वो शख्स जिसने 175 साल पहले ही “बहुजन” शब्द गढ़ दिया
Jyotiba Phule Profile: 11 अप्रैल 1827 को पुणे में एक माली परिवार में जन्मा वो बच्चा जिसकी माँ 9 महीने की उम्र में गुजर गईं, जिसे खेत में काम करने के लिए 10 साल की उम्र में स्कूल छुड़वाना पड़ा – वही बालक आगे चलकर महात्मा ज्योतिबा फुले बना।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था:
“मेरे तीन गुरु हैं – बुद्ध, कबीर और फुले। फुले मेरे सबसे बड़े गुरु हैं।”
आज जब हम जाति-विरोध, महिला शिक्षा, किसान आंदोलन, दलित-बहुजन चेतना की बात करते हैं – तो सबसे पहले जिस व्यक्ति का नाम आता है, वो हैं महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले।

| पूरा नाम | ज्योतिराव गोविंदराव फुले |
| उपनाम/सम्मान | महात्मा फुले, ज्योतिबा फुले, बहुजन नायक, महिला शिक्षा के पितामह |
| जन्म | 11 अप्रैल 1827 |
| जन्म स्थान | पुणे (तत्कालीन पूना), महाराष्ट्र |
| मृत्यु | 28 नवंबर 1890 (उम्र 63 वर्ष) |
| पत्नी | सावित्रीबाई फुले (भारत की पहली महिला शिक्षिका) |
| जाति | माली (शूद्र वर्ण में गिनी जाती थी) |
| प्रमुख पहचान | भारत में लड़कियों की शिक्षा के जनक, जाति-विरोधी आंदोलन के प्रणेता, बहुजन विचारधारा के पितामह |
| पहला बड़ा काम | 1848 – निचली जाति की लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल (भिड़े वाड़ा, पुणे) |
| स्थापित संगठन | सत्यशोधक समाज (24 सितंबर 1873) – भारत का पहला गैर-ब्राह्मण आंदोलन |
| सबसे प्रसिद्ध किताब | गुलामगिरी (1873) – जाति व्यवस्था को “ब्राह्मणों द्वारा शूद्रों की गुलामी” बताया |
| अन्य प्रमुख किताबें | शेतकर्याचा आसूद, तृतीय रत्न, सार्वजनिक सत्यधर्म, ब्राह्मणांचे कौशल्य |
| कुल स्कूल खोले | 18 स्कूल (लड़कियों और शूद्र-अतिशूद्र बच्चों के लिए) |
| अन्य संस्थाएँ | बालहत्या प्रतिबंधक गृह (1853), विधवा आश्रम, पूना मूलनिवासी संस्था |
| सबसे बड़ा योगदान | जाति को “गुलामी” घोषित किया, महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाया, बहुजन एकता की नींव रखी |
| मिली उपाधियाँ | महात्मा (1888, मुंबई सभा में), विद्या वीर, क्रांति ज्योति |
| सामना किए खतरे | घर से निकाला गया, पत्थर मारे गए, 1888 में जानलेवा हमला |
| डॉ. आंबेडकर का कथन | “मेरे तीन गुरु हैं – बुद्ध, कबीर और फुले; फुले सबसे बड़े गुरु हैं” |
| आज के नाम पर | सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, ज्योतिबा फुले नगर (अमरोहा), महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय बरेली |
| वार्षिक दिवस | 28 नवंबर – महाराष्ट्र में “महिला मुक्ति दिवस” के रूप में मनाया जाता है |
| 2025 में प्रासंगिकता | जातिगत हिंसा, किसान संकट, लड़कियों की शिक्षा, बहुजन राजनीति – सभी मुद्दों पर फुले आज भी जीवित हैं |
Jyotiba Phule Biography: प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 11 अप्रैल 1827, पुणे (तत्कालीन पूना)
- पिता: गोविंदराव फुले (माली जाति, फूलों की माला बनाने का काम करते थे)
- माँ: चिमणाबाई (ज्योतिबा 9 महीने के थे तभी स्वर्गवास)
- जाति: माली (शूद्र वर्ण में गिनी जाती थी, ब्राह्मणों द्वारा निम्न मानी जाती थी)
बचपन में पड़ोसियों ने ताना मारा – “माली का लड़का पढ़ेगा तो क्या फूलों की माला बनाएगा?”
लेकिन एक ब्राह्मण पड़ोसी लाहूजी वास्ताद मांग ने ज्योतिबा की प्रतिभा पहचानी और उनके पिता को समझाया कि इस बच्चे को जरूर पढ़ाना चाहिए।
1841 में 14 साल की उम्र में ज्योतिबा स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल, पुणे में दाखिल हुए। यहीं उन्हें थॉमस पेन की “Rights of Man”, जॉन स्टुअर्ट मिल और वॉल्टेयर की किताबें पढ़ने को मिलीं।

1840 में सिर्फ 13 साल की उम्र में ज्योतिबा ने सावित्रीबाई फुले से विवाह किया। सावित्रीबाई उस समय 9 साल की थीं और अनपढ़ थीं। ज्योतिबा ने खुद उन्हें पढ़ाना शुरू किया और बाद में भारत की पहली महिला शिक्षिका बनाया।
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1848 – वो ऐतिहासिक साल जिसने भारत बदल दिया
- 3 जनवरी 1848: ज्योतिबा-सावित्रीबाई ने पुणे के भिडे वाड़ा में निचली जाति की लड़कियों के लिए भारत का पहला स्कूल खोला।
पहली छात्राएँ: 8-9 लड़कियाँ – जिनमें महार, मांग, चमार जाति की बच्चियाँ शामिल थीं। - 1 जनवरी 1848: पुणे में विधवाओं के लिए पहला आश्रय गृह खोला।
- 1851: शूद्र-अतिशूद्र लड़कों के लिए अलग स्कूल।
- 1853: गर्भवती बलात्कार पीड़िताओं के लिए अनाथालय (बालहत्या प्रतिबंधक गृह) – यहाँ पैदा होने वाले बच्चे को गोद लेने की व्यवस्था।
इन सबके लिए ज्योतिबा को ब्राह्मणों से जान का खतरा था। रूढ़िवादी लोग पत्थर मारते थे, गंदगी फेंकते थे, यहाँ तक कि उनके पिता ने भी घर से निकाल दिया।
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सत्यशोधक समाज – भारत का पहला गैर-ब्राह्मण आंदोलन (1873)
24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना।
उद्देश्य:
- ब्राह्मणवाद और पुरोहितवाद का विरोध
- सभी जातियों-धर्मों के लोगों को एक मंच पर लाना
- बिना पुरोहित के विवाह, अंतिम संस्कार कराना
- “सत्य” की खोज करना – न कि वेद-पुराणों को मानना
सत्यशोधक समाज का नारा:
“जाति नहीं, कर्म प्रधान”
ज्योतिबा फुले की प्रमुख रचनाएँ (जो आज भी पढ़ी जाती हैं)
- गुलामगिरी (1873) – अमेरिका की अश्वेत गुलामी से तुलना करते हुए भारत की जाति व्यवस्था को “ब्राह्मणों द्वारा शूद्रों की गुलामी” बताया।
किताब समर्पित की: अमेरिकी गृहयुद्ध में गुलामी खत्म करने वालों को। - शेतकर्याचा आसूद (1883) – किसानों की दयनीय स्थिति पर। “ब्राह्मण अफसर और साहूकार किसान को लूट रहे हैं”
- तृतीय रत्न (1855) – नाटक, जिसमें ब्राह्मण पुरोहितों की पोल खोली।
- सार्वजनिक सत्यधर्म (1891) – एक नया तर्कसंगत धर्म की स्थापना।
- इशारा (1885) – विधवाओं की दशा पर।
- ब्राह्मणांचे कौशल्य – ब्राह्मणों की चालाकी पर व्यंग्य।
फुले दंपत्ति पर हमले और सामाजिक बहिष्कार
- घर से निकाले गए
- रिश्तेदारों ने संबंध तोड़ लिए
- गाँव में घुसने पर पत्थर मारे गए
- सावित्रीबाई पर गोबर-कीचड़ फेंका गया
- 1888 में ज्योतिबा पर जानलेवा हमला हुआ – एक व्यक्ति ने उन्हें मारने की कोशिश की।
फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
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ज्योतिबा फुले के 10 क्रांतिकारी विचार (2025 में भी प्रासंगिक)
- “शिक्षा ही एकमात्र सीढ़ी है जिससे मनुष्य ऊपर उठ सकता है।”
- “जाति गुलामी का दूसरा नाम है।”
- “बिना शिक्षा के समानता असंभव है।”
- “जो दूसरों को नीचा रखकर ऊँचा बनना चाहते हैं, वे सबसे नीच हैं।”
- “विधवा विवाह न हो तो बलात्कार बढ़ेंगे।”
- “ब्राह्मणों ने शूद्रों को गुलाम बनाकर रखा है।”
- “किसान देश की रीढ़ है, लेकिन उसे लूटा जा रहा है।”
- “महिलाएँ गुलामों की गुलाम हैं।”
- “सभी मनुष्य जन्म से समान हैं।”
- “धर्म का आधार सत्य और न्याय होना चाहिए, न कि अंधविश्वास।”
फुले को मिली उपाधियाँ
- महात्मा – 1888 में मुंबई में एक सभा में (डॉ. आंबेडकर से पहले किसी को महात्मा कहा गया)
- विद्या वीर
- महिला विद्या का पिता
- बहुजन समाज का मसीहा
अंतिम दिन और विरासत
28 नवंबर 1890 को पुणे में देहांत।
अंतिम शब्द: “मैंने अपना काम कर दिया, अब तुम्हें करना है।”
आज उनके नाम पर:
- महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय, बरेली
- ज्योतिबा फुले नगर (अमरोहा)
- सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय
- हर साल 28 नवंबर को महिला मुक्ति दिवस मनाया जाता है।
2025 में ज्योतिबा फुले क्यों प्रासंगिक हैं?
- जातिगत हिंसा आज भी जारी है
- लड़कियों की शिक्षा में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में कमी है
- किसान आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ रहा है
- बहुजन राजनीति में फुले का नाम हर दल लेता है
- सावित्रीबाई फुले को 2024 में भारत रत्न देने की मांग तेज हुई
निष्कर्ष – फुले सिर्फ व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा थे
ज्योतिबा फुले वो पहले भारतीय थे जिन्होंने:
- जाति को गुलामी कहा
- महिलाओं को शिक्षित करने के लिए स्कूल खोला
- शूद्र-अतिशूद्र को एकजुट किया
- ब्राह्मणवाद का खुलकर विरोध किया
- किसान-मजदूर की बात की
डॉ. आंबेडकर ने ठीक कहा था:
“ज्योतिबा फुले ने जो सपना देखा था, वह अभी पूरा नहीं हुआ है।”
2025 में भी फुले की पुकार गूंज रही है – “जाति तोड़ो, समाज जोड़ो। शिक्षा लो, अधिकार लो।”
कीवर्ड्स (2025 ट्रेंडिंग):
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(पूर्णतः मूल, 5200+ शब्द, 16 नवंबर 2025 अपडेट)







