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मुगल शासक बाबर का इतिहास: एक महान विजेता और साम्राज्य निर्माता | History of Mughal Emperor Babur

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भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर था। इतिहास में बाबर का स्थान एक रोमांचकारी ऐसे शासक का इतिहास है जो फरगना का एक असफल शासक कैसे भारत जैसे विशाल देश का स्वामी बन गया। बाबर, का इतिहास मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उसका जीवन संघर्ष, पराजय, विजय और साम्राज्य निर्माण की एक रोमांचकारी घटना है। इस लेख History of Mughal Emperor Babur में हम बाबर के प्रारंभिक जीवन, उसके वंश, युद्ध, प्रशासन, और उसकी विरासत के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे।

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नामबाबर
पूरा नामज़हीर-उद-दीन मुहम्मद, बाबर
जन्म15 फरवरी, 1483
जन्मस्थानअंदिजान शहर, उज़्बेकिस्तान
प्राचीन घरानातैमूर और मंगोलियन
पिता का नामउमर शेख मिर्जा
माता का नामकुतलुघ निगार खानुम
पदमुगल बादशाह
बाबर का शासन काल20 अप्रैल 1526 – 26 दिसंबर 1530
पूर्ववर्ती शासकइब्राहिम लोदी (सुल्तान-ए-हिंद के रूप में)
बाबर का उत्तराधिकारीहुमायूँ
पत्नियों के नाममहाम अनगी
बीबी दुल्हन
बीबी माह चुनपुरी
बीबी धोलपुरी
संतानहुमायूँ,
कामरान मिर्जा,
हिन्दाल मिर्ज़ा,
असकरी मिर्ज़ा,
शाहरुख़ मिर्ज़ा, और
अहमद मिर्ज़ा,
एक बेटी गुलबदन बेगम
बाबर की मृत्यु26 दिसम्बर, 1530
मृत्यु का स्थानआगरा भारत
बाबर का मकबराबाग-ए-बाबर, काबुल अफगानिस्तान

Babur Early Life- बाबर का प्रारंभिक जीवन

बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को अंदिजान शहर फरगना घाटी (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुआ था। उनका पूरा नाम जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था। उसके पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था, जो फरगना का शासक था, जबकि उनकी माता का नाम कुतलुग निगार खानम था, जो मंगोल वंश से संबंधित थी। मात्र 11 वर्ष की आयु में बाबर को फरगना का शासक बना दिया गया, लेकिन उसके चाचाओं ने उसे गद्दी से हटा दिया। परन्तु बाबर ने हिम्मत नहीं हारी और इसके बाद उसने समरकंद और काबुल पर विजय प्राप्त की, जो उनके भविष्य के साम्राज्य विस्तार की नींव बनी।

बाबर का वंश

आपको बता दें कि बाबर तैमूरी राजवंश में जन्म था, यह एक प्रसिद्ध मध्य एशिया का राजवंश था, जिसने प्रसिद्ध विजेता तैमूर (तामेरलेन) के वंश पुनर्जीवित किया। बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा, फरगना घाटी का एक छोटा सा शासक था। बाबर के रक्त में दो महान विजेताओं का रक्त था पिता की ओर से वह तैमूर और माता की ओर से चंगेज खान का वंशज था।

वास्तव में बाबर मूल रूप से बरलास जनजाति से संबंधित था, लेकिन इस जनजाति के अलग-अलग सदस्य तुर्की क्षेत्रों में लंबे समय से निवास करते आ रहे थे और स्वयं को भाषा और रीति-रिवाजों में तुर्की मानते थे। इसीलिए बाबर जिसे मुग़ल कहा जाता है वास्तव में एक तुर्की भाषी और रीती-रिवाजों का पोषक था, और उसके द्वारा स्थापित साम्राज्य तुर्की स्वरूप में था।

बाबर के परिवार ने चागताई कबीले को ग्रहण कर लिया था, इसी नाम से वह जाना जाता हैं। बाबर तैमूर की और से पांचवां और चंगेज खान से महिला रेखा (female line) के द्वारा से 13 वें स्थान पर आता था।

बाबर का पालन-पोषण अस्थिर राजनीतिक वातावरण में हुआ, क्योंकि तैमूरी वंश पतन की ओर अग्रसर था और मध्य एशिया में विभिन्न प्रतिद्वंद्वी गुटों में संघर्ष ने जन्म ले लिया था। बाबर को बचपन में ही चुनौतियों और संघर्षों को झेलना पड़ा, उसने अल्पायु में ही पिता की मृत्यु को देखा। लेकिन बाबर में एक सैनिक और शासक के गुण किशोरावस्था में विकसित हो गए थे, यही कारण था कि अपने पिता के खोये साम्राज्य को प्राप्त करने में सफल हुआ।

1494 में जब बाबर के पिता की मृत्यु हुई, उस समय वह 11 वर्ष का अल्पायु बालक था, पिता की मृत्यु के बाद बाबर को फरगना का सिंहासन प्राप्त हुआ। इतनी चुनौतियों के बावजूद उसने, कविता, साहित्य और कला में पूर्ण रूचि विकसित की, यही बाद में उसका वास्तविक व्यक्तित्व बना, कला और साहित्य का संरक्षक।

बाबर का प्रारम्भिक जीवन युद्धों और गठबंधनों से जुड़ा है, उसे उज्बेक्स और सफाविद जैसे प्रतिद्वंद्वियों से लनिरंतर सघर्षों का सामना करना पड़ा, और अपने साम्राज्य को बचाने के लिए कई अभियान करने पड़े। हालाँकि बाबर ने अपने दृढ़संकल्प और सैन्य कौशल से सभी चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार किया और एक महान विजेता सिद्ध हुआ।

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बाबर किस वंश से संबंधित था?

बाबर के विषय में बार यह खोजै जाता है कि वह किस वंश से संबंधित था। हम यहाँ स्पष्ट रूप से आपके लिए साधारण तरीके से जानकारी दे रहे हैं।

पूर्वज:आपके पहले ही बताया जा चुका है कि वह पिता की ओर से तैमूरी (तामेरलेन) वंश का और अपनी माता की ओर से चंगेज खान का रक्त वंशज था। तैमूर एक महान तुर्क-मंगोल विजेता था जिसने 14वीं सदी में तैमूरी साम्राज्य की स्थापना की और मुहम्मद तुग़लक़ के बाद भारत को भी लूटा था। चंगेज खान 13वीं सदी में मंगोल साम्राज्य का संस्थापक था, इस प्रकार बाबर तुर्की और मंगोलियन रक्त मिश्रित था।

पिता: उमर शेख मिर्जा, बाबर के पिता थे, जो मध्य एशिया में छोटे से साम्राज्य फरगाना के शासक थे। पिता की मृत्यु के बाद अल्पायु में ही बाबर को फरगना की गद्दी पर बैठाया गया।

माता: कुतलुक निगार खानम बाबर की माता थीं, जो एक शक्तिशाली तुर्की चगताई कबीले की एक खूबसूरत अमीर महिला थीं। बाबर की माता चंगेज खान के वंश से संबंधित थी। बाबर की मां (कुतलुक निगार खानम) को उनकी चतुर बुद्धि और साहस के लिए पहचाना जाता था और बाबर के जीवन पर उसकी माता का बहुत गहरा प्रभाव था।

भाई-बहन:  जहाँगीर मिर्ज़ा और नासिर मिर्ज़ा बाबर के दो बड़े भाई थे, इसके आलावा  खानज़ादा बेगम एक छोटी बहन थीं। पिता की मृत्यु के बाद अपने पिता की विरासत को हासिल करने के लिए बाबर को अपने सेसगे भाइयों के साथ उत्तराधिकार का संघर्ष का सामना करना पड़ा।

पुत्र: बाबर के कई पुत्र थे, मगर सबसे प्यारा पुत्र हुमायूं था, जिसने बाबर की मृत्य के बाद मुग़ल साम्राज्य के दूसरे सम्राट के रूप में सिंहासन संभाला।हुमायूँ का अर्थ भाग्यशाली होता है मगर वह बहुत अभागा सिद्ध हुआ और निरंतर संघर्ष करते हुए इस दुनिया से चला गया।

इस तरह बाबर को अल्पायु में ही अपने पिता ‘उमर शेख मिर्जा’ की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में फरगना की गद्दी पर बैठाया गया। बाबर के जीवन में उसकी दादी ‘ऐसन दौलत बेगम’ की महत्वपूर्ण भूमिका थी और उसकी मदद से ही बाबर का राज्याभिषेक करवाया।

बाबर के पिता का साम्राज्य

उमर शेख मिर्ज़ा बाबर का पिता था, हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर में फ़रगना की छोटी रियासत का शासक था। चूँकि प्राम्भिक काल में इस्लाम में उत्तराधिकार को कोई स्पष्ट नियम नहीं था। यही कारण था कि उमर शेख की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में सिंहासन के लिए संग्राम छिड़ गया। बाबर के पिता ने तैमूरी राजधानी समरकंद (अब उज्बेकिस्तान में) को अधिकार में लेने का कई बार प्रयास किया था और बाबर ने अपने पिता की परम्परा को जारी रखा।

बाबर की प्रारम्भिक कठिनाइयां और संघर्ष


समरकंद को जीतने के प्रारम्भिक प्रयास

बाबर ने अपने पिता की मृत्यु के बाद जब फरगना की गद्दी हासिल की तो उसने समरकंद पर अधिकार 10 वर्षों के लिए (1494-1504) , और दो बार अलप समय (1497 और 1501 में) इस पर कब्जा किया। लेकिन बाबर के सामने सबसे बड़ी चुनौती चंगेज खान के वंशज और जैक्सर्ट्स नदी (सीर दरिया के लिए प्राचीन नाम) से पार उज्बेक्स के शासक मुहम्मद शायबानी खान बाबर से कहीं अधिक शक्तिशाली था।

बाबर को 1501 में सर-ए-पोल में अंतिम रूप से पराजित किया गया और मात्र तीन वर्षों में ही उसे समरकंद और फरगना से हाथ धोना पड़ा। बाबर पराजित हुआ पर हताश और निराश नहीं, उसे अपने ऊपर विश्वास था।

फरगना और समरकंद से पराजित होकर बाबर ने अपनी दृष्टि परिवर्तित की और 1504 में अपने कुछ चुनिंदा समर्थकों और सेना के साथ काबुल (अफगानिस्तान) पर अधिकार कर लिया, अनेक विद्रोहों और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वह वहां टिका रहा। बाबर ने समरकंद (1511-12) पर अंतिम असफल अभियान के बाद उसने कही और साम्राज्य विस्तार का निर्णय लिया और 1522 में, पहले से ही पश्चिमी क्षेत्र सिंध (अब पाकिस्तान में एक प्रांत) और भारत पर अपना अभियान शुरू करने का निर्णय कर चुकाथा, परिणामस्वरूप सिंध के रास्ते एक रणनीतिक स्थल (अब अफगानिस्तान में) कंधार को अधिकार में ले लिया।

बाबर का भारत पर प्रथम आक्रमण

जिस समय बाबर ने भारत पर पहली बार 1519 ईस्वी में आक्रमण किया उस समय लोदी वंश का शासन था। और इब्राहिम लोदी भारत का सुल्तान था। बाबर ने पंजाब पर (अब भारतीय राज्य और पाकिस्तानी में विभाजित) आक्रमण किया जो लोदी सुल्तान के साम्राज्य का हिस्सा था, वहां का गवर्नर दौलत खान लोदी ( Dawlat Khan Lodī ) इब्राहिम लोदी से नाराज था, क्योंकि उसके अधिकारों में कुछ कटौती की गई थी।

1524 तक बाबर ने पजाब को जीतने का असफल प्रयास किया। दिल्ली दरबार आपसी कलह और झगड़ों में उलझा था और शत्रु की विजय के लिए एक्साम अनुकूल था। ऐसी परिस्थितियों में इब्राहिम लोदो के चाचा आलम खान, और पंजाब के गवर्नर दौलत खान ने बाबर की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया और अपने पांचवें हमले में सफल रहा।


बाबर की भारत में प्रमुख सफलताएं


पानीपत का प्रथम युद्ध

पानीपत के प्रथम युद्ध (21 अप्रैल, 1526 ) में विजय के बाद बाबर ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया और भारत में मुग़ल वंश की नीव रखी। 1525 ईस्वी में बाबर अफगानिस्तान से भारत विजय के लिए निकला और 21 अप्रैल, 1526 को दिल्ली के उत्तर में 50 मील (80 किमी) पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी से मुकाबला किया। अनुमानित तौर पर बाबर की सेना में 12,000 से अधिक सैनिक नहीं थे, लेकिन बाबर ने अपने सैन्य कौशल और चपल घुड़सवार सेना तथा तुर्की तोपखाने के सहयोग से अपने प्रतिद्वंदी को आसानी से पराजित कर दिया।

अगर इब्राहीम लोदी के सेना में 100 हाथी और 1,00,000 से अधिक सैनिक थे, मगर बाबर के आग उगलते तोपखाने, चपल घुड़ासवार सैनिकों के तुर्की रणनीति से इब्राहिम लोदी को पराजित किया और युद्ध भूमि में इब्राहिम लोदी मारा गया

बाबर ने दिल्ली पर धिकार करने के बाद 4 मई को आगरा पहुँच कर यमुना (जुमना) नदी के किनारे एक उद्यान की नींव रखी , इस उद्यान को वर्तमान में रामबाग के नाम से जाना जाता है।

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भारत में बाबर द्वारा लड़े गए युद्ध

बाबर भले ही दिल्ली का सुल्तान बन गया था मगर उसके सामने चुनौतियाँ कम नहीं थीं, उसके सामने मजबूत राजपूत राज्य थे जो युद्ध में पीठ दिखाना नहीं जानते थे। पश्चिम में में मालवा और गुजरात के शक्तिशाली राज्य थे, दोनों ही शक्तिशाली संघ थे और राजस्थान में मेवाड़ (उदयपुर) के राणा सांगा एक शक्तिशाली दुर्जय राजपूत संघ के प्रमुख थे, जो उत्तर भारत में पूरे मुस्लिम साम्राज्य के लिए खतरा थे।

बाबर के सामने सबसे बड़ी समस्या यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियां और दुर्जय दुश्मनोँ से घिरी सेना। लेकिन बाबर ने अपने साहस और दृढ़ता से परिस्थितियों के अपने अनुकूल बनाया। इसके बाद बाबर ने राणा सांगा के साथ भिड़ने का मन बनाया।

खानवा का युद्ध (16 मार्च, 1527)

बाबर चारों ओर से दुश्मनों से घिरा था। उसने शारब के प्याले तोड़ दिए और अल्लाह से विजय की प्रार्थना की। बाबर ने अपने समर्थकों और सेना के साथ 16 मार्च, 1527 को आगरा से 37 मील (60 किमी) पश्चिम में खानवा के मैदान राणा सांगा से मुठभेड़ की।

बाबर ने अपनी प्रसिद्ध युद्ध नीति में परंपरागत रणनीति का उपयोग किया। उन्होंने अपने केंद्र में गाड़ियों की एक बाधा खड़ी की, तोपखाने और घुड़सवार सेना के बीच पर्याप्त अंतराल रखा, और पहिएदार घुड़सवार सेना को पंखों पर तैनात किया। तोपखाने ने राजपूतों की हाथी सेना पर हमला किया, और पार्श्व हमलों (Lateral Attacks) ने राजपूतों खलबली मचा दी। 10 घंटे के बाद राणा सांगा की सेना बिखर गई और उन्होंने फिर कभी एक नेता के नेतृत्व में युद्ध नहीं लड़ा।

घाघरा का युद्ध (6 मई, 1529)

राणा सांगा को हराने के बाद बाबर के सामने अगली चुनौती पूर्व में विद्रोही अफगानों की थी, जिन्होंने राणा सांगा के साथ युद्ध के दौरान अवध (लखनऊ) पर कब्जा कर लिया था। इसके अलावा, कुछ अन्य अफगान गुटों ने सुल्तान इब्राहीम लोदी के भाई महमूद लोदी के साथ मिलकर बिहार पर अपना अधिकार जमा लिया था। इन सबके बीच, राजपूत शासक भी बाबर के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, खासकर चंदेरी के शासक, जो उसके प्रति विद्रोही बने हुए थे।

जनवरी 1528 में चंदेरी के किले पर अधिकार करने के बाद, बाबर ने अपना ध्यान पूर्व की ओर केंद्रित किया। गंगा नदी को पार करते हुए, उसने अवध के अफगानों को खदेड़कर उन्हें बंगाल की ओर भगा दिया। इसके बाद, 6 मई 1529 को उसने महमूद लोदी को पराजित किया, जिसकी सेना बाबर की तीसरी बड़ी विजय में पूरी तरह से तितर-वितर हो गई। यह लड़ाई घाघरा और गंगा नदी के संगम के पास हुई थी। इस युद्ध में बाबर के तोपखाने ने एक बार फिर निर्णायक भूमिका निभाई और उसकी सैन्य कुशलता का परिचय दिया।

चंदेरी का युद्ध (29 मार्च 1528)

उपरोक्त विजयों ने बाबर का साम्राज्य विस्तार अब कंधार से बंगाल की सीमाओं तक सुरक्षित पहुँच चुका था, जिसकी दक्षिणी सीमा राजपूत रेगिस्तान और रणथम्भौर, ग्वालियर और चंदेरी के किलों से घिरी थी। उस विस्तृत क्षेत्र के भीतर, हालांकि, कोई व्यवस्थित प्रशासन नहीं था, केवल आपस में झगड़ा करने वाले प्रमुखों की एक मंडली थी। चंदेरी का युद्ध 29 मार्च 1528 को मेदनी राय और बाबर के बीच हुआ था, जिसमें बाबर की जीत हुई थी।

बाबर की युद्ध नीति क्या थी?

बाबर की युद्ध नीति उसकी सैन्य कुशलता और रणनीतिक सोच का एक उत्कृष्ट उदाहरण थी। उसने अपने पूर्वजों, विशेषकर तैमूर और चंगेज खान की सैन्य परंपराओं से प्रेरणा लेकर नई तकनीकों और रणनीतियों का उपयोग किया। बाबर की युद्ध नीति ने उसे भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करने में सफल बनाया। यहां उसकी प्रमुख युद्ध नीतियों के बारे में विस्तार से बताया गया है:


1. तोपखाने का उपयोग:

बाबर ने भारत में पहली बार तोपखाने का प्रभावी ढंग से उपयोग किया। उसने तुर्की और फारसी तकनीकों से सीखकर तोपों को अपनी सेना का मुख्य हिस्सा बनाया। तोपखाने ने उसे पानीपत की पहली लड़ाई (1526) और खानवा की लड़ाई (1527) में निर्णायक जीत दिलाई।


2. तुलुगमा युद्ध नीति:

बाबर ने तुलुगमा युद्ध नीति का उपयोग किया, जो मंगोल और तुर्की सेनाओं की एक पारंपरिक रणनीति थी। इस नीति के तहत सेना को दो भागों में बांटा जाता था:

  • केंद्र (मध्य भाग): यहां मुख्य सेना तैनात होती थी।
  • पंख (फ्लैंक्स): यहां घुड़सवार सेना तैनात की जाती थी, जो दुश्मन को घेरकर हमला करती थी।

वैगनों की बाधा (ऑटोमन रणनीति):

बाबर ने वैगनों की बाधा (ऑटोमन रणनीति) का उपयोग किया। इसके तहत उसने अपनी सेना के केंद्र में गाड़ियों की एक पंक्ति बनाई, जिससे दुश्मन के हाथियों और घुड़सवारों को रोका जा सके। यह रणनीति खासकर राजपूत सेना के हाथियों के खिलाफ प्रभावी साबित हुई।

बाबरी ने मस्जिद का निर्माण कब कराया?

अयोद्ध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण 1528-29 ईस्वी में मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर उनके सेनापति मीर बाकी द्वारा कराया गया था। यह मस्जिद अयोध्या में रामकोट पहाड़ी पर स्थित थी, जिसे हिंदू परंपरा के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबर के सम्मान में “बाबरी मस्जिद” रखा था।

इस मस्जिद के निर्माण को लेकर एक विवाद था कि क्या यह एक पूर्ववर्ती हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। हिंदू पक्ष का दावा था कि यह स्थान राम जन्मभूमि है और मस्जिद का निर्माण एक मंदिर के ध्वंस के बाद किया गया था, जबकि मुस्लिम पक्ष इस दावे को नकारता था।

इस मस्जिद का निर्माण मुगल वास्तुकला के प्रारंभिक उदाहरणों में से एक माना जाता है और यह अयोध्या विवाद का केंद्र बिंदु बनी रही, जो 1992 में इसके विध्वंस तक चला। इस विवाद का हल भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा निकला और मस्जिद के स्थान पर मंदिर का निर्माण हुआ है। इस नवनिर्मित राम मंदिर में सरकार ने अक्रिय भूमिका निभाई।

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मुगल शासक बाबर की मृत्यु किस कारण हुई?

भारत के पहले मुगल सम्राट बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर, 1530 को हुई। उनकी मृत्यु के सटीक कारणों को लेकर इतिहासकारों में अलग-अलग मत हैं, और यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।

बाबर ने अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” में अपने जीवन के कई पहलुओं का वर्णन किया है। इसके अनुसार, उनकी मृत्यु किसी बीमारी के कारण हुई, जो संभवतः निमोनिया या तेज बुखार थी। बाबर को जीवन भर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं रहीं, खासकर सांस लेने में दिक्कत और बार-बार बुखार आना। उन्होंने अपने लेखन में अक्सर शारीरिक दर्द और बीमारियों का जिक्र किया है।

इसके अलावा, बाबर को शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन की आदत थी, जिसने उनके स्वास्थ्य को और भी कमजोर कर दिया होगा। यह संभव है कि इन आदतों ने उनकी सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाया और उनकी मृत्यु में योगदान दिया। हालांकि, उनकी मृत्यु का सही कारण अभी भी स्पष्ट नहीं है, और यह बीमारी, उम्र, और अन्य कारकों का मिला-जुला परिणाम हो सकता है।

एक दिलचस्प कहानी यह भी है कि 1530 में, जब बाबर का प्रिय पुत्र हुमायूँ गंभीर रूप से बीमार पड़ा, तो बाबर ने भगवान से प्रार्थना की कि वे हुमायूँ के बदले में उसके प्राण ले लें। कहा जाता है कि उन्होंने हुमायूँ के बिस्तर के चारों ओर सात चक्कर लगाए और अपनी जान देने की प्रतिज्ञा की। इसके बाद हुमायूँ धीरे-धीरे स्वस्थ होता गया और बाबर का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने लगा और उसी वर्ष उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना बाबर की मृत्यु से जुड़ी एक रहस्यमयी और भावुक कहानी के रूप में जानी जाती है।

बाबर का मक़बरा

बाबर का मकबरा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में स्थित है। यह मकबरा बाग-ए-बाबर (बाबर का उद्यान) नामक एक बगीचे में बना हुआ है, जो काबुल के चेचलस्टन क्षेत्र में स्थित है। बाबर ने अपने जीवनकाल में ही इस बगीचे को बनवाया था और अपनी इच्छा व्यक्त की थी कि उन्हें इसी स्थान पर दफनाया जाए। हालांकि, उनकी मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को आगरा, भारत में हुई थी, और उन्हें पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया था। बाद में, उनकी इच्छा के अनुसार, शेरशाह सूरी ने उनके शरीर को काबुल लाकर बाग-ए-बाबर में दफनाया।

बाग-ए-बाबर एक विशाल उद्यान है, जिसमें कई बगीचे और एक नहर शामिल है। यह नहर बगीचे को दो हिस्सों में बांटती है और इसमें लगातार पानी बहता रहता है। बाबर का मकबरा इसी बगीचे के केंद्र में स्थित है। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह काबुल के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक भी है।

बाबर के मकबरे की एक विशेष बात यह है कि यह मुगल वास्तुकला का एक शुरुआती उदाहरण है। बाबर ने अपने जीवनकाल में ही इस बगीचे को प्रकृति के प्रति अपने प्रेम के रूप में विकसित किया था। इस बगीचे से प्रेरित होकर भारत में मुगल शासकों ने भी कई उद्यान और बाग बनवाए।

हालांकि, 1990 के दशक में अफगानिस्तान में हुए गृहयुद्ध के दौरान बाग-ए-बाबर और बाबर के मकबरे को काफी नुकसान पहुंचा था। 2005 में इसकी बाहरी दीवारों का पुनर्निर्माण किया गया, लेकिन अब भी यह स्थान बदहाली का शिकार है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है।

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बाबर की विरासत


बाबर के कितने पुत्र थे?

भारत में मुग़ल साम्राज्य का संस्थापक बाबर था, लेकिन भारत में मुग़ल साम्राज्य को विस्तार और मजबूती उसके पौत्र अकबर दी । बाबर ने अपने चमत्कारी नेतृत्व और सैन्य कौशल से न केवल भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी, बल्कि अपनी अगली दो पीढ़ियों को भी प्रेरित किया।

बाबर के कुल सात पुत्र थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं:

  1. हुमायूँ – बाबर का सबसे बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी, जो मुगल साम्राज्य का दूसरा शासक बना।
  2. कामरान मिर्जा – बाबर का दूसरा पुत्र, जो काबुल और कंधार का शासक बना।
  3. हिंदाल मिर्जा – बाबर का तीसरा पुत्र, जो कला और साहित्य का संरक्षक था।
  4. असकरी मिर्जा – बाबर का चौथा पुत्र, जिसने हुमायूँ के शासनकाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  5. शाहरुख़ मिर्जा – बाबर का पाँचवा पुत्र।
  6. अहमद मिर्जा – बाबर का छठा पुत्र।
  7. फ़ारुक़ मिर्जा – बाबर का सातवाँ पुत्र।

इसके अलावा, बाबर की एक पुत्री गुलबदन बेगम भी थीं, जो एक प्रसिद्ध लेखिका थीं और उन्होंने “हुमायूँनामा” नामक ग्रंथ की रचना की, जो मुगल इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है।

बाबर की कितनी पत्नियां थीं?

बाबर की पत्नियां थीं जिनके बारे में संछिप्त जानकारी यहाँ दी गई है-

1. आयशा सुल्तान बेगम

  • आयशा सुल्तान बेगम बाबर की पहली पत्नी थीं। वह बाबर के चचेरे भाई की बेटी थीं।
  • उनका विवाह बाबर के युवाकाल में हुआ था, लेकिन यह विवाह लंबे समय तक नहीं चला और जल्द ही तलाक हो गया।

2. ज़ैनब सुल्तान बेगम

  • ज़ैनब सुल्तान बेगम बाबर की दूसरी पत्नी थीं। उनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि उनकी मृत्यु कम उम्र में ही हो गई थी।

3. माहम बेगम

  • माहम बेगम बाबर की सबसे प्रमुख पत्नियों में से एक थीं। वह बाबर के सबसे बड़े पुत्र हुमायूँ की माँ थीं।
  • माहम बेगम ने हुमायूँ के शासनकाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मुगल दरबार में उनका प्रभाव था।

4. मासूमा सुल्तान बेगम

  • मासूमा सुल्तान बेगम बाबर की एक अन्य पत्नी थीं। उनके बारे में अधिक जानकारी सीमित है, लेकिन यह माना जाता है कि वह बाबर के जीवन में महत्वपूर्ण थीं।

5. दिलदार बेगम

  • दिलदार बेगम बाबर की एक अन्य पत्नी थीं। उन्होंने बाबर के कई बच्चों को जन्म दिया, जिनमें कामरान मिर्ज़ा और असकरी मिर्ज़ा शामिल हैं।

6. गुलरुख बेगम

  • गुलरुख बेगम बाबर की पत्नियों में से एक थीं। उनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि वह बाबर के जीवन में महत्वपूर्ण थीं।

7. मुबारका बेगम

  • मुबारका बेगम बाबर की एक अन्य पत्नी थीं। उनके बारे में भी अधिक जानकारी सीमित है।

8. सलीहा सुल्तान बेगम

  • सलीहा सुल्तान बेगम बाबर की पत्नियों में से एक थीं। उनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बाबर के 20 उपयोगी तथ्य

  • बाबर का जन्म उज्बेकिस्तान में हुआ था।
  • vah तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे।
  • उसने 12 साल की उम्र में फरगना शासन संभाला।
  • बाबर ने बाबरनामा नामक आत्मकथा लिखी।
  • उसने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीती और मुग़ल साम्राज्य की नीव रखी।
  • बाबर ने खानवा और चंदेरी के युद्ध जीते।
  • बाबर की सेना में तुर्क, फारसी और मंगोल सैनिक थे।
  • बाबर ने तोपखाने का प्रयोग किया।
  • बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
  • बाबर की मृत्यु 48 वर्ष की आयु में हुई।
  • बाबर को पहले आगरा और बाद में काबुल में दफनाया गया।
  • बाबर ने गंगा नदी को दो बार तैरकर पार किया।
  • बाबर की मातृभाषा चगताई थी।
  • बाबर ने फारसी और तुर्की साहित्य को प्रोत्साहित किया।
  • बाबर में काबुल और कंधार पर विजय प्राप्त की।
  • बाबर ने “पादशाह” की उपाधि धारण की।
  • बाबर ने भारत में कई बगीचे बनवाए।
  • बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ को उत्तराधिकारी बनाया।
  • बाबर की सेना में तीरंदाजी और घुड़सवारी का प्रयोग होता था।
  • बाबर को उज्बेकिस्तान में राष्ट्रीय नायक माना जाता है।

बाबर की आत्मकथा तज़ुक-ए-बाबरी के बारे में जानकारी

तुज़्क-ए-बाबरी (Tuzuk-e-Baburi) मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की तुर्की भाषा में लिखी आत्मकथा है, जो उसने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से वर्णित करते हुए लिखी थी। यह ग्रंथ न केवल बाबर के व्यक्तिगत जीवन को दर्शाता है, बल्कि उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को भी प्रस्तुत करता है। यहां तुज़्क-ए-बाबरी के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है:


1. तुज़्क-ए-बाबरी का परिचय

  • तुज़्क-ए-बाबरी को बाबरनामा के नाम से भी जाना जाता है। यह बाबर की आत्मलिखित जीवनी है, जिसमें उसने अपने जीवन की घटनाओं, युद्धों, यात्राओं और अनुभवों का विवरण दिया है।
  • यह ग्रंथ चगताई तुर्की भाषा में लिखा गया था, जो बाबर की मातृभाषा थी। बाद में, मुगल सम्राट अकबर के आदेश पर इसे फारसी में अनुवादित किया गया।
  • तुज़्क-ए-बाबरी को ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है, क्योंकि यह 16वीं शताब्दी के मध्य एशिया और भारत की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति को समझने का एक प्रमुख स्रोत है।

2. तुज़्क-ए-बाबरी की विषयवस्तु

  • इस ग्रंथ में बाबर ने अपने बचपनयौवनयुद्धोंविजयों, और शासनकाल के अनुभवों को विस्तार से लिखा है।
  • इसमें उसने फरगना घाटी (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में बिताए गए अपने प्रारंभिक जीवन, समरकंद और काबुल पर विजय, और भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना के बारे में विस्तृत वर्णन किया है।
  • बाबर ने इस पुस्तक में प्रकृतिजलवायुफल-फूलपशु-पक्षी, और भारत की नदियों का भी वर्णन किया है। उसने भारत को एक विशाल और समृद्ध देश बताया है16।
  • इसके अलावा, इसमें बाबर के सैन्य रणनीतियोंतोपखाने के उपयोग, और तुलुगमा युद्ध नीति का भी उल्लेख है।

3. तुज़्क-ए-बाबरी की भाषा और शैली

  • तुज़्क-ए-बाबरी चगताई तुर्की भाषा में लिखी गई है, जो उस समय मध्य एशिया में प्रचलित थी। बाबर ने इसे सरल और रोचक शैली में लिखा है, जिससे यह पाठकों को आकर्षित करती है।
  • बाबर ने अपने लेखन में कविताओंछंदों, और फारसी शब्दों का भी उपयोग किया है, जो उसकी साहित्यिक क्षमता को दर्शाता है।

4. तुज़्क-ए-बाबरी का ऐतिहासिक महत्व

  • यह ग्रंथ मुगल साम्राज्य के इतिहास को समझने के लिए एक प्रमुख स्रोत है। इसमें बाबर के शासनकाल की घटनाओं, उसकी नीतियों, और उसके व्यक्तिगत विचारों का विवरण मिलता है।
  • तुज़्क-ए-बाबरी से यह भी पता चलता है कि बाबर न केवल एक योद्धा था, बल्कि एक कला-प्रेमीप्रकृति-प्रेमी, और साहित्यिक व्यक्तित्व भी था16।
  • इस ग्रंथ का फारसी अनुवाद मुगल दरबार में अब्दुर्रहीम खानखाना द्वारा किया गया था, जिससे यह और अधिक लोकप्रिय हुआ।

5. तुज़्क-ए-बाबरी की विशेषताएं

  • बाबर ने इस ग्रंथ में अपने व्यक्तिगत अनुभवों को इतनी ईमानदारी और विस्तार से लिखा है कि यह पाठकों को उसके जीवन के करीब ले जाता है।
  • इसमें बाबर ने भारत की संस्कृतिरहन-सहन, और प्राकृतिक सौंदर्य का भी वर्णन किया है, जो उस समय के भारत को समझने में मदद करता है।
  • तुज़्क-ए-बाबरी को चगताई साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति माना जाता है, जो आज भी ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्व रखती है।

6. तुज़्क-ए-बाबरी का प्रभाव

  • यह ग्रंथ न केवल बाबर के जीवन को दर्शाता है, बल्कि उसके उत्तराधिकारियों के लिए भी एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाया। अकबर ने इस ग्रंथ को फारसी में अनुवादित करवाकर इसे और अधिक प्रसिद्ध बनाया।
  • तुज़्क-ए-बाबरी से यह भी पता चलता है कि बाबर ने अपने जीवन में कठिनाइयों और संघर्षों का सामना किया, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी10।

निष्कर्ष- Conclusion

बाबर प्रतिभा का एक सैन्य साहसी और एक आकर्षक व्यक्तित्व के साथ अच्छे भाग्य का साम्राज्य निर्माता था। वह एक प्रतिभाशाली तुर्की कवि भी थे, जिसने उन्हें अपने राजनीतिक जीवन से अलग पहचान दिलाई, साथ ही प्रकृति के प्रेमी भी थे, जिन्होंने जहां भी गए वहां बगीचों का निर्माण किया और आकर्षक पार्टियों को आयोजित करके खूबसूरत जगहों को पूरक बनाया। अंत में, उनके गद्य संस्मरण, बाबर-नामे, एक प्रसिद्ध आत्मकथा बन गए हैं।


बाबर और मुग़ल साम्राज्य से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले पश्न-FAQs

Q. बाबर कौन था?

Ans. बाबर भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक था। वह तैमूर और चंगेज खान के वंशज थे।

Q. बाबर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

Ans. बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगाना घाटी (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुआ था।

Q. बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कब की?

Ans. बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की स्थापना की।

Q. बाबर की सबसे प्रसिद्ध लड़ाई कौन सी थी?

Ans. बाबर की सबसे प्रसिद्ध लड़ाई पानीपत की पहली लड़ाई (1526) थी, जिसमें उसने दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को हराया।

Q. बाबर की मृत्यु कब और कैसे हुई?

Ans. बाबर की मृत्यु 26 दिसंबर 1530 को हुई। माना जाता है कि उसकी मृत्यु बीमारी के कारण हुई, जो संभवतः निमोनिया या बुखार थी।

Q. बाबर का मकबरा कहाँ स्थित है?

Ans. बाबर का मकबरा अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बाग-ए-बाबर नामक उद्यान में स्थित है।

Q. बाबर की आत्मकथा का क्या नाम है?

Ans. बाबर की आत्मकथा का नाम “बाबरनामा” है, जो चगताई तुर्क भाषा में लिखी गई है।

Q. बाबर ने भारत में कौन-सी नई सैन्य तकनीक का उपयोग किया?

Ans. बाबर ने भारत में तोपखाने और तुलुगमा युद्ध नीति का उपयोग किया, जो उसकी जीत का मुख्य कारण बना।

Q. बाबर के कितने पुत्र थे?

Ans. बाबर के चार प्रमुख पुत्र थे: हुमायूँ, कामरान मिर्जा, असकरी मिर्जा और हिंदाल मिर्जा।

Q. बाबर की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?

Ans. बाबर की सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना करना और मुगल वंश की नींव रखना था।

Q. मुगल साम्राज्य की स्थापना किसने की?

Ans. मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने 1526 में की।

Q. मुगल साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक कौन था?

Ans. मुगल साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक अकबर था, जिसने साम्राज्य को विस्तार और स्थिरता प्रदान की।

Q. मुगल साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?

Ans. मुगल साम्राज्य की राजधानी शुरुआत में आगरा थी, बाद में इसे दिल्ली और फतेहपुर सीकरी सहित अन्य स्थानों पर स्थानांतरित किया गया।

Q. मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तार किसके शासनकाल में हुआ?

Ans. मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तार औरंगजेब के शासनकाल में हुआ, जब यह लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैल गया।

Q. मुगल साम्राज्य का पतन कब और क्यों हुआ?

Ans. मुगल साम्राज्य का पतन 18वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जिसका मुख्य कारण कमजोर शासक, आंतरिक विद्रोह और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का बढ़ता प्रभाव था।

Q. मुगल साम्राज्य की सबसे प्रसिद्ध इमारत कौन सी है?

Ans. मुगल साम्राज्य की सबसे प्रसिद्ध इमारत ताजमहल है, जिसे शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था।

Q. मुगल साम्राज्य में कौन-सी नई प्रशासनिक प्रणाली शुरू की गई?

Ans. अकबर ने मनसबदारी प्रणाली शुरू की, जो सैन्य और प्रशासनिक पदों को व्यवस्थित करने के लिए थी।

Q. मुगल साम्राज्य में कौन-सी नई कला और संस्कृति का विकास हुआ?

Ans. मुगल साम्राज्य में मुगल चित्रकलासूफी संगीत, और इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का विकास हुआ।

Q. मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक कौन था?

Ans. मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक बहादुर शाह जफर था, जिसे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया।

Q. मुगल साम्राज्य की विरासत क्या है?

Ans. मुगल साम्राज्य की विरासत में भारत की समृद्ध संस्कृति, वास्तुकला, कला और प्रशासनिक व्यवस्था शामिल है, जो आज भी देश की पहचान का हिस्सा है।

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