आधुनिक भारतीय इतिहास में लार्ड डलहौजी प्रसंशा और निंदा दोनों का पात्र है। लॉर्ड डलहौजी, जिन्हें ‘अर्ल ऑफ डलहौजी‘ के नाम से भी जाना जाता है, 1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर जनरल रहे। उसका कार्यकाल ब्रिटिश भारत के लिए महत्वपूर्ण परिवर्तनों का दौर था, जहाँ उन्होंने भारत में सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक ढांचे में युगांतकारी परिवर्तन किये, वहीँ राजनीतिक क्षेत्र में ऐतिहासिक परिवर्तनों को जन्म दिया।
भारत क्र लिए युगांतकारी परिवर्तनों में उन्होंने रेलवे, डाक, और तार व्यवस्था तथा शिक्षा के क्षेत्र में जैसे आधुनिक सुधारों के जरिए भारत को आधुनिक रूप दिया, वहीं उनकी ‘हड़प नीति’ और साम्राज्यवादी दृष्टि ने तमाम देशी राजाओं को समाप्त कर उनके राज्यों को ब्रिटिश राज्यों में शामिल कर लिए, इससे उपजे असंतोष के परिणामस्वरूप 1857 का विद्रोह हुआ। इस लेख में हम लॉर्ड डलहौजी के जीवन, उनकी नीतियों, सुधारों और भारत पर उसके प्रभाव का मूल्यांकन करंगे।

Who was Lord Dalhousie?: लॉर्ड डलहौजी कौन थे?
लार्ड डलहौजी एक साम्राज्वादी गवर्नर जनरल था। उसका जन्म 1812 में स्कॉटलैंड के एक अमीर परिवार में हुआ था। उसका नाम जेम्स एंड्रू ब्राउन-रामसे था जिसे सामन्यतः लॉर्ड डलहौजी के नाम से जाना जाता है। उसने क्राइस्ट चर्च, हैरो और ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की थी। जब वह 25 वर्ष का हुआ तब वह ब्रिटिश संसद के लिए चुना गया। तत्कालीन इंग्लैंड की सरकार जिसका मुखिया रोबर्ट पील था, के मंत्रिमंडल में व्यापार बोर्ड के उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष रहे। इसके आलावा डलहौजी ने आयरलैंड के मुख्य सचिव और युद्ध सचिव के रूप में भी अपनी सेवाएं दी।
Governor General of India: भारत का गवर्नर जनरल
लार्ड डलहौजी जिस समय भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया उस समय उसकी आयु 36 वर्ष थी, इस तरह वह 12 जनवरी 1848 को, ब्रिटिश भारत का सबसे युवा गवर्नर जनरल बनकर भारत आया।

| नाम | लॉर्ड डलहौजी |
| वास्तविक नाम | एंड्रू ब्राउन-रामसे (‘अर्ल ऑफ डलहौजी‘ ) |
| पिता | जॉर्ज रामसे (डलहौजी के 9वें अर्ल) |
| माता | क्रिश्चियन ब्राउन |
| पत्नी | सुसान ब्राउन-रैमसे (लेडी सुसान हे ) |
| संतान | जेम्स एंड्र्यू ब्राउन-रामसे जूनियर |
| ब्रिटिश संसद का सदस्य | 25 वर्ष की आयु में 1837 |
| भारत का गवर्नर जनरल | 12 जनवरी 1848 |
| कार्यकाल | 1848–1856 |
| मुख्य नीतियाँ | हड़प नीति (Doctrine of Lapse), युद्धों द्वारा विस्तार, प्रशासनिक सुधार |
| प्रमुख सुधार | रेलवे, तार, डाक व्यवस्था, शिक्षा, और सार्वजनिक निर्माण |
| मृत्यु | 19 दिसंबर 1860 (आयु 48), डलहौजी कैसल, मिडलोथियन |
डलहौजी की हड़प नीति (Doctrine of Lapse)
इतिहास में सबसे विवादस्पद लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति या Doctrine of Lapse थी। इस नीति के अनुसार, यदि कोई ब्रिटिश संरक्षण वाला देसी राज्य बिना वास्तविक उत्तराधिकारी (जैबिक संतान) के रह जाता था, अथवा मर जाता था, तो उसका राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो जाता था। इस नीति के तहत प्रावधान था, कि ऐसे राजा यदि किसी को गोद लेकर उत्तराधिकारी घोषित करते हैं तो उसे मान्यता नहीं दी जाएगी, इसके लिए पहले गवर्नर जनरल से अनुमति लेनी होती थी।
यह भी पढ़िए–
हड़प नीति कैसे काम करती थी?
डलहौजी ने अपनी इस नीति को कार्यान्वित करने के लिए, देसी राज्यों को तीन श्रेणियों में बांटा:
- स्वतंत्र राज्य: जैसे जयपुर, जोधपुर, और उदयपुर, जो कभी किसी अन्य शक्ति के अधीन नहीं थे। इनके राजा बिना अनुमति के दत्तक पुत्र गोद ले सकते थे।
- कपनी के आश्रित राज्य: जैसे नागपुर और ग्वालियर, जो मुगलों या मराठों को कर देते थे और अब कम्पनी के संरक्षण में थे। इनके लिए दत्तक पुत्र चुनने हेतु ब्रिटिश सरकार की अनुमति आवश्यक थी।
- कम्पनी के अधीनस्थ राज्य: जैसे सतारा और झांसी, जो ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए थे। इन राज्यों को दत्तक पुत्र चुनने का कोई अधिकार नहीं था।
यदि अधीनस्थ राज्य का राजा बिना वास्तविक उत्तराधिकारी के स्वर्ग सिधार जाता, तो उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाता। इस नीति के जरिए डलहौजी ने कई देशी राज्यों को हड़प लिया।
हड़प नीति के तहत विलय किए गए राज्य
डलहौजी ने सात राज्यों को इस नीति के तहत हड़प लिया:
| वर्ष | राज्य | हड़पने का कारण |
| 1848 | सतारा | लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा बनाया गया यह राज्य अप्पा साहब की मृत्यु के बाद हड़प लिया गया, क्योंकि उन्होंने बिना ब्रिटिश अनुमति के दत्तक पुत्र लिया था। |
| 1849 | संबलपुर | राजा नारायण सिंह की मृत्यु बिना उत्तराधिकारी के हुई, जिसके बाद यह राज्य ब्रिटिशों ने ले लिया। |
| 1849 | जैतपुर | बुंदेलखंड में स्थित इस राज्य का राजा बिना पुत्र के मर गया, और इसे हड़प लिया गया। |
| 1850 | बघाट | पंजाब के पहाड़ी क्षेत्र में यह छोटा राज्य था, जिसे राजा की मृत्यु के बाद हड़प लिया गया। |
| 1852 | उदयपुर | मध्य प्रांत में स्थित इस राज्य को राजा की मृत्यु के बाद हड़प लिया गया। |
| 1853 | झांसी | राजा गंगाधर राव ने दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया, लेकिन डलहौजी ने इसे मान्यता नहीं दी और झांसी को हड़प लिया। |
| 1854 | नागपुर | राजा राघोजी तृतीय भोंसले की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र यशवंत राव को उत्तराधिकारी नहीं माना गया, और नागपुर हड़प लिया गया। |
| 1855 | करौली | डलहौजी ने करौली को हड़पने की कोशिश की, लेकिन ब्रिटिश निदेशकों ने इसे स्वतंत्र राज्य मानकर विलय रद्द कर दिया। बाद में लॉर्ड केनिंग ने बघाट और उदयपुर के विलय भी रद्द किए। |
हड़प नीति की आलोचना
डलहौजी की इस अनैतिक राज्य हड़प नीति बहुत निंदा हुई क्योंकि यह भारतीय परंपराओं और हिंदू धर्म के विपरीत की गई कार्यवाही थी। इस नीति ने अन्य भारतीय राजाओं और उनके उनके परिवारों के साथ-साथ प्रजा में भय और असंतोष पैदा किया, इसका परिणाम हमें 1857 के विद्रोह के रूप में देखने को मिला। ब्रिटिश इतिहासकारों जैसे सर हेनरी लॉरेंस ने इसे “अनैतिक” और “विश्वासघात” के रूप में वर्णित किया है।
युद्धों नीति के माध्यम से साम्राज्य विस्तार
डलहौजी एक साम्राज्यवादी नीति का व्यक्ति था उसने न केवल हड़प नीति के माध्यम से बल्कि युद्धों के जरिए भी ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने पंजाब और लोअर बर्मा को युद्धों के माध्यम से हड़प लिया और उन्हें ब्रिटिश भारत में शामिल कर लिया ।
द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध और पंजाब का विलय (1849)
दूसरा आंग्ल-सिख युद्ध (1848–1849) डलहौजी के शासनकाल का एक प्रभावकारी मोड़ था। इससे पहले प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845–1846) के बाद पंजाब को ब्रिटिश नियंत्रण में ले लिया गया था, लेकिन लाहौर दरबार में एक ब्रिटिश रेजिडेंट और रीजेंसी काउंसिल के जरिए अप्रत्यक्ष शासन था। लेकिन 1848 में मुल्तान में दो ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी गई और वहां के गवर्नर मूलराज ने खुला विद्रोह कर दिया। डलहौजी ने इस विद्रोह को एक अवसर के रूप में देखा और इसे तुरंत कुचलने के बजाय इसे पनपने दिया, और यह उसके लिए पंजाब को हड़पने का एक सुनहरा अवसर बन गया।
रामनगर, चिलियांवाला, और गुजरात में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुए। मार्च 1849 तक संगरेजों ने सिख सेना को पराजित कर दिया, और 29 मार्च 1849 को पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया गया। तत्कालीन युवा राजकुमार महाराजा दलीप सिंह को पेंशन देकर लंदन भेज दिया गया, और कोहिनूर हीरा रानी विक्टोरिया को तोहफे के तौर पर भेंट दिया गया। डलहौजी ने कहा, “सिखों ने युद्ध मांगा, और इसे पूर्ण प्रतिशोध के साथ लड़ा जाएगा।”
आलोचना: डलहौजी के द्वारा पंजाब के विलय को लेकर आलोचकों का कहना था कि डलहौजी ने जानबूझकर एक स्थानीय विद्रोह को राष्ट्रीय युद्ध में परिवर्तित कर दिया। मुल्तान का विद्रोह सिख सरकार के विरुद्ध था, न कि अंग्रेजों के, फिर भी डलहौजी ने इसे हड़पने का सिर्फ एक कुटिल बहाना बनाया।
द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और लोअर बर्मा का विलय (1852)
दूसरा आंग्ल-बर्मा युद्ध (1852) का वास्तविक उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटिश प्रभाव को स्थापित करना था। 1826 की यांडबू संधि य ( यंदाबू ) के बाद ब्रिटिश व्यापारी रंगून में बसने लगे थे, लेकिन बर्मा सरकार पर व्यापारियों के उत्पीड़न का आरोप लगाकर डलहौजी ने युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने ब्रिटिश युद्धपोत फॉक्स के साथ कमोडोर लैम्बर्ट को रंगून भेजा, जिन्होंने एक बर्मी जहाज पर कब्जा कर लिया।
डलहौजी ने बर्मा के राजा के सामने दो शर्ते रखीं- प्रथम माफी मांगना और दूसरा एक लाख पाउंड युद्ध हर्जाना देना। कोई सकारात्मक जवाब न मिलने की दशा में 5 अप्रैल 1852 को युद्ध शुरू हुआ। अंग्रेजों ने 12 अप्रैल को रंगून और जून में पेगू पर अधिकार कर लिया। 20 दिसंबर 1852 को लोअर बर्मा (पेगू) को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना लिया गया।
प्रभाव: इस युद्ध से अंग्रेजों को को रंगून जैसा महत्वपूर्ण बंदरगाह हाथ अलग, लेकिन इसे अनैतिक माना गया, क्योंकि यह व्यापारिक हितों के लिए लड़ा गया एक अनैतिक युद्ध था।
कुशासन का आरोप लगाकर देशी राज्यों का विलय
डलहौजी ने देशी राजाओं के खत्म करने के लिए सिर्फ गोद निषेध नीति को ही नहीं अपनाया बल्कि कुशासन का आरोप लगाकर कुछ राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया, जिसमें हड़प नीति लागू नहीं हो सकती थी।
| विलय का वर्ष | राज्य |
| 1850 | दार्जिलिंग |
| 1853 | बरार |
| 1856 | अवध |
दार्जिलिंग (1850)
डलहौजी ने 1850 में सिक्किम से दार्जिलिंग को हड़प लिया और ब्रिटिश राज्य में मिला लिया, यह आरोप लगाकर कि सिक्किम के राजा ने अंग्रेज अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया है। लेकिन सच्चाई यह थी कि, दार्जिलिंग चाय उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण था, और ब्रिटिश कंपनियां इसे अपने संरक्षण में लेना चाहती थीं। इस तरह डलहौजी ने अंग्रेजी व्यापार के लिए एक स्वतंत्र राज्य को हड़प लिया।
बरार (1853)
बरार पर हैदराबाद के निजाम का अधिकार था और इसे 1853 में अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया गया। इसके पीछे का कारण यह था कि निजाम पर ब्रिटिश सहायक सेना (सहायक संधि के तहत ) के रखरखाव के लिए 4,50,000 पाउंड का कर्ज था। डलहौजी ने एक नई संधि थोपी, जिसके तहत बरार की आय अंग्रेज सरकार को दे दी गई, और इसका प्रशासन ब्रिटिश रेजिडेंट को सौंप दिया गया।
अवध (1856)
विलय नीति के तहत सबसे विवादस्पद अवध का विलय था। अवध के नवाब वाजिद अली शाह के वारिस थे, इसलिए हड़प नीति लागू नहीं हो सकती थी। लेकिन डलहौजी ने तो निश्चय किया हुआ था की अवध को अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बनाएगा और इसके लिए कुशासन का आरोप लगाया गया।
1848 में कर्नल स्लीमैन और 1854 में जेम्स आउट्रम की रिपोर्ट्स में अवध के प्रशासन को भ्रष्ट और अयोग्य बताया गया। डलहौजी ने नवाब पर 12 लाख रुपये की पेंशन के बदले अवध अंग्रेजों को सौंपने का दबाव डाला। नवाब के इनकार करने पर उन्हें जबरन गद्दी से हटाकर कलकत्ता भेज दिया गया, और 13 फरवरी 1856 को अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। इसके आलावा अवध की बेगम जीनत महल के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया।
डलहौजी के प्रशासनिक सुधार
जहाँ डलहौजी की साम्राज्यवादी नीतियों के भारतीय जनमानस के मन भय और असंतोष पैदा हुआ तो वहीँ उसके प्रशासनिक सुधारों ने आधुनिक भारत की नींव रखी। उसे कुछ युगांतकारी सुधार इस थे-
नॉन-रेगुलेशन प्रणाली
डलहौजी ने नए विलय किए गए देशी राज्यों जैसे पंजाब, अवध, और बर्मा में नॉन-रेगुलेशन प्रणाली लागू की। इस प्रणाली के तहत मुख्य आयुक्तों की नियुक्ति की गई, जो सीधे गवर्नर जनरल के प्रति उत्तरदायी थे। यह एक प्रकार से केंद्रीकृत व्यवस्था थी।
बंगाल में लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति
लगातार होते ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के कारण गवर्नर जनरल के ऊपर अत्यधिक भार बढ़ गया था। इसलिए डलहौजी ने बंगाल में एक लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया ताकि अपने ऊपर से अतिरिक्त जिम्मेदारियों का बोझ हल्का कर सके।
जिला प्रशासन
प्रशासनिक व्यवस्था को सुगम और सरल बनाने के लिए ब्रिटिश प्रांतों का जिलों में विभाजन किया गया, इसके साथ ही प्रत्येक में एक डिप्टी कमिश्नर नियुक्त की नियुक्ति की गई। बंगाल में 23, बंबई में 13, मद्रास में 26, और सिंध में 3 नए जिलों का सृजन किया गया।
सैन्य सुधार
डलहौजी सेना का महत्व भलीभांति समझता था। उसने सेना को अधिक कुशल और प्रभावशाली बनाने के लिए निम्लिखित क़दमों को उठाया-
- सैन्य मुख्यालय का स्थानांतरण: उसने तोपखाने का मुख्यालय कलकत्ता से मेरठ और सेना का मुख्यालय शिमला स्थानांतरित कर दिया।
- पंजाब में अस्थायी सेना और गोरखा रेजिमेंट: पंजाब में एक अस्थायी सेना का गठन किया गया, और गोरखा रेजिमेंटों की संख्या में बढ़ोत्तरी की गई। डलहौजी का यह कदम 1857 के विद्रोह में अत्यंत कारगर साबित हुआ।
- सेना में संतुलन: डलहौजी के समय अंग्रेजी सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या (2,38,000) की तुलना में यूरोपीय सैनिकों की संख्या (45,000) अत्यंत कम थी। डलहौजी ने सेना में संतुलन बनाने की लिए भारतीय सैनिकों की संख्या को कम किया और यूरोपीय सैनिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की।
आधुनिक भारत की नींव
डलहौजी के सुधारों ने आधुनिक भारत की नींव रखी। हालाँकि इन सुधारों का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को मजबूती प्रदान करना था, मगर उसके इन प्रयसों ने भारतियों में राजनीतिक चेतना का विकास किया और आधुनिक भारत की नींव रखी।
| 16 अप्रैल 1853 | बंबई से ठाणे (34 किमी) तक प्रथम रेलगाड़ी चली |
| 1852 | तार विभाग की स्थापना |
| 1854 | पोस्ट ऑफिस एक्ट |
| 1854 | सार्वजनिक निर्माण विभाग(PWD) की स्थापना |
| 1854 | वुड्स डिस्पैच (शिक्षा में सुधार के लिए) |
रेलवे का विकास
डलहौजी को भारत में रेलवे के विकास का अग्रदूत माना जाता है। यह डलहौजी ही था जिसके प्रयास से 16 अप्रैल 1853 को बंबई से ठाणे (34 किमी) तक पहली रेल लाइन शुरू हुई। 1854 में कलकत्ता से रानीगंज और 1856 में मद्रास से अरकोनम तक रेलवे का विस्तार हुआ। यह विकास ब्रिटिश शासन को गति देने के लिए किया गया, लेकिन इनसे भारत के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने में मदद मिली।
विद्युत तार का विकास
1852 में डलहौजी ने तार विभाग की स्थापना की। ओ’शॉनेसी ने 4,000 मील तार लाइनें बिछाईं, जो कलकत्ता, पेशावर, बंबई, और मद्रास को जोड़ती थीं। 1857 में एक विद्रोही ने कहा, “इस तार ने हमारा गला घोंट दिया।” लेकिन आज़ादी के बाद टेलीफोन के विकास में यही तार काम आया।
डाक व्यवस्था का प्रारम्भ
1854 के पोस्ट ऑफिस एक्ट के विकास ने आधुनिक डाक व्यवस्था का प्रारम्भ किया। उस समय 753 डाकघर स्थापित किए गए, और 1 पैसे का पोस्टकार्ड, 2 पैसे का लिफाफा, और विदेशी पत्रों के लिए 4 आने का टिकट शुरू किया गया। भले ही आज इंटरनेट के विकास ने डाक विभाग का महत्व काम किया है मगर यह संचार का एक महत्वपूर्ण साधन आज भी है।
सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) की स्थापना
1854 में डलहौजी ने एक सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना, जिसका कार्य सड़कों, पुलों, और भवनों का निर्माण करना था। गंगा नहर (1854) पूरी की गई, और बारी दोआब नहर और ग्रांड ट्रंक रोड पर काम शुरू हुआ।
शिक्षा सुधार के कदम
डलहौजी स्वयं एक विद्वान और लेखक था अतः उसने 1854 के वुड्स डिस्पैच को अंग्रेजी शिक्षा का मैग्ना कार्टा कहा जाता है। इसके तहत: निम्नलिहकित सुधारों को लागु किया गया-
- जिलों में एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल खोले गए।
- प्रमुख शहरों में सरकारी कॉलेज बनाये गए।
- कलकत्ता, मद्रास, और बंबई में विश्वविद्यालय स्थापित किये गए।
- निम्न वर्गों के लिए क्षेत्रीय भाषा में स्कूल चलाये गए।
- रुड़की में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की गई।
डलहौजी के सामाजिक सुधार
| कन्या भ्रूण हत्या पर रोक | राजपूतों में यह प्रथा रोकने के लिए कानून बनाए। |
| नरबलि पर प्रतिबंध | उड़ीसा और मद्रास में नरबलि को रोका गया। |
| धार्मिक अक्षमता अधिनियम (1850) | धर्म परिवर्तन करने वालों को पैतृक संपत्ति का अधिकार दिया गया। |
| विधवा पुनर्विवाह अधिनियम (1856) | हिंदुओं में विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन दिया गया, जिससे रूढ़िवादी वर्गों में असंतोष बढ़ा। |
व्यापारिक सुधार
डलहौजी ने स्वतंत्र व्यापार को प्रोत्साहन दिया और कराची, कलकत्ता, मद्रास, और बंबई के बंदरगाहों को आधुनिक बनाया।
डलहौजी का मूल्यांकन
लॉर्ड डलहौजी का कार्यकाल निंदा और प्रशंसा दोनों के इर्द गिर्द घूमता हैं। उनकी सम्रज्य्वादी नीतियों ने ब्रिटिश भारत के क्षेत्रफल में लगभग 2,50,000 वर्ग मील की बढ़ोत्तरी की। रेलवे, तार, और डाक व्यवस्था ने भारत संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और शिक्षा सुधारों ने आधुनिकता की नींव रखी। लेकिन इसके विपरीत उसकी विलय और हड़प नीति और भारतीय परंपराओं की अनदेखी ने सम्पूर्ण भारत में असंतोष और विद्रोह को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप 1857 का विद्रोह हुआ।
6 मार्च 1856 को डलहौजी भारत से इंग्लैंड लौट गए, यह दावा करते हुए कि भारत शांत है। लेकिन 1857 में विद्रोह की चिंगारी भड़क उठी जिसने कुछ समय के लिए ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया। डलहौजी को सेवानिवृत्ति के बाद 5,000 पाउंड की पेंशन मिली, लेकिन 1860 में उनकी मृत्यु हो गई, जब वह विद्रोह के आरोपों से जूझ रहे थे।
निष्कर्ष
इस प्रकार लॉर्ड डलहौजी का कार्यकाल भारत के इतिहास में एक जटिल अध्याय है। जहाँ उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी, वहीं उनकी साम्राज्यवादी नीतियों ने भारतीयों में भय और असंतोष को जन्म दिया। रेलवे, तार, और डाक ने भारत को संगठित किया, लेकिन हड़प नीति और अवध जैसे अनैतिक विलयों ने 1857 के विद्रोह को जन्म दिया। डलहौजी को कुछ लोग दूरदर्शी मानते हैं, तो कुछ के लिए वह एक कट्टर साम्राज्यवादी थे।
FAQ: लॉर्ड डलहौजी से जुड़े सामान्य सवाल
लॉर्ड डलहौजी कौन था?
लॉर्ड डलहौजी (जेम्स एंड्र्यू ब्राउन-रैमसे) ब्रिटिश राजनेता थे, जो 1848-1856 तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे। वे सुधारक और विस्तारवादी के रूप में जाने जाते हैं।
लॉर्ड डलहौजी का कार्यकाल कब से कब तक था?
उनका कार्यकाल 12 जनवरी 1848 से 1856 तक था।
डलहौजी की हड़प नीति क्या थी ?
हड़प नीति या डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स एक ऐसी नीति थी जिसमें बिना संतान वाले राजा की मौत पर रियासत ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हो जाती। इससे सतारा, झांसी आदि राज्य विलय हुए।
डलहौजी ने कौन से सुधारों को लागू किया?
डलहौजी ने रेलवे, टेलीग्राफ, पोस्टल सिस्टम, शिक्षा (वुड्स डिस्पैच) और सिंचाई जैसे सुधार किए, जो आधुनिक भारत की नींव बने।
लॉर्ड डलहौजी का व्यपगत सिद्धांत क्या था?
व्यपगत सिद्धांत यानी डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स, जिसमें गोद लिया उत्तराधिकारी को मान्यता न देकर राज्य हड़प लिया जाता।
डलहौजी द्वारा अवध का विलय किस आधार पर किया?
अवध का विलय 1856 में गलत शासन और 1801 की संधि उल्लंघन के आधार पर किया गया।
लॉर्ड डलहौजी की मृत्यु कैसे हुई?
19 दिसंबर 1860 को फेफड़ों की बीमारी से उनकी मृत्यु हुई।
लॉर्ड डलहौजी की किताबें कौन-सी हैं?
डलहौजी कोई लेखक नहीं था मगर उसने प्रशासनिक तौर पर प्राइवेट लेटर्स, मिनट्स ऑन रेलवे, और लेटर्स टू लॉर्ड ऑकलैंड लिखे।
डलहौजी को कहां दफनाया गया?
स्कॉटलैंड के कॉकपेन चर्चयार्ड में।
यह भी पढ़िए–
अगर आपको इतिहास पढ़ना पसंद है तो ये भी पढ़िए
- समुद्रगुप्त का जीवन परिचय और उपलब्धियां
- मुगल सम्राट अकबर: जीवनी,
- सती प्रथा किसने बंद की:
- मुगल शासक बाबर का इतिहास: एक महान विजेता और साम्राज्य निर्माता
- रूसी क्रांति 1917: इतिहास, कारण और प्रभाव
- पुष्यमित्र शुंग का इतिहास और उपलब्धियां
- नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं और स्थल: एक विस्तृत अध्ययन
- Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: प्रारम्भिक जीवन, माता-पिता,
- वर्ण व्यवस्था क्या है? | What is Varna System
- Sixteen Mahajanapadas in Hindi | सोलह महाजनपद के नाम
- आश्रम व्यवस्था क्या है? चार आश्रम, अर्थ, उद्देश्य और महत्व | Ashram Vyvastha Kya Hai





