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Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: प्रारम्भिक जीवन, माता-पिता, उपलब्धियां, पत्नी, संतान, मृत्यु का कारण और मकबरा

By thebio Admin

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Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: तुग़लक़ वंश के शासकों में फिरोज शाह तुगलक ( Firuz Shah Tughlaq ) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। इतिहास में फ़िरोज को उसके सुधारों के लिए जाना जाता है। फ़िरोज़ का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था। वह गयासुद्दीन तुग़लक़ के छोटे भाई रजब का पुत्र था। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के पश्चात 20 मार्च 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ गद्दी पर बैठा और उसका राज्याभिषेक थट्टा के निकट हुआ।
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तुग़लक़ वंश के शासकों में फिरोज शाह तुगलक ( Firuz Shah Tughlaq ) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। इतिहास में फ़िरोज को उसके सुधारों के लिए जाना जाता है। फ़िरोज़ का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था। वह गयासुद्दीन तुग़लक़ के छोटे भाई रजब का पुत्र था। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के पश्चात 23 मार्च 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ गद्दी पर बैठा और उसका राज्याभिषेक थट्टा के निकट हुआ।

लेकिन उसके राज्याभिषेक और सुल्तान बनने को लेकर उपजे विवादों से निपटने के बाद पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ। सुल्तान बनने के पश्चात् फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने सामान्य जनता के सभी ऋण माफ़ कर दिए, जिसमें ‘सोंधर ऋण’ भी शामिल था, जो मुहम्मद तुग़लक़ के समय किसानों को दिया गया था। फ़िरोज शाह एक कट्टर सुन्नी धर्मान्ध मुस्लिम शासक था।

Firuz Shah Tughlaq History in Hindi: तुग़लक़ वंश के शासकों में फिरोज शाह तुगलक ( Firuz Shah Tughlaq ) का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। इतिहास में फ़िरोज को उसके सुधारों के लिए जाना जाता है। फ़िरोज़ का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था। वह गयासुद्दीन तुग़लक़ के छोटे भाई रजब का पुत्र था। मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के पश्चात 20 मार्च 1351 को फ़िरोज़ तुग़लक़ गद्दी पर बैठा और उसका राज्याभिषेक थट्टा के निकट हुआ।

Firuz Shah Tughlaq History: फ़िरोज़ तुग़लक़ के शासक बनने का विरोध

जिस समय मुहम्मद तुग़लक़ की मृत्यु हुई ( 20 मार्च 1351 ) तब सिंध के विद्रोहियों और भाड़े के मंगोल सैनिकों ने उस डेरे को लूट लिया। ये वही मंगोल सैनिक थे जिन्हें मुहम्मद तुग़लक़ ने ‘तगी’ के विरुद्ध युद्ध करने के लिए किराये पर रख लिया था। बिगड़ती परिस्थितियों को देखकर कुलीनों ने फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ से गद्दी पर बैठने को कहा मगर फ़िरोज़ ने कुछ संकोच के बाद अंततः 23 मार्च 1351 को थट्टा के निकट एक डेरे में उसका सिंहासनारोहण किया गया।

लेकिन फ़िरोज़ तुग़लक़ के सामने पहली चुनौती तब आई जब मुहम्मद तुग़लक़ के नायब ख्वाजा-ए-जहाँ ने दिल्ली में एक युवक को स्वर्गीय सुल्तान का पुत्र व उत्तराधिकारी घोषित कर उसे सिंहासन पर बैठा दिया। इस परिस्थिति से निपटने के लिए फ़िरोज़ ने अमीरों, सरदारों तथा मुस्लिम धर्म गुरुओं से परामर्श लिया और यह आपत्ति जताई कि स्वर्गीय सुल्तान का कोई पुत्र नहीं था।

फ़िरोज़ ने यह भी आपत्ति उठाई कि ख्वाजा-ए-जहाँ ने जिस लड़के को गद्दी पर बैठाया है वह नावालिग है और ऐसी विकार परिस्थिति में उसे गद्दी पर नहीं बैठाया जा सकता। इसके अतरिक्त इस्लामिक कानून में उत्तराधिकार का कोई नियम नहीं है। परिस्थितियों की मांग है कि दिल्ली की गद्दी पर शक्तिशाली सुल्तान बैठना चाहिए।

ख्वाजा-ए-जहाँ ने अपनी कमजोर स्थिति को भांप लिया और उसने आत्मसमर्पण कर दिया। ख्वाजा-ए-जहाँ के पुरानी सेवाओं को देखते हुए उसे क्षमा कर दिया गया और ‘समाना’ में उसे रहने की अनुमति दे दी गई, मगर मार्ग में समाना के सरदार शेर खान के किसी आदमी ने उसकी हत्या कर दी।

फ़िरोज़ तुग़लक़ के संबंध में विवाद

ज़ियाउद्दीन बरनी का मानना है कि अपनी मृत्यु के समय मुहम्मद तुग़लक़ ने एक आदेश-पत्र छोड़ा जिसमें उसने फ़िरोज़ तुग़लक़ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। मगर इतिहासकार सर बुल्जजले हेग का मत है कि जिस बालक को गद्दी पर बैठाया गया था वह मुहम्मद तुग़लक़ का वास्तविक पुत्र था। इसलिए फ़िरोज़ तुग़लक़ को सिंहासन का अपहरणकर्ता माना जाना चाहिए।

लेकिन भारतीय इतिहासकार आर. पी. त्रिपाठी इससे सहमत नहीं थे और वे फ़िरोज़ के सिंहासनारोहण को विधिपूर्वक सही मानते हैं क्योंकि इस्लाम में उत्तराधिकार का कोई नियम नहीं है। इसके आलावा वे इस तर्क को भी खर्ज करते हैं कि जरुरी नहीं कि सुल्तान की माता हिन्दू है तो वह सिंहासन पर नहीं बैठेगा और उसका विद्वान होना भी कोई शर्त नहीं है।

यह भी पढ़िए- नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं और स्थल: एक विस्तृत अध्ययन- Neolithic Age in Hindi

फ़िरोज तुग़लक़ के माता-पिता

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ। उसके पिता का नाम मालिक रजब था। उसकी माता का नाम बीबी नैला था जो एक भट्टी राजपूत कन्या थी और उसने अपने पिता रणमल ( अबूहर के सरदार ) के राज्य को मुसलमानों से बचाने के लिए रजब से विवाह करने को तैयार हो गई थी। मालिक रजब ग़ाज़ी मालिक का छोटा भाई था। ग़ाज़ी मालिक तुग़लक़ साम्राज्य का ‘सिपेहसलार’ था।

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ जब बड़ा हुआ तो उसे सभी तरह की यद्ध कला, घुङसबारी, तलबारबाज़ी के साथ शासन-प्रबनध का भी प्रशिक्षण दिया गया मगर वह किसी क्षेत्र में निपुण न बन सका। मुहम्मद तुग़लक़ फ़िरोज़ से बहुत प्यार करता था और उसे शासन-प्रबंध में अपने साथ रखता था।

नाम फ़िरोज़ शाह तुग़लक़
जन्म 1309 ईस्वी
जन्मस्थान दिल्ली
शासन 20 मार्च 1351 – 20 सितंबर 1388
वंश तुग़लक़ बंश
पिता मालिक रजब
माता बीबी नैला
संतान फ़तेह खां और मुहम्मद
धर्म सुन्नी इस्लाम
मृत्यु 20 सितंबर 1388
मकबरा हौज खास नई दिल्ली

फ़िरोज़ युगलक़ की उपलब्धियां

फ़िरोज़ तुग़लक़ भले ही अधिक पढ़ा-लिखा या विद्वान नहीं था परन्तु सिंहासन ग्रहण करने के बाद उसने प्रशासनिक कार्यों को अच्छे से संभाला और खुद को एक मजबूत शासक सिद्ध किया। उसकी उपलब्धियोंको हम उसके विभिन्न कार्यों के माध्यम से जान सकते हैं जो निम्न प्रकार हैं-

गृह नीति

फ़िरोज़ जब गद्दी पर बैठा तो उसका सबसे पहला कार्य जनता को अपने पक्ष में करना था। इसके लिए उसने ऐसे सभी ऋणों को पूर्णतया समाप्त कर दिया जो ख्वाजा-ए-जहां ने जनता में बांटा था और अपने अभ्यर्थी के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया था। फ़िरोज़ ने अपने शासन के प्रथम वर्ष राज्य में शांति और व्यवस्था स्थापित करने में लगाया। फ़िरोज़ ने खुदको जनता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया और हर वो प्रयास किया जिससे सामान्य जनकल्याण को प्रोत्साहन मिले। इस तरह उसने अपनी सैनिक अयोग्यता के जनता के समर्थन के पीछे छुपा दिया।

राजस्व नीति

  • जिस समय फ़िरोज़ गद्दी पर बैठा उस समय रजकोष अस्तव्यस्त था। उसने सिर्फ ‘तकावी’ ऋणों को ही माफ़ नहीं किया बल्कि उसने यह भी आदेश दिया कि राजस्व उगाहने वाले सैनिक जनता को आतंकित ना करें।
  • उसने राजस्व विभाग के अधिकारीयों के वेतन बढ़ा दिए ताकि वे भ्र्ष्टाचार न करें।
  • फ़िरोज़ ने ख्वाजा हिसामुद्दीन को राज्य के सार्वजानिक राजस्व के अनुमान लगाने का कार्य सौंपा जिसे उसने 6 वर्षों में पूरा किया। उसने राज्य का दौरा कर राजस्व अभिलेखों का बारीकी से परिक्षण किया और खालसा भूमि की मालगुज़ारी 6 करोड़ 85 लाख टंका निश्चित कर दी।
  • सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने ऐसे 24 विवादस्पद और अन्यायपूर्ण महसूलों ( CESSES ) को रद्द कर समाप्त कर दिया जो पिछले शासनकल से चले आ रहे थे।
  • ऐसे उपहारों पर रोक लगा दी गई जो राज्यपालों से उनकी नियुक्ति के समय लिए जाते थे।
  • करों की नई व्यवस्था को कुरान के अनुसार स्वीकृत चार प्रकार के करों में लागु किया गया- खिराज, जकात, जजिया और खम्स।
  • खिराज– वह कर जो भूमि की उपज के भाग के बराबर था।
  • जकात– यह रक प्रकार का धार्मिक कर था जो सिर्फ धार्मिक कार्यों पर ही खर्च होता था और प्रत्येक मुसलमान से उसकी सम्पत्ति पर 2-1/2% की दर से लिया जाता था।
  • जजिया– जजिया वह कर था जो गैर-मुसलमानों और काफिरों पर उनकी जा – माल की रक्षा के बदले बसूला जाता था। फिरसज शाह तुग़लक़ प्रथम सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया-

खम्स- खम्स वह कर था जो युद्ध के दौरान लूटी गई सम्पत्ति पर लगता था। अलाउद्दीन और मुहम्मद तुगलक लूटे गए माल का 4/5 भाग लेकर 1/5 भाग सैनिकों में बाँट देते थे। फरोज़ ने इस्लामिक नियम के अनुसार राज्य का हिस्सा 1/5 कर दिया और 4/5 हिस्सा सैनिकों के लिए निर्धारित कर दिया।

  • फ़िरोज़ ने खेतों की उपज पर 10% सिंचाई कर लगा दिया।
  • इसके आलावा फ़िरोज़ ने चुंगी बसूलने वाले अधिकारीयों को निर्धारित शुल्क से ज्यादा न बसूलने की चेतावनी दी।
  • शम्से-सिराज अफीफ फ़िरोज़ के राजस्व संबंधी सुधारों का विवरण इस प्रकार देता है-
  • फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने जागीर प्रथा को पुनः बहाल कर दिया, जिसे अलाउद्दीन खिलज़ी ने बंद कर दिया था।

सिंचाई संबंधी सुधार

कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फ़िरोज़ ने सिचाई संबंधी सुधार किये जो इस प्रकार थे-

सुल्तान ने दो नहरें खुदवाने का आदेश दिया जिनमें से एक सतलज से और दूसरी यमुना से निकाली गई। लेकिन याहिया बिन अहमद ने चार नहरें खोदे जाने का वर्ण किया है जिनमें प्रथम- सतलज से घग्गर ( 96 मील लम्बी ) तक, दूसरी- यमुना के पानी को हिसार तक ले गई ( 150 मील लम्बी ), तीसरी नहर मंडवी और सिरमौर की पहाड़ियों तक और चौथी नहर सुरसती के दुर्ग के निकट घग्गर से हिरानीखेड़ा के गांव तक जाती थी।

  • यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुँए खोदे गए। फ़िरोज़ के इन कार्यों से अकेले दोआब में ही 52 नई बस्तियां बसी। फसलों का उत्पादन बढ़ गया और फल भी उत्तम किस्म के पैदा होने लगे।

सार्वजानिक निर्माण के कार्य

फ़िरोज़ तुग़लक़ को निर्माण का बहुत शौक था और सर वुल्जले हेग ने इसकी तुलना रोमन सम्राट अगस्टस से की है।

फ़िरोज़ तुग़लक़ ने कई नए शहरों की नीव रखी जिनमें- फ़िरोज़ाबाद ( दिल्ली का आधुनिक फ़िरोज़शाह कोटला ), फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर और फ़िरोज़पुर ( बदायूं के निकट ) प्रमुख हैं।

अपने बंगाल अभियान के दौरान फ़िरोज़ ने इकदला का नया नाम आज़ादपुर रखा और पंडुआ का नाम फ़िरोज़ाबाद रखा।

सुल्तान ने 4 मस्जिदें, 30 महल, 200 यात्री सराय, 5 जलाशय, 100 मकबरे, 10 स्नानागार, 10 स्मारक स्तम्भ, 100 पुल बनवाये। 5 सिंचाई की नहरें और दिल्ली के आसपास 1200 उद्यान बनवाये।

फ़िरोज़ तुग़लक़ के समय राज्य का मुख्य वास्तुकार ‘मलिक ग़ाज़ी शहना’ था। अबुल हक़ उसका सहायक था।

न्याय संबंधी सुधार

जिस समय फ़िरोज़ तुग़लक़ गद्दी पर बैठा, उस समय अत्यंत क्रूर व अमानवीय थी और हाथ-पैर काटना, नाक-कान काटना, ऑंखें निकलना, हथौड़े से हड्डियां तोड़ना एक आम बात थी। फ़िरोज़ तुग़लक़ ने ऐसे सभी अमानवीय दंड बंद कर दिए और न्याय व्यवस्था को उदार व मानवीय बनाया।

मार्ग में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो क़ाज़ी और मुकदद्म इस बात का परिक्षण करें कि मृतक के शरीर पर कोई चोट का निशान तो नहीं है। तभी मृतक का अंतिम संस्कार किया जाए जब काज़ी अपनी मुहर लगाकर प्रमाणित करे कि शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं है।

विवाह विभाग की स्थापना- सुल्तान ने गरीब व माध्यम वर्ग की मसलमान कन्याओं के विवाह के लिए एक विवाह विभाग की स्थापना की ताकि इनके दहेज़ खा खर्च राज्य उठा सके।

रोजगार विभाग की स्थापना- सुल्तान ने लिपिक या प्रशासनिक नौकरी चाहने वालों के लिए एक रोज़गार विभाग की स्थापना की। दिल्ली के कोतवाल को यह आदेश था कि वो योग्य और बेरोज़गार युवाओं को तलाशकर दरबार में पेश करे।

खैराती अस्पताल की स्थापना- सुल्तान ने जनता के लिए खैराती अस्पताल जिसे दारुल शफा कहा जाता था खोले जिनमें रोगियों का मुफ्त इलाज योग्य बैद्य और हकीमों द्वारा होता था। औषधियां और भोजन मुफ्त दिया जाता था।

शिक्षा संबंधी सुधार

सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ को ज्ञान के प्रसार में बहुत रूचि थी। शेखों व विद्वानों को सहायता देना और उनका स्वागत सम्मान करना सुल्तान का शौक था। इसके आलावा सुल्तान को इतिहास में रूचि थी और शम्से सिराज अफीफ और जियाउद्दीन बरनी ने उसी के समय में अपनी रचनाएं तैयार की। उसी के शासनकाल में ‘तारीखे फ़िरोज़शाही’ की रचना हुई।

सुल्तान की जीवनी ‘फतूहात-ए-फ़िरोज़शाही के नाम से प्रसिद्ध है।

अपने नगरकोट अभियान के दौरान सुल्तान को बेशकीमती 300 संस्कृत भाषा की पुस्तकें हाथ लगीं और जिनका फ़ारसी में अनुवाद दलायल-ए-फ़िरोज़ शाही के शीर्षकालीन भाषा में आ – उद्दीन खालिद द्वारा किया गया। बहुत से विद्यालयों और विहारों की स्थापना की गई।

दास प्रथा

सुल्तान को दास रखने का बहुत शौक था और उसने अधिकारीयों को युद्ध के समय हष्ट-पुष्ट दास पकड़ने का आदेश दिया था। उसके पास लाये गए दासों में से 12000 दास विभिन्न प्रकार के विद्वान बन गए। 40 हज़ार दास सुल्तान और उसके महल की रक्षा में लगे हुए थे। नगर व समस्त जागीरों में 1, 80000 दास थे। दास प्रथा से इस्लाम के प्रसार को बल मिला। दासों के लिए एक अलग कोष, एक पृथक जाऊ-शगुरी, एक सहायक जाऊ-शगुरी और एक पृथक दीवान नियुक्त था।

सेना का प्रबंध

यद्पि फ़िरोज़ स्वयं एक अच्छ सैनिक नहीं था मगर उसने सेना पर विशेष ध्यान दिया। सेना सामंती आधार पर थी जिसमें स्थायी सैनिक भूमि अनुदान पाते थे। जो सैनिक अस्थायी ( गैर-वजह ) को सीधे राज्य से वेतन प्राप्त होता था। सुल्तान की सेना में 80 से 90 हज़ार घुड़सवार सैनिक थे। सेना में कुशलता की कमी थी और सैनकों की भर्ती में भ्रष्टाचार होता था।

सिक्कों का प्रचलन

सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने कोई नए प्रकार के सिक्के नहीं निर्गत किये बल्कि पहले से चलते आ रहे सिक्कों को जारी रखा। शम्स शम्स-ए-सिराज अफीफ दावा करता है कि सुल्तान ने शाशगनी या 6 जीतल का एक सिक्का निर्गत किया। इसके आलावा इब्न-बतूता भी ऐसा ही दावा करता है। सुल्तान ने दो सिक्के आधा ( 1/2 जीतल )और बिख ( 1/4 जीतल ) जारी किये।

सुल्तान का दरबार

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का दरबार अत्यंत भव्य और वैभवपूर्ण था। इसमें 36 शाही दरबार शामिल थे और इनके अलग-अलग अधिकारी थे।

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ की धार्मिक नीति

सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ एक कट्टर मुसलमान था जो सुन्नी संप्रदाय को फॉलो करता था। वह सुन्नी मुसलामानों की हर तरह से सहायता को तत्पर रहता था। दरबार में उलेमाओं को उच्च स्थान प्राप्त था। वह हिन्दुओं और दूसरे धार्मिक सम्प्रदायों के प्रति अत्यंत कठोर था उसने हिन्दू मंदिरों को तुड़वाया और आने हिन्दुओं को काफिर की तरह कठोर दंड दिए। मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवाईं।

सुल्तान ने ज्वालामुखी मंदिर और जगन्नाथ के मंदिरों को नष्ट किया। उसने पहली बार ब्राह्मणों पर जजिया लगाया। एक ब्राह्मण को ज़िदा आग में जलाने का आदेश दिया। कटिहार में सैयद सैयद मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया।

उसने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर जजिया कर से मुक्त कर दिया और इस लालच में बहुत से हिन्दू मसलमान बन गए। सुल्तान मिस्र के खलीफा के प्रति बहुत सम्मान रखता था।

फ़िरोज़ तुग़लक़ की हत्या का षड्यंत्र

1358 ईस्वी में फ़िरोज़ तुग़लक़ की हत्या का एक असफल षड्यंत्र रचा गया। इस षड्यंत्र में फ़िरोज़ की चचेरी बहन खुदावंदजादा और उसके पति का हाथ था। इस षड्यंत्र के तहत फ़िरोज़ को घर पर दावत के बहाने बुलाकर भाड़े के लोगों से क़त्ल कराना था, मगर खुदावंदजादा के पुत्र दावर मालिक ने इसारे से फ़िरोज़ को सचेत कर दिया और फ़िरोज़ समय रहते वहां से निकल गया। इस तरह यह षड्यंत्र असफल हो गया।

फ़िरोज़ तुग़लक़ की विदेश नीति

फ़िरोज़ तुग़लक एक अच्छा सैन्य नायक नहीं था और न ही उसे राज्यों को जीतने में कोई रूचि थी। फिर भी उसने कुछ अभियान किये जिकंका संछिप्त वर्णन हम यहाँ कर रहे हैं-

बंगाल अभियान

हाजी इलियास समसुद्दीन बंगाल का एक स्वतंत्र शासक था। उसने अपने राज्य विस्तार करने के उद्देश्य से तिरहुत पर आक्रमण किया। इच्छा न होते हुए भी फ़िरोज़ तुग़लक़ ने सैन्य अभियान किया और 1 नवंबर 1353 में, ७०००० घुड़सवार सेना के साथ दिल्ली से चला। सुल्तान के इस अभियान का पता चलने पर इलियास पंडुआ से 10-12 मील दूर इकदला के दुर्ग में छिप गया। भगोड़े शत्रु को पराजित करने के लिए सुल्तान ने बंगाल की जनता से तमाम सुविधाओं का वादा किया और सहयोग माँगा।

अंततः सुल्तान की सेना ने हाजी इलियास को पराजित किया। मगर सुलतान ने बिना बंगाल को राज्य में शामिल किये बापस लौटने का निर्णय लिया। कुछ वर्ष पश्चात् सुल्तान ने फिरसे बंगाल को विजय करने का निर्णय किया। बंगाल के फखरुद्दीन मुबारक शाह का जमाता जफरखां सोनारगांव से भागकर दिल्ली आया और उसने बंगाल में अत्याचार की कहानी फ़िरोज़ को सुनाई। तब तक हाजी इलियास भी मर चूका था और सुल्तान ने 1359 में इलियास के पुत्र सिकंदर शाह के विरुद्ध अभियान किया।

सुल्तान मार्ग में गोमती नदी के किनारे जफराबाद में 6 माह तक रुका और सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ की स्मृति में जौनपुर नगर बसाया, क्योंकि मुहम्मद तुग़लक़ का नाम राजकुमार जौना खां था। बरसात खत्म होते ही सेनाएं बंगाल की ओर बढ़ीं अंततः सिकन्दरशाह ने आत्मसमर्पण कर दिया मगर सुल्तान इस बार भी संधि कर ली और बंगाल को स्वतंत्र छोड़ दिया।

जाजनगर अभियान

बंगाल अभियान से लौटते समय सुलतान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने जाजनगर ( आधुनिक उड़ीसा ) को जीतने का निश्चय किया। सुल्तान के जाजनगर पहुँचते ही वहां का शासक भाग निकला। सुल्तान ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और मूर्तियों को पैरों तले कुचला। जाजनगर से लौटते समय सुल्तान नागपुर गया और रास्ता भटक गया सेना सहित महीनों तक सुल्तान का कोई अता-पता न रहा।

नगरकोट अभियान

1337 ईस्वी में नगरकोट को सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ ने विजित किया था, मगर उसके शासन के अंतिम दिनों में वो उसके नियंत्रण से बाहर हो गया। फ़िरोज़ तुग़लक़ ने एक बार फिर नगरकोट को जीतने का निश्चय किया और 6 माह तक दुर्ग का घेरा डाले रखा और अंत में वहां के शासक ने आत्मसमर्पण कर दिया। सुल्तान ने ज्वालामुखी मंदिर को तोड़कर उसकी मूर्तियों को गाय के खून में भिगोया। कुछ मूर्तियां हिन्दू धर्म पर विजय की स्मृति में मदीना भेजी गईं।

सिंध का अभियान

मुहम्मद तुग़लक़ सिंध में संघर्ष करते हुए मारा गया था। लेकिन फ़िरोज़ तुग़लक़ की ताजपोशी सिंध के ही एक डेरे में हुई थी। अतः फिरोज के लिए सिंध की विजय अत्यंत महत्व की थी। इस हेतु सुल्तान ने 1361-६२ में 90 हज़ार घुसवार सैनिकों, 480 हाथी सेना, और 5 हज़ार नावों के साथ सिंध के जामों की राजधानी थट्टा की ओर बढ़ा। सिंध के शासक जाम बबानिया ने 20 हज़ार घुड़सवार, 4 लाख पैदल सेना के साथ फ़िरोज़ की सेना का सामना किया।

ख़राब मौसम और अकाल व महामारी ने सुल्तान फ़िरोज़ की सेना को मुसीबत में डाल दिया। सुल्तान गुजरात की ओर बढ़ने का निश्चय किया मगर रास्ता दिखाने वालों ने गलत रास्ते पर भेज दिया और 6 माह तक सुल्तान सेना सहित गायब रहा। सेना को काफी मात्रा में जनधन की हानि हुई। लेकिन सुल्तान के योग्य मंत्री खाने-जहां मक़बूल ने नई सेना भेजकर सुल्तान को बाहर निकला।

1363 ईस्वी में सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने जाम बबानिया पर आक्रमण कर उसे बंदी बना लिया और सिंध के लोगों ने टैक्स देना स्वीकार कर लिया। बबानिया को दिल्ली लाया गया और उसके पुत्र को उसके स्थान पर शासक नियुक्त कर दिया।

फ़िरोज़ तुग़लक़ की मृत्यु

सुल्तान के अंतिम दिन अत्यंत कष्ट में गुजरे। 1374 में सुल्तान के बड़े पुत्र फ़तेह खां की मृत्यु हो गई। सुल्तान ने छोटे पुत्र मुहम्मद को शासन सत्ता में भागीदारी दी जिसका मुहम्मद ने नाजायज फायदा उठाया और दिन-रात भोग विलास में गुजारे। राजकुमार मुहम्मद ने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया मगर पराजित हुआ और सिरमौर की तरफ भाग गया।

ऐसी परिस्थिति में सुल्तान फ़िरोज़ तुग़लक़ ने फ़तेह खां के पुत्र गयासुद्दीन तुग़लक़ शाह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। फिरोज तुग़लक़ की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में 1388 ईस्वी में हुई। उसकी मृत्यु के कुछ दिन बाद ही तुग़लक़ वंश छिन्न-भिन्न हो गया।

फिरोज शाह तुगलक का मकबरा

फिरोज शाह तुगलक का मकबरा, फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु 20 सितंबर 1388 को 80 वर्ष की आयु में दिल्ली में हुई थी। उसकी मृत्यु के बाद उसका मकबरा नई दिल्ली के हौज खास परिसर में बनवाया गया, अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित टैंक के नजदीक है।  फिरोज शाह तुगलक का मकबरा 1390 में बनवाया गया था। फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश कुछ ही समय में बिखर गया। 1398 में तैमूर वंश के आक्रमण से तुगलक वंश का अंत हो गया था।

फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु 20 सितंबर 1388 को 80 वर्ष की आयु में दिल्ली में हुई थी। उसकी मृत्यु के बाद उसका मकबरा नई दिल्ली के हौज खास परिसर में बनवाया गया, अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित टैंक के नजदीक है। गयासुद्दीन तुग़लक़ शाह द्वारा फिरोज शाह तुगलक का मकबरा 1390 में बनवाया गया था। फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु के बाद तुगलक वंश कुछ ही समय में बिखर गया। 1398 में तैमूर वंश के आक्रमण से तुगलक वंश का अंत हो गया था।

अंतिम शब्द

इस प्रकर फ़िरोज़ तुग़लक़ इतिहास में घृणा और प्रेम का पात्र है। जहाँ उसने लोगों की सुविधाओं के लिए स्कूल, सराय, नहरें और कुँए बनवाये वहीं उसने हिन्दू मंदिरों को तोडा और लोगों को जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करने पर मजबूर किया। लेकिन एक अयोग्य सैनिक होते हुए भी उसने सिंध पर विजय प्राप्त की। अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आये तो इसे अपने मित्रों के साथ शेयर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs

प्रश्न- फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के पिता का नाम क्या था?

उत्तर- फ़िरोज़ तुग़लक़ के पिता का नाम मालिक रजब था।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ की माता का क्या नाम था?

उत्तर- फ़िरोज़ तुग़लक़ की माता हिन्दू थी जिसका नाम बीबी नैला था जो एक भट्टी राजपूत कन्या थी।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ की पत्नी का नाम क्या था?

उत्तर- फिरोज तुग़लक़ की पत्नी का नाम ज्ञात नहीं है।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ ने कौन-कौन से नए शहर बसाये?

उत्तर- फ़िरोज़ तुग़लक़ ने कई नए शहरों की नीव रखी जिनमें- फ़िरोज़ाबाद ( दिल्ली का आधुनिक फ़िरोज़शाह कोटला ), फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर और फ़िरोज़पुर ( बदायूं के निकट ) प्रमुख हैं।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ के कितने पुत्र थे?

उत्तर- फ़िरोज़ तुग़लक़ के बड़े बेटे का नाम फ़तेह खां और छोटे बेटे का नाम मुहम्मद था।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर- फिरोज शाह तुगलक की मृत्यु 20 सितंबर 1388 को 80 वर्ष की आयु में दिल्ली में हुई थी।

प्रश्न- फ़िरोज़ तुग़लक़ की आत्मकथा किस नाम से है?

उत्तर- फ़ुतुहत-ए-फ़िरोज़शाही रखा था. यह आत्मकथा 32 पन्नों की है. 

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