भारत पर मुसलमानों के आक्रमण मध्यकाल के प्रारम्भ में ही शुरू हो चुके थे और पश्चिमी भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम था। कासिम के आक्रमण का प्रभाव न के बराबर था और काफी वर्षों तक शांति बनी रही और कोई नया आक्रमण भारत पर नहीं हुआ। मगर 1000 ईस्वी में महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण शुरू हुए और उसने भारत पर 17 बार आक्रमण कर भारत की आत्मा को छलनी किया। इस लेख Mahmud Ghaznavi History in Hindi में हम मह्मूद गजनवी के भारत पर आक्रमण और उससे जुड़े प्रभाव का मूल्याङ्कन करेंगे।

नाम | महमूद गजनवी |
पूरा नाम | यामीन-उद-दौला अबुल-कासिम महमूद बिन सबुक्तगीन |
जन्म | 2 नवंबर 971 ईस्वी |
जन्मस्थान | गजनी (वर्तमान अफगानिस्तान) |
पिता | सबुक्तगीन |
माता | नाम ज्ञात नहीं (जुबलिस्तान की रहने वाली थी) |
शासनकाल | 997 ईस्वी से 1030 ईस्वी |
पूर्वर्ती | सबुक्तगीन |
उत्तरवर्ती | मसूद प्रथम (पुत्र) |
धर्म | इस्लाम |
देश | गजनी साम्राज्य (वर्तमान अफगानिस्तान और ईरान) |
पत्नी | अज्ञात (कई पत्नियाँ थीं) |
संतान | मसूद प्रथम और अन्य |
मृत्यु | 30 अप्रैल 1030 ईस्वी |
मृत्यु का कारण और स्थान | स्वाभाविक मृत्यु (संभवतः मलेरिया या टाइफाइड), गजनी (वर्तमान अफगानिस्तान) |
भारत आक्रमण की संख्या | 17 बार |
प्रमुख आक्रमण | – सोमनाथ मंदिर (1025 ईस्वी) – मथुरा और कन्नौज (1018 ईस्वी) – थानेश्वर (1014 ईस्वी) |
Mahmud Ghaznavi History in Hindi: गजनी वंश का उदय
हम भलीभांति जानते हैं कि भारत पर आक्रमण करने वाले प्रथम मुस्लिम अरब के थे। अरब का आक्रमण भारत प्र रक प्रासंगिक घटना मात्र रहा। लेकिन अरबों के स्थान जल्द ही तुर्कों ने ले लिया और उनके अधूरे कार्य को पूर्ण किया। 8वीं और 9वीं शताब्दियों में बाग्दाद् के खलीफा की शक्ति तुर्कों ने छीन ली। अरबों के मुक़ाबले तुर्क अत्यंत क्रूर और धर्मांध लोग थे। वे किसी भी कीमत पर इस्लाम का प्रचार और प्रसार करना चाहते थे, और उन्होंने बलपूर्वक लोगों को इस्लाम क़बूल कराया। इसी क्रम में दो ऐसे लोग शामिल हैं जिनका संबंध तुर्कों की भारत विजय से है-
अलप्तगीन– अपल्पतगीन बुखारा के समानी शासक अब्दुल मालिक का दास था और अपने पराक्रम और शौर्य के दम पर हाजीब-उल-हज्जाब के पद तक पहुंच गया। 695 ईस्वी में उसे खुरासान का शासनभार सौंपा गया। 962 ईस्वी में अब्दुल मलिक के देहांत के बाद उसके भाई और चाचा में गद्दी के लिए संघर्ष हुआ। अलप्तगीन ने चाचा का साथ दिया मगर सिंहासन पाने में अब्दुल मलिक का भाई मंसूर कामयाब रहा। ऐसे समय में अलप्तगीन 800 व्यक्तिगत सैनिकों के साथ अफगान प्रदेश के गज़नी शहर में रहने लगा।
मंसूर ने अलप्तगीन को गजनी से निकालने के कई प्रयास किये मगर असफल रहा और अलप्तगीन ने गज़नी और उसके आस-पास के इलाकों पर अपना अधिकार बनाये रखा।
सुबुक्तगीन– अलप्तगीन 977 ईस्वी में स्वर्ग सिधार गया और उसके स्थान को प्राप्त करने के लिए संघर्ष शुरू हो गया। ऐसे में अलप्तगीन के दास सुबुक्तगीन ने सिंहासन हथिया लिया। एक व्यापारी जिसका नाम नासिर-हाजी था ने सुबुक्तगीन को खरीदा था और उसने उसे तुर्किस्तान से बुखारा में अल्पतगीन को बेच दिया। अपनी योग्यता से वह पदोन्नत होता गया और अमीर-उल-उमरा की उपाधि पाने में सफल रहा। अल्पतगीन ने अपनी बेटी का विवाह सुबुक्तगीन से कर दिया।
अलप्तगीन की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठते ही सुबुक्तगीन ने आक्रमणों का दौर शुरू किया। सिस्तान और लंगमान को उसने जीत लिया। 994 ईस्वी में उसने लम्बे संघर्ष के पश्चात खुरासान पर अधिकार कर लिया।
भारत पर आक्रमण– कट्टर धर्मांध और धन के भूखे सुबुक्तगीन ने अपना ध्यान भारत की ओर लगाया और सबसे पहले उसने शाही वंश के शासक जयपाल से युद्ध किया। जयपाल का राज्य सरहिंद से लगमान(जलालाबाद ) और कश्मीर से मुल्तान तक फिला था। शाही वंश की तीन राजधानियां थीं- औंड, लाहौर और भटिंडा। सुबुक्तगीन ने 986-87 ईस्वी में भारत की सीमा लाँघि। उसने अनेक किलों और दुर्गों को रौंदा। ऐसे में जयपाल दुश्मन का सामना करने के लिए लगमान की घाटी की ओर बढ़ा।
जयपाल का सामना दुर्दांत आक्रमणकारी सुबुक्तगीन और उसके बेटे महमूद गजनवी से हुआ। कई दिन तक युद्ध चला और कोई निर्णय निकला। जयपाल ने संधि का प्रताव भेजा मगर सुबुक्तगीन के बेटे ने “इस्लाम और मुसलमानों के सम्मान” के लिए युद्ध जारी रखने को कहा।
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महमूद ने अपने पिता से कहा कि-
“संधि के लिए मांग और पुकार नहीं करनी चाहिए, क्योंकि आप सर्वोच्च हैं और अल्लाह आपके साथ है, वह कभी आपके कार्यों को असफल नहीं होने देगा।”
लेकिन जयपाल ने सुबुक्तगीन को संधि के लिए तैयार कर लिया और उसने 10 लाख दरहम, 50 हाथी और कुछ नगर तथा किले भेंट स्वरूप सुबुक्तगीन को सौंपे। मगर कुछ समय पश्चात् जब जयपाल ने खुदको संकट से दूर पाया तो उसने संधि की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया। ऐसे में सुबुक्तगीन तीब्र बेग की भांति जयपाल को दंड देने के लिए उसके सीमावर्ती राज्यों को जीतना शुरू कर दिया। यह देख एक बार फिरसे जयपाल ने युद्ध करने का निर्णय लिया।
991 ईस्वी में जयपाल ने अजमेर, कालिंजर और कन्नौज के शासकों का एक संघ बनाया। मगर एक युद्ध के बाद यह संघ बिखर गया और जयपाल को फिरसे पराजय झेलनी पड़ी। जयपाल ने बहुत सा धन और अन्य भेंट देना इस शर्त के साथ स्वीकार किया कि दुश्मन उसके सिर के मध्य के बाल न मुंडवाए। इसके बाद सुबुक्तगीन को बहित सा धन और 200 हाथी प्राप्त हुए। 10000 घुड़ सवार सेना पेशावर में एक अधिकारी नियुक्त कर सुबुक्तगीन बापस लौट गया।
997 ईस्वी में सुबुक्तगीन का देहांत हो गया और उसका स्थान उसके पराक्रमी बेटे महमूद गजनवी ने लिया। सुबुक्तगीन ने कुल 20 वर्ष तक अपना शासन किया और कई विजयों को अंजाम दिया।
महमूद गजनवी कौन था?
भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमणों से पहले यह जानना अति आवश्यक है कि महमूद गजवानी कौन था? अब तक हम यह जान चुके हैं कि महमूद गजनी अथवा गजनवी ‘गजनी’ का शासक था और वह सुबुक्तगीन का पुत्र था। उसका जन्म 971 ईस्वी में हुआ था। उसकी माता गजनी के पास जुबलिस्तान की एक धनि महिला थी। इसी कारण महमूद को “जुबली का महमूद” भी कहा जाता है। उसने 997 ईस्वी से 1030 ईस्वी तक शासन किया। महमूद गजनवी का पूरा नाम “यमीन-उद-दौला अबुल-कासिम महमूद इब्न सुबुक्तगीन था।”
महमूद गजवाई के दरबार में “शाहनामा” का लेखक फिरदौसी रहता था।
जिस समय सुबुक्तगीन की मृत्यु हुई उस समय महमूद गजनवी के संबंध पिता के साथ अच्छे नहीं थे। अतः सुबुक्तगीन ने अपने दूसरे बेटे इस्माईल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। महमूद यह सहन करने को तैयार नहीं था और इस्माईल को युद्ध में हराकर सिंहासन प्राप्त कर लिया। उसने बुखारा के समानी वंश के शासक से बलख और गजनी का शासक उसे स्वीकार करने की प्रार्थना की।
इस तरह खलीफा अल-क़ादिर-बिल्लाह ने उसे “सम्मान का चोगा” दिया और यमीन उद्दौला (साम्राज्य की दक्षिण भुजा), अमीन-उल-मिल्लत (धर्म संरक्षक) की उपाधियों से नवाज़ा। खलीफा ने महमूद को भारत पर प्रतिवर्ष एक आक्रमण करने की आज्ञा दी। यही कारण है कि महमूद ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया।
महमूद गजनवी के भारत पर 17 आक्रमण
महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया और बहुत सा धन लूटा तथा लोगों को जबरन मुस्लमान बनाया। नीचे हम एक एक कर उसके आक्रमणों को संछिप्त रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं:-
क्रमांक | वर्ष (ईस्वी) | राज्य | शासक |
---|---|---|---|
1 | 1001 | पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) | जयपाल (हिंदूशाही वंश) |
2 | 1004 | भेरा (वर्तमान पाकिस्तान) | भेरा का स्थानीय शासक |
3 | 1006 | मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान) | अबुल फतह दाऊद |
4 | 1008 | पेशावर | आनंदपाल (जयपाल का पुत्र) |
5 | 1009 | नगरकोट (कांगड़ा, हिमाचल) | स्थानीय शासक |
6 | 1011 | थानेश्वर (हरियाणा) | स्थानीय शासक |
7 | 1014 | थानेश्वर | स्थानीय शासक |
8 | 1015 | कश्मीर | कश्मीर का स्थानीय शासक |
9 | 1018 | मथुरा और कन्नौज (उत्तर प्रदेश) | प्रतिहार वंश के शासक |
10 | 1021 | कालिंजर (उत्तर प्रदेश) | चंदेल वंश के शासक |
11 | 1022 | ग्वालियर (मध्य प्रदेश) | कच्छपघाट वंश के शासक |
12 | 1023 | लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) | त्रिलोचनपाल (हिंदूशाही वंश) |
13 | 1024 | सोमनाथ (गुजरात) | भीमदेव प्रथम (चालुक्य वंश) |
14 | 1025 | सोमनाथ (दोबारा) | भीमदेव प्रथम |
15 | 1027 | जाटों के क्षेत्र (पंजाब और सिंध) | स्थानीय जाट शासक |
16 | 1027 | मुल्तान (दोबारा) | स्थानीय शासक |
17 | 1027 | लाहौर (दोबारा) | स्थानीय शासक |
प्रथम आक्रमण- सीमावर्ती नगरों पर 1000 ईस्वी
महमूद गजनवी ने अपना प्रथम आक्रमण 1000 ईस्वी में भारत के सीमावर्ती राज्यों पर किया। उसने कई किलों पर अधिकार किया और बापस लौट गया। यद्यपि इस आक्रमण की सत्यता पर संदेह है।
दूसरा आक्रमण- हिन्दुकुश 1000 ईस्वी
महमूद गजनवी ने अपना दूसरा आक्रमण भी 1000 ईस्वी में हिन्दुकुश पर किया। यहाँ का शासक जयपाल था। महमूद गजनवी और जयपाल के मध्य पेशावर के निकट भयंकर युद्ध हुआ परन्तु मैदान महमूद के हाथ रहा। युद्ध में 15 हज़ार हिन्दू सैनिक मारे गए। जयपाल को उसके पुत्रों, पौत्रों और सेज संबंधियों सहित बंदी बनाया गया। जयपाल ने एक संधि द्वारा ढाई लाख दीनार देना स्वीकार किया। 50 हाथी देने का वचन दिया, उसके पुटों और पौत्रों को संधि पूरी होने तक बंदी के रूप में रखा गया।
महमूद ने अपनी विजय को पूर्ण करने के लिए जयपाल की राजधानी वैहंद पर आक्रमण किया। ढेर सारा लूट का धन लेकर महमूद बापस लौट गया। जयपाल इस अपमान को सहन न कर सका और चिता बनाकर अग्नि में कूदकर अपनी जान देदी। 1002 ईस्वी में उसका बेटा आनंदपाल उसका उत्तराधिकारी बना।
तीसरा आक्रमण-भेरा के राजा के विरुद्ध, 1004 ईस्वी
महमूद ने तीसरा आक्रमण भेरा (वर्तमान पाकिस्तान) के राजा के विरुद्ध किया। 1004 ईस्वी में महमूद ने भेरा के राजा को दण्डित करने के लिए आक्रमण किया और भयनकर युद्ध में असंख्य हिन्दुओं का कत्ल किया, सिर्फ उन्हें छोड़ा गया जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया। राजा ने आत्मह्या कर ली और महमूद बहुत सा लूट का धन लेकर बापस लौट गया।
चौथा आक्रमण- मुल्तान के शासक के विरुद्ध 1006 ईस्वी
महमूद गजनवी का चौथा आक्रमण मुल्तान के शासक अब्दुल फ़तेह दाऊद के विरुद्ध हुआ। दाऊद करमत समुदाय को मानता था और कट्टर इस्लाम को न मानता था। इस सम्प्रदाय ने 930 ईस्वी में मक्का पर आक्रमण करके काला प्रस्तरखण्ड, और अन्य धार्मिक चिन्ह उठा लिए थे। ये लोग सूअर का मांस भी खाते थे। अतः महमूद के लिए वे राजपूतों के समान काफिर ही थे। 1006 ईस्वी में महमूद गजनवी मुल्तान पर आक्रमण के लिए निकला। पंजाब से गुजरने वाली आक्रमणकारी सेना को आनंदपाल ने रोकने का प्रयास किया मगर पराजित हुआ।
मुल्तान के शासक और महमूद की सेना के बीच सात दिन तक युद्ध चला। अंततः महमूद को विजय मिली और उसने जनता पर 20 दरहम का दंड लगाया। महमूद ने जयपाल के पौत्र सुखपाल उर्फ़ नवासाशाह (उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया था) को पंजाब और मुल्तान का शासक बना कर बापस गजनी लौट गया।
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पाँचवाँ आक्रमण- सुखपाल के विरुद्ध- 1007 ईस्वी
कुछ समय पश्चात् महमूद गजनवी को सुचना मिली कि सुखपाल ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया है और पुनः हिन्दू बन गया है। उसे दण्डित करने के लिए महमूद ने सुखपाल उर्फ़ नवासाशाह को पराजित करके मुल्तान और पंजाब का शासन-प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। सुखपाल को बंदी बनाकर कैदखाने में डाल दिया।
छठा आक्रमण- हिन्दुशाही शासक आनंदपाल के विरुद्ध, 1008 ईस्वी
महमूद गजनवी का छठा आक्रमण हिन्दुशाही शासक आनंदपाल के विरुद्ध हुआ। फरिश्ता के विवरणानुसार आनंदपाल ने अजमेर, ग्वालियर, दिल्ली, उज्जैन, कालिंजर और कन्नौज के शासकों का संघ बनाया। इस युद्ध में मुल्तान के खोखरों ने भी आनंदपाल की सहायता की। 30000 खोखरों ने नंगे पैर और नंगे सिर भाले के साथ कई हज़ार मुसलमानों का वध कर दिया। इस भंयकर हमले से भयभीत महमूद ने आनंदपाल से संधि की प्रार्थना की। मगर दुर्भाग्य से आनंदपाल का हाथी उसे लेकर युद्ध से भाग निकला और मैदान महमूद के हाथ लग गया। इसके बाद हिन्दुओं का भयंकर हत्याकांड हुआ और लूटपाट कर महमूद बापस लौट गया।
सातवां आक्रमण- नगरकोट पर आक्रमण, 1009 ईस्वी
महमूद गजनवी का सातवां आक्रमण 1009 ईस्वी में कांगड़ा के पहाड़ी राज्य नगरकोट पर हुआ। महमूद ने नगरकोट के किले और मंदिर को लूटा। उसे लूट के सामान के साथ 7 लाख स्वर्ण दीनार, 700 मन चांदी, 200 मन शुद्ध स्वर्ण मुद्राएं, 2000 मन अपरिष्कृत रजत और 20 मन हीरे, पन्ने, रत्न, मोती और बहुमूल्य मणियां हाथ लगीं।
आठवां आक्रमण- मुल्तान के विरुद्ध 1010 ईस्वी
महमूद का दसवां आक्रमण मुल्तान के शासक दाऊद के विरुद्ध हुआ और उसे पराजित करके दण्डित किया गया।
नौवां आक्रमण- त्रिलोचनपाल के विरुद्ध 1014 ईस्वी
आनंदपाल ने महमूद गजनवी से पराजित होने के पश्चात् भी साहस नहीं खोया और नंदनाह को अपनी नई राजधानी बनाया और एक छोटी सी सेना एकत्र कर ली। आनंदपाल की मृत्यु के बाद त्रिलोचनपाल उसका उत्तराधिकारी बना। 1014 ईस्वी में महमूद ने कुछ समय के लिए नंदनाह पर अधिकार कर लिया। त्रिलोचनपाल भागकर कश्मीर पहुंचा। महमूद ने त्रिलोचनपाल और कश्मीर के शासक की सेनाओं को पराजित किया। महमूद कश्मीर में नहीं घुसा और बापस लौट गया। त्रिलोचनपाल ने भी पंजाब लौटकर शिवालिक की पहाड़ियों में अपनी शक्ति स्थापित की।
त्रिलोचनपाल ने बुल्देलखण्ड के शासक विद्याधर से मित्रता की। इस संघ को तोड़ने के लिए महमूद ने 1021-22 में रामगंगा के युद्ध में त्रिलोचनपाल को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। उसके बाद भीमपाल उसका उत्तराधिकारी बना। उसकी भी 1026 में मृत्यु हो गई और हिन्दुशाही वंश का हमेशा के लिए अंत हो गया।
दसवां आक्रमण- थानेश्वर के विरुद्ध आक्रमण, 1014 ईस्वी
महमूद गजनवी का दसवां आक्रमण 1014 ईस्वी में थानेशवर (हरियाणा) हुआ। महमूद ने थानेश्वर के किले को लूटा और चक्र स्वामी मंदिर की मूर्ति को खंडित कर सार्वजानिक स्थान पर फेंका।
ग्यारहवां आक्रमण- कश्मीर के विरुद्ध 1015 ईस्वी
कश्मीर को जीतने के लिए महमूद गजनवी ने 1015 और 1021 में दो बार प्रयास किया मगर असफल हुआ। अंत में उसने कश्मीर जीतने का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दिया।
बारहवां आक्रमण-कन्नौज के विरुद्ध 1018 ईस्वी
महमूद गजनवी ने बारहवां आक्रमण भारत की राजधानी कहे जाने वाले कन्नौज पर किया। महमूद गजनवी ने 1018 ईस्वी में आक्रमण किया और मार्ग में पड़ने वाले किलों और शहरों पर अधिकार कर लिया। महमूद बरन (आधुनिक बुलन्दशहर) पहुंचा और वहां के शासक हरिदत्त ने आत्मसर्पण करते हुए इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। महमूद ने इसके बाद जमुना के तट पर महावन प्रदेश के मुखिया कुलचंद पर आक्रमण किया। 50 हज़ार हिन्दू मारे गए। कुलचंद ने अपनी दोनों पत्नियों को काट दिया और खुद भी आत्महत्या कर ली।
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तेरहवां आक्रमण- मथुरा और कन्नौज, 1018-19 ईस्वी
महमूद गजनवी ने हिन्दुओं के पवित्र स्थल मथुरा पर 1018 ईस्वी में आक्रमण किया। महमूद ने सभी मंदिरों को लूटा और मूर्तियों को खंडित करता हुआ मंदिरों का विध्वंश किय। उसके हाथ बहुत सा धन लगा।
चौदहवांआक्रमण- वृंदावन और कन्नौज पर 1018 ईस्वी
महमूद गजनवी का 14वां आक्रमण हिन्दुओं के पवित्र शहर वृंदावन पर हुआ। नगर का हिन्दू राजा भाग गया और महमूद ने शहर और मंदिरों को बुरी तरह लूटा। 1019 में महमूद गजनवी कन्नौज पहुंचा। इस शहर में 7 दुर्ग और 10 हज़ार मंदिर थे। प्रतिहार राजा बिना युद्ध के भाग गया। महमूद ने मंदिरों को नष्ट किया और नगर को लूटा। लौटते समय मार्ग में पड़ने वाले दुर्गों और मंदिरों को नष्ट किया।
पन्द्रहवां आक्रमण- कालिंजर 1019 ईस्वी
महमूद गजनवी ने कालिंजर के चंदेल शासक गोंड पर 1019 में आक्रमण किया। गोंड के पास एक विशाल सेना थी और युद्ध मैदान में मुस्लिम सेना अपनी जान की खैर मना रही थी। मगर आश्चर्यजनक रूप से गोंड बिना युद्ध के ही मैदान से भाग खड़ा हुआ। महमूद को आशा के विपरीत विजय मिली और शहर को लूटा।
सोलहवाँ आक्रमण- 1021-22 ग्वालियर
महमूद गजनवी का सोलहवां आक्रमण ग्वालियर के शासक के विरुद्ध हुआ। चंदेल राजा गोंड के कालिंजर पर अधिकार कर लिया। गोंड राजा ने संधि कर ली और महमूद को बहुत सा धन और हाथी उपहार में मिले।
सत्रहवाँ आक्रमण- 1024-25 सोमनाथ
महमूद गजनवी ने 17वां आक्रमण गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर किया। 1025 ईस्वी में महमूद चालुक्य शासक भीमदेव की राजधानी अन्हिलवाड़ा पहुंचा। भीमदेव अपने साथियों सहित राजधानी छोड़कर भाग गया।
सोमनाथ के मंदिर में सोम देवता की धातु की मूर्ति थी जो न ऊपर कहीं लटकी थी और न नीचे कहीं टिकी थी। आक्रमणकारियों ने मंदिर के द्वार खोलने की खूब कोशिश की पर असफल रहे। अंत में एक ब्राह्मण द्वारा राज खोल दिया गया। आक्रमणकारियों ने सीढ़ियों के सहारे मंदिर में प्रवेश किया और मंदिर के ऊपर लगी ध्वज पताका को उखड फेंका। जिसके बाद मंदिर के द्वार खुल गए। मंदिर में उपस्थित प्रत्येक ब्राह्मण की हत्या की गई और सारा मंदिर परिसर रक्त से भर गया।महमूद को यहाँ से लूट का भारी माल हासिल हुआ।

महमूद गजनवी की मृत्यु कैसे हुई?
महमूद गजनवी की मृत्यु 30 अप्रैल 1030 को हुई थी। उसकी मृत्यु के संबंध कई कहानी प्रचलित हैं। कई बार यह पूछा जाता है की उसकी हत्या किसने की? तो आपको बता दें की उसकी मृत्यु स्वभाविक रूप से हुई और उसे किसी ने नहीं मारा। जिस समय उसकी मर्त्यु हुई उसकी आयु 58 वर्ष थी। सम्भवतः उसे मलेरिया या टाइफाइड जैसी कोई बीमारी हुई और टीबी से उसकी मृत्यु हुई थी। महमूद ने अपने जीवनकाल में कई युद्धों को जीता और अपने समय का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर था। उसके बाद उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र मसूद बना जिसने 1030 से 1050 तक शासन किया।
महमूद गजनवी के दरबार के प्रमुख विद्वान
नाम | विशेषता | रचना |
फिरदौसी (फ़र्दौसी) | फ़ारसी भाषा का महान कवि और लेखक | “शाहनामा” (राजाओं की पुस्तक), इसमें लगभग 60,000 छंद हैं। |
अल-बिरूनी | महान विद्वान, खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और इतिहासकार ( “भारत का पहला ज्ञात विद्वान”) | किताब-उल-हिन्द (तहक़ीक़-ए-हिन्द), भारत की संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान और सामाजिक व्यवस्था पर एक विस्तृत ग्रंथ। किताब-उल-तफहीम-गणित और खगोल विज्ञान पर एक प्रसिद्ध ग्रंथ। |
उत्बी | महमूद के दरबार का शाही लेखक | तारीख-ए-यमिनी– महमूद गजनवी के शासनकाल और उसकी विजयों का विस्तृत विवरण |
अल-फराबी | दार्शनिक और वैज्ञानिक, “दूसरा शिक्षक” (अरस्तू के बाद) | किताब-उल-मूसीकी: संगीत पर एक ग्रंथ। अरा अहल अल-मदीना अल-फादिला: एक आदर्श राज्य के बारे में दार्शनिक विचार। |
अनसरी | प्रसिद्ध कवि और लेखक | दीवान-ए-अनसरी: उनकी कविताओं का संग्रह। |
अल-ख्वारिज्मी | महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री | किताब-अल-जबर वल-मुकाबला: यह बीजगणित पर पहला ग्रंथ माना जाता है। |
अल-मसूदी | इतिहासकार और भूगोलवेत्ता | मुरूज-उल-ज़हब: यह इतिहास और भूगोल पर एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। |
महमूद गजनवी के आक्रमण का भारत पर प्रभाव
महमूद गजनवी धर्मांध और कटटर मुसलमान था, उसने भारत पर आक्रमणों की जो श्रंखला शुरू की उसके गहरे और दूरगामी प्रभाव पड़े। यद्यपि उसका उद्देश्य भारत की धन सम्पदा लूटना था लेकिन उसने मंदिरों का विध्वंश किया और लोगों को जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करने को बाध्य किया। महमूद के आक्रमणों का प्रभाव भारत के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे पर गहराई से पड़ा। नीचे हम इन प्रभावों का संछिप्त रूप में अध्ययन करेंगे।
राजनीतिक प्रभाव:
- भारतीय राजाओं की सैन्य कमजोरी उजागर होना: जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया उस समय अधिकांश भारत पर राजपूतों का शासन था। राजपूत यद्यपि बहादुर और लड़ाकू थे मगर दुश्मन के सामने उन्होंने एकता का परिचय नहीं दिया और परिणामस्वरूप वे अधिकांश समय पराजित हुए और इनकी कमजोरी ने आगे आक्रांताओं को भी भारत की ओर आकर्षित किया।
- केंद्रीय शक्ति और नेतृत्व का भाव: जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, उस समय भारत्त में कोई भी ऐसी केंद्रीय शक्ति नहीं थी जो सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांध सके। इस कमजोरी का फायदा आक्रांताओं ने उठाया।
- भविष्य में आक्रांताओं के लिए सुनहरा अवसर: महमूद गजनवी की सफलता ने भारत में भविष्य के आक्रांताओं को आकर्षित किया और मोहम्मद गोरी के आक्रमण इसी का परिणाम थे। भारत मुसलमान आक्रांताओं के लिए सबसे अच्छा मौका बन गया।
आर्थिक प्रभाव:
- भारतीय धन सम्पदा की लूट: महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत में धन सम्पदा का प्रचुर मात्रा में उपलब्धता ने आक्रांताओं को आकर्षित किया और महमूद ने भारत के राजाओं के आलावा मंदिरों से अथाह धन प्राप्त किया। सोमनाथ के मंदिर की लूट में महमूद को इतना धन हाथ लगा कि उसकी उसने गजनी में जाकर प्रदर्शनी लगाई।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर चोट: महमूद गजनवी ने भारत के राजाओं और मंदिरों के साथ लोगों से बहुत सा धन लूटा और यह धन भारत से बहार चला गया और भारत की अर्थव्यवस्था अंदर से खोखली होने लगी।
- विदेशी व्यापार पर प्रभाव: महमूद गजनवी के आक्रमणों ने भारत और मध्य एशिया के बीच होने वाले व्यापार को बहुत हानि पहुंचाई। भारत के व्यापारियों ने भारत से मध्य एशिया का व्यापार लगभग बंद कर दिया।
सामाजिक प्रभाव:
- भारतीय जनमानस में भय: महमूद गजनवी से पूर्व जो आक्रमण हुए उसका प्रभाव भारत की जनता पर उतना नहीं पड़ा। मगर ,महमूद ने जिस तरह 17 बार भारत को लूटा और लोगों की हत्या की उसने भारतीय जनमानस में भय उत्पन्न कर दिया और भारत की सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई।
- धार्मिक स्थिति में बदलाब: महमूद गजनवी ने जिस तरह हिन्दू मंदिरों को लूटा और मूर्तियों का विध्वंश किया उसने भविष्य में हिन्दू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य को जन्म दिया। महमूद ने बहुत से लोगों को जबरन मुस्लमान बनाया और भारत की सामजिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया।
- सांस्कृतिक और धार्मिक व्यवस्था पर चोट: महमूद गजनवी ने भारत के मंदिरों और दुर्गों को बुरी तरह नष्ट किया और नई इमारतों के निर्माण को शुरू किया। इससे भारत की सांस्कृतिक स्थिति में बदलाब आया। त्यौहार और परम्पराओं में परिवर्तन आया।
सांस्कृतिक प्रभाव:
- हिन्दू मंदिरों का विध्वंश: महमूद ने अपने आक्रमणों के दौरान कई प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों का विश्वंश किया जैसे, (सोमनाथ, मथुरा, और थानेश्वर, नगरकोट) को पूरी तरह नष्ट कर दिया इन मंदिरों में अलग-अलग शैली की मूर्तियां और शिक्षा की व्यवस्था प्रचलित थी जिसने महमूद ने भारी आघात पहुँचाया।
- कला और संस्कृति का नुकसान: मंदिरों के विनाश से भारतीय कला और वास्तुकला को गहरा आघात पहुँचा। मंदिरों में रखी गई मूर्तियाँ और कलाकृतियाँ नष्ट हो गईं।
- इस्लाम धर्म का प्रसार: महमूद के आक्रमणों के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को मुसलमान बनाया गया। भारत में एक अलग प्रकार की संस्कृति का विकास हुआ। भारत का निम्न वर्ग विशेष रूप से इस्लाम की तरफ आकर्षित हुआ क्योंकि हिन्दू धर्म में उनके साथ भेदभाव होता था मगर इस्लाम ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया।
धार्मिक प्रभाव:
- हिन्दू मंदिरों की लूट: महमूद ने भारत पर आक्रमण करते ही यह समझ लिया था कि हिन्दुओं के मंदिर धन सम्पदा के मुख्य अड्डे हैं और राजा अपना धन मंदिरों में दान करते थे। अतः उसने अपने आक्रमणों के दौरान मंदिरों को निशाना बनाया और वहां संरक्षित धन सम्पदा को लूटकर अपने साथ ले गया। सोम्नताह के अमंदिर से इतना धन मिला कि उसे दर्जन से जायद नावों में भरकर ले जाना पड़ा।
- धार्मिक असुरक्षा: महमूद गजनवी के आक्रमणों ने हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना को जन्म दिया, जिसने आगे चलकर कई कुरीतियों को जन्म दिया जैसे पर्दा प्रथा, शिशु हत्या और बाल विवाह आदि। हिन्दुओं में अपने दह्र्मिक स्थलों और धन सम्पदा के प्रति असुरक्षा की भावना ने जन्म लिया।
सैन्य प्रभाव कमजोरी की पहचान
महमूद गजनवी और भारतीय राजाओं में सैन्य सञ्चालन और कुशलता की तुलनात्मक अध्ययन से यह बात सिद्ध हुई कि भारतीय सैनिक अभी भी पुरानी पद्धति से युद्ध करते थे। जबकि महमूद की सेना तेज अरबी घोड़ों के साथ भारतीय सेना की धीमी गति का फायदा उठाकर मैदान में सफल होती थी। इसके बावजूद भारत के राजाओं ने अपनी सेना और युद्ध पद्धति में कोई बदलाव नहीं किया। इसी का फायदा भविष्य में आने वाले क्रान्ताओं ने उठाया और भारत अंग्रेजों के आगमन तक मुसलमान शासन के अंतर्गत शासित रहा।
निष्कर्ष
महमूद गजनवी के आक्रमणों का भारत पर गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। उसके आक्रमणों ने भारत की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को प्रभावित किया और भविष्य में मुस्लिम शासन के लिए मार्ग प्रशस्त किया। हालाँकि, उसका मुख्य उद्देश्य धन लूटना था, न कि स्थायी शासन स्थापित करना।
महमूद गजनवी के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न-FAQs
प्रश्न- महमूद गजनवी ने भारत पर कितने आक्रमण किये?
उत्तर- महमूद गजनवी ने भारत पर 1000 ईस्वी से 1025 ईस्वी तक 17 बार आक्रमण किया।
प्रश्न- सोमनाथ के मंदिर को किसने लूटा?
उत्तर- सोमनाथ के मंदिर को महमूद गजनवी ने 1025 ईस्वी में लूटा।
प्रश्न- महमूद गजनवी के पिता का क्या नाम था?
उत्तर- महमूद गजनवी के पिता का नाम सुबुक्तगीन था।
प्रश्न- महमूद गजनवी का जन्म कब हुआ?
उत्तर- महमूद गजनवी का जन्म जुबलिस्तान( आधुनिक अफगनिस्तान) में 2 नवंबर 971 ईस्वी में हुआ।
प्रश्न- महमूद गजनवी का पूरा नाम क्या था?
उत्तर- उसका पूरा नाम अबू अल-कासिम महमूद इब्न सबुकतिगिन था।
प्रश्न- महमूद गजनवी को किसने मारा?
उत्तर- महमूद गजनवी की मृत्यु मलेरिया अथवा टीवी के कारण स्वाभविक रूप से हुई।
प्रश्न- महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण कहाँ हुआ?
उत्तर- महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण नमक के पहाड़ पर बसे जाटों के विरुद्ध था।
प्रश्न- महमूद गजनवी की मृत्यु कब हुई?
उत्तर- महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ईस्वी में हुई।
प्रश्न- महमूद गजनवी का गुलाम कौन था?
उत्तर- महमूद गजनवी का गुलाम मलिक अयाज़ था जिसे वह बहुत प्रेम करता था।
प्रश्न- किस भारतीय शासक ने महमूद गजनवी को हराया?
उत्तर- कश्मीर की रानी दिद्दा ने महमूद गजनवी के 1025 के कश्मीर आक्रमण को असफल किया।