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सम्राट अशोक की जीवनी: प्राम्भिक जीवन, कलिंग युद्ध, बौद्ध धर्म और प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था और मूल्यांकन | Emperor Ashoka Biography in Hindi

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सम्राट अशोक की जीवनी: प्राम्भिक जीवन, कलिंग युद्ध, बौद्ध धर्म और प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था और मूल्यांकन | Emperor Ashoka Biography in Hindi
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सम्राट अशोक, प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के एक महानतम शासक थे। वह 268 ईसा पूर्व में सिंहासन पर बैठे और उनका शासन लगभग 40 वर्षों तक चला। अशोक को प्राचीन भारत के महानतम राजाओं में से एक और विश्व इतिहास में एक उल्लेखनीय व्यक्ति माना जाता है। आज इस लेख Emperor Ashoka Biography in Hindi में हम सम्राट अशोक की जीवनी: प्राम्भिक जीवन, कलिंग युद्ध, बौद्ध धर्म और प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था और मूल्यांकन करेंगे।

सम्राट अशोक की जीवनी: प्राम्भिक जीवन, कलिंग युद्ध, बौद्ध धर्म और प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था और मूल्यांकन | Emperor Ashoka Biography in Hindi

सम्राट अशोक की जीवनी (Ashoka Biography in Hindi)

नामसम्राट अशोक
जन्म304 ईसा पूर्व
जन्मस्थानपाटलिपुत्र, पटना
पिता का नामबिन्दुसार
माता का नामसुभद्रांगी (रानी धर्मा)
शासन काल269 ई.पू. से 232 ई.पू
राज्याभिषेक272 ई.पू
पूर्ववर्तीबिंदुसार
उत्तरवर्ती दशरथ मौर्य
पत्नियों के नामदेवी
कारुवाकी
पद्मावती
तिष्यरक्षिता
पुत्र-पुत्री के नाममहेंद्र
संघमित्रा
चैती
कुणाल
चारुमति
राजवंशमौर्य राजवंश
मृत्यु232 ईसा पूर्व में
मृत्यु का स्थानपाटलिपुत्र, वर्तमान पटना, बिहार
समाधिपाटलिपुत्र

सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने, उसकी शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए उसके साम्राज्य में स्तंभों और शिलालेखों के निर्माण के व्यापक प्रयास देखे गए। उनकी धम्म की नीति में उनकी प्रजा के लाभ के लिए अस्पतालों, पशु चिकित्सा अस्पतालों की स्थापना और अन्य कल्याणकारी उपाय भी शामिल थे।

एक दूरदर्शी शासक के रूप में अशोक की विरासत जिसने नैतिक शासन, सामाजिक कल्याण और धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन दिया, ने भारत और विश्व पर दीघर्कालीन स्थायी प्रभाव छोड़ा है। उनका बौद्ध धर्म में परिवर्तन और उसके सिद्धांतों को दुनिया में फैलाने के उनके प्रयास आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं।

बिंदुसार की मृत्यु के पश्चात उसका सुयोग्य पुत्र अशोक महान विशाल मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। अशोक विश्व इतिहास के उन महानतम सम्राटों में अपना सर्वोपरि स्थान रखता है, जिन्होंने अपने युग पर अपने व्यक्तित्व की छाप लगा दी है तथा भावी पीढ़ियाँ जिनका नाम अत्यंत श्रद्धा एवं कृतज्ञता के साथ स्मरण करती हैं।

निःसन्देह उनका शासनकाल भारतीय इतिहास के उज्जवलतम पृष्ठ का प्रतिनिधित्व करता है। अशोक के शिलालेखों में उसके शासन के इतिहास के मुख्य चरणों तथा उसके क्रियाकलापों के पीछे अंतर्निहित उद्देश्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख हुआ है। उज्जैनी और तक्षशिला में राज्यपाल के रूप में कार्य करने के उपरांत अशोक बिंदुसार के बाद मौर्य सिंहासन पर आरूढ़ हुआ।

अशोक का प्रारंभिक जीवन (Early Life Of King Ashoka)

सम्राट अशोक के प्रारंभिक जीवन के विषय में हमारे पास केवल पारंपरिक विवरण ही उपलब्ध हैं। यद्यपि अशोक के बहुत से अभिलेख प्राप्त हुए हैं तथापि हमें उसके प्रारंभिक जीवन के लिए मुख्यत: बौद्ध साक्ष्यों-दिव्यदान तथा सिंहली अनुश्रुतियों पर ही निर्भर करना पड़ता है। अशोक, जिसे अशोक महान के नाम से भी जाना जाता है, जिसने 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक मौर्य साम्राज्य पर शासन किया था।

उनका जन्म 304 ईसा पूर्व में सम्राट बिन्दुसार और रानी सुभद्रांगी के पुत्र के रूप में हुआ था, और उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन मौर्य साम्राज्य के शाही दरबार में बिताया, जो प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था।

अशोक का प्रारंभिक जीवन उसकी महत्वाकांक्षा और शक्ति की इच्छा के रूप में याद किया जाता था। उन्हें क्रूर और महत्वाकांक्षी के रूप में जाना जाता था, जो मौर्य साम्राज्य के साम्राज्य विस्तार करने के लिए अधिकांशतः युद्धों में उलझे रहते थे। उन्हें अपने सैन्य कौशल और नेतृत्व कौशल के लिए भी जाना जाता था, जिसका प्रदर्शन उन्होंने विभिन्न अभियानों और विजय अभियानों में किया।

अशोक की माता का नाम 

बौद्ध साहित्य में अशोक की माता का नाम जनपद कल्याणी या सुभद्रांगी था। शासक बनने से पहले राजकुमार के रूप में अशोक ने उज्जैनी तथा तक्षशिला के राज्य प्रमुख ( राज्यपाल) पद पर कार्य किया था।

अशोक की पत्नियां 

  • उज्जैन में उसके शासन के दौरान उसका विदिशा के एक व्यापारी की पुत्री से प्रेम हो गया जिसका उल्लेख देवी अथवा विदिशा महादेवी  के रूप में मिलता है। अशोक ने उससे विवाह कर लिया।
  • अशोक की दो अन्य सुप्रसिद्ध रानियाँ असंधिमित्रा तथा कारूवाकी थीं। इसके आलावा पद्मावती और तिष्यरक्षिता  का भी विवरण आता है। 
  • दूसरी रानी कारूवाकी का उल्लेख इलाहाबाद के स्तम्भ लेख पर उत्कीर्ण रानी की राजाज्ञा में मिलता है, जिसमें उसके धार्मिक तथा पुण्यार्थ दान का उल्लेख है। उसका वर्णन राजकुमार तीवर की माता के रूप में हुआ है। 

🔴  तीवर अशोक का एकमात्र पुत्र है जिसका उल्लेख अशोक के शिलालेखों में मिलता है।

अशोक का राज्यरोहण

अशोक अपने पिता (बिंदुसार ) के शासनकाल में अवन्ति ( उज्जयिनी ) का उपराजा (राज्यपाल ) था। सिंहली अनुश्रुतियों ( महावंश तथा दिव्यदान ) के अनुसार अशोक ने सिंहासन प्राप्त करने के लिए अपने 99 भाइयों की हत्या की। परन्तु सिंहली अनुश्रुतियों की इन कथाओं पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

अशोक के पाँचवें अभिलेख में उसके जीवित भाइयों के परिवार का उल्लेख मिलता है। अभिलेखीय साक्ष्यों से यह भी ज्ञात हाेता है कि अशोक के शासन के तेरहवें वर्ष में उसके अनेक भाई तथा बहन जीवित थे जो साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में निवास करते थे।

सम्भवतः उत्तराधिकार के युद्ध में उसे अपने भाईयों से युद्ध करना पड़ा हो, और अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में चार वर्ष का समय लगा। क्योंकि 269 ईसा पूर्व में विधिवत् उसका राज्याभिषेक हुआ। उसके अभिलेखों में आभिषेक के समय से ही राज्यगणना की गई है।

🔴 मास्की तथा गूर्जरा के लेखों में अशोक का नाम ‘अशोक’ मिलता है।  

कलिंग युद्ध तथा उसके परिणाम

🔴  अपने शासन के आठवें वर्ष ( 261 ईसा पूर्व ) में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया।

🔴  कलिंग का प्राचीन राज्य वर्तमान दाक्षिणी उड़ीसा में स्थित था।

🔴  अशोक के तेरहवें शिलालेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है।

🔴  कलिंग युद्ध में डेढ़ लाख मनुष्यों का अपहरण (युद्ध बन्दी ) हुआ।

🔴  एक लाख लोगों की हत्या की गई तथा कई गुना लोग घायल हुए।

🔴  कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध नीति को त्याग कर धम्म नीति को अपना लिया।

🔴  अशोक ने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया।

🔴  इसके बाद एक नये युग का प्रारम्भ हुआ और यह युग था– शान्ति, अहिंसा, सामाजिक प्रगति तथा धम्म यात्राओं का।

अशोक और बौद्ध धर्म

सम्राट अशोक अपने तेरहवें शिलालेख में राजकीय घोषणा करता है कि तिवेध्रमाशिलन ध्रम कमत ध्रमनुशस्ति देवन-पियस……….।‘ (इसके पश्चात् देवताओं का प्रिय धम्म की सोत्साह परिरक्षा, सोत्साह अभिलाषा एवं सोत्साह शिक्षा करता है?”) ।

🔴  प्रथम लघु शिलालेख में हम जानकारी पाते हैं कि अशोक बौद्ध बनने के पश्चात् ढाई वर्ष तक वह साधारण उपासक था।

🔴  अपने अभिषेक के दसवें वर्ष अशोक ने सम्बोधि ( बोधगया ) की यात्रा की।

🔴  बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेने के पश्चात अशोक के जीवन में अनेक परिवर्तन उत्पन्न हो गए उसने अहिंसा तथा सदाचार पर चलना प्रारंभ कर दिया, उसने मांस-भक्षण त्याग दिया तथा राजकीय भोजनालय में मारे जाने वाले पशुओं की संख्या कम कर दी गई। आखेट तथा विहार यात्रा रोक दी गयीं और उनके स्थान पर धम्म यात्राओं का प्रारंभ हुआ।

🔴  बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात अशोक ने सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की।

🔴  अपने अभिषेक के बीसवें वर्ष अशोक ने लुंबिनी ग्राम की यात्रा की। उसने वहां पत्थर की सुदृढ़ दीवार बनवाई तथा शिला-स्तंभ खड़ा किया। क्योंकि वहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था।।

अतः लुंबिनी ग्राम को लगभग कर मुक्त घोषित किया गया तथा कर के रूप में मात्र 1/8 भाग लेने की घोषणा की गई (रूमिन्देई का लघु स्तम्भ लेख में इसका विवरण मिलता है ) ।

🔴 अशोक ने नेपाल की तराई में स्थित निग्लीवा में कनकमुनि ( एक पौराणिक बुद्ध ) के स्तूप को संबर्द्धित एवं द्विगुणित करवाया। बौद्ध अनुश्रुतियां उसे 84000 स्तूपों के निर्माता के रूप में स्मरण करती हैं।

🔴  सांची के लघु स्तंभ लेख में वह ( अशोक ) बौद्ध संघ में फूट डालने वाले भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को चेतावनी देता है–जो कोई भिक्षु या भिक्षुणी संघ को भंग करेगा वह श्वेत वस्त्र पहनाकर अयोग्य स्थान पर रखा जाएगा। इस प्रकार यह आदेश  भिक्षु संघ और भिक्षुणी संघ में सूचित किया जाना चाहिए क्योंकि मेरी इच्छा है कि संघ समग्र होकर चिरस्थायी हो जाए (ये संघ भखति भिखु या भिखुनि वा ओदातानिदुसानि सनंधापयितु अनावासमि वासापेतविये । इछा हि मे किंति संघे समगे चिंलथितीके सियाति । )

🔴  अशोक ने अपने अभिषेक के 18 में वर्ष लंका के राजा के पास भेजे गए एक संदेश में बताया था कि वह शाक्यपुत्र ( गौतम बुद्घ ) के धर्म का एक साधारण उपासक बन गया है।

अशोक की धार्मिक नीति

यद्यपि अशोक ने व्यक्तिगत रूप से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा पूर्णरूपेण आश्वस्त हो गया कि जो कुछ भगवान बुद्ध ने कहा है वह शब्दशः सत्य है, तथापि अपने विशाल साम्राज्य में उसने कहीं भी किसी दूसरे धर्म अथवा संप्रदाय के प्रति अनादर अथवा असहिष्णुता प्रदर्शित नहीं की।

उसके अभिलेख इस बात के साक्षी हैं कि अपने राज्य के विभिन्न मतों तथा संप्रदायों के प्रति वह सदैव उदार एवं सहनशील बना रहा। उसने बलपूर्वक किसी को भी अपने मत में दीक्षित करने का प्रयास नहीं किया।

🔴 सातवें शिलालेख में वह अपनी धार्मिक इच्छा व्यक्त करते हुए बताता है कि सब मतों के व्यक्ति सब स्थानों पर रह सके क्योंकि वे सभी आत्म संयम एवं हृदय की पवित्रता चाहते हैं ( देवानपियो पियदासि  राजा सर्वत इछति सवे पासंडा बसेयु। सवे ते सयमं चा भावसुधिं च इछति । ) ।

🔴 12 वें शिलालेख में अशोक ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा है—–‘ मनुष्य को अपने धर्म का आदर और दूसरे धर्म की अकारण निंदा नहीं करनी चाहिए। एक ना एक कारण से अन्य धर्मों का आदर करना चाहिए ऐसा करने पर मनुष्य अपने संप्रदाय की वृद्धि करता है तथा दूसरे के संप्रदाय का उपकार करता है।

इसके विपरीत करता हुआ वह अपने संप्रदाय को क्षीण करता है तथा दूसरे के संप्रदाय का अपकार करता है। जो कोई अपने संप्रदाय के प्रति भक्ति और उसकी उन्नति की लालसा से दूसरे के धर्म की निंदा करता है वह वस्तुतः आपने संप्रदाय की बहुत बड़ी हानि करता है। लोग एक दूसरे के धम्म को सुनें। इससे सभी संप्रदाय बहुश्रुत ( अधिक ज्ञान वाले ) होंगे तथा संसार का कल्यांण होगा।’

🔴 अशोक ने बराबर ( गया जिला ) पहाड़ी पर आजीवक संप्रदाय के सन्यासियों के निवास के लिए कुछ गुफाएं निर्मित करवाई थी।

अशोक का धम्म

सम्राट अशोक ने अपने राज्य में निवास करने वाली जनता के नैतिक उत्थान के लिए एक संहिता प्रस्तुत की जिसे उसके अभिलेखों में धम्म कहा गया है। यह धम्म शब्द संस्कृत के धर्म का ही प्राकृत रूपांतर है। परंतु अशोक के लिए इस शब्द का विशेष महत्व था। वस्तुतः यदि देखा जाए तो यही धम्म तथा उसका प्रचार अशोक के विश्व इतिहास  में प्रसिद्ध होने का सर्वप्रमुख कारण है।

द्वितीय स्तंभ-लेख में अशोक ने खुद से ही प्रश्न किया है कि – धर्म क्या है? ( ‘कियं चु धम्मे?’)। इसका उत्तर वह दूसरे एवं सातवें स्तंभ-लेखों में स्वयं देता है। वह हमें उन गुणों को गिनाता है जो धम्म  का निर्माण करते हैं। इन्हें हम इस प्रकार रख सकते हैं—‘अपासिनवेबहुकयानेदयादानेसचेसोचयेमाददेसाधवे’  च। अर्थात

1- अपासिनवे- अल्प पाप।

2-बहुकयाने- अत्याधिक कल्याण।

3-दया।

4 दान।

5-सत्यवादिता।

6-सोचये- पावित्रता।

7-मादवे- मृदुता।

8-साधवे- साधुता।

इन गुणों को व्यवहार में लाने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक बताई गई हैं—–

1- अनारम्भो प्राणानाम् ( प्राणियों की हत्या न करना)।

2- आविहिंसा भूतानाम् (प्राणियों को क्षति न पहुंचाना )।

3- मातरि-पितरी सुस्रुसा (माता- पिता की सेवा करना )।

4- थेर सुस्रुसा ( वृद्धों की सेवा करना )।

5- गुरुणाम अपचिति ( गुरुजनों का सम्मान करना )।

6- मित संस्तुत नाटिकाना बहमण-समणानां दानं संपटिपति (मित्रों, परिचितों, ब्राहम्णों तथा श्रमणों के साथ सच्छा व्यवहार करना )।

7- दास-भतकम्हि सम्य प्रतिपति ( दासों एवं नौकरों के साथ अच्छा बर्ताव करना )।

8- अप-व्ययता (अल्प व्यय )।

9- अपभाण्डता (अल्प संचय )।

यह धम्म के व्यवहारिक पक्ष हैं। इसके अतिरिक्त अशोक के धम्म का एक निषेधात्मक पक्ष भी है। जिसके अंतर्गत कुछ दुर्गुणों की गणना की गई है। ये दुर्गुण व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं। इन्हें ‘आसिनव’ शब्द से व्यक्त किया गया है। आसिनव को अशोक तीसरे स्तंभ लेख में पाप कहता है। मनुष्य आसिनव के कारण सद्गुणों से विचलित हो जाता है। उसके अनुसार निम्नलिखित दुर्गुणों से आसिनव हो जाते हैं।

1- चंडिये अर्थात प्रचण्डता।

2- निठुलिये अर्थात निष्ठुरता।

3- कोधे अर्थात क्रोध।

4- मनो अर्थात घमण्ड।

4- इस्सा अर्थात ईर्ष्या।

 इस प्रकार धर्म का पूर्ण परिपालन तभी संभव हो सकता है जब मनुष्य उसके गुणों के साथ ही साथ इन विकारों से भी अपने को मुक्त रखे।  इसके लिए यह भी आवश्यक है कि मनुष्य सदा आत्म- निरीक्षण करता रहे, ताकि उसे अधःपतन के मार्ग में अग्रसर करने वाली बुराइयों का ज्ञान हो सके। तभी धर्म की भावना का विकास हो सकता है। धर्म के मार्ग का अनुसरण करने वाला व्यक्ति स्वर्ग की प्राप्ति करता है और उसे इहलोक तथा परलोक दोनों में पुण्य की प्राप्ति होती है।

प्रांतीय प्रशासन के केंद्र-  

अशोक के पितामहा चंद्रगुप्त के समय से ही पाटलिपुत्र (पटना) राजधानी थी। कौशांबी ( इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के पास) , उज्जैनी ( मध्य प्रदेश), सुवर्णागिरी ( शायद यह एर्रगुडी आंध्र प्रदेश के समीप स्थित आधुनिक जौनागिरी जिसका उपमंडल इसिला ( सिद्धपुर) था। कलिंग उड़ीसा में तोसाली ( धौली) और समापा (जौगढ़ के पास) प्रांतीय प्रशासन के महत्वपूर्ण केंद्र थे। जिनका स्पष्ट उल्लेख मिलता है कुछ अन्य केंद्र भी रहे होंगे।150 ईसा पूर्व के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में यवन राजा ‘तुषास्फ’  का सौराष्ट्र में अशोक के प्रांतीय गवर्नर के रूप में उल्लेख है।

पृथक कलिंग शिलालेखों में तोसाली और उज्जैनी के प्रांत प्रमुखों को कुमार कहा गया है। ब्रम्हगिरी-सिद्धपुर के शिलालेखों में स्वर्ण गिरी के प्रांत प्रमुख को आर्यपुत्र के नाम से संबोधित किया गया है। तोसाली, सुवर्णगिरी, उज्जैनी और तक्षशिला प्रत्येक राजपरिवार के राजकुमार के अधीन थे।

अशोक के शिलालेखों में उल्लिखित प्रमुख अधिकारी—

1- महामात्र– महामात्र और धम महामात्र शब्द अधिकारियों के पद क्रम में निश्चित ही उच्च स्तर का सूचक था। उन्हें साम्राज्य के प्रत्येक बड़े नगर तथा जिले में नियुक्त किया जाता था। शिलालेखों में पाटलिपुत्र, कौशांबी, तोसाली समापा, सुवर्णागिरी तथा इसिला के महामात्र का उल्लेख मिलता है। इनमें से प्रत्येक महामात्र को प्रदान की गई अतिविशिष्ट उपाधियों से ही उसके कर्तव्यों की जानकारी हो जाती है।

🔴  अशोक ने अपने राज्य अभिषेक के 13 वर्ष के पश्चात धम महामात्रों के पद का सृजन किया था इसका उल्लेख पांचवें शिलालेख में हैं।

🔴  धम्म महामात्रों का कर्तव्य देश में सभी संप्रदायों के बीच धम्म प्रवर्तन करना तथा उसको बढ़ावा देना और धम्म में निरत लोगों के सुख-शांति का संवर्धन करना था।

🔴 अंत महामात्र सीमाओं पर किए जाने वाले अभियानों के अध्यक्ष होते थे जो सीमाओं पर तथा अन्यत्र जनजातियों में धम्म का प्रचार करते थे।

2-इतिझक महामात्र ( स्त्री-अध्यक्ष महामात्र )-  जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि वे स्त्रियों के कल्याण से संबंधित अधिकारी थे। लेकिन उनके कर्तव्यों का विस्तृत विवरण अभी तक नहीं प्राप्त हुआ है।

3- राजुक और राष्ट्रिय (रथिक )  तीसरे वृहद् शिलालेख तथा प्रथम एवं चतुर्थ स्तंभ लेखों में राजुक या रज्जुक का उल्लेख मिलता है। चतुर्थ स्तंभ लेख में राजुकों का उन अधिकारियों के रूप में उल्लेख किया गया जिन के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत लाखों लोग निवास करते थे। इनका कार्य जनपद के कल्याण का संवर्धन करना था। अशोक ने राजुकों को दंड एवं पुरस्कार प्रदान करने की स्वतन्त्रता भी दी थी। दंड देने के संदर्भ से यह पता चलता है कि राजुक न्यायिक कार्य भी करते थे।

4-युक्त– तृतीय वृहद् शिलालेख में युक्तों को अधीनस्थ अधिकारी के रूप में उल्लेखित किया गया है तथा उन्हें संभवत सचिवालय संबन्धी एवं लेखा-कार्य सौंपा गया था।

5- प्रतिवेदक-  चतुर्थ वृहद् शिलालेख एवं अन्य शिलालेखों में प्रतिवेदक नामक जिन राज्य कर्मचारियों का उल्लेख किया गया है उनका कार्य राजा को शासन और जनता संबंधी सभी बातों की सूचनाएं प्रदान करते रहना था। उनकी सम्राट के पास सीधी पहुंचती है।

6- पुलिस-  अशोक के शिलालेखों मैं राजुकों या रज्जुकों के साथ पुलिस (अर्थात पुरुषों ) का उल्लेख है। जो राजुकों की भांति सम्राट के आदेशों का पालन करते हैं।

7-वचभूमिक–  गौशालाओं के निरीक्षक होते थे जिनका कार्य पशुधन की देखरेख करना था।

8-नगर व्यावहारिक (नगल-व्यूहालिक )-  नगर व्यवहारिक प्रशासन व्यवस्था की देखरेख करने के साथ-साथ न्यायाधिकारियों के रूप में भी कार्य करते थे। अशोक ने इन अधिकारियों को अपने शिलालेखों में निर्देश देते हुए कहा कि वे हर समय यह प्रयास करें कि अकारण किसी को बंधन और परिक्लेश का दंड ने मिले।

🔴  कल्हण अशोक को कश्मीर का प्रथम मौर्य शासक बताता है।

🔴  अशोक ने कश्मीर में श्रीनगर तथा नेपाल में देवीपाटन नामक दो नगरों की स्थापना की।

सम्राट अशोक का मूल्यांकन

वह 268 ईसा पूर्व में सिंहासन पर चढ़ा और बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने, सामाजिक कल्याण की वकालत करने और धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा की नीतियों को लागू करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। यहां उनकी उपलब्धियों और विरासत के आधार पर सम्राट अशोक का मूल्यांकन किया गया है:

एक शासक के रूप में उपलब्धियां: अशोक के शासनकाल में महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज की गईं। उन्होंने मौर्य साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तार किया, जिसमें आधुनिक भारत का अधिकांश भाग शामिल था, और कुशल शासन के साथ एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की। उन्होंने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए नीतियों को भी लागू किया, सड़कों और विश्राम गृहों जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण किया और मनुष्यों और जानवरों के कल्याण के लिए अस्पतालों और पशु चिकित्सा क्लीनिकों का एक नेटवर्क स्थापित किया।

बौद्ध धर्म का प्रचार – अशोक ने कलिंग की खूनी विजय के बाद बौद्ध धर्म ग्रहण किया, जिसका उस पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह बौद्ध धर्म का संरक्षक बन गया और न केवल अपने साम्राज्य में बल्कि उसकी सीमाओं से परे भी इसकी शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने बौद्ध मिशनरियों को श्रीलंका, नेपाल और मध्य एशिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में भेजा, जिससे बौद्ध धर्म के प्रचार और अंततः दुनिया के अन्य हिस्सों में फैलने में मदद मिली।

धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा: अशोक की धम्म की नीति, बौद्ध सिद्धांतों पर आधारित आचार संहिता, धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और जीवन के एक मार्ग के रूप में अहिंसा पर बल दिया। उन्होंने अपने सभी विषयों को उनकी आस्था की परवाह किए बिना धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की और विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच सक्रिय रूप से सद्भाव को बढ़ावा दिया। उन्होंने पशु बलि जैसी क्रूर प्रथाओं को भी समाप्त कर दिया और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया को बढ़ावा दिया।

रॉक एंड पिलर एडिक्ट्स: अशोक ने अपने रॉक एंड पिलर एडिक्ट्स के माध्यम से एक स्थायी विरासत छोड़ी, जो पूरे साम्राज्य में चट्टानों और स्तंभों पर खुदा हुआ था। ब्राह्मी लिपि में लिखे गए इन शिलालेखों ने उनकी नीतियों, सिद्धांतों और शिक्षाओं का दस्तावेजीकरण किया और उनके शासन, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और बौद्ध धर्म के प्रचार में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान की। इन शिलालेखों को राज्य नीति के लिखित अभिलेखों के शुरुआती उदाहरणों में से एक माना जाता है और अशोक के शासनकाल की हमारी समझ में योगदान दिया है।

भारतीय इतिहास और संस्कृति पर प्रभाव: अशोक की नीतियों और शिक्षाओं का भारतीय इतिहास और संस्कृति पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा। बौद्ध धर्म के उनके प्रचार ने बौद्ध धर्म को भारत और उसके बाहर एक प्रमुख धर्म के रूप में स्थापित करने में मदद की, जिससे एशिया के अन्य हिस्सों में बौद्ध धर्म का प्रसार प्रभावित हुआ। सामाजिक कल्याण और नैतिक शासन पर उनके जोर ने भविष्य के भारतीय शासकों के लिए एक मिसाल कायम की और एक नैतिक और न्यायपूर्ण समाज के विकास में योगदान दिया।

विरासत: एक दूरदर्शी और दयालु शासक के रूप में अशोक की विरासत को इतिहास में परोपकारी शासन के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। धार्मिक सहिष्णुता, अहिंसा और सामाजिक कल्याण के उनके सिद्धांत दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करते हैं, और उनके रॉक एंड पिलर एडिक्ट्स उनकी बुद्धि और दृष्टि के लिए एक वसीयतनामा के रूप में काम करते हैं।

सम्राट अशोक को भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक माना जाता है, जो अपनी दूरगामी उपलब्धियों, बौद्ध धर्म के प्रचार, धार्मिक सहिष्णुता और अहिंसा की नीतियों और स्थायी विरासत के लिए जाने जाते हैं, जिसने एक विरासत छोड़ी है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर अमिट छाप

निष्कर्ष 

इस प्रकार इस ब्लॉग में हमने भारत के महान सम्राट अशोक के विषय में जाना। अशोक की नीतियों ने भारत को विश्व इतिहास में विशिष्ट पहचान दिलाई। यह अशोक ही था जिसने बौद्ध धर्म को भारत के बाहर पहचान दिलाई। उसके सार्वजानिक कार्यों ने जनता को अनेक सुविधाएं प्रदान की।

सम्राट अशोक के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs

प्रश्न- सम्राट अशोक के पिता का क्या नाम था?

उत्तर- सम्राट अशोक के पिता का नाम बिन्दुसार था।

प्रश्न- सम्राट अशोक की माता का क्या नाम था?

उत्तर- अशोक की माता का नाम जनपद कल्याणी या सुभद्रांगी था

प्रश्न- अशोक ने कब से कब तक शासन किया?

उत्तर- सम्राट अशोक ने 269 ई.पू. से 232 ई.पू तक शासन किया।

प्रश्न- कलिंग का युद्ध कब हुआ?

उत्तर- एकलिंग का युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के आठवें वर्ष 261 ईसा पूर्व में हुआ।

प्रश्न- अशोक शासक बनने से पहले कहाँ का राज्यपाल था?

उत्तर- शासक बनने से पूर्व अशोक अवन्ति ( उज्जयिनी ) और तक्षशिला का राज्यपाल था।

प्रश्न- अशोक के दादा का क्या नाम था?

उत्तर- सम्राट अशोक के दादा का नाम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य था।

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