European Companies in India: भारत प्राचीनकाल से ही विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण देश रहा है। यहाँ के मसाले दुनियाभर में प्रसिद्ध थे। यहाँ आने वाले विदेशी यूरोपियन को छोड़कर यहीं के होकर रह गए। यूरोप में बढ़ते इस्लामिक प्रभाव ने भारत सहित एशिया के स्थलीय व्यापार को प्रभावित किया। यूरोप के साहसी नाविकों ने भारत के लिए जलमार्ग से व्यापार करने का निश्चय किया। इस लेख में हम भारत में आने वाली विदेशी कंपनियों के आगमन के ऐतिहासिक कारणों और उनके प्रभाव का अध्ययन करेंगे। लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें जो अत्यंत महत्व का है।

European Companies in India: भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन
भारत का इतिहास प्राचीन से लेकर मध्यकाल और आधुनिक काल तक व्यापार, संस्कृति और साम्राज्यवाद का साक्षात् गवाह रहा है। यूरोप में फैले साम्राजयवाद और औद्योगीकरण ने 15वीं शताब्दी के अंत में यूरोपीय देशों को भारत की ओर आकर्षित किया, जो न केवल भारत के मसालों, कीमती रेशम और अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए विश्व में प्रसिद्ध था, बल्कि एक समृद्ध सभ्यता का केंद्र भी था।
भारत में उपनिवेशवाद की जड़ें इन्हीं यूरोपीय कंपनियों के भारत में आगमन के साथ गहराई से जुड़ी हैं। इस महत्वपूर्ण लेख में हम यूरोपीय कंपनियों के भारत में आगमन, उनकी प्रमुख गतिविधियों, आपसी व्यापारिक और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, भारत पर प्रभाव और अंततः उनके पतन पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इसके आलावा हम कुछ ऐसी भी जानकारी साझा करेंगे जिसे बहुत से लेखक अनदेखा कर देते हैं। अतः हमारे साथ बने रहिये।
| कंपनी का नाम | आगमन का वर्ष | आने वाला व्यक्ति | किसके समय में आया |
|---|---|---|---|
| पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी | 1498 | वास्को डा गामा | ज़मोरिन ऑफ कालीकट (स्थानीय राजा) |
| डच ईस्ट इंडिया कंपनी | 1605 | कॉर्नेलिस डे हाउटमैन | जहांगीर (मुगल सम्राट) |
| ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी | 1608 | कैप्टन विलियम हॉकिन्स | जहांगीर (मुगल सम्राट) |
| फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी | 1668 | फ्रांस्वा कारोन | औरंगजेब (मुगल सम्राट) |
यूरोपीयों के भारत आने का ऐतिहासिक अवलोकन
15वीं शताब्दी यूरोप में पुनर्जागरण और नए देशों की खोजों और नए समुद्री मार्गों की खोज का युग चल रहा था। ओटोमन साम्राज्य (इस्लाम का विस्तार-तुर्की) के उदय से स्थल मार्ग यूरोपियों के लिए एशिया तक पहुंचना कठीन हो गया, जिससे भारत के मसालों (जैसे काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, इलायची आदि ) का व्यापार कठिन और महंगा हो गया।
इस कठिनाई और चुनौती से निपटने के लिए यूरोपीय देश नए समुद्री मार्ग की खोज में लग गए और इस प्रयास में उनके राजाओं ने भी मदद की। इस दौड़ में सबसे पहले पुर्तगाल के लोग आगे आये। 1498 में एक साहसी नाविक वास्को डा गामा ने केप ऑफ गुड होप (आशा अंतरीप) होते हुए भारत के कालीकट (कोझिकोड) पहुंचकर भारत और यूरोप के बीच समुद्री मार्ग की खोज का लक्ष्य प्राप्त किया। यही वह घटना थी जिसने यूरोपीय कंपनियों के लिए भारत पहुँचने के समुद्री मार्ग खोल दिया।
वास्को-डा-गामा का भारत आगमन सिर्फ एक खोज नहीं थी, बल्कि पुर्तगाली राजा मैनुअल प्रथम की महत्वाकांक्षी नीति की एक ऐतिहासिक सफलता भी थी। यह ऐतिहासिक सफलता थी इसे धर्म के प्रचार की। उन्होंने पोप से ‘पैड्रोडो’ (धर्म प्रचार का अधिकार) प्राप्त किया, जिसने व्यापार के साथ ईसाई धर्म का मार्ग भी प्रशस्त किया। हालाँकि शुरुआत में स्थानीय राजा ज़मोरिन ने वास्को-डी-गामा का विरोध किया, लेकिन वह व्यापारिक संबंध स्थापित करने में सफल हो गया।
अवास्को-डी-गामा की डायरी से ज्ञात होता है कि भारत की आर्थिक समृद्धि ने यूरोपीयों को अचंभित कर दिया, और उन्होंने यहां के हिंदू-मुस्लिम व्यापारिक संबंधों को गहनता से समझा।
The order of arrival of Europeans in India | यूरोपीयों के भारत में आने का क्रम
भारत में आने वाले सबसे पहले व्यापारी पुर्तगाली थे। इसके साथ आने वाले सभी यूरोपीय कंपनियों के आगमन के क्रम को समझने के लिए इस लेख को पढ़ना जारी रखें-
1 – Arrival of the Portuguese East India Company in India | पुर्तगाली ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन

पुर्तगालियों ने भारत की धरती पर कदम रखने के बाद 1505 में भारत में प्रथम फैक्ट्री गोवा में स्थापित की। गोवा पर अधिकार करने वाला पुर्तगाली अल्फोंसो डी अल्बुकर्क था, जिसने 1510 में गोवा पर अधिकार करके इसे पुर्तगाली व्यापार का केंद्रबिंदु बनाया। अल्बुकर्क ‘नीली जल नीति’ (Blue Water Policy) का उद्घोष किया और उन्होंने समुद्री मार्गों पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित किया, जिसमें अन्य देशों के जहाजों को पास (कार्टाज) जारी करना शामिल था।
पुर्तगालियों ने सम्रज्य्वादी रूख अपनाया और दमन, दीव, बंबई (मुंबई) और सालसेट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अधिकार किया। उन्होंने मसालों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया।
ध्यान दीजिये– भारत में पहली प्रिंटिंग प्रेस 1556 में गोवा में पुर्तगालियों द्वारा स्थापित की गई, जो एशिया की पहली थी। पुर्तगालियों ने स्थानीय भारतीय संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया, जैसे गोवा में पुर्तगाली वास्तुकला और भोजन (जैसे विंदालू)। हालांकि इनका पतन जल्दी हुआ, 17वीं शताब्दी में डच और अंग्रेजों से व्यापारिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा में वे कमजोर कमजोर सिद्ध हुए। क्या आप जानते हैं भारत का सबसे अंत में स्वतंत्र होने वाला राज्य गोवा था जिसे 1961 तक पुर्तगालियों ने नियंत्रण में रखा, जब भारत ने इसे मुक्त किया।
2- Arrival of the Dutch East India Company in India | डच ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन

भारत में पुर्तगालियों के बाद आने वाले दूसरे यूरोपीय नीदरलैंड्स/हॉलैंड (डच) थे। 1602 में एक व्यापारिक कम्पनी वेरेंग्डे ओस्ट-इंडिशे कंपनी (VOC) की स्थापना की, जो दुनिया की पहली बहुराष्ट्रीय व्यापारिक कंपनी थी। डच भी खुदको भारत आने के मोह से रोक न पाए और 1605 में भारत आ पहुंचे और मसूलिपट्टनम (मछलीपट्टनम) में पहली फैक्ट्री स्थापित की। डचों ने शीघ्र ही पुर्तगालियों से सीलोन (श्रीलंका) भी हथिया लिया और भारत में पुलिकट, नागापट्टनम, कोचीन और चिनसुरा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्ज़ा कर लिया।
डच कंपनी की भारत में तेजी से सफलता का राज उनकी संयुक्त स्टॉक कंपनी प्रणाली में था, जो नए निवेशकों को शीघ्र आकर्षित करती थी। वे मुख्य रूप से कपास, इंडिगो (नील ) और मसालों के व्यापार में विशेषज्ञ थे।
डचों ने भारत में ‘फैक्ट्री सिस्टम’ को मजबूती प्रदान की, जहां वे स्थानीय भारतीय कारीगरों से संस्ता माल खरीदते थे। उन्होंने बटाविया (जकार्ता) को अपना व्यापारिक मुख्यालय बनाया, जो एशियाई व्यापार का केंद्र था। हालांकि, 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों से व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में हार कर वे भारत से बाहर हो गए। दिलचस्प तथ्य: डच कंपनी ने 1632 में ताजमहल के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले मकराना संगमरमर के परिवहन में सहायता की, हालांकि यह अपुष्ट है।
3- Arrival of the British East India Company in India | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन

| कम्पनी का नाम | East India Company |
| स्थापना | 1600 ईस्वी |
| जहांगीर के दरबार में आने वाला प्रथम अंग्रेज | कैप्टन हॉकिन्स 1608 में |
| दूसरा अंग्रेज | सर थॉमस रो 1612 में |
| प्रथम फैक्टरी | सूरत में |
अंग्रेजों ने पूर्वी एशिया में व्यापार करने के उद्देश्य से 1600 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) की स्थापना की। उस समय भारत में मुग़ल सम्राट जहांगीर का शासन था और 1608 में कैप्टन हॉकिन्स मुगल दरबार में पहुँचने वाले प्रथम अंग्रेज था, लेकिन वह व्यापारिक अनुमति प्राप्त करने असफल रहा। अंग्रेजों ने हिम्मत नहीं हारी और 1612 में सर थॉमस रो ने जहांगीर से सूरत में फैक्ट्री स्थापित करने की अनुमति प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की और सम्भवतः यही मुग़ल साम्राज्य के अंत का बीजारोपण था।
अंग्रेजों की सफलता 17वीं शताब्दी में बहुत तेजी बढ़ी। उन्होंने मद्रास (चेन्नई) में फोर्ट सेंट जॉर्ज (1640), बॉम्बे (मुंबई) में (1668, पुर्तगालियों से दहेज में प्राप्त) और कलकत्ता (कोलकाता) में फोर्ट विलियम (1690) स्थापित किए। प्लासी का युद्ध (1757) में रॉबर्ट क्लाइव ने तत्कालीन नवाब सिराज-उद-दौला को षड्यंत्र के सहारे हराकर बंगाल पर कब्जा किया और 1764 के बक्सर के युद्ध ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी, यही ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्यवादी औपनिवेशिक विस्तार की शुरुआत थी।
| किला/फैक्ट्री | स्थापना का वर्ष |
| फोर्ट सेंट जॉर्ज, मद्रास (चेन्नई) | 1640 ईस्वी |
| बॉम्बे (मुंबई) | 1668, पुर्तगालियों से दहेज में प्राप्त हुआ |
| फोर्ट विलियम, कलकत्ता (कोलकाता) | 1690 |
| प्लासी का युद्ध | 23 जून 1757 में नवाब सिराज-उद-दौला को हराया |
| बक्सर का युद्ध | 1764 बंगाल पर पूर्ण कब्जा |
ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर कब्जे के बाद ‘ड्यूअल सिस्टम’ (दोहरी शासन प्रणाली) को अपनाया, जहां कंपनी राजस्व वसूलते के काम लगी मगर लेकिन कानून और प्रशासनिक जिम्मेदारी स्थानीय शासकों के जिम्मे थी। अंग्रेजों ने भारत में रेलवे, टेलीग्राफ और शिक्षा प्रणाली की शुरुआत की, (लार्ड डलहौजी द्वारा) लेकिन यह सब प्रारम्भ में साम्राज्यवाद विस्तार और हित के लिए किया गया था।
भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन 1857 की क्रांति के बाद आये महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र 1858 द्वारा समाप्त हुआ, इसके बाद भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन ने नियंत्रण में ले लिया। कंपनी ने अफीम युद्धों में चीन के साथ भारत को भी शामिल किया, जहां भारतीय अफीम का निर्यात किया जाता था।
4- Arrival of the French East India Company in India | फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन
यूरोप में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच राजनीतिक दुश्मनी बहुत पहले से थी। अब व्यापारिक प्रतिस्पर्धा ने इसमें वृद्धि की जब फ्रांस ने 1664 में Compagnie des Indes Orientales (कॉम्पैनी डेस इंडेस ओरिएंटेल्स) की स्थापना की। 1668 में उन्होंने सूरत में प्रथम फैक्ट्री स्थापित की, उसके बाद पांडिचेरी (पुडुचेरी, 1674), चंद्रनगर और माहे। जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स फ्रेंच कंपनी के गवर्नर थे, जिन्होंने एंग्लो-‘फ्रेंच इंडियन वॉर’ में अंग्रेजों से मुकाबला किया।

| कम्पनी का नाम | स्थापना |
| Compagnie des Indes Orientales | 1664 ईस्वी |
| भारत में पहली फैक्ट्री | सूरत 1668 में 1668 में फ्रांस्वा कारोन द्वारा स्थापित किया गया। |
| पांडिचेरी | 1674 |
| प्रथम फ्रांसीसी गवर्नर | जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स (डूप्ले) |
भारत में फ्रांसीसियों का आना अंग्रेजों से सीधे मुकाबला था और अब यह निश्चित था की दोनों में से कोई एक ही रह सकता था। तीन कर्नाटक युद्धों (1746-1763) में फ्रांसीसी और अंग्रेजों के मध्य मुकाबले हुए, जहां प्लासी के बाद फ्रांसीसी हार गए। फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने फ्रांसीसी कंपनी को कमजोर किया, और 1818 तक वे भारत में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए।
क्या आप जानते हैं – यह फ्रांसीसी ही थे जिन्होंने भारत में कॉफी की खेती शुरू की, जो आज भी दक्षिण भारत में फल-फूल रही है।
| वर्ष | युद्ध का स्थान | गवर्नर (फ्रांसीसी) | गवर्नर (अंग्रेज) | विजेता |
|---|---|---|---|---|
| 1746-1748 | सेंट थॉम (मद्रास) | जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स | मेजर स्ट्रिंगर लॉरेंस | अनिर्णीत |
| 1749-1754 | अंबुर (कर्नाटक) | जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स | रॉबर्ट क्लाइव | अंग्रेज |
| 1757-1763 | वंडिवाश (पांडिचेरी) | जोसेफ फ्रांस्वा डुप्लेक्स | आइज़ेक बोर और क्लाइव | अंग्रेज |
यूरोपीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का भारत पर प्रभाव
राजनीतिक प्रभाव: यूरोपीय कंपनियां भारत में व्यापारिक प्रतिद्वंदी के रूप में आपस में लड़ने लगीं। जहाँ पुर्तगाली और डच मसालों पर केंद्रित किये हुए थे, तो अंग्रेज और फ्रेंच व्यापार के साथ-साथ राजनीतिक अधिकार भी चाहते थे। इन कंपनियों की आपसी प्रतिद्वंदिता ने भारतीय राजाओं और उनकी सैन्य कमजोरियों को भी उजागर कर दिया और इसका परिणाम अंततः भारत की गुलामी के रूप में सामने आया।
आर्थिक प्रभाव: भारत में व्यापार के साथ-साथ राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के बाद भारत का धन तेजी से यूरोप पहुँचने लगा और भारत में गरीबी और भुखमरी फैलने लगी। ब्रिटिश भारत अब भारत कपास और रेशम का प्रमुख निर्यातक बन गया।
सामाजिक प्रभाव: यूरोपीय कंपनियों ने भारत को सिर्फ राजनीतिक और आर्थिक रूप से ही बर्बाद नहीं किया बल्कि सामाजिक और धार्मिक रूप से भी समाप्त करने के प्रयास किया। ईसाई धर्म के प्रचार ने हिन्दू के साथ मुस्लिम धर्म को भी कमजोर किया। इसके आलावा भारत के पर्यावरण और वन सम्पदा को उजाड़ दिया।
निष्कर्ष
इस तरह यूरोपीय कंपनियों के भारत में आगमन ने भारत में उपनिवेशवाद को जन्म दिया और अंततः ब्रिटिश भारत पर लम्बे समय तक शासन करने में सफल हुए। भारत जहाँ आर्थिक रूप से कमजोर हुआ वहीं शैक्षिक रूप से बौद्धिकता का बल मिला। ट्रैन के संचालन ने भारत में सामाजिक एकता को बल दिया। अतः भारत में यूरोपियों का आगमन एक मिली-जुली प्रतिक्रियाओं का सम्मिश्रण हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न- भारत में आने वाला प्रथम यूरोपीय कौन था?
उत्तर– पुर्तगाली नाविक वास्को डा गामा 1498 में भारत के कालीकट पहुंचे और 1505 में गोवा में पहली फैक्ट्री स्थापित की।
प्रश्न- भारत में यूरोपीयों के आने का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: यूरोपीयों का भारत में आने का मुख्य कारण मसालों (काली मिर्च, लौंग, दालचीनी), रेशम, और कपास जैसे मूल्यवान वस्तुओं का व्यापार था। इसके आलावा ईसाई धर्म का प्रचार करना भी उद्देश्य था।
प्रश्न- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर– ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में हुई थी। इसने 1612 में सूरत में पहली फैक्ट्री स्थापित की और 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद भारत में राजनीतिक शक्ति हासिल की।
प्रश्न- भारत में पुर्तगालियों का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्या था?
उत्तर: पुर्तगालियों ने भारत में समुद्री व्यापार मार्ग स्थापित किया और गोवा को अपने साम्राज्य का केंद्र बनाया। उन्होंने भारत में पहली प्रिंटिंग प्रेस (1556) शुरू की और पुर्तगाली वास्तुकला व भोजन (जैसे विंदालू) का प्रभाव छोड़ा।
प्रश्न- डच ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में कब आई?
उत्तर: डच ईस्ट इंडिया कंपनी (VOC) की स्थापना 1602 में हुई और 1605 में यह भारत पहुंची। इसने मसूलिपट्टनम में पहली फैक्ट्री स्थापित की और मसालों व कपास के व्यापार में विशेषज्ञता हासिल की।
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