आप और हम सिर्फ कल्पना की कर सकते हैं कि आज से लगभग पांच हज़ार साल पहले भारत में एक ऐसी सभ्यता विकसित थी जिसका मुक़ाबला हम आज भी नहीं कर सकते। भले ही आज हम कितने भी तकनीकी रूप से सक्षम हैं लेकिन सिंधु सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाता है में मिले नगरीय व्यवस्था, क्षेत्रफल, ग्रिड पद्धति आदि के मामले में बहुत पीछे हैं। इस लेख के माध्यम से हम सिंधु सभ्यता का क्षेत्रफल, विशेषताएं, सबसे बड़ा स्थल, ग्रिड पद्धति, पतन के कारण जानेंगे। इस लेख Indus Civilization History in Hindi के द्वारा आपको सम्पूर्ण जानकारी दी जाएगी। इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

सिंधु सभ्यता का इतिहास (Indus Civilization History)
भारत और वर्तमान पाकिस्तान में फली-फूली सिंधु घाटी सभ्यता (2600ई.पू. से 1900 ई.पू.) विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। इसे सिंधु सभ्यता इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका उद्भव और विकास सिंधु नदी घाटी क्षेत्र में हुआ। सिंधु सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता, सिंधु-सरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है। इस सभ्यता का प्रारम्भिक उद्भव और विस्तार पाकिस्तान स्थित सिंधु नदी क्षेत्र था। इसके बाद यह सभ्यता भारत और पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों सहित दक्षिण एशिया में पनपी। इस सभ्यता के प्रमुख केंद्रों में हड्डपा, मोहनजोदड़ो, लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा और राखीगढ़ी आदि प्रमुख हैं।
इस सभ्यता का अब तक का सबसे प्राचीन स्थल भारत के हरियाणा राज्य का भिरड़ाणा (7500- 3300 ईसा पूर्व) को 2014 में खोजा गया, जिसे इस सभ्यता का सबसे प्राचीन स्थल माना गया है। यह स्थल इतिहासकारों के अनुसार 7500 से 6500 ईसा पूर्व के मध्य बसा। इस सभ्यता की खोज ब्रिटिश काल में हुई और अनुमान के तौर पर इस सभ्यता को कई बार उजड़ा और बसा बताया गया है।
सिंधु सभ्यता का पहली बार कब पता चला? (When was the Indus Civilization discovered for the first time)
सिंधु सभ्यता का पता लोगों को प्राचीन काल में ही चल गया था मगर वे उसे पहचानने और समझने में असफल रहे। 7वीं शताब्दी में पंजाब प्रान्त में जब लोग अपने घर बनाने के लिए ईंटों पत्थरों की खोज में निकले तो उन्हें एक ऊँचे टीले पर बनी-बनाई ईंटे मिली तो उन्होंने इसे भगवान का चमत्कार कहा और उन ईंटों से अपने घर बनाये। समय के साथ यह सभ्यता और ज्यादा नीचे चली गई। 1826 में ब्रिटिश पुरातत्ववेत्ता चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस प्राचीन सभ्यता की पहचान की।
इसके बाद जब कराची और लाहौर के मध्य रेलवे लाइन बिछाने के लिए 1856 ईस्वी में कनिंघम द्वारा सर्वेक्षण का कार्य किया गया तब बर्टन भाइयों (जान बर्टन और विलियम बर्टन) द्वारा एक प्राचीन सभ्यता होने के प्रमाण सरकार को दिए।
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भारत में प्राचीन सभ्यता के प्रमाण मिलते ही ब्रिटिश सरकार हरकत में आई और उसने 1861 ईस्वी में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गई और एलेक्जेण्डर कनिंघम को उसका प्रमुख बनाया गया। 1902 ईस्वी में लार्ड कर्जन ने सर जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक (Director General) नियुक्त किया गया। भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी जॉन फेथफुल फ्लीट ने ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी और एपिग्राफिया इंडिका के लिए लेखों में सिंधु सभ्यता से संबंधित लेख लिखा।
इतिहासकार | खुदाई स्थल |
दयाराम साहनी | 1921 में हड़प्पा की खुदाई कराई |
राखलदास बेनर्जी | 1922 में मोहनजोदड़ो की खुदाई कराई |
विश्व की प्राचीन नगरीय सभ्यता को सिंधु घाटी में विकसित होने के कारण सिंधु सभ्यता कहा गया और इसकी पहचान सबसे पहले हड़प्पा स्थल से हुई इसलिए इसे हड़प्पा सभय्ता कहा जाता है। भारत में यह प्रथम नगरीकरण था। चूँकि इस सभय्ता के लोग कांसा धातु का बहुतायात प्रयोग करते थे इसलिए इसे कांस्य सभय्ता भी कहा जाता है। इस सभ्यता के अब तक 1400 स्थलों की पहचान हो चुकी है जिसमें 925 से अधिक भारत में मौजूद हैं। इस सभ्यता के 80% से अधिक स्थल सिंधु और उसकी सहायक नदियों के किनारे ही पाए गए हैं। मगर यह दुखद है कि सरकार की उदासीनता के कारण अब तक मात्र 3% स्थलों की ही खुदाई हुई है।
क्षेत्रफल के अनुसार सिंधु सभ्यता के 10 सबसे बड़े नगर
नगर का नाम | स्थल (वर्तमान स्थान) | क्षेत्रफल (लगभग) | नदी क्षेत्र |
---|---|---|---|
मोहनजोदड़ो | सिंध, पाकिस्तान | 250 हेक्टेयर | सिंधु नदी |
हड़प्पा | पंजाब, पाकिस्तान | 150 हेक्टेयर | रावी नदी |
धोलावीरा | गुजरात, भारत | 120 हेक्टेयर | लूनी नदी |
गणवारीवाला | पंजाब, पाकिस्तान | 80 हेक्टेयर | हकरा नदी (सूखी नदी) |
राखीगढ़ी | हरियाणा, भारत | 80 हेक्टेयर | घग्गर-हकरा नदी |
लोथल | गुजरात, भारत | 7 हेक्टेयर | भोगवा नदी |
कालीबंगा | राजस्थान, भारत | 11 हेक्टेयर | घग्गर नदी |
सुरकोटदा | गुजरात, भारत | 2 हेक्टेयर | साबरमती नदी |
बनवाली | हरियाणा, भारत | 5 हेक्टेयर | घग्गर नदी |
रोपड़ | पंजाब, भारत | 11 हेक्टेयर | सतलज नदी |
सिंधु सभ्यता का नामकरण (Naming of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है और इसका विस्तार व्यापक था। सिंधु नदी जिसे यूनानियों ने इण्डस कहा और इसी सिंधु नदी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को आगे चलकर अरब के लोगों ने हिन्दू कहा। इतिहसकारों में इस सभ्यता के नामकरण को लेकर मतभेद उभरे हैं। भले ही इस सभ्यता के प्राथमिक नगर सिंधु और उसकी सहायक नदियों के किनारे बेस लेकिन उसके बाहर रोपड़, लोथल, कालीबंगा, रंगपुर आदि क्षेत्र भारत की नदियों के किनारे बसे।
अतः अधिकांश इतिहासकार इस बात पर सहमति प्रदान करते हैं कि इस सभ्यता का नाम “हड़प्पा सभ्यता” अधिक उचित और स्वीकार्य है। इसके प्राथमिक प्रसिद्ध नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो हैं। वास्तव में सिंधु नदी का नाम अन्दुस है जिस पर भारतीय पुरातत्व विभाग के महार्निदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।
स्थल का नाम | खोज का वर्ष | उत्खनन कर्ता | नदी का नाम | वर्तमान स्थिति |
---|---|---|---|---|
हड़प्पा | 1921 | दयाराम साहनी | रावी | मोंटगोमरी जिला, पंजाब (पाकिस्तान) |
मोहनजोदड़ो | 1922 | राखाल दास बनर्जी | सिंधु | लरकाना जिला, सिंध (पाकिस्तान) |
सुत्कागेंडोर | 1927 | ऑरेल स्टीन, जॉर्ज डेल्स | दाश्त | बलूचिस्तान (पाकिस्तान) |
चन्हुदड़ो | 1931 | एम. जे. मजूमदार | सिंधु | सिंध प्रांत (पाकिस्तान) |
कालीबंगा | 1953 | बी. बी. लाल, बी. के. थापर | घग्गर | राजस्थान (भारत) |
कोटदीजी | 1953 | फ़ज़ल अहमद | सिंधु | सिंध प्रांत (पाकिस्तान) |
रंगपुर | 1953-54 | रंगनाथ राव | मादर | गुजरात (भारत) |
रोपड़ | 1953-56 | यज्ञदत्त शर्मा | सतलुज | पंजाब (भारत) |
लोथल | 1955 | रंगनाथ राव | भोगवा | गुजरात (भारत) |
आलमगीरपुर | 1958 | यज्ञदत्त शर्मा | हिंडन | उत्तर प्रदेश (भारत) |
बनावली | 1974 | रवींद्र सिंह बिष्ट | रंगोई | हरियाणा (भारत) |
धोलावीरा | 1990 | रवींद्र सिंह बिष्ट | लूनी | कच्छ जिला, गुजरात (भारत) |
सुरकोटदा | 1972 | जगपति जोशी | कच्छ रन | गुजरात (भारत) |
राखीगढ़ी | 1963 | प्रो. सूरजभान | – | हरियाणा (भारत) |
बालाकोट | 1963-76 | जी. एफ. डेल्स | विंदार | पाकिस्तान |
सिंधु सभ्यता का विस्तार (Expansion of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता का विस्तार पाकिस्तान से भारत तक है। यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में सबसे अधिक विस्तृत थी। इस सभ्यता का विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में प्रमुखता से हुआ। अगर इसके विस्तार को आसानी से समझें तो यह:-
उत्तर में | माण्डा (जम्मू कश्मीर) में चेनाब नदी के तट तक |
दक्षिण में | दैमाबाद (महाराष्ट्र) तक |
पश्चिम में- | बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट के सुत्कागेनडोर पाक के सिंंध प्रांत और |
पूर्व में | आलमगिरपुर में हिंडन नदी क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) मेरठ और कुरुक्षेत्र तक |
सिंधु सभ्यता का क्षेत्रफल कितना है (What is the area of Indus Civilization)
इस सभ्यता के स्थल की व्यापकता और विस्तार को लेकर समय-समय पर आंकड़े बदलते रहते हैं क्योंकि पुरातत्ववेत्ता नए स्थलों की खोज में लगे रहते हैं। इसका क्षेत्रफल वर्तमान में 20,00,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है। यह न सिर्फ पाकिस्तान से बड़ा है बल्कि इस सभ्यता की समकालीन प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा था। प्राम्भिक दौर में यह सभ्यता त्रिभुजाकार रूप में सामने आई जिसमें, उत्तर में जम्मू के माण्डा से लेकर दक्षिण में गुजरात के भोगत्रार तक और पश्चिम में अफगानिस्तान के सुत्कागेनडोर से पूर्व में उत्तर प्रदेश के मेरठ तक का क्षेत्र शामिल था।
अब तक इस सभ्यता के 1400 से अधिक स्थल सामने आ चुके हैं। इनमें से कुछ स्थल प्रारम्भिक काल से सम्नब्नधिक हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के हैं। आपको बता दें कि जब तक सिंधु सभ्यता की खोज नहीं हुई थी तब तक भारत की सबसे पुराणी सभ्यता के रूप में वैदिक अथवा आर्य सभ्यता को माना जाता था मगर जैसे ही सिंधु सभ्यता की खोजहुई भारत का इतिहास 3 हज़ार साल पीछे चला गया। और भारत में आर्यों से पूर्व एक महान और शहरी सभ्यता के इतिहास ने भारत के इतिहास और भूगोल के साथ संस्कृति और राजनीति को प्रभावित किया।
सिंधु सभ्यता से प्राप्त अधिकांश स्थल छोटे शहर थे और सिर्फ आधे दर्जन स्थलों को ही नगर की संज्ञा दी गई है। इनमें सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (शाब्दिक अर्थ- भूतों का टीला ) थे जो पाकिस्तान में स्थिति हैं। इन दोनों नगरों के बीच 483 कि॰मी॰ की दुरी थी। ये दोनों नगर अन्दुस नदी (सिंधु नदी) द्वारा एक दूसरे से जुड़े थे। चन्हूदड़ो इस सभ्यता का तीसरा बड़ा नगर था जो मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दूर था।
चौथा नगर भारत के गुजरात के खम्बात की कड़ी के ऊपरी भाग में स्थित लोथल है। इसके आलावा राजस्थान का कालीबंगा (काली चूड़ियां) और हरियाणा के हिसार जिले में स्थित बनावली है। पाकिस्तान स्थित सुतकागेंडोर तथा सुरकोतड़ा जैसे समुद्रतटीय स्थलों से भी नगरीय विशेषता (एक दुर्ग का होना) पाया गया है। इस सभ्यता की जानकारी सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मैसन को प्राप्त हुई।
नगरीय स्थल | नदी | वर्तमान स्थिति | विशेषता |
हड़प्पा | रावी | पंजाब, पाकिस्तान | सिंधु सभ्यता का पहला खोजा गया नगर। यहां अन्न भंडार और विशाल दीवारों के अवशेष मिले हैं। |
मोहनजोदड़ो | सिंधु | सिंध, पाकिस्तान | सबसे विकसित और बड़ा नगर। यहां महान स्नानागार और सड़कों की ग्रिड प्रणाली मिली है। |
लोथल | भोगवा | गुजरात, भारत | एक प्रमुख बंदरगाह और व्यापारिक केंद्र। यहां जहाजों के डॉकयार्ड के प्रमाण मिले हैं। |
कालीबंगा | घग्गर | राजस्थान, भारत | यहां जुते हुए खेत और अग्नि वेदिकाएं मिली हैं, जो कृषि और धार्मिक गतिविधियों का संकेत देती हैं। |
धोलावीरा | लूनी | गुजरात, भारत | यहां जल प्रबंधन की उन्नत प्रणाली और बड़े पैमाने पर नगर योजना के प्रमाण मिले हैं। |
चन्हुदड़ो | सिंधु | सिंध, पाकिस्तान | यहां मनके बनाने और शिल्प उत्पादन के केंद्र के प्रमाण मिले हैं। |
भारत के राज्यवार सिंधु सभ्यता के स्थल
राज्य | प्रमुख स्थल |
---|---|
गुजरात | लोथल, सुरकोटदा, रंगपुर, रोजी, मालवद, देसूल, धोलावीरा, प्रभातपट्टन, भगतराव |
हरियाणा | राखीगढ़ी, भिरड़ाणा, बनावली, कुणाल, मीताथल |
पंजाब | रोपड़, बाड़ा, संघोल (फतेहगढ़ जिला) |
महाराष्ट्र | दैमाबाद, सांगली |
राजस्थान | कालीबंगा |
जम्मू-कश्मीर | माण्डा |
उत्तर प्रदेश | आलमगीरपुर (मेरठ) |
स्थल का नाम | वर्तमान स्थिति | विशेषता |
---|---|---|
हड़प्पा | पंजाब, पाकिस्तान | सिंधु सभ्यता का पहला खोजा गया नगर, अन्न भंडार और विशाल दीवारों के अवशेष। |
मोहनजोदड़ो | सिंध, पाकिस्तान (लरकाना जिला) | महान स्नानागार और सड़कों की ग्रिड प्रणाली। |
लोथल | गुजरात, भारत | प्राचीन बंदरगाह और जहाजों के डॉकयार्ड के प्रमाण। |
कालीबंगा | राजस्थान (हनुमानगढ़ जिला) | जुते हुए खेत और अग्नि वेदिकाएं। |
बनावली | हरियाणा (फतेहाबाद जिला) | कृषि और शिल्प उत्पादन के प्रमाण। |
आलमगीरपुर | उत्तर प्रदेश (मेरठ जिला) | उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित, मिट्टी के बर्तन और मोहरें मिली हैं। |
सुत्कागेंडोर | बलूचिस्तान, पाकिस्तान | समुद्री व्यापार का केंद्र। |
कोटदीजी | सिंध, पाकिस्तान | सुरक्षा दीवारों और नगर योजना के प्रमाण। |
चन्हुदड़ो | सिंध, पाकिस्तान | मनके बनाने और शिल्प उत्पादन का केंद्र। |
सुरकोटदा | गुजरात (कच्छ जिला) | समुद्री व्यापार और दुर्ग के अवशेष। |
गनवेरीवाला | पंजाब, पाकिस्तान | सिंधु सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र। |
शोर्तुगोयी | अफगानिस्तान | नहरों के प्रमाण मिले हैं। |
मुन्दिगाक | अफगानिस्तान | प्राचीन कृषि और बस्तियों के प्रमाण। |
राखीगढ़ी | हरियाणा, भारत | सबसे बड़े हड़प्पा स्थलों में से एक। |
धोलावीरा | गुजरात (कच्छ जिला) | जल प्रबंधन और नगर योजना के उन्नत प्रमाण। |
दैमाबाद | महाराष्ट्र, भारत | कांस्य युग की मूर्तियों और कलाकृतियों के प्रमाण। |
माण्डा | जम्मू-कश्मीर, भारत | सिंधु सभ्यता का सबसे उत्तरी स्थल। |
सिंधु सभ्यता की नगर निर्माण योजना की विशेषताएं (Features of the city building plan of Indus Civilization)
सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी नगर निर्माण योजना है जिसमें भवन निर्माण, सड़कें, नालियां आदि के कुशल निर्माण के साथ बनाया गया था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्रमुख नगरों से मिले अवशेष इस सभ्यता की इंजीनियरिंग और वास्तुकला का शानदार उदाहरण है:-
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नगर निर्माण योजना
सिंधु सभ्यता की नगर निर्माण योजना आधुनिक लन्दन से भी अधिक उन्नत थी जिसमें प्रत्येक निर्माण कार्य अत्यंत सुनियोजित और प्रभावी ढंग से किया गया था-
दुर्ग और नगर: सिंधु सभ्यता के सबसे प्रमुख नगर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे जो एक ऊँचे और नीचे टीले पर बसे थे साथ ही नगर में प्रवेश के लिए दोनों नगरों में एक दुर्ग (सिटाडेल) होता था, ऊँचे टीले पर सम्भवतः शासक वर्ग और उनका परिवार तथा पुरोहित वर्ग रहता था। दुर्ग के बाहर नीचे टीले पर सामान्य जनता के घर होते थे, सभी घर पक्की ईंटों से निर्मित थे।
जाल जैसी व्यवस्था (ग्रिड पद्धति): यह ग्रिड अथवा जाल पद्धति इतनी कुशलता से तैयार की गई थी जिसे देखकर आज के सड़क निर्माण भी शर्मा जाएँ। हम देखते हैं कि आज किस तरह भारत के बहुत से विकसित नगरों में सड़कें बेढंग से बिछाई गई है। इसके विपरीत सिंधु सभ्यता के नगरों की सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं, जिससे पूरा नगर आयताकार खंडों में बंट जाता था। यह व्यवस्था छोटे और बड़े दोनों प्रकार के नगरों में देखी जा सकती है।
ग्रिड पद्धति क्या है?
ग्रिड पद्धति एक ऐसी नगर निर्माण योजना है, जिसमें नगर की सड़कें एक-दूसरे को समकोण (90 डिग्री) पर काटती हैं। इससे पूरा नगर आयताकार खंडों (ब्लॉक्स) में बंट जाता है। यह व्यवस्था आधुनिक शहरों की योजना की तरह ही थी, जो सिंधु सभ्यता की उन्नत तकनीक सोच को दर्शाती है। सिंधु सभ्यता के नगरों में सड़कें उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में बनी होती थीं।
भवन निर्माण: हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के भवन बड़े और भव्य होते थे। ऊँचे दुर्ग में शासक वर्ग भव्य भवनों में रहता था और सामान्य लोग निचले दुर्ग में रहते थी। इनके स्मारक इस बात का प्रमाण हैं कि यहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर संग्रह में अत्यंत कुशल थे। ईंटों से बनी विशाल इमारतें सिंधु सभ्यता के शक्तिशाली शासकों की शक्ति और प्रतिष्ठा को दर्शाती हैं। मोहनजोदड़ो से कुछ विशेष निर्माण मिले हैं जिनमें विशाल स्नानागार अन्न के भंडार प्रमुख है।
मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार
मोहनजोदड़ो का सबसे प्रसिद्ध निर्माण स्थल विशाल सार्वजनिक स्नानागार है, जो दुर्ग के टीले पर स्थित है। यह ईंटों से बनी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस स्नानागार का प्रयोग सम्भवतः धार्मिक अवसर पर स्नान करने के लिए किया जाता होगा इसकी कुछ विशेषताएं इस प्रकार थीं-
- आकार: यह स्नानागार 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। यह इस सभ्यता की सबसे उत्कर्ष्ट निर्माण निर्माण है।
- विशेषताएँ:
- स्नानागार के दोनों सिरों पर तल तक जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं।
- स्नानागार के पास कपड़े बदलने के कमरे बने हुए हैं।
- फर्श पकी हुई ईंटों से बना है।
- पास के कमरे में एक बड़ा कुआँ है, जिसका पानी एक नाली द्वारा स्नानागार में पहुँचाया जाता था।
- स्नानागार के कोने में एक निर्गम (Outlet) है, जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। गन्दा पानी बाहर निकलता रहता था।
- विद्वानों के अनुसार यह स्नानागार धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बनाया गया था, जो आज भी भारतीय संस्कृति में पारंपरिक रूप में प्रचलित है जैसे कुम्भ और गंगा स्नान।

अनाज भंडारण की व्यवस्था
सिंधु सभ्यता के निवासियों की सोच कितनी आधुनिक थी यह उनके अन्न भण्डारण के लिए बनाये गए अन्नागारों या कोठारों के निर्माण से पता चलता है। वे लोग भविष्य में होने वाली किसी आपदा सूखे अथवा बाढ़ से फसल नष्ट होने या एमी आपदा के समय आनाज की पूर्ति के अनाज का भण्डारण करते थे।
- मोहनजोदड़ो का अनाज कोठार: मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी निर्माण संरचना अनाज रखने का कोठार अथवा अन्नागार है, जो 45.71 मीटर लंबा और 15.23 मीटर चौड़ा है। इसमें अनाज का भण्डारण किया जाता था।
- हड़प्पा के कोठार: मोहनजोदड़ो के आलावा हड़प्पा के दुर्ग में छः अन्न के कोठार मिले हैं, जो ईंटों के चबूतरे पर दो पंक्तियों में बने हैं। प्रत्येक कोठार 15.23 मीटर लंबा और 6.09 मीटर चौड़ा है। इनकी प्रमुख विशेषता:-
- इन कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है, जहाँ ईंटों के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं।
- फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं, जिससे पता चलता है कि यहाँ फसल की दवनी (गहाई) होती थी।
- हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं, जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे।
जल निकासी प्रणाली
सिंधु घाटी सभ्यता की जल निकासी प्रणाली अत्यंत विकसित थी। यह एक सुनियोजित व्यवस्था थे जिसे अंगार निर्माण से पहले ही तैयार कर लिया जाता था। आजके भारत में नगर पहले बसाते हैं और बाद में जल निकासी की व्यवस्था करते हैं, मगर सिंधु सभ्यता के निवासी जल निकासी व्यवस्था में पूर्ण विशेषज्ञ थे।
- घरों में जल की सुविधाएँ: सिंधु सभ्यता के लगभग हर घर में खुला प्रांगण और स्नानघर होता था। कालीबंगा के कई घरों में अपने-अपने कुएँ भी थे। इनका पानी इस्तेमाल के बाद छोटी नाली के माध्यम से बड़े नाले में मिल जाता था।
- सड़कों की नालियाँ: घरों का पानी सड़कों तक छोटी नाली द्वारा आता था, जहाँ ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकी नालियाँ बनी हुई थीं। इन नालियों में नरमोखे (Manholes) भी बने होते थे, जिनसे गंदगी साफ की जा सकती थी। यह वास्तव में उस समय की भवन निर्माण और तकनीकी ज्ञान का उत्तम उदाहरण है।
पक्की ईंटों का उपयोग
सिंधु सभ्यता के अधिकांश भवन पक्की ईंटों से निर्मित हैं। ईंटों को पहले कच्ची मिटटी से बनाया जाता था और बाद में उन्हें आग में पकाया जाता था। इनकी मजबूती का पता इसी बात से चलता है कि ये आज भी सुरक्षित अवस्था में हैं। ये ईंटें न केवल मजबूत थीं, बल्कि इनका आकार भी एक समान और मानकीकृत था। यह सभ्यता की उन्नत तकनीकी ज्ञान और व्यवस्थित निर्माण प्रणाली को दर्शाता है।
लंबाई | 28 सेमी (11 इंच) |
चौड़ाई | 14 सेमी (5.5 इंच) |
ऊँचाई | 7 सेमी (2.75 इंच) |
आयतन अनुपात | 4:2:1 |
सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन (Economic life of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी जो आर्थिक रूप से सम्पन्न और विकसित थी। सिंधु सभ्यता से मिले व्यापार और कृषि तथा पशुपालन के साक्ष्य से इसके आर्थिक जीवन की विशेषताओं का पता चलता है। यहाँ से मिली मोहरों तथा वजन तौलने के उपकरणों क आलावा मनके बनाने के कारखानों से आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जिसके आधार पर कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं –
- यहाँ के निवासी मनकों, सीपियों, शंख, लाजवर्द, धातुओं और कीमती पत्थर का व्यापार करते थे।
- भारत का राजस्थान स्थित खेतड़ी ताम्बे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था।
- चांदी राजस्थान के जावर क्षेत्र से निकाली जाती थी।
- कर्णाटक से सोने का आयात किया जाता था।
- ओमान से तांबा मंगवाया (आयात) जाता था।
- बहुमूल्य पत्थरों का आयात ईरान और अफगानिस्तान से किया जाता था।
सिंधु सभ्यता में विभिन्न स्थानों से आयातित वस्तुएँ:
वस्तु का नाम | स्थान का नाम |
---|---|
सोना (गोल्ड) | अफगानिस्तान, फारस, भारत (कर्नाटक) |
चाँदी (रजत) | ईरान, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया |
तांबा (कॉपर) | खेतड़ी (राजस्थान), बलूचिस्तान |
टिन | ईरान (मध्य एशिया), अफगानिस्तान |
इंडिगो डाई (सेलखड़ी) | बलूचिस्तान, राजस्थान, गुजरात |
हरा रत्न | दक्षिण भारत |
शंख | सौराष्ट्र (गुजरात), दक्षिण भारत |
गोले (कौड़ियां) | सौराष्ट्र (गुजरात), दक्षिण भारत |
लापीस लाजुली (नील रत्न) | बदख्शां (अफगानिस्तान) |
लीड (सीसा) | ईरान, राजस्थान, अफगानिस्तान, दक्षिण भारत |
शिलाजीत | हिमालयी क्षेत्र |
फ़िरोज़ा | ईरान (खुरासान) |
लापीस लाजुली (लाजवर्द) | बदख्शां (अफगानिस्तान), मेसोपोटामिया |
हेसोनाइट (गोमेद) | सौराष्ट्र, गुजरात |
सुलेमानी (स्टेटाइट) | ईरान |
स्फटिक | डेक्कन पठार, उड़ीसा, बिहार |
स्लेट | कांगड़ा |
कृषि एवं पशुपालन
वर्तमान के मुकाबले सिंधु प्रदेश पूर्व में एक उपजाऊ क्षेत्र रहा है। यहाँ प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ से जलोढ़ मिटटी का उपजाऊ क्षेत्र था जिसमें गेंहूं, जौ और कपास की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। घने वनों और हरे घास के मैदान पशुओं को घास उपलब्ध कराते थे। राजस्थान स्थित कालीबंगा स्थल से जुते खेत के प्रमाण मिले जहाँ हलरेखा में सरसों के दाने पाए गए हैं। इससे पता चलता है हल और बैलों की सहायता से खेत जोते जाते थे।
सिंधु सभ्यता के निवासी अनेक प्रकार की फसलें उगाते थे जिनमें गेंहू, जौ, राई, मटर, ज्वार, तिल और सरसों आदि की खेती करते थे। सबसे पहले विश्व में कपास की खेती हड़प्पा के लोगों ने शुरू की। यूनानियों ने कपास को सिन्डन नाम दिया।
हड़प्पा एक कृषि प्रधान संस्कृति वाला क्षेत्र था और ये लोग कृषि के साथ पशुपालन भी करते थे। भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर इनके प्रमुख पालतू पशु थे। यह मुख्य बात है कि (हड़प्पा के लोगों को घोड़े और लोहे के विषय में जानकारी नहीं थी।) इसके विपरीत उन्हें हाथी और गैंडे की जानकारी थी।
उद्योग-धन्धे
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और व्यापार यहाँ के लोगों का मुख्य व्यावसाय था। यहां कई तरह के उद्योग धंधे प्रचलित थे। ये लोग धातु और मिटटी के वर्तन तथा गहने बनाते थे। मिटटी के वर्तनों पर काले रंग से चित्रण किया जाता था। चूँकि हड़प्पावासी कपास के खेती करते थे तो यहां सूती वस्त्र उद्योग भी प्रचलित था। विभिन्न प्रकार के मनके और ताबीज बांये जाते थे। सम्भतः वे लोहे से अनभिज्ञ थे क्योंकि लोहे का कोई उपकरण यहाँ से नहीं मिला है।
लोथल और चन्हुदड़ो में मनके बनाने के कारखाने के साक्ष्य मिले हैं। मिटटी और पत्थरों से विभिन्न प्रकार की मूर्तियां बनाई जाती थी। सोने , चांदी और कीमती पत्थरों के आभूषण तैयार किये जाते थे।
व्यापार
सिन्धुवासी आंतरिक और बाहरी व्यापार करते थे। यहां पत्थर और शल्क (हड्डी) के बनाये आभूषणों का व्यापार होता था। अफगानिस्तान, ईरान और मेसोपोटामिया से व्यापार होता था। हड़प्पा की बहुत सी मोहरें मेसोपोटामिया में मिली हैं। मोहनजोदड़ो से सीप की टूटी पटरी मिली है। लगभग 2350 ईसा पूर्व के मेसोपोटामिया के शिलालेख मेलुहा के साथ व्यापार संबंधों का उल्लेख करते हैं, जो शायद सिंधु क्षेत्र का प्राचीन नाम रहा होगा। दिलमुन और माकन नाम भी प्राप्त होते हैं जिनमें दिलमुन की पहचान बहरीन के साथ की जा सकती है।

सिंधु सभ्यता का राजनैतिक जीवन (Political life of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता के रजनीतिक जीवन के विषय में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन भवन निर्माण के आधार पर वहां के सामाजिक और राजनीतिक जीवन का अनुमान लगाया जाता है। जिस प्रकार वहां ऊँचा दुर्ग और निचला दुर्ग मिला है उससे अंदाज़ा लगाया जाता है कि ऊँचे दुर्ग पर राजा और पुरोहित का निवास होगा। वहां की नगर निर्माण व्यवस्था और उसके रखरखाव के लिए अवश्य ही कोई नगर निगम जैसी संस्था काम करती होगी जिसे कोई शासक संचालित करता होगा।
सिंधु सभ्यता का धार्मिक जीवन (Religious life of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता से प्राप्त विभिन्न मूर्तियों और उपकरणों पर चित्रित चित्रों से वहां प्रचलित धार्मिक पद्धति और विश्वासों का पता चलता है। सम्भतः वे प्रकृति के रूप में विभिन्न पूजा पद्धतियों का पालन करते थे जिनके अनुसार वे-
देवी माता: मातृ देवी– सिंधु सभ्यता मुख्य रूप से मातृ देवी अथवा देवी माता की पूजा करते थे, जिससे सिंधु सभ्यता में स्त्री के उच्च स्थान का पता चलता है। हड़प्पा से प्राप्त एक टेराकोटा मूर्ति (मिटटी से बनी ) में देवी के गर्भ से निकलने वाले एक पीपल के पौधे को दर्शाया गया है, जो पृथ्वी के प्रति श्रद्धा को उर्वरता के देवता के रूप में दर्शाता है। जिससे प्रकृति के पूजन का भी प्रमाण मिलता है। इसके आलावा मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर एक स्त्री और एक पुरुष का चित्रण अंकित है। पुरुष के हाथ में एक दरांती है, जबकि नीचे एक अस्त-व्यस्त बालों वाली महिला बैठी है, संभवतः एक मानव बलि अनुष्ठान का चित्रण करती है। जिससे पता चलता है कि वहां बलि प्रथा का प्रचलन था।
सिंधु घाटी के देवता: मोहनजोदड़ो तीन चेहरों और सींगों वाला एक पुरुष आकृति बानी मुहर मिली है, जिसे ‘शिव’ या ‘पशुपति’ माना जाता है। इस बैठे हुए योगी का एक पैर दूसरे पैर पर रखा हुआ है, इस दिव्य पुरुष के दाहिनी ओर एक हाथी और बाघ और बाईं ओर एक गैंडा और भैंस है। आसन के नीचे दो हिरणों को चित्रित किया गया है, और आसपास के जानवर चारों दिशाओं में टकटकी लगाए हुए हैं। इससे पशुपति शिव की प्राचीनता का ज्ञान होता है। सर जॉन मार्शल ने इसे ‘पशुपति के रूप में शिव’ या ‘योगेश्वर’ की मूर्ति माना है।
इसके अलावा मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मूर्ति में एक टहनी जैसी शिरोमणि प्रदर्शित है। इसके अतिरिक्त, मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मिटटी की मुहर में एक देवता जैसी आकृति है जो आधा मानव और आधा बाघ है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मिट्टी की मुहर में कुछ पुरुषों को एक योगी के दोनों ओर हाथ जोड़े हुए खड़ा दिखाया गया है, जिसके पीछे सांप का फन चित्रित किया गया है। हड़प्पा से प्राप्त एक अन्य मुहर में तीन पंखों के समान सिर पर एक देवता जैसी आकृति दिखाई गई है।
वृक्ष पूजा: सिंधु सभ्यता के निवासी प्रकृति की पूजा करते थे जिसमें वृक्ष पूजा एक सामान्य प्रथा थी।
पशु पूजा: सिंधु सभ्यता के लोग विभिन्न पशुओं को पालते थे जो उन्हें दूध-दही के साथ खेती में काम आते थे इसीलिए वे उन्हें पूजते थे, जिसमें कूबड़ वाले बैल (सांड) को अत्यधिक पूजा जाता था।
लिंग-योनि की पूजा: सिंधु सभ्यता के लोग लिंग और योनि की पूजा करते थे। इसके अलावा वे पुनर्जन्म और भूत-प्रेत की पद्धतियों में विश्वास करते थे।
दाह संस्कार: सिंधुवासी विभिन्न प्रकार के अंतिम संस्कार पद्धतियों का प्रयोग करते थे जैसे- विद्वान जॉन मार्शल के अनुसार सिंधु सभ्यता में मृतकों के निस्तारण की तीन मुख्य विधियाँ थीं:
- मृतक को पूरी तरह से जमीन (कब्र में) में गाड़ना।
- जानवरों और पक्षियों द्वारा अवशेषों का आंशिक उपभोग। यानि मृतक को खुले में फेंक देना।
- शव को जलाना और राख को दबाना।
सिंधु सभ्यता का शिल्प और तकनीकी ज्ञान (Crafts and technical knowledge of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता में बड़े पैमाने पर पत्थर और हड्डी के औजारों का निर्माण और प्रयोग होता था। मगर धातु के रूप में कांसा धातु का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर होता था जिसके कारण इस सभ्यता को कांस्य युग की सभ्यता कहते हैं। काँसा धातु के निर्माण में ताम्बे तथा टिन का प्रयोग होता था।
इसके आलावा यहाँ के लोग नाव बनाने का काम करते थे जिससे समुद्री व्यायपार होता था। सूती कपड़े बुनने का काम होता था। मुद्रा निर्माण के आलावा बर्तन बनाना मुख्य शिल्प उद्योग था।
लेखन कला – सिंधुवासी लेखन कला से परिचित थे और मेसोपोटामिया की भांति हड़प्पा के लोग भी लेखन कला में कुशल थे। मगर अफसोस है कि उनकी लेखनी को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। हड़प्पा सभ्यता का लेखनी प्रमाण पहली बार 1853 ईस्वी में मिला और इसका पूरा विवरण 1923 ईस्वी में प्राप्त हुआ। सिंधु लिपि में लगभग 400 चिन्ह हैं। लिखने की दिशा आमतौर पर बाएं से दाएं होती है।
एक नगरीय सभ्यता में व्यापार प्रमुख था और उसमें माप तौल के उपकरण मौजूद थे और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया। आधुनिक तौल के बाट के तरह की कई वस्तुएँ मिली हैं। इससे ज्ञात होता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे – 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था।
मजेदार बात ये है कि आज़ादी से पूर्व के बाद तक भारत में 1 रुपया 16 आने का होता था। 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवाँ होते थे। इससे पता चलता है की हड़प्पा सभ्यता के पद्धतियों को आने वाली पीढ़ियों ने भी स्वीकार किया और उसे प्रचलन में जारी रखा।
सिंधु सभ्यता के लोगों का जाति अथवा आनुवंशिकी निर्धारण
मोहनजोदड़ो से प्राप्त कंकाल अवशेषों किये गए शोध के परिणामों से कंकालों को विभिन्न जातियों से संबंधित बताया गया है जो चार समूहों में वर्गीकृत किया: प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड, भूमध्यसागरीय, मंगोलियाई और अल्पाइन। 2019 में राखीगढ़ी से प्राप्त एक महिला के कंकाल के अनुवांशिकी परिणाम में इस बात का खुलासा हुआ कि सिंधु सभ्यता के लोग अनुवांशिकी तौर पर आर्यों से बिलकुल अलग थे।
डीएनए (DNA) यानी डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid) जीवन का आणविक आधार है। यहाँ के निवासी 2 मुख्य आबादी के मिश्रण से उत्पन्न है। एक भारत के मूल निवासी थी और दूसरे उनके करीबी अंडमान के वनवासी आदिवासी थे। इसके आलावा वर्तमान ईरान के खेतिहर किसान थे। तक़रीबन १० हज़ार ईसा पूर्व में इनका मिशन हुआ और एक नई प्रजाति अस्तित्त्व में आई। आर्यों का अनुवांशिक पित्रसमूह R1A जींस के प्राप्त न होने से अंदाज़ा लगाया गया है कि हड़प्पावासी आर्यों के पूर्वज रहे हैं।
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण (Reasons for the decline of Indus Civilization)
सिंधु सभ्यता का पतन कैसे हुआ? कब हुआ? इस संबंध में आने विचार प्रचलित हैं मगर कोई भी तथ्य पूर्णरूपेण स्वीकार्य नहीं हैं फिर भी कुछ सिद्धांत इस प्रकार हैं:-
- कुछ विद्वानों का मानना है कि बदलते भौगोलिक और मानसूनी दशाओं के कारण सिंध क्षेत्र में वर्षा की मात्रा में कमी ने अकाल और सूखे की स्थितियां पैदा की। जिससे पलायन शुरू हुआ।
- एच.टी. लैम्ब्रिक और अन्य के अनुसार, नदियों के मार्ग बदलने के कारण पानी की कमी ने लोगों को इलाके को छोड़ने के लिए बाध्य किया। रावी नदी, जो कभी हड़प्पा के निकट बहती थी, अब लगभग 6 मील दूर है।
- कुछ इतिहासकारों का मानना है की सिंधु क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती थी। मार्शल द्वारा मोहनजोदड़ो में खुदाई से सात स्तरों का पता चला है जो बाढ़ के कई उदाहरणों का संकेत देता है। सभवतः बाढ़ के विनाश ने इस सभ्यता को नष्ट किया हैगा।
- भूवैज्ञानिक एमआर साहनी का विचार है कि सिंधु सभ्यता के अंत का मुख्य कारण बड़े पैमाने बाढ़ की विनाश लीला थी।
- फेयर सर्विस जैसे विद्वानों और उनके समर्थकों का कहना है कि संसाधनों में कमी के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ।
- मार्टिन व्हीलर जैसे विद्वानों ने इस बात को माना है कि आर्यों और हड़प्पावासियों के बीच अस्तित्व के संघर्ष में सिन्धुवासी पराजित हुए। वे इसके समर्थन में ऋग्वेद में किये दुर्गों और पूर्व के विध्वंश का उदाहरण देते जिन्हें उनके देवता इंद्रा ने नष्ट किया।
सिंधु सभ्यता के ज्ञात/अज्ञात तथ्य (Known/Unknown Facts of Indus Civilization)
- 1921 में, जॉन मार्शल (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक) के निर्देशन में, हड़प्पा स्थल की पहचान की गई थी।
- हड़प्पा स्थल की खुदाई 1921 में दयाराम साहनी द्वारा कराई गई थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता का पूरा क्षेत्र त्रिभुजाकार है जो 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
- हड़प्पा से एक कब्रिस्तान मिला है जो R-37 के नाम से जाना जाता है, वहां से कांस्य वस्तुएं, सर्प रूपांकनों और शिलालेख के अवशेष मिले हैं।
- मोहनजोदड़ो, जिसका अर्थ है “मृतकों का टीला”, एक नग्न नर्तकी और एक दाढ़ी वाले भिक्षु की कांस्य मूर्तियों का पता चला।
- कालीबंगा, जिसका अर्थ है “काले रंग की चूड़ियाँ” अथवा “भूतों का स्थान”, से भूकंप, ऊँट की हड्डियों और सर्जरी के साक्ष्य का सबसे प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे स्थलों से से मनके बनाने, बिल्ली का पीछा करने वाले कुत्ते के चित्रण और चन्हूदड़ो से लिपस्टिक युक्त सौंदर्य प्रसाधनों के साक्ष्य मिले हैं।
- चन्हुदड़ो ही एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ घुमावदार ईंटें और मनका बनाने का कारखाना मिला है।
- लोथल से बंदरगाह,, स्त्री और पुरुष की कब्रों, अच्छी गुणवत्ता वाले जौ, हल के आकार की तांबे की सिल्लियां, और चावल की खेती प्रमाण मिले हैं।
- सुरकोटदा से घोड़े की हड्डियाँ और एक विशिष्ट प्रकार की कब्र के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- रंगपुर में धान की भूसी का ढेर लगा हुआ पाया गया।
- सुत्कागेंदोर से एक ऐसा किला मिला जो वहीँ प्राप्त होने वाली सामग्री से बनाया गया।
- कालीबंगा से मिली एक मुहर एक बाघ का चित्र मिला है जो अद्वित्य विशेषताओं वाला है।
- मोहनजोदड़ो से सबसे ज्यादा मात्रा में मुहरें प्राप्त हुई हैं, जो अधिकांशतः वर्गाकार हैं।
- लोथल को “मृतकों का शहर” के नाम से भी जाना जाता है।
- महान स्नानागार मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक महत्वपूर्ण प्रमाण है, और अन्न भंडार अथवा अन्नागार सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है।
- सिन्धु सभ्यता के लोग सूती और ऊनी वस्त्रों का परयोः बहुतायत करते थे।
- लोथल से धान और बाजरे की खेती के प्रमाण मिले हैं।
- सबसे पहले कपास हड़प्पा के लोगों ने ही उगाया।
- विभिन्न स्थलों पर घोड़े के अस्तित्व के चिह्न मिले हैं। मगर सिंधु सभ्यता के लोग घोड़े से अपरीचित थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे ज्यादा पशु अंकन के रूप में कूबड़ वाला बैल एक पूजनीय पशु था।
- सिंधु सभ्यता के लोग कांसा धातु का प्रयोग करते थे, मगर वे लोहे से अपरिचित थे।
सिंधु सभ्यता के संबंध में सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न- मोहनजोदड़ो का का क्या अर्थ है?
उत्तर- मोहनजोदड़ो का अर्थ मृतकों का टीला है।
प्रश्न- हड़प्पा की खुदाई किसने कराई?
उत्तर- 1921 में दयाराम साहनी द्वारा हड़प्पा की खुदाई कराई गई।
प्रश्न- मोहनजोदड़ो की खुदाई कब की गई?
उत्तर- 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा कराई गई।
प्रश्न- भारत का सबसे बढ़ा हड़प्पाकालीन स्थल कौनसा है?
उत्तर- राखीगढ़ी, हरियाणा का कुल क्षेत्रफल लगभग 350 हेक्टेयर है।
प्रश्न- किस हड़प्पाई स्थल से विशाल स्नानागार मिला है?
उत्तर- मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार मिला है।
प्रश्न- लार्ड कर्जन ने किसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का निर्देशक बनाया?
उत्तर- 1902 ईस्वी में लार्ड कर्जन ने सर जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक (Director General) नियुक्त किया गया।
प्रश्न- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो कहाँ स्थित हैं?
उत्तर- हड़प्पा, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है, यह स्थल रावी नदी के पास स्थित है।और मोहनजोदड़ो, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है, यह स्थल सिंधु नदी के पास स्थित है।
प्रश्न- सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल कितना था?
उत्तर– सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) एक विशाल सभ्यता थी, जिसका क्षेत्रफल लगभग 12,60,000 वर्ग किलोमीटर था। जो अब बढ़कर 2 लाख वर्ग किलोमीटर हो चुका है।
प्रश्न- सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब और किसने की थी?
उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) की खोज 1921-1922 में हुई थी। इसकी खोज का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) के अधिकारी राय बहादुर दयाराम साहनी और सर जॉन मार्शल को जाता है।
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