प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतक और दार्शनिक की जब भी चर्चा होती है तब महान चिंतक का ‘कौटिल्य’ का नाम सबसे पहले लिया जाता है। इसका सबसे मह्त्वपूण कारण यह है कि कौटिल्य ने विश्व की सबसे पहली राजनीतिक व्यवस्था से संबंधित पुस्तक “अर्थशास्त्र” लिखी। कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र ‘प्रशासन और राजनीती पर लिखा गया एक प्रामाणिक यथार्थ ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ‘मंडल सिद्धांत एवं सप्तांग सिद्धान’ की प्रासंगिकता वर्मन समय में भी कौटिल्य को व्यवाहरिक एवं प्रासंगिक बनाता है।
“सप्तांग” शब्द सात अंगों या घटकों के लिए प्रयोग किया गया है। ये सात अंग एक राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिए एक इकाई के रूप में एक दूसरे से जुड़े हैं। इस लेख कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत: स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्गा, कोष, दंड और मित्र | Kautilya’s Saptanga theory in Hindi के माध्यम से हम कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत की विवेचना कर्नेगे। साथ ही इस सिद्धांत की आलोचना के प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।

Kautilya’s Saptanga theory : कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत
अगर गहराई से समझें तो कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत प्राचीन यूनानी दर्शन पर महत्वपूर्ण रूप से प्रकश डालता है। कौटिल्य ने “राज्य की प्रकृति” और उसके अनिवार्य तत्त्वों और अंग, प्रकृति, को अर्थशास्त्र में स्थान दिया है।
कौटल्य यद्यपि इतिहास में एक संदिग्ध चरित्र माना जाता है। मगर अर्थशास्त्र पुस्तक के छठे अधिकरण में दिए गए सप्तांग सिद्धांत की प्रासंगिकता काम नहीं हुई है। प्राचीन हिन्दू दार्शनिकों और विचारकों के समान कौटिल्य ने राज्य के ‘सावयव सिद्धांत’ को अपनाया। जिसके अनुसार राज्य एक सजीव शरीर के सामान है जिसे सात अंगों में बांटा गया है। इन अंगों को मानव शरीर के समान तुलना करते हुए कहा गया है:-
“इस शरीर के समान राज्य में राजा मूर्धा(सिर) की तरह है, अमात्य आँख के समान, स्वामी कान के समान, कोष मुख के सामान, बल मन के समान, दुर्ग हाथ के सामान और राष्ट्र पैर के समान है।”
कौटिल्य का सप्तांग सिद्धांत यूपीएससी आईएएस परीक्षा में अक्सर पूछा जाने वाला महत्वपूर्ण प्रश्न है, और इस विषय से संबंधित प्रश्न प्रीलिम्स, यूपीएससी मेन्स पेपर I और यूपीएससी इतिहास वैकल्पिक भाग में बहुतायात देखे जाते हैं। इसके आलावा यह प्रश्न यूजीसी नेट इतिहास परीक्षा में भी बहुत बार पूछा जाता है। अतः इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Kautilya’s Saptanga theory: कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत का अवलोकन
कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र प्रथम प्राचीन भारतीय ग्रंथ है जिसमें पहली बार राज्य के सात अंगों का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है। कौटिल्य के अनुसार राज्य सात मूल घटकों से निर्मित होता है। कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत में, राज्य की प्रकृति और उपयोगिता समझने के लिए सात परस्पर जुड़े और एक दूसरे पर निर्भर अंगों या घटकों को दर्शाया गया है।
1 | स्वामी/राजा | The King |
2 | अमात्य/मंत्री | The Ministers |
3 | जनपद | The Populated Territory |
4 | दुर्ग/किला | Fort |
5 | कोष | Treasury |
6 | दंड/सेना | Army |
7 | मित्र | Friend |
एक राज्य को विकेन्द्रितकरण के तहत राज्य को उसके सात मूलभूत प्राकृतिक घटकों में विभाजित करके प्रत्येक सदस्य की व्यक्तिगत ताकत या कमजोरियों का आसानी से मूल्यांकन किया जा सकता है। कौटिल्य अपने सप्तांग सिद्धांत में इसी को प्रस्तुत करता है। कौटिल्य के अनुसार एक राज्य के कुशल सञ्चालन के लिए आवशयक है कि सभी सात अंग उचित रूप से अपने निर्धारित कार्यों का संपादन करें, ताकि राज्य को समृद्ध और मजबूत बनाया जा सके। आइए यूपीएससी अथवा अन्य महाविद्लयों और विश्वविद्यालों की परीक्षाओं के लिए सप्तांग सिद्धांत के प्रत्येक घातक की विस्तार से चर्चा करें।
स्वामी/राजा (The King )
कौटिल्य ने अपने रजनीतिक सिद्धांत में राज्य को राजतन्त्र के अंतर्गत शासित होना बताया है और राजा अथवा स्वामी को सभी शक्तियों का केन्डबिन्दु माना है। कौटिल्य राजा के स्थान पर स्वामी शब्द का प्रोग इसलिए किया है कि राज्य का अर्थ केवल राजतंत्रीय राज्य से नहीं है, बल्कि गणतंत्रात्मक व्यवस्था से भी है। कौटिल्य के अनुसार राजा का भाग्य उसके राज्य क्षेत्र में निवास करने वाली जनसँख्या से घनिष्ट रूप से जुड़ा है।
कौटिल्य के अनुसार राजा/स्वामी को एक आदर्श व्यक्ति होना चाहिए। कौटिल्य के मतानुसार राजा:-
- कुलीन धर्म की मर्यादा का पालन करने वाला।
- विचारशील
- सदाचारी
- सत्यवादी
- विवेकपूर्ण,
- दूरदर्शी और
- उत्साही एवं युद्ध कला में निपुण होना चाहिए।
राजा की क्रोध, मोहमाया, लोभ आदि से दूर रहना चाहिए। उसमें प्रजा की रक्षा करने की योग्यता और दुश्मन की कमजोरी पहचानन्ने की योग्यता होनी चाहिए। जिस राज्य का स्वामी उत्साही और चतुर होता है उसकी प्रजा भी उत्साही और चतुर होती है। जिस राज्य का स्वामी आलसी होता है वहां की प्रजा भी कामचोर और आलसी होती है, जिसके राज्य के संसाधन नष्ट होते हैं। राजा को चाइये कि वह समयानुसार राज्य कोष में वृद्धि करता रहे।
कौटिल्य द्वारा वर्णित राजा के गुणों में नैतिक गुणों का विशेष महत्व है। कौटिल्य के अनुसार कुछ गन तो स्वभाविक और प्रकृति प्रदत्त होते हैं, किन्तु कुछ गुणों को नियमित अभ्यास से विकसित किया जा सकता है। यही कारण है की उसने राजा की शिक्षा पर प्लेटो की भांति जोर दिया है। कौटिल्य के शब्दों में:-
“जिस प्रकार घुन लगी लकड़ी जल्द नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार जिस राजकुल में राजकुमार अशिक्षित होते हैं वह राजकुमार और राज्य बिना युद्ध के नष्ट हो जाते हैं।”
कौटिल्य ने राजा के लिए जिन अनिवार्य विद्याओं पर बल दिया है उनमें- दंड नीति, राज्य शासन, सैनिक शिक्षा, मानव शास्त्र, इतिहास, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि शामिल हैं। कौटिल्य राजा को मात्र एक राज्य का स्वामी ही देखना नहीं चाहता, वह तो उसे राजऋषि (The King of Philosopher) देखना चाहता है।
महान मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेखों में राजा को जैसा दर्शाया गया है वह कौटिल्य के सम्प्टंग सिद्धान के स्वामी जिसे ही है। अशोक ने अपने शिलालेखों में राजा की उपाधियों का वर्ण किया है जैसे-मगध के राजा की उपाधि, महाराजा या महाराजाधिराज जैसी विनम्र उपाधि।
सम्राट अशोक अपने शिलालेखों में अपने लिए जिस नाम का उल्लेख करता है उसमें ‘देवनामपिय’ (देवताओं का प्रिय) सबसे अधिक बार प्रयोग हुआ है। इससे सिद्ध होता है कि राजा देवताओं के समान होता है।
शिलालेख I और II में अशोक घोषणा करता है कि- “सभी मनुष्य मेरी संतान हैं,” अशोक इस प्रकार जनता के लिए “पितृसत्तात्मक राजत्व” के सिद्धांत को दर्शाता है।
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अमात्य/मंत्री (The Minister)
कौटिल्य के अनुसार राज्य का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण तत्व “अमात्य” है। अमात्य के बिना कोई भी राजा सफल नहीं हो सकता। कौटिल्य नेअमात्य शब्द का प्रयोग दरबार के समस्त वरिष्ठ अधिकारियों, सलाहकारों और विभिन्न विभागों के प्रमुखों के लिए सामूहिक रूप से किया है। कौटिल्य के अनुसार राजा को अपने मंत्रियों को समझदारी से नियुक्त करना चाहिए और उनकी सलाह पर राज्य का सञ्चालन करना चाहिए।
अमात्य कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत के सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में दो अलग-अलग सलाहकार परिषद का उल्लेख किया है। मंत्री परिषद, (मंत्रियों ) मंत्रियों की एक छोटी सलाहकार परिषद, दूसरा एक बड़ी परिषद थी, जिसमें विभागों के सभी कार्यकारी प्रमुख शामिल थे। कौटिल्य ने अमात्य की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “जिस प्रकार एक बैलगाड़ी एक पहिये पर नहीं चल सकती उसी प्रकर राज्य भी बिना अमात्य के नहीं चल सकता।”
स्वयं राजा कितना भी गुणवान हो मगर जब तक उसके अमात्य गुणवान नहीं होंगे, तब तक राज्य का शासन सुचारु रूप से नहीं चल सकता है। कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत का एक महत्पूर्ण अंग पुरोहित था। कौतीय के अनुसार पुरोहित उच्चा कुल का, वेदों का ज्ञाता और भविष्य को पहचानने वाला होना चाहिए, जिसे रजनीतिक ग्यानी भी होना चाहिए। पुरोहितों के लिए कोष से विशेष वेतन की व्यवस्था थी, इसी से उनके महत्व का पता चलता है।
मंत्री | वेतन |
मुख्यमंत्री, पुरोहित और सेनापति | 48,000 पण |
वित्त मंत्री और मुख्य कलेक्टर | 24,000 पण |
इससे पता चलता है कि मंत्रियों को अच्छा वेतन दिया जाता था। वरिष्ठ मंत्रियों को असाधारण रूप से अच्छा मुआवजा प्रदान किया जाता था। राजकोष का एक बड़ा हिस्सा मंत्रियों के वेतन पर खर्च होता था।
जनपद (The Populated Territory)
जनपद संबंधित राज्य के क्षेत्र, एक स्वीकार्य क्षेत्र को दर्शाता है। कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में जनपद के अंतर्गत रहने वाली प्रजा अथवा जनसंख्या द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादन पर कर लगाकर अपनी राजकोषीय आय में वृद्धि के लिए राज्य द्वारा लागू निवेशों, पुरस्कारों और दंडात्मक उपायों को दर्शाता है, जिसे जनपद से प्राप्त किया जाता था। जनपद से प्राप्त आकर राजा की आय का प्रमुख साधन था। कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में व्यापार मार्गों और बंदरगाह शहरों का भी उल्लेख किया है। इससे पता चलता है कि राजा का अधिकार क्षेत्र कितना विस्तृत था।
दुर्गा/किला (Fort)
कौटिल्य ने राज्य की सुरक्षा को बहुत महत्वपूर्ण माना और उसके अपने सप्तांग सिद्धांत में स्थान दिया। राज्य और प्रजा की सुरक्षा के लिए उसका किलेबंद होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि वे राज्य सीमा क्षेत्रों में दुश्मन को घुसने से रकते हैं, आक्रमण के समय दुश्मन को आने में बाधा और राजा को सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं, और किसले ही राज्य के प्रशासनिक और राजनीतिक केंद होते हैं। कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में किलों को उनकी भौगोलिक उपयोगिता के अनुसार कई भागों में विभाजित किया है। किसी भी राज्य की राजधानी को सबसे सुरक्षित होना चाहिए क्योंकि वह राज्य के प्रशासनिक, आर्थिक और सैन्य केंद्र के रूप में कार्य करता है और उसे किलेबंद होना चाहिए।
कौटिल्य ने किलेबंदी के लिए प्रयोग की जाने वाली सामग्री में मिटटी से बानी प्राचीर, ईंट-पत्थर से बने परकोटे (दीवारें) से बनाया जाना चाहिए। साथ ही इसमें संकट के समय के लिए भोजन और अन्य आवशयक सामग्री जो घेराबंदी में काम आये का बन्दर होना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि यूनानी इतिहासकारों ने जिस प्रकार माघ की राजधानी पाटलिपुत्र की भव्यता और सुरक्षा का वर्णन किया है वह इसके महत्व को दर्शाता है।
कौटिल्य अपने सप्तांग सिद्धांत के तहत किले के प्रवेश द्वार पर सुरक्षात्मक दृस्टि से सैनिकों की तैनाती की सलाह देता है। वह पैदल सेना, घुड़सवार सेना, रथ और हाथियों से से सुसज्जित एक स्थायी सेना की तैनाती का प्रस्ताव करता है। हमें देखना चाहिए कि कलिंग युद्ध के दौरान सम्राट अशोक की विशाल सेना ने किस प्रकर कलिंग की सेना को कुचला था, हालाँकि इस युद्ध में वही रक्तपात ने अशोक विचलित कर दिया और उसने कभी युद्ध ने करने की प्रतिज्ञा ली यद्यपि राज्य में सेना की तैनाती पहले जैसी ही रही।
कौटिल्य ने जिन दुर्गों की भिन्नता का वर्ण किया है उसके अनुसार:-
औदक दुर्ग | ऐसा दुर्ग जिसके चारों ओर पानी भरा हुआ हो, (जल या गहरी खाई से घिरा) |
पर्वत दुर्ग | ऐसा दुर्ग जो बड़े-बड़े पत्थरों से बना हुआ हो, पर्वतों और कंदराओं में व्याप्त हो, (प्राकृतिक पर्वत और उसकी चौटियों से घिरा) |
धान्वन दुर्ग | ऐसा दुर्ग जो चारों ओर से दलदल और वृक्षो व झाड़ियों आदि से घिरा हुआ हो। (मरुस्थलीय प्रदेश में स्थापित) |
वन दुर्ग- | ऐसा दुर्ग जो चारों ओर से दलदल और वृक्षों व झोपड़ियों आदि से घिरा हुआ हो। (बीहड़ जंगलों से घिरा ) |
कौटिल्य के अनुसार दुर्ग मगरमच्छों और कमल से भरी तीन खाइयों से घिरा होना चाहिए तथा प्राकृतिक रूप से उपयुक्त स्थानों जैसे पहाड़ आदि ऊँचे स्थान पर दुर्ग का निर्माण करना चाहिए। ुचे स्थल से दुश्मन सेना को आसानी से देखा जा सकता है और उस पर आसानी से बार किया जा सकता है।
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कोष (Treasury )
कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में कोष को पांचवें नंबर रखा है कौटिल्य के अनुसार कृषि और पशुपालन प्रजा का मुख्य कार्य है और भूमि राजस्व प्राप्ति का प्रमुख साधन है। कोष राजकीय कार्यों को सम्पन्न करने का प्रमुख स्रोत है। राजा को अपने राजकीय कोष में वृद्धि के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए। कोष एकत्र करने के लिए ईमानदार और विश्वासपात्र कर्मचारियों और अधिकारीयों की नियुक्ति की सलाह दी है। कौटिल्य के अनुसार कर का संग्रह धर्मानुसार उचित एवं न्यायसंगत होना चाहिए। उपज का छठा भाग और व्यापारिक वस्तुओं से दसवां हिस्सा कर के रूप में लेना चाहिए। कोष में सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्न और मुद्राओं का संग्रह होना चाहिए।
कौटिल्य ने कोषाध्यक्ष से यह उम्मीद की है की वह ईमानदारी से कोष की जानकारी समय-समय प्र राजा को उपलब्ध कराये ताकि कोष को अधिक मजबूत बनाये रखने के लिए जानकारी रहे।
दंड (Army )
कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत में दंड का संबंध बल से और न्याय दोनों के संबंध में प्रयोग हुआ है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में धर्मस्थो (न्यायधीशों ) और राज्य मंत्रियों का उल्लेख किया है। मौर्यकाल में कानून की महत्ता का उल्लेख इसी बात से चलता है कि अपराधियों पर जुर्माने, अंग-भंग और यहां तक कि मृत्युदंड का इस्तेमाल किया जाता था।
यह उल्लेखनीय है कि कौटिल्य ने अपराधी को सजा देते समय अपराध की प्रकृति और अपराधी के वर्ण को ध्यान में रखना अवश्य बताया है। ब्राह्मण को गंभीर अपराध में भी मृत्युदंड से बंचित रखने की सलाह दी गई है। एक क्षत्रिय ने ब्राह्मण महिला के साथ बलात्कार किया जिसके लिए उसे दंडस्वरूप अधिकतम जुरमाना देना पड़ा, जबकि उसी अपराध में वैश्य की पूरी सम्पत्ति जब्त कर ली गई जबकि शरद को मृत्युदंड दिया गया। इससे पता चलता है कि मौर्यकाल में भी शूद्रों की स्थिति अत्यंत निम्न और दयनीय थी।
कौटिल्य महामातों से यह अपेक्षा करता है कि वे निष्पक्ष होकर कार्य करेंगे और बिना किसी ठोस सबूत किसी नागरिक को दण्डित नहीं करेंगे। अशोक ने अपने पांचवे स्तम्भ शिलालेख में वर्णन किया है की उसके राज्य में न्याय बिबा भेदभाव के दिया जाता है। इससे पता चलता है की अशोक ने न्याय के संबंध में वर्ण व्यवस्था को समाप्त कर दिया था।
दूसरे दंड के अंग के रूप में एक मजबूत सेना की आवश्यकता पर बल दिया है। कौटिल्य के अनुसार पुश्तैनी, भाड़े प्र रखे गए सैनिक शामिल हैं जो वन और निगम से आते है। सेना में चार प्रकर के सैनिक होते थे, पैदल, रथ, हाथी और अश्व सैनिक। क्षत्रियों को कौटिल्य सबसे अच्छा सैनिक बताता है, लेकिन संकट काल में वैश्यों और शूद्रों को भी सैनिक के रूप में भर्ती किया जा सकता है। लेकिन मनु ने ब्राह्मणों और वैश्यों को ही संकट के समय शस्त्र धारण करने की अनुमति दी है और शूद्रों को पूर्णतः प्रतिबंधित किया है।
मित्र (Friend)
मित्र शब्द से तात्पर्य सामान्य दोस्ती की बजाय राजनीतिक और कूटनीतिक मित्रता से है। कौटिल्य राजा से यह अपेक्षा करता है कि वह अपने पडोसी राज्यों के साथ विदेशी राजाओं से भी मित्रवत व्यवहार की स्थापना करेगा। कौटिल्य के अनुसार ‘मित्र’ कुलीन, दुविधाशून्य, महान तथा वंशनगत होना चाहिए। विजिगीषु (विजय के लिए आकांक्षी राजा) को ऐसा मित्र चाहिए जो आवश्यकता पड़ने पर सहायता करे जिसके साथ मतभेद न हों। विजिगीषु के चारों ओर विभिन्न खिलाड़ी, जिनमें अरि (शत्रु), मध्यम (मध्यम राजा) और उदासीन शामिल हैं, अंतरराज्यीय रणनीति (उदासीन या तटस्थ राजा) का केंद्र हैं।
कौटिल्य सलाह देता है कि यदि देशमें मजबूत हो तो संधि और शांति से काम लेना चाहिए। दुशमन के दुशमन से हाथ मिलकर एक मजबूत संघ बनाना चाहिए और फिर हमला करना चाहिए। मौर्य काल में सम्राट अशोक ने यूनानी राजा और उत्तरपश्चिमी हेलेनिस्टिक राज्यों में अपने शांति दूत भेजे। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस की बेटी से विवाह कर एक स्थायी मित्र हासिल किया। इसी तरह सीरिया के एंटिओकस द्वितीय, मिस्र के टॉलेमी द्वितीय, मैसेडोनिया के एंटीगोनस, साइरेन के मैगस और एपिरस के अलेक्जेंडर मित्रता में शामिल रहे। अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद मित्रता की नीति अपनाई।
कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत की आलोचना
कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत की कई विद्वानों ने आलोचना की है और इसके लिए निम्न तथ्य प्रस्तुत किये हैं:-
1. कई विद्वानों ने कौटिल्य ने राज्य के सावयव (organic) सिद्धांत को गलत माना है क्योंकि राज्य कोई जैबिक संस्था या अंग नहीं है बल्कि राज्य एक अमूर्त संस्था है। राज्य की तुलना मनुष्य के शरीर से करना एकदम अनुचित और अव्यवहारिक है ,मगर कौटिल्य ने सिर्फ राज्य को एक महत्व दर्शाने के लिए राज्य को जैबिक दीकहाया है ताकि लोग उसका सम्मान करने को तत्पर रहें।
2. आधुनिक राजनीतिक विचारकों ने राज्य के चार आवश्यक तत्व जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा सम्प्रभुता आवश्यक माने हैं। जबकि कौटिल्य ने इनमें से किसी को भी अपने सप्तांग सिद्धांत में स्थान नहीं दिया है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि कौटिल्य कोई राजनीतिज्ञ या इतिहासकार नहीं था उसने धार्मिक धारष्टिकों से राज्य की कल्पना की है।
3. कौटिल्य ने दुर्ग, कोष, सेना और मित्र के आभाव में राज्य के नष्ट होने का खतरा बताया हैं। हालाँकि राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से ये अंग आवश्यक हो सकते हैं इनके बिना राज्य नष्ट हो जायेगा सिर्फ एक कोरी कल्पना है। हालांकि कौटिल्य ने उस समय की परिस्थितियों को देखकर अपने सप्तांग सिद्धांत का निर्माण किया है।
4. कौटिल्य निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन करता है और राजा को सभी शक्तिओं का प्रथम उपभोक्ता घोषित करता हैं, हालाँकि प्रजातंत्र की उसमें उम्मीद की गई हैं। प्रजातंत्र में सम्प्रभुता का निवास स्थान कहाँ होगा!
5. प्राचीन भारत की राजतंत्रात्मक व्यवस्था में पुरोहित का स्थान हमेशा महत्वपूर्ण रहा हैं। इसके विपरीत कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में पुरोहित को कोई स्थान नहीं देताहै। लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि प्राचीन समय में धर्म से जुड़े लगों को राजनीती से दूर रहने की सलाह दी जाती थी।
निष्कर्ष
इस प्रकार उप्तोक्त सात सिद्धांतों का अध्ययन करने के पश्चात् यह बात स्पष्ट हो जाती है कि कौटिल्य द्वारा बताये सप्त सिद्धांत कुछ मामलों में आज भी प्रासंगिक हैं। चाहे वह कोष हो या विदेश संबंध इन पर कौटिल्य बहुत जोर दिया है। साथ ही राज्य की सुरक्षा के लिए दुर्गों के निर्माण पर दल दिया है। हम कह सकते हैं कि भले ही कौटिल्य के कुछ सिद्धांत आज अप्रासंगिक हैं मगर उनके महत्व और उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न-कौटिल्य कौन था?
उत्तर- कौटिल्य चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था, उसे चाणक्य और विष्णुगुप्त नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न- अर्थशास्त्र का संबंध किस्से है?
उत्तर- कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र राजनीतिक प्रशासन से संबंधित है।
प्रश्न- कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में किन-किन अंगों का वर्णन किया है?
उत्तर- कौटिल्य ने स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दंड और मित्र का वर्णन किया है।
प्रश्न- कौटिल्य की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर- कौटिल्य की मृत्यु के संबंध में कई कथन प्रचलित हैं, एक स्वभाविक मृत्यु और दूसरा बिन्दुसार द्वारा मृत्युदंड दिया गया।
प्रश्न- चाणक्य का अपमान किसने किया था?
उत्तर- कौटिल्य अथव चाणक्य का अपमान नन्द वंशी शासक धनानंद ने किया था।
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