
कुछ इतिहासकार तो यहाँ तक लिखते हैं कि उनके बीच प्रेम-संबंध थे – उस ज़माने में इसे “अम्मद” या “लिवात” कहा जाता था, जो समाज में निंदनीय था।

लेकिन सच जो भी हो – सिर्फ़ 8-10 साल में मलिक काफूर “मलिक नाइब” (उप-राजा) बन गया।
उसे मिली उपाधियाँ:

  • मलिक नाइब बारबक (साम्राज्य का दूसरा सबसे बड़ा अधिकारी)
  • ताज-उल-मुल्क
  • नाइब-ए-मुमलिकत (उप-सुल्तान)

दक्षिण भारत की चौंकाने वाली विजयें – मलिक काफूर का स्वर्णिम दौर (1307-1311)

अलाउद्दीन का एक ही सपना था – पूरे हिंदुस्तान को अपने अधीन करना।
उत्तर भारत तो पहले ही जीत चुका था। अब बारी थी दक्षिण की।
लेकिन दक्षिण के राजा बहुत ताक़तवर थे – यादव, काकतीय, होयसल और पांड्य।

अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को सेनापति बनाया और कहा:
“जा, और लाकर दिखा कि दक्षिण में भी दिल्ली का झंडा लहरा सकता है।”

और फिर जो हुआ, वह भारतीय इतिहास की सबसे हैरतअंगेज़ सैन्य सफलताओं में से एक है।

1. पहला अभियान – देवगिरी (1307-08)

  • राजा: रामचंद्र देव (यादव वंश)
  • पहले ही हमले में देवगिरी पर क़ब्ज़ा।
  • रामचंद्र देव ने आत्मसमर्पण किया और दिल्ली का अधीन राजा बन गया।
  • लूट: सैकड़ों हाथी, हज़ारों घोड़े, और न जाने कितना सोना-चाँदी।
  • ख़ास बात: रामचंद्र देव को दिल्ली लाया गया, लेकिन अलाउद्दीन ने उसे सम्मान दिया और “राय रायण” की उपाधि देकर वापस भेज दिया।

2. दूसरा अभियान – वारंगल (1309-10)

  • राज्य: काकतीय (तेलंगाना)
  • राजा: प्रतापरुद्रदेव
  • मलिक काफूर ने वारंगल को 8 महीने तक घेरा।
  • आख़िर में राजा ने हार मान ली।
  • लूट: प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा इसी अभियान में मिला था (कुछ इतिहासकारों के अनुसार)।
  • साथ ही 100 हाथी, 20,000 घोड़े और ढेर सारा सोना।

3. तीसरा अभियान – द्वारसमुद्र (1310-11)

  • राज्य: होयसल साम्राज्य (कर्नाटक)
  • राजा: वीर बल्लाल तृतीय
  • राजधानी द्वारसमुद्र (आज का हलेबीदु) पर क़ब्ज़ा।
  • बल्लाल ने भारी भरकम खिराज दिया और आत्मसमर्पण किया।
  • मलिक काफूर ने यहाँ से भी अपार धन लूटा।

4. चौथा और सबसे दक्षिणी अभियान – मदुरै (1311)

  • राज्य: पांड्य साम्राज्य (तमिलनाडु)
  • उस समय दो भाइयों सुंदर पांड्य और वीर पांड्य के बीच गृहयुद्ध चल रहा था।
  • मलिक काफूर ने मौक़ा देखा और मदुरै पर हमला बोल दिया।
  • शहर को लूटा गया, मंदिरों को तोड़ा गया।
  • वहाँ के प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर की संपत्ति भी लूटी गई।
  • काफूर ने रामेश्वरम तक पहुँचकर वहाँ भी एक मस्जिद बनवाई।

इतिहासकार ज़ियाउद्दीन बरनी लिखते हैं:
“मलिक काफूर ने इतना धन लाया कि महमूद ग़ज़नवी भी क़ब्र में लोट-पोट हो गया होगा।”

ये चारों विजयें सिर्फ़ 4-5 साल में हुईं।
इससे पहले कोई भी मुस्लिम सेना दक्षिण के इतने अंदर तक नहीं घुसी थी।
मलिक काफूर ने वो कर दिखाया जो सिकंदर, महमूद ग़ज़नवी और मुहम्मद गोरी भी नहीं कर सके।

सत्ता का नशा और पतन की शुरुआत

धन लादकर, दिल्ली लौटा तो मलिक काफूर सातवें आसमान पर था।
अलाउद्दीन बीमार रहने लगा था। अब सारी सत्ता काफूर के हाथ में थी।

लेकिन यही से कहानी में रोमांचक मोड़ आता है।

1. परिवार के खिलाफ़ षड्यंत्र

काफूर ने अलाउद्दीन के कान भर दिए कि उनकी बेगम (मलिका-ए-जहाँ) और बेटे (खिज्र खाँ, शिहाबुद्दीन) उनके ख़िलाफ़ साजिश कर रहे हैं।
अलाउद्दीन ने आँख बंद करके विश्वास कर लिया।
परिणाम:

  • खिज्र खाँ और शादी खाँ की आँखें निकलवाई गईं।
  • अल्प खाँ (अलाउद्दीन का दामाद) की हत्या।
  • मलिका-ए-जहाँ को क़ैद।

2. अलाउद्दीन की मौत – ज़हर या बीमारी?

जनवरी 1316 में अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई।
कई इतिहासकार (एल्फिंस्टन, फिरिश्ता आदि) मानते हैं कि मलिक काफूर ने ही उसे धीरे-धीरे ज़हर दिया था।

अलाउद्दीन के बाद – 35 दिन का ख़ूंख़ार शासन

अलाउद्दीन की मौत के बाद मलिक काफूर ने:

  • 6 साल के छोटे बेटे शिहाबुद्दीन उमर को गद्दी पर बिठाया।
  • खुद नायब-ए-सुल्तानत (regent) बन गया।

अब उसने खुलकर ख़ून की होली खेली:

  • खिज्र खाँ और शादी खाँ की आँखें निकलवाकर उन्हें मार डाला।
  • सारे पुराने अमीरों को क़त्ल या क़ैद।

लेकिन एक राजकुमार बच गया – मुबारक खाँ।
वह छिपकर भाग निकला।

अंत – वो रात जब हज़ार दिनारी मारा गया

1316 में, सिर्फ़ 35 दिन के शासन के बाद, मुबारक खाँ ने अपने समर्थकों के साथ महल पर हमला किया।
मलिक काफूर को सोते हुए तलवारों से छलनी कर दिया गया।
उसका सिर काटकर दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया।

जिस शख्स ने चार साम्राज्य जीते थे, उसका अंत एक साधारण ग़ुलाम की तरह हुआ।

निष्कर्ष – मलिक काफूर था हीरो या विलेन?

आज भी लोग दो हिस्सों में बँटे हैं:

एक तरफ़ लोग कहते हैं:

  • वह एक महान सेनापति था।
  • उसने दक्षिण का रास्ता हमेशा के लिए खोल दिया।
  • अलाउद्दीन का सबसे वफ़ादार साथी था।

दूसरी तरफ़ लोग कहते हैं:

  • वह एक क्रूर, महत्वाकांक्षी और विश्वासघाती इंसान था।
  • उसने सुल्तान के पूरे ख़ानदान को ख़त्म कर दिया।
  • मंदिरों को लूटा, लोगों पर ज़ुल्म किए।

लेकिन सच यही है कि मलिक काफूर एक ऐसा किरदार था जिसे इतिहास न पूरी तरह हीरो कह सकता है, न पूरा विलेन।
वह एक ग़ुलाम से सुल्तान का सुल्तान बना और फिर अपने ही जाल में फँसकर मर गया।

जैसा कि अलाउद्दीन ने अपने चाचा को मारा था,
वैसे ही कुदरत ने उसके लिए मलिक काफूर को भेजा –
और खिलजी वंश का नामोनिशान मिटा दिया।

आख़िरी लाइन:
1000 दीनार में ख़रीदा गया वो ग़ुलाम,
अंत में पूरे हिंदुस्तान की तक़दीर का मालिक बन बैठा था।
बस यही मलिक काफूर की सबसे बड़ी और सबसे दर्दनाक कहानी है।


मलिक काफूर कौन था? – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

मलिक काफूर कौन था? – अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

1. मलिक काफूर असल में था कौन? उसका असली नाम क्या था?

मलिक काफूर का असली नाम इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। वह मूल रूप से गुजरात का हिन्दू था और एक किन्नर (ख्वाजासरा) था। 1297 ई. में दिल्ली की सेना ने उसे ग़ुलाम बनाया और 1000 दीनार में बेचा गया – इसी लिए उसे “हज़ार दिनारी” भी कहा जाता है।

2. हज़ार दिनारी नाम कैसे पड़ा?

1297 में अलाउद्दीन की सेना के कमांडर नुसरत ख़ाँ ने उसे गुजरात से 1000 स्वर्ण दीनार में ख़रीदा था। उस ज़माने में 1000 दीनार बहुत बड़ी रक़म थी, इसलिए उसका सबसे मशहूर नाम “हज़ार दिनारी” पड़ गया।

3. क्या मलिक काफूर और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम संबंध थे?

समकालीन इतिहासकारों (जैसे ज़ियाउद्दीन बरनी, आमिर खुसरो) ने इशारों में लिखा है कि अलाउद्दीन काफूर से बहुत ज़्यादा मोहब्बत करते थे। उस दौर में इसे “लिवात” या “अम्मद” कहा जाता था। कई इतिहासकार इसे समलैंगिक संबंध मानते हैं, पर इसे साबित करने के पुख़्ता सबूत नहीं हैं।

4. मलिक काफूर ने दक्षिण भारत में कितने राज्य जीते?

सिर्फ़ 4-5 साल (1307-1311) में उसने चार बड़े हिन्दू राज्य जीते:
1. देवगिरि (यादव)
2. वारंगल (काकतीय)
3. द्वारसमुद्र (होयसल)
4. मदुरै (पांड्य)

5. क्या कोहिनूर हीरा मलिक काफूर ने ही लूटा था?

हाँ, ज़्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा वारंगल (काकतीय राज्य) की लूट में 1310 में मलिक काफूर को मिला था।

6. क्या मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी को ज़हर देकर मारा?

यह बहुत बड़ा विवाद है। एल्फिंस्टन, फिरिश्ता और कई आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि अलाउद्दीन की लंबी बीमारी के पीछे मलिक काफूर का धीमा ज़हर था। लेकिन पक्का सबूत नहीं है।

7. अलाउद्दीन की मौत के बाद मलिक काफूर ने क्या किया?

उसने 6 साल के बच्चे शिहाबुद्दीन उमर को गद्दी पर बिठाया और खुद रीजेंट (नायब-ए-सुल्तानत) बन गया। सिर्फ़ 35-40 दिन के अंदर उसने अलाउद्दीन के सारे बड़े बेटों की आँखें निकलवाईं या हत्या कर दी।

8. मलिक काफूर की मौत कैसे हुई?

फरवरी 1316 में मुबारक ख़ाँ (बाद में मुबारक शाह खिलजी) ने अपने समर्थकों के साथ महल पर हमला किया। मलिक काफूर को सोते हुए तलवारों से छलनी कर दिया गया और उसका सिर काटकर दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया।

9. क्या मलिक काफूर की कोई क़ब्र या मज़ार है?

नहीं। उसकी लाश को फेंक दिया गया था। आज तक उसकी कोई क़ब्र नहीं मिली।

10. आज मलिक काफूर को हीरो मानें या विलेन?

दोनों ही।
हीरो इसलिए कि उसने वह कर दिखाया जो कोई मुस्लिम सेनापति उससे पहले नहीं कर सका।
विलेन इसलिए कि उसकी क्रूरता, विश्वासघात और महत्वाकांक्षा ने खिलजी वंश को ख़त्म कर दिया।

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