ऐसा नहीं है कि 1789 में फ्रांस में हुई क्रांति विश्व की पहली थी थी, इससे पूर्व भी कई देशों में क्रांति हुईं मगर जितना प्रभाव विश्व पर फ्रांसीसी क्रांति का हुआ वह अभूतपूर्व था। फ्रांस की क्रांति जिसने 1787 और 1799 के मध्य फ्रांस में उथल-पुथल मचा दी और 1789 में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई- इसीलिए जो शब्द इसके लिए अक्सर प्रयोग होता है उसे “1789 की क्रांति” कहते हैं जिसने फ्रांस की पुरातन राजनीतिक व्यवस्था को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया।
फ्रांस की क्रांति ने सिर्फ फ्रांस में ही व्यवस्था परिवर्तन किया, बल्कि विश्व के अन्य देशों में प्रचलित निरंकुश राजतंत्रों के अंत को भी प्रेरित किया। इस लेख में हम French Revolution1789 in Hindi, फ्रांसीसी क्रांति 1789 के कारण, परिणाम, घटनाएं और इसके प्रभाव का अध्ययन करेंगे।

French Revolution1789 in Hindi-फ्रांसीसी क्रांति 1789 की मुख्य घटनाएँ और उनकी तिथियाँ
घटना | दिनांक |
---|---|
टेनिस कोर्ट की शपथ | 20 जून, 1789 |
बास्तील का पतन | 14 जुलाई, 1789 |
सामंतवाद का अंत | 4 अगस्त, 1789 |
मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा | 26 अगस्त, 1789 |
वर्साय पर महिलाओं का मार्च | 5 अक्टूबर, 1789 |
वरेनीज़ की ओर शाही पलायन | 20 जून, 1791 |
फ्रांस से राजशाही का अंत | 21 सितंबर, 1792 |
राजा लुई सोलहवाँ का अंत | 21 जनवरी, 1793 |
आतंक का शासन | 5 सितंबर, 1793 – 28 जुलाई, 1794 |
18वाँ ब्रूमेर का तख्तापलट | 9-10 नवंबर, 1799 |
फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध | 20 अप्रैल, 1792 – 25 मार्च, 1802 |
French Revolution1789- फ्रांसीसी क्रांति 1789 के कारण
फ्रांस में क्रांति के उदय के लिए अनेक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है जो निम्नलिखित थे-
राजनीतिक कारण
फ्रांस में लम्बे समय से बुर्बो वंश शासन कर रहा था और यह एक निरंकुश राजशाही था। लुई XIV के समय फ्रांस की राजशाही अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, मगर उसकी मृत्यु ( जन्म 5 सितंबर, 1638, सेंट-जर्मेन-एन-ले , फ्रांस – मृत्यु 1 सितंबर, 1715, वर्सेल्स , फ्रांस ) के बाद लुई XV फ्रांस की गद्दी पर बैठा। वह एक अय्यास और कमजोर शासक था जिसके शासनकाल में फ्रांस की प्रतिष्ठा में गिराबट देखी गई। लुई XV की मृत्यु (10 मई 1774) के बाद फ्रांस की गद्दी पर लुई XVI बैठा।
जिस समय लुई XVI फ्रांस की गद्दी पर बैठा उस समय राजशाही की प्रतिष्ठा में कमी आ चुकी थी और राजकोष भी खाली था और साझा शत्रु ब्रिटैन से 13 अमेरिकी उपनिवेशों को स्वतंत्र कराने के लिए में मदद करने के कारण फ्रांस पर लगभग 10 अरब लिब्रे का कर्ज हो गया था। ऐसी स्थिति में आवश्यक था कि नए कर लगाकर आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाये। मगर इसके लिए एस्टेट्स-जनरल की अनुमति आवश्यक था और तब तक तृतीय एस्टेट के लोग जागरूक हो चुके थे अतः प्रथम और द्वितीय स्टैट्स के सहारे नए कर लगाना असम्भव हो गया था।
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सामाजिक कारण
फ्रांस की सामजिक व्यवस्था में पादरी (प्रथम एस्टेट), कुलीन (द्वितीय एस्टेट) और सामान्य जनता (तृतीय एस्टेट ) का विभाजन था ,मगर अब एक नया वर्ग धनी बिचौलियों का एक वर्ग उभरा: पूजीपति वर्ग जो तृतीय एस्टेट से ही उभरा था। इनकी जनसख्या फ्रांस में 7.7% थी मगर कुल राष्ट्रीय आय का 39.1% हिस्सा इनके पास था। यह नया उभरा वर्ग पादरी (प्रथम एस्टेट), कुलीन (द्वितीय एस्टेट) को मिलने वाले जन्मजात कर मुक्ति का विरोधी था।
फ्रांस के नए पूंजीवादी वर्ग ने प्राचीन कुलीनों का स्थान ग्रहण कर लिया जिसने कुलीनों की सामाजिक व्यवस्था को लगभग महत्वहीन कर दिया। इससे फ्रांस में सामाजिक तनाव उत्पन्न हुआ और कुलीन इन नवीन कुलीन पूंजीपतियों के बढ़ते प्रभाव से नाराज था।
दार्शनिकों का प्रभाव
फ्रांस में क्रांति के समय एक दार्शनिक वर्ग का उदय देखा गया जिसने फ्रांस के नागरिकों में ज्ञान का उदय किया और उनके विचारों ने प्रत्यक्ष प्रभाव डाला। रूसो और वोल्टेयर सवतंत्रता और समानता के समर्थक थे। दार्शनिकों के लेखन ने इन तर्कों को प्रेरित किया,स्वतंत्रता, समानता और भ्रातत्व -निश्चित रूप से रेने डेसकार्टेस, बेनेडिक्ट डी स्पिनोज़ा और जॉन लोके जैसे 17 वीं शताब्दी के सिद्धांतकारों से प्रभावित थे, लेकिन वे राजनीतिक , सामाजिक और आर्थिक मामलों के बारे में बहुत अलग निष्कर्षों पर पहुंचे। मोंटेस्क्यू, वोल्टेयर या जीन-जैक्स रूसो के विचारों को लागू करने के लिए एक क्रांति आवश्यक लगने लगी थी।
मॉण्टेस्क्यू (1689-1755 ई.) ने अपनी पुस्तक ‘द स्पिरिट ऑफ लॉज’ (The Spirit of Laws) में राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्तों का खण्डन किया और फ्रांसीसी राजनीतिक संस्थाओं की आलोचना ही नहीं कि वरन् विकल्प भी प्रस्तुत किया।
वाल्टेयर ( 1694 – 1778 ई.) ने अपनी पुस्तकों, जैसे “लेटर्स ऑन द इंगलिश” आदि, के माध्यम से ब्रिटेन में व्याप्त उदार राजनीति, धर्म और विचार की स्वतंत्रता का बहुत अच्छा चित्रण किया तथा पुरातन फ्रांसीसी व्यवस्था से उसकी तुलना की और फ्रांस में व्याप्त बुराईयों एवं कमियों का उल्लेख किया।
रूसो ने अपनी पुस्तक “एमिली”, “सोशल कॉन्ट्रैक्ट” व “रूसोनी” के माध्यम से मनुष्य की स्वतंत्रता की बात की। उसने कहा कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा होते हुए भी सर्वत्र जंजीरों से जकड़ा हुआ है। इन जंजीरों से मुक्ति पाने का एक ही तरीका है कि हम प्राकृतिक आदिम अवस्था की ओर लौटें।
फ्रांस की दयनीय आर्थिक दशा
जिस समय लुई XVI गद्दी पर बैठा उस समय फ्रांस की आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय थी। मंहगाई अपने चरम पर थी। 18वीं सदी के युद्धों में हुए भारी खर्च का सामना करते हुए, नए कर लगाकर सम्राट ने कुलीनों और पादरियों से धन एकत्र करने का प्रयास किया, जिन्हें अब तक जन्मजात करमुक्त रखा गया था। इसने पूरे फ्रांस में विशेषाधिकार प्राप्त निकायों, आहारों और सम्पदाओं के गुस्से को भड़काया। ख़राब मौसम और अकाल ने कृषि को चौपट कर दिया।
इस स्थिति से निपटने के लिए लुई को एस्टेट्स-जनरल बैठक बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसका मतलब यह था कि असंतुष्ट तीसरे एस्टेट (खराब नीति और जीवन स्तर के निम्न स्तर से क्षतिग्रस्त) को अपनी शिकायतें पहुँचाने का अवसर प्राप्त हुआ। अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और सात साल के युद्ध में हस्तक्षेप करके फ्रांस पर पहले ही 10 अरब लिब्रे से अधिक का कर्ज था।
तीसरे एस्टेट (औद्योगिक और ग्रामीण मजदूरों) की दयनीय दशा
फ्रांस के तृतीय एस्टेट जिसमें किसान, मजदूर, कारीगर, वकील, शिक्षक आदि थे की आर्थिक दशा बहुत ख़राब थी और दैनिक जीवन महंगाई से त्रस्त था। 1788 और 1789 में, खराब फसल ने मजदूरी गिरने के साथ-साथ पाव-रोटी की कीमतों में वृद्धि की। 1789 में ही वास्तविक मजदूरी में 25% की गिरावट और रोटी की कीमत में 88% की वृद्धि हुई थी।
फ्रांस में सामंतशाही ने भूमि वितरण की असमानता को जन्म दिया और फ्रांस में किसानों की कुल आबादी 80% थी, लेकिन उनके पास मात्र 35% भूमि थी। उन्हें अपने कुलीन जमींदारों को विभिन्न शुल्क, करों का भुगतान करना पड़ता था जो अक्सर उनकी आय की तुलना में बहुत अधिक होते थे।
फ्रांस में कुलीन विद्रोह, 1787–89
वित्तीय कठिनाइयों को हल करने के लिए 5 मई, 1789 को सम्राट ने एस्टेट्स-जनरल की बैठक आहूत की जो इससे पहले 1614 में बुलाई गई थी। इस बैठक में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग ( पादरी और कुलीन ) को भी कर के दायरे में लाने का प्रस्ताव वाये वित्त मंत्री जैक्स नेकर ने दिया।
तात्कालिक कारण
5 मई, 1789 में 175 वर्ष बाद स्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में तीसरे एस्टेट के लिए 600 प्रतिनिधि, कुलीन वर्ग के लिए 300 और पादरी के लिए 300 प्रतिनिधि चुने। सम्राट ने पहले की भांति प्रत्येक वर्ग के एक वोट की चली आ रही व्यवस्था से मतदान करने को कहा। लेकिन तृतीय वर्ग ने इसका विरोध किया और उपस्थित सभी प्रतिनिधियों को वोट करने की मांग की जिसे सम्राट ने ठुकरा दिया और बैठक को समाप्त घोषित कर दिया।
तृतीय वर्ग के प्रतिनिधियों ने यहाँ से निकलकर शाही टेनिस कोर्ट में डेरा डाल दिया और शपथ ली की जब तक फ्रांस के सम्राट की सहक्तियों को सिमित नहीं किया जाता वे यहाँ से नहीं जायेंगे। इस इतिहास में टेनिस कोर्ट की शपथ (20 जून 1789 ) कहा जाता है। इससे घबराकर सम्राट ने 27 जून 1789 को तीनों वर्गों की संयुक्त बैठक की अनुमति दे दी। यह राष्ट्रीय सभा ( तृतीय वर्ग के प्रतिनिधि ) की पहली जीत थी। सम्राट ने राष्ट्रीय सभा को मान्यता प्रदान कर दी।
टेनिस कोर्ट शपथ- 20 जून, 1789
जब तक एस्टेट्स-जनरल की बैठक वर्सेल्स में आयोजित हुई, तब तक इसकी मतदान प्रक्रिया पर बहस तीनों एस्टेट के बीच दुश्मनी में बदल चुकी थी, और तीसरे एस्टेट ने स्वयं को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया। 20 जून, 1789 को, तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि, जो फ्रांसीसी नागरिकों के गैर-कुलीन बहुमत का प्रतिनिधित्व करते थे, राजा लुई XVI के आदेश की अवहेलना करते हुए , शाही इनडोर टेनिस कोर्ट, ज्यू डे पॉम में एकत्र हुए । उन्होंने एक ऐतिहासिक शपथ ली कि जब तक एक नया फ्रांसीसी संविधान नहीं अपनाया जाता, तब तक वे यहाँ से नहीं हटेंगे।
फ्रांस में क्रांति की शुरुआत
9 जुलाई 1789 को राष्ट्रीय सभा ने स्वयं को संविधान सभा घोषित कर दिया और देश के नए संविधान का निर्माण करना अपना सर्वप्रमुख लक्ष्य बनाया। इसी समय लुई 16वें ने वित्तमंत्री नेकर को बर्खास्त कर दिया जिसे जनता अपना समर्थक मानती थी और इसे क्रांति को कुचलने के प्रयास के रूप में देखा गया।
उसी समय यह खबर फैल गई कि बास्तील के क़िले में राजा ने शस्त्रों का भंडार जमा कर रखा है जिसका इस्तेमाल नागरिकों पर गोली चलाने के लिए किया जायेगा। अतः नागरिकों की भीड़ ने 14 जुलाई 1789 को बास्तील के क़िले को तहस-नहस कर दिया और उसके अवशेषों को बाजार में उन लोगों को बेच दिया जो इसे बतौर स्मृति संजोये रखना चाहते थे। बास्तील का पतन निरंकुशता के पतन एवं जनता की विजय के रूप में देखा गया। वास्तव में यहाँ से फ्रांस में क्रांति का बिगुल बजा और इसीलिए फ्रांस में 14 जुलाई को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
क्रांति का विस्तार
बास्तील के पतन के बाद फ्रांस के देहातों में किसानो ने अपने भूस्वामियों और कुलीनों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। तमाम जमींदार अपने कोठियों को छोड़कर भाग खड़े हुए। बिगड़ती स्थिति को देखकर 4 अगस्त, 1789 की रात को फ्रांस से सामंतशाही को समाप्त कर दिया गया। फिर 26 अगस्त को इसने संविधान सभा को पेश किया।मानव और नागरिक के अधिकारों की घोषणा , जिसमें स्वतंत्रता, समानता, संपत्ति की अनुल्लंघनीयता और उत्पीड़न का प्रतिरोध करने के अधिकार की घोषणा की गई है।
4 अगस्त के आदेश और घोषणापत्र ऐसे प्रावधान थे कि राजा ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पेरिस के लोग फिर से आंदोलित हुए और 5 अक्टूबर को वर्साय की ओर एक बड़ी भीड़ ने मार्च किया। अगले दिन वे शाही परिवार को वापस पेरिस ले आए। राष्ट्रीय संविधान सभा ने अदालत का अनुसरण किया और पेरिस में उसने नए संविधान पर काम करना जारी रखा।
क्रांति द्वारा उत्पन्न नई राजनीतिक संस्कृति में फ्रांसीसी जनता ने सक्रिय रूप से भाग लिया । दर्जनों बिना सेंसर किए गए समाचार पत्रों ने नागरिकों को घटनाओं से परिचित कराया, और राजनीतिक क्लबों ने उन्हें अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति दी। छोटे गाँवों में “स्वतंत्रता के वृक्ष” लगाने और 1790 में बास्तील पर हमले की पहली वर्षगांठ पर पेरिस में आयोजित फेडरेशन के उत्सव जैसे सार्वजनिक समारोह , नई व्यवस्था की प्रतीकात्मक स्वीकृति थे।
मानव अधिकारों की घोषणा-पत्र
फ्रांस की नई संसद (नेशनल असेंबली) ने 4 अगस्त को मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा नेशनल असेंबली ने मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा (“ Déclaration des droits de l’homme et du citoyen ”) को अपनाया, जो महान दार्शनिक जीन-जैक्स रूसो (1712-1778) जैसे ज्ञानोदय विचारकों के विचारों पर आधारित लोकतांत्रिक सिद्धांतों का एक घोषणा-पत्र है। इस घोषणा ने फ्रांस में नागरिकों के लिए समान अवसर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकप्रिय संप्रभुता और प्रतिनिधि सरकार पर आधारित प्रणाली के साथ पुरानी व्यवस्था को बदलने के लिए संसद की प्रतिबद्धता की घोषणा की। लेकिन क्या वास्तव में इस घोषणा-पत्र ने सभी नागरिकों को एक समान अवसर की स्वतंत्रता दी?
वर्साय में महिलाओं का मार्च-5 अक्टूबर, 1789
फ्रांसीसी क्रांति का एक मुख्य कारण बढ़ती महंगाई थी और फ्रांस में आम लोगों का मुख्य भोजन पाव-रोटी थी। लेकिन फ्रांस की दयनीय अर्थव्यवस्था ने पाव-रोटी की कमी को जन्म दिया और कीमतों में वृद्धि ने जनता को आंदोलित किया। फ्रांस में महिलाऐं घण्टों बेकरी की लाइन में लगी रहती मगर उन्हें पाव-रोटी हाथ नहीं आती।
5 अक्टूबर, 1789 की सुबह, पेरिस के एक बाजार में महिलाओं के एक बड़े समूह ने दंगा करना शुरू कर दिया। वे अपने परिवार के लिए पाव-रोटी खरीदना चाहती थीं। उन्होंने उचित मूल्य पर रोटी की मांग करते हुए पेरिस से मार्च करना शुरू कर दिया। तेज मूसलाधार बारिश में छह घंटे तक मार्च करने के बाद, महिलाओं की यह भीड़ वर्सेल्स में राजा के महल में पहुँची। एक बार जब भीड़ वर्सेल्स पहुँची तो उन्होंने राजा से मिलने की माँग की। लड़ाई शुरू हो गई और कुछ गार्ड मारे गए। अंततः, नेशनल गार्ड के नेता मार्क्विस डे लाफायेट द्वारा शांति बहाल की गई।
फ्रांस में आतंक का शासन
फ्रांस का सम्राट अपने खोये रुतवे को फिरसे प्राप्त करना चाहता था और इसके लिए वह विदेशी राजाओं से सहायता का प्रयास कर रहा था। रानी मैरी-एंटोनेट ने व्यक्तिगत तौर पर अपने भाई लियोपोल्ड II को फ्रांस पर आक्रमण के लिए न्यौता दिया। मगर इससे पहले ही 10 अगस्त, 1792 राजा के महल तुइलरीज पैलेस पर क्रांतिकारियों ने कब्ज़ा कर लिया और सम्राट तथा रानी को कैद कर लिया।
इस उथल पुथल के बीच फ्रांस की सत्ता पर मैक्सिमिलियन रोबेस्पिएरे का अधिकार हो गया और उसने 21 जनवरी 1793 को लुई XVI को फांसी (गिलोटिन) पर लटका दिया, नौ महीने बाद मैरी-एंटोनेट को गिलोटिन से मार दिया गया।
फ्रांस में राजतंत्र (Monarchy) का आधिकारिक अंत 21 सितंबर, 1792 को हुआ, जब फ्रांसीसी राष्ट्रीय कन्वेंशन ने राजतंत्र को समाप्त घोषित कर प्रथम फ्रांसीसी गणराज्य (First French Republic) की स्थापना की। इसके बाद 21 जनवरी, 1793 को राजा लुई सोलहवें (Louis XVI) को गिलोटिन पर चढ़ाकर मृत्युदंड दिया गया, जिससे राजतंत्र की पुनर्स्थापना की संभावना लगभग समाप्त हो गई।
फ्रांस में आतंक का शासन 5 सितंबर 1793 से 27 जुलाई 1794 तक चला। मैक्सिमिलियन रोबेस्पिएरे ने इस दौरान कम से कम 300,000 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया; 17,000 को आधिकारिक तौर पर फांसी दे दी गई, और शायद 10,000 लोग जेल में या बिना मुकदमे के ही मर गए।
आतंक के बढ़ते अत्याचार ने रोबेस्पिएरे के दुश्मनों ने उसे उखाड़ फेंकने के लिए संगठित किया। 27 जुलाई, 1794 को, उसे सत्ता से हटा दिया गया और आतंक का शासन समाप्त हो गया। अगले दिन (28 जुलाई, 1794) उसे और उसके 21 अनुयायियों को मार दिया गया।
फ्रांसीसी क्रांति का नेपोलियन के उदय पर प्रभाव
फ्रांस की क्रांति के पश्चात् 21 सितंबर, 1792 को फ्रांस में राजतंत्र का पतन हो गया और वहां एक अशक्ति शून्य ने नेपोलियन को सर्वेसर्वा बनने का अवसर प्रदान किया। इस बीच फ्रांस में आतंक का (1793–1794) रहा जिसका नेतृत्व रोबेस्पिएयर ने किया। उसके पतन के पश्चात् फ्रांस में डायरेक्टरी शासन का शासन रहा मगर इसकी विफलता (1795–1799)ने फ्रांस में भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट ने जनता को नाराज कर दिया, जिससे नेपोलियन के 18वें ब्रूमेर के तख्तापलट (9-10 नवंबर, 1799) का रास्ता साफ हुआ।
नेपोलियन का फ्रांस की सत्ता पर अधिकार और शासन
राजनीतिक उथल-पुथल ने नेपोलियन को अवसर प्रदान किया और उसने 1799 में कॉन्सुलेट की स्थापना की और नेपोलियन प्रथम कॉन्सल बना (वास्तविक तानाशाह)। उसने 1804 में स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया, लेकिन गणतांत्रिक संस्थाओं को औपचारिक रूप से बनाए रखा। सम्राट बनने के पश्चात् उसने नागरिकों के लिए नेपोलियन का कोड (1804) कानूनी सिद्धांतों (समानता, संपत्ति का अधिकार) को संहिताबद्ध किया, लेकिन लोकतंत्र को समाप्त कर दिया। अपने विजय अभियानों द्वारा उसने यूरोप पर विजय प्राप्त की और फ्रांसीसी क्रांति के विचारों (राष्ट्रवाद, समानता) को पूरे यूरोप में फैलाया, लेकिन सैन्य ताकत के जरिए। अंततः वाटरलू ये युद्ध 1815 द्वारा नेपोलियन का अंत हुआ।
फ्रांसीसी क्रांति का महत्व और प्रभाव
फ्रांसीसी क्रांति (1789–1799) ने न केवल फ्रांस, बल्कि सम्पूर्ण विश्व पर अपना प्रभाव दिखाया। यह मात्र एक राजनीतिक सत्ता परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक क्रांति का विकास था, जिसने आधुनिक युग की नींव रखी। इस क्रांति ने यूरोप एशिया और अफ्रीका से लेकर अमेरिका तक अपने प्रभाव की चिन्हित किया।
1. फ्रांसीसी क्रांति का महत्व
(क) राजनीतिक महत्व– फ्रांस में राजतंत्र का अंत: 1792 में हुआ और फ्रांस में प्राचीन राजशाही का अंत हुआ और गणतंत्र (Republic) की स्थापना हुई। यानि जनता की सत्ता: जिसका सिद्धांत था- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व ( “Liberty, Equality, Fraternity”) जिसके द्वारा जनता को सत्ता का भागीदार बनाया गया। फ्रांस में संवैधानिक सरकार की स्थापना हुई, जिसने सिर्फ फ्रांस में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त किया।
(ख) सामाजिक महत्व– फ्रांस सहित सम्पूर्ण यूरोप सामंती व्यवस्ता से प्रचलित था जिसमें जमीनों के मालिक बड़े-बड़े सामंत थे। फ्रांस की क्रांति के बाद 4 अगस्त, 1789 को फ्रांस से सामंतशाही कांत हो गया और सामंतों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए। इसी के साथ एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थपना हुई जिससे चर्च की शक्ति कम हुई और राज्य धर्म से अलग हुआ। समान नागरिक अधिकार घोषणा के द्वारा ( “मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा” ) (1789) ने सभी नागरिकों को संवैधानिक रूप से समानता दी।
(ग) आर्थिक महत्व– फ्रांस की आर्थिक व्यवस्था के दोषपूण वितरण को फ्रांस की क्रांति ने समाप्त किया और किसानों की मुक्ति: भू-दासत्व (Feudalism) समाप्त होने से किसानों को राहत मिली। इसके साथ ही नए सिरे से आर्थिक सुधार लागू किया गए जिससे नए कर व्यवस्था: अनुचित करों (जैसे टाइथ) को खत्म कर न्यायसंगत कर प्रणाली लागू की गई।
2. फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव
(क) फ्रांस पर प्रभाव
✅ राजनीतिक अस्थिरता: फ्रांसीसी क्रांति के बाद भी फ्रांस में शांति स्थापित नहीं हुई और गृहयुद्ध और आतंक का एक लम्बा दौर देखा गया, इस अस्थिरता को अंततः नेपोलियन ने स्थिर किया।
✅ नेपोलियन का उदय: इस क्रांति की अराजकता ने नेपोलियन के सत्ता में पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया और उसने फ्रांस को एक सम्रज्य्वादी राष्ट्र में बदल दिया। यूरोप के अधिकांश देशों को नेपोलियन ने पराजित किया।
✅ आधुनिक फ्रांस की नींव: इस क्रांति ने सिर्फ फ्रांस में सत्ता का परिवर्तन ही नहीं किया बल्कि धर्मनिरपेक्ष, समतामूलक और राष्ट्रवादी देश के रूप में फ्रांस को नेतृत्व प्रदान किया। इसी व्यवस्था ने आधुनिक फ्रांस का मार्ग प्रशस्त किया।
(ख) यूरोप और विश्व पर प्रभाव
🌍 विश्व में राष्ट्रवाद का उदय: फ्रांसीसी क्रांति ने सिर्फ फ्रांस में ही राजशाही का अंत किया बल्कि यूरोप और अमेरिका के सहित एशिया में राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा दिया, जिससे इटली, जर्मनी आदि का एकीकरण हुआ। इसके आलावा अमेरिका और एशिया में राजशाही के साथ औपनिवेशिक शासन का भी अंत हुआ।
🌍 वैश्विक क्रांतियों को प्रेरणा: फ्रांसीसी क्रांति ने 1830 और 1848 की क्रांतियों को जन्म दिया जिसने यूरोप में लोकतंत्र की माँग को प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही समाजवादी विचारधारा के प्रयोग के रूप में रूसी क्रांति (1917) को जन्म दिया और रूस को समाजवाद की प्रथम प्रोग्शाला बनाया।
🌍 उपनिवेशों में स्वतंत्रता संग्राम: सम्रज्य्वादी देशों द्वारा अमेरिका, लैटिन अमेरिका और भारत जैसे देशों में स्थापित अत्याचारी और शोषणकारी औपनिवेशिक व्यवस्था के अंत को प्रोत्साहित किया जिससे स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरणा मिली।
(ग) दर्शन और विचारधारा पर प्रभाव
📜नवीन दार्शनिक विचारों की विजय: फ्रांस की क्रांति पर तत्कालीन दार्शनिकों का गहरा प्रभाव पड़ा था। रूसो, वॉल्टेयर और मॉन्टेस्क्यू के विचारों (लोकतंत्र, अधिकारों का सिद्धांत) को वास्तविक पहचान और स्वीकारोक्ति मिली।
📜 समाजवाद और लोकतंत्र का विकास: इस क्रांति ने मार्क्स और अन्य विचारकों को प्रभावित किया। जिसके बाद विश्व के कई देशों में स्वतंत्रता और समानता के विचार तेजी से फैले।
निष्कर्ष
इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति ने न सिर्फ फ्रांस से राजशाही और सामंतशाही के साथ विशेषाधिकार प्राप्त व्यवस्था को समाप्त किया बल्कि विश्व में शोषणकारी राजशाही के पतन का मार्ग प्रशस्त किया। विश्व के अनेक देशों में राजशाही का अंत हुआ और अवैधानिक नागरिक सरकारों की स्थापना हुई। इसलिए, फ्रांसीसी क्रांति को आधुनिक युग की जननी माना जाता है। 🗽
फ्रांस की क्रांति से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न- फ्रांसीसी क्रांति कब शुरू हुई?
उत्तर- फ्रांसीसी क्रांति 14 जुलाई 1789 को बास्तील के पतन के साथ शुरू हुई।
प्रश्न- फ्रांसीसी क्रांति का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर- सामाजिक असमानता, आर्थिक कठिनाइयां, राजशाही का निरंकुश शासन और ज्ञानोदय के विचारों का प्रभाव ने क्रांति को जन्म दिया।
प्रश्न- फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का सम्राट कौन था?
उत्तर- फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का सम्राट लुई सोलहवें था।
प्रश्न- फ्रांसीसी क्रांति का प्रसिद्ध नारा क्या था?
उत्तर- फ्रांसीसी क्रांति का प्रसिद्ध नारा था “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” था।
प्रश्न- फ्रांसीसी क्रांति का “बच्चा” कौन है?
उत्तर- नेपोलियन बोनापार्ट।
प्रश्न- फ्रांस की क्रांति कब समाप्त हुई?
उत्तर- 1799 (नेपोलियन के फ्रांस में तख्तापलट के पश्चात् )।
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