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औरंगज़ेब का इतिहास: प्रारम्भिक जीवन, उपलब्धियां, साम्राज्य विस्तार और हिन्दुओं के साथ व्यवहार | Aurangzeb History in Hindi

By thebio Admin

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मध्यकालीन भारतीय इतिहास में मुग़लों ने भारत के इतिहास को गहराई से प्रभावित किया। मुग़ल शासकों में जहाँ अकबर को सबसे सम्मानित स्थान दिया जाता है वहीँ औरंगजेब सबसे अधिक घृणा का पात्र माना जाता है। औरंगज़ेब का व्यक्तिगत जीवन भले ही निष्कलंक हो मगर उसने जिस तरह हिन्दुओं के साथ व्यवहार किया उसके कारण भारतीय इतिहास में उसे एक क्रूर शासक की स्नज्ञा दी गई है।

अभी हाल में एक बॉलीवुड फिल्म “छावा” आई जिसमें औरंगजेब और शिवाजी के पुत्र संभाजी के साथ औरंगजेब की क्रूरता को जिस तरह दिखाया गया है उसने एक बार फिरसे औरंगजेब के बारे में जानने को उत्सुकता पैदा की है।

इस लेख Aurangzeb History in Hindi में हम औरंगजेब के जीवन और इतिहास से जुड़े इतिहास और उसकी हिन्दुओँमेँ के सतह नीति का विस्तार से अध्ययन करेंगे और जानेंगे कि क्या वास्तव में औरंगजेब इतना ही क्रूर था अथवा यह सब एक राजनीतिक हितार्थ किया जा रहा है।

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नामऔरंगज़ेब
पूरा नामअबुल मुज़फ्फर मुही-उद-दीन मुहम्मद औरंगज़ेब
जन्म3 नवंबर 1618
जन्मस्थानदाहोद, गुजरात (वर्तमान भारत)
पिताशाहजहाँ (मुगल सम्राट)
मातामुमताज़ महल
वंशतैमूरी वंश (मुगल वंश)
सिंहासनारोहण31 जुलाई 1658
शासनावधि1658 से 1707 (49 वर्ष)
पूर्ववर्तीशाहजहाँ
उत्तरवर्तीबहादुर शाह I
धर्मइस्लाम (सुन्नी)
पत्नियाँदिलरस बानो बेगम, नवाब बाई, औरंगाबादी महल, उदयपुरी महल
संतान6 बेटे (बहादुर शाह I, आज़म शाह, काम बख्श आदि) और 6 बेटियाँ
भाई-बहनदारा शिकोह, शाह शुजा, मुराद बख्श, जहाँआरा बेगम, रोशनारा बेगम आदि
मृत्यु3 मार्च 1707
मृत्यु के समय आयु88 वर्ष
मक़बरा/कब्रखुल्दाबाद, महाराष्ट्र (एक साधारण कब्र)

Table of Contents

Aurangzeb History: औरंगजेब का प्रारम्भिक जीवन

औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर 1618 को दाहोद, गुजरात में हुआ था। वह मुग़ल सम्राट शाहजहाँ और उनकी पत्नी मुमताज़ महल की तीसरी संतान के रूप में पैदा हुआ था। उसका पूरा नाम अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब था।

औरंगजेब का प्रारम्भिक जीवन मुग़ल परिवार की परंपराओं और इस्लामिक शिक्षा के अनुसार व्यतीत हुआ। वह बचपन से ही बहुत तेज बुद्धि का था और उसे इस्लामी शिक्षा, फ़ारसी, अरबी और तुर्की भाषाओं का ज्ञान प्रदान किया गया। साथ ही, उसे युद्ध कौशल और प्रशासनिक कार्यों में भी प्रशिक्षित किया गया। यही कारण था कि शासक बनने के बाद उसने मुग़ल इतिहास का सबसे ज्यादा सूबे वाला साम्राज्य खड़ा किया।

औरंगजेब के जीवन में उनके पिता शाहजहाँ और भाइयों के साथ संबंध काफी विवादस्पद रहे। 1657 में शाहजहाँ के बीमार पड़ने के बाद, औरंगजेब और उनके भाइयों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में औरंगजेब ने अपने भाइयों को हराकर 1658 में स्वयं को भारत का सम्राट घोषित कर दिया।

औरंगजेब के प्रारम्भिक जीवन की घटनाएं उनके शासनकाल की नींव रखती हैं, जो बाद में एक कट्टर और न्यायप्रिय शासक के रूप में उभरा। उनका शासनकाल (1658-1707) मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में सबसे लंबा और विवादास्पद माना जाता है। वह हिन्दुओं के बीच सबसे अधिक घ्रणित शासक रहा और आज भी यह घृणा कम नहीं हुई है क्योंकि इसे राजनीतिक खाद-पानी मिलता रहता है।

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औरंगज़ेब और दारा शिकोह तथा उत्तराधिकार के लिए संघर्ष

औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच का संघर्ष मुगल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और नाटकीय अध्याय है। यह संघर्ष न केवल सत्ता के लिए था, बल्कि इसमें धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक मतभेद भी शामिल थे। दोनों भाइयों के बीच यह संघर्ष उत्तराधिकार युद्ध (War of Succession) के रूप में जाना जाता है, जिसमें औरंगज़ेब विजयी हुआ और दारा शिकोह की हार और मृत्यु हुई।


औरंगज़ेब बनाम दारा शिकोह: तुलना

पहलूऔरंगज़ेबदारा शिकोह
जन्म3 नवंबर 161820 मार्च 1615
पिताशाहजहाँशाहजहाँ
मातामुमताज़ महलमुमताज़ महल
व्यक्तित्वकट्टर मुस्लिम, सैन्य नेता, कूटनीतिज्ञउदारवादी, दार्शनिक, सूफी विचारक, धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक
धार्मिक दृष्टिकोणइस्लाम को बढ़ावा दिया, जजिया कर लगाया, मंदिर तोड़ेहिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक, उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया
राजनीतिक दृष्टिकोणसत्ता के लिए कठोर और निर्मम, भाइयों को हराकर सिंहासन हासिल कियाशांतिपूर्ण और उदार शासन के पक्षधर, सांस्कृतिक एकता को महत्व दिया
सैन्य कौशलउत्कृष्ट सैन्य नेता, युद्ध कौशल में माहिरसैन्य नेतृत्व में कमजोर, युद्ध कौशल में औसत
सांस्कृतिक योगदानकम, धार्मिक निर्माण कार्यों पर ध्यान केंद्रितउपनिषदों का फारसी में अनुवाद, हिंदू-मुस्लिम सद्भाव को बढ़ावा दिया
उत्तराधिकार युद्धविजयी, दारा शिकोह को हराया और मार डालाहार गया, औरंगज़ेब द्वारा कैद और मृत्युदंड
मृत्यु3 मार्च 1707 (88 वर्ष की आयु में)30 अगस्त 1659 (44 वर्ष की आयु में, औरंगज़ेब के आदेश पर मृत्युदंड)

संघर्ष का कारण:

  1. सत्ता की लड़ाई: शाहजहाँ के बीमार पड़ने के बाद, उसके चार बेटों (औरंगज़ेब, दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श) के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया।
  2. धार्मिक मतभेद: दारा शिकोह उदारवादी और धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक थे, जबकि औरंगज़ेब कट्टर मुस्लिम था और इस्लाम को बढ़ावा देना चाहता था।
  3. शाहजहाँ का पक्ष: शाहजहाँ ने दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी चुना, जिससे औरंगज़ेब नाराज़ था।

प्रमुख घटनाएँ:

  1. समरगढ़ का युद्ध (1658): औरंगज़ेब और मुराद बख्श की संयुक्त सेना ने दारा शिकोह को हराया।
  2. खजवा का युद्ध (1659): औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को फिर से हराया और उसे गिरफ्तार कर लिया।
  3. दारा शिकोह की मृत्यु: औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को मृत्युदंड दिया और उसका सिर काटकर दिल्ली भेजा।

औरंगजेब के प्रारम्भिक प्रशासनिक प्रबंध

अपने भाइयों से उत्तराधिकार के विवाद से निपटने के बाद औरंगजेब का औपचारिक राज्याभिषेक जुलाई 1658 में हुआ मगर वास्तविक रूप से उसने 1661 में अपना सिंहासन संभाला और आलमगीर की उपाधि धारण की। इसके बाद उसने शासन प्रभंध की ओर ध्यान दिया। उसके प्रारम्भिक प्रबंध इस प्रकर थे-

  • अनावश्यक करों की समाप्ति– मुग़ल सेना द्वारा किसानों की खेती को जिस प्रकार उजाड़ा गया था उसे देखते हुए औरंगजेब ने “सहदारी” कर को समाप्त कर दिया।
  • “पंडारी” कर की समाप्ति- औरंगजेब ने पंडारी कर अर्थात भूमि-करगृह कर समाप्त कर दिया। ऐसे 18 करों को समाप्त किया गया जो हिन्दू और मुस्लिम प्रजा से बसूल किये जाते थे। यद्यपि ख़फ़ी खां केवल 14 का ही उल्लेख करता है।
  • सिक्कों पर कलमा लिखना बंद- औरंगजेब के अनुसार सिक्कों को सभी धर्मों के लोग छूटे हैं इसलिए पवित्र “कलमा” लिखा जाना बंद कर दिया।
  • नौरोज का त्यौहार मनाया जाना बंद- औरंगज़ेब ने फ़ारसी त्यौहार “नौरोज” को मनाना प्रतिबंधित कर दिया।
  • मुतसहिब ( धर्माधिकारी)- औरंगजेब ने जनता का चरित्र पर निगरानी रखने के लिए धर्माधिकारियों ( मुत्सहिब) की नियुक्ति की। ये अधिकारी देखते थे कि कोई कुरान के विरुद्ध तो आचरण नहीं कर रह अथवा मदिरापान तो नहीं कर रहा। दारा शिकोह के साथी सूफियों को कठोर दण्ड दिए गए।

पूर्वी सीमांत पर युद्ध 1661-1666

बिहार के राज्यपाल दाऊदखां ने 1661 में पोलमन पर विजय प्राप्त की। इधर औररंगजेब ने शाहशुजा का पीछा करने के लिए मीर जुमला को भेजा जिसने उसे बंगाल से ढाका और वहां से मई 1663 में अराकान के सीमाओं से परे खदेड़ दिया। इसके बाद औरंगज़ेब को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त कर दिया और उसे प्रोत्साहित किया गया। इसके बाद मीर जुमला ने कूचबिहार और असम पर विजय प्राप्त की। वह चीन पर आक्रमण की योजना बना रहा था मगर सीमित संसाधनों के होते उसे यह योजना त्यागनी पड़ी और 1663 में उसका देहांत हो गया।

मीर जुमला के स्थान पर शाइस्ताखां को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त करके भेजा गया। उसने अनुभव किया कि पुर्तगाली और बर्मी समुद्री लुटेरे बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। अतः उसने अराकान के राजा को चटगांव से 1666 में भगा दिया और सोनद्वीप पर भी अधिकार कर लिया।

औरंगज़ेब के बीमारी 1662

1662 ईस्वी में औरंगज़ेब गंभीर रूप से बीमार हुआ और लगभग एक महीने तक बिस्तर पर पड़ा रहा। जब थोड़ा सही हुआ तो वह स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए कश्मीर चला गया। वर्नियर इस यात्रा में औरंगज़ेब के साथ गया और उसने इस यात्रा का विवरण दिया है।

उत्तर पश्चिम सीमा-नीति

उत्तर-पश्चिमी सीमा हमेशा ही मुग़ल साम्राज्य की लिए असुरक्षित और चनौतीपूर्ण रही। औरंगज़ेब ने धार्मिक और राजनीतिक कारणों से उदार नीति का पालन किया। ये कबीलाई समूह अत्यंत गरीब थे और पंजाब का धन उन्हें आकर्षित करता था।

प्रारम्भ में औरंगज़ेब ने उन्हें धन और जागीरें देकर शांत करने की कोशिश की मगर इसका कोई परिणाम नहीं निकला और 1667 में युसुफ़ियों ने अपने नेता भागू के नतृत्व में कटक नदी पार की और हज़रा जिले पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने वहां जमकर उत्पात मचाया। 1672 ईस्वी में अकमलखां के नेतृत्व में अफ्रीदियों ने विद्रोह कर दिया उसने मुग़ल सेना को पराजित किया और खुदको राजा घोषित कर दिया।

खुशहालखां के नेतृत्व में “खट्क” भी अफ्रीदियों से आ मिला और उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अफगानों ने 1674 में शुजातखां के नेतृत्व में मुग़ल सेना पर आक्रमण किया मगर वह युद्ध क्षेत्र में ही मारा गया।

1674 में औरंगजेब ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए इस मामले को अपने हाथ में ले लिया। उसने अफगानों को उपहार और धन देकर अपनी ओर मिला लिया और अफगान गुटों में फुट डालकर उनकी एकता को तोड़ दिया। ख़ुशहालखां को उसके बेटे ने धोके से पकड़वा दिया। इस तरह औरंगज़ेब ने अपनी कूटनीति से उत्तर-पश्चिमी सीमा पर शांति स्थापित की।

औरंगज़ेब और मुस्लिम जगत

औरंगजेब ने जिस प्रकार अपने पिता और भाइयों के साथ क्रूर व्यवहार किया उससे मुस्लिम जगत में उसके प्रति नकारात्मक विचार थे। अतः उसने 1661 से 1667 तक मक्का के इमाम, फारस, बल्ख, बुखारा, एबीसीनिया, काश्गर, खिवा और शहरीनाऊ के राजाओं और यमन, मोचा, हदरामत के राजयपालों के दूतों का अपने दरबार में हव्य स्वागत किया और मुस्लिम जगत की सहनभूति पाने के प्रयास किये।

औरंगजेब की दरबार की नीतियां

औरंगज़ेब एक कट्टर इस्लाम को मानने वाला था और उसने इसे व्यवहार में दिखाना प्रारम्भ किया सिंहासन पर बैठते ही उसने कुछ ऐसे निर्णय लिए जिनका जिक्र करना अत्यंत आवश्यक है-

  • औरंगज़ेब ने दरबार से गवैये और नाचने-गाने वालों को पूर्णतः वर्जित कर दिया।
  • “झरोखा दर्शन” की प्रथा को बंद कर दिया गया। उसकी यह नीति जनता के लिए बहुत निराशाजनक थी, अब जनता और राजा का सीधा सम्पर्क समाप्त हो गया।
  • तुलादान प्रथा का अंत– औरंगज़ेब ने अपने शासन के बारहवें वर्ष में सोने-चांदी से सम्राट को तोलने की प्रथा समाप्त का दी।
  • माथे पर तिलक लगाने की परम्परा का अंत- पहले औरंगज़ेब दरबार में उपस्थित होने वाले हिन्दू राजाओं को तिलक लगाकर स्वागत करता था पर इस रिवाज को हिन्दुओं का रिवाज कहकर बंद कर दिया ,
  • विजय दशमी के त्यौहार में हिस्सा लेना बंद- औरंगजेब पहले विजयदशमी के त्यौहार में हिस्सा लेता था मगर उसने इसे अब पूर्णतः बंद कर दिया।
  • हिन्दू राजज्योतिषों और पंडितों को पदों से पदच्युत कर दिया।
  • दरबार से सोने-चांदी के धूपपात्र हटा दिए गए।
  • वेश्याओं को शादी करने अथवा देश छोड़कर जाने का फरमान जारी हो गया।
  • भांग का खुले में पीना और खेती करना बंद कर दिया गया।
  • जुआ खेलना पूर्णतः वर्जित कर दिया गया।
  • सार्वजानिक संगीत कार्यक्रम पूर्णतः बंद करा दिए गए।
  • 1669 ईस्वी में मुहर्रम मनाया जाना बंद कर दिया गया।
  • दरबार से हिन्दू मनसबदारों की संख्या घटा दी गई।

हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने की नीति

औरंगज़ेब कट्टर इस्लाम को मानने वाला शासक था और उसने हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने की आज्ञा जारी की। 1659 में उसने काशी के प्राचीन मंदिरों के (प्रबंध के) अधिकार के विषय में एक विवाद में एक निर्णय दिया जो इस प्रकार है- “इस्लामिक कानून के अनुसार यह निर्णय किया जाता है कि प्राचीन मंदिरों को न तोडा जाये, किन्तु कोई नया मंदिर न बनने दिया जाये। ………..हमारी शाही आदेश है कि तुम देखो की भविष्य में कोई मनुष्य गैरकानूनी तौर पर इन स्थानों के ब्राह्मणों और अन्य हिन्दू निवासियों को तंग न करे न ही दखल दे।”

औरंगज़ेब ने गुजरात के सोमनथ मंदिर को नष्ट कर दिया। 1665 में उसने उन मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया जिन्हें उसने गुजरात का राज्यपाल रहते हुए नष्ट किया था मगर हिन्दुओं उन्हें पुनः जीर्णोद्धार कर पूजा-पाठ शुरू कर दिया था।

उड़ीसा के मंदिरों को तोड़ने के आदेश जारी किये गए, विशेषकर ऐसे मंदिर जो पिछले 10 या 12 साल में बने हों। पुराने मंदिरों की मरम्मत पर रोक लगा दी गई।

1666 में औरंगजेब ने मथुरा के केशवदेव मंदिर के कटहरा जिसे स्वयं दाराशिकोह द्वारा बनवाया गया था को नष्ट कर दिया गया।

1656 में औरंगज़ेब ने आज्ञा दी कि बनारस, मुल्तान और सिंध के मंदिरों में विद्या-पाठन पूर्णतः बंद करा दिया जाये।

अगस्त 1669 में काशी के विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब के आदेश से पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। इसके आलावा गोपीनाथ मंदिर भी नष्ट कर दिया गया और मथुरा में वीरसिंह बुंदेले द्वारा ३३ लाख रूपये की लगत से बनवाया गया केशवराय मंदिर ही नष्ट कर उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गई।

1669 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के मृत्यु के बाद उसके राज्य को मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बना दिया गया और वहां के मंदिरों को नष्ट किया गया। अकेले उदयपुर में 235 मंदिर नष्ट किये गए। जयपुर और अम्बेर के बहुत से मंदिरों को तोडा गया।

इसके आलावा औरंगजेब ने हिन्दुओं पर लगने वाला ‘तीर्थयात्रा कर‘ जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था पुनः लगा दिया गया।

हिन्दू त्योहारों के मनाये जाने पर रोक लगा दी गई। 1665 में होली मनाये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। दिवाली के त्यौहार पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

1703 में अहमदाबाद, सावरमती तट पर मुर्दों को जलाना प्रतिबंधित कर दिया गया। ऐसा ही आदेश दिल्ली, युमना नदी के तट के लिए दिया गया।

हिन्दुओं को मुसलमानों जैसी वेश-भूषा पहनने पर रोक लगा दी गई।

1664 की एक आज्ञा के अनुसार मराठों और राजपूतों के आलावा कोई भी हिन्दू ईरानी घोड़े, हाथी अथवा पालकी में सवारी न करे। हिन्दुओं की अंगूठियों में लगाए जाने वाले हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र कोई भी मुस्लिम कारीगर न उकेरे, ऐसा विशेष आदेश 1702 में जारी किया गया।

जजिया कर– जजिया कर सबसे घ्रणित करों में से एक था जो सिर्फ हिन्दू जनता पर लगता था, जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था। औरंगजेब ने 1679 में पुनः जजिया कर लागू कर दिया। यह कर इनायतखाँ दीवाने खालसा के कहने पर लगाया गया। जजिया कर प्रत्येक हिन्दू को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर देना पड़ता था। जजिया कर को बसूले के लिए व्यापक पैमाने पर इंतज़ाम किये गए।

सम्पत्ति जजिया कर की दर
200 दिरहम 12 दिरहम (सम्पत्ति का 6%)
200 दिरहम (52 रूपये ) से 2,500 रूपये 24 दिरहम
10,000 दिरहम 48 दिरहम

दुर्गादास राठौड़ (Durgadas Rathore) और औरंगज़ेब

दुर्गादास राठौड़ (Durgadas Rathore) और औरंगज़ेब (Aurangzeb) के मध्य का संघर्ष मुग़ल साम्राज्य और राजपूताना (विशेषकर मारवाड़) के बीच एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। यह संघर्ष मुख्य रूप से राजपूत स्वाभिमान, स्वतंत्रता, और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया युद्ध था। दुर्गादास राठौड़ मारवाड़ के राठौड़ वंश के एक वीर योद्धा और नेता थे, जिन्होंने औरंगज़ेब की कट्टर नीतियों के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष किया।

संघर्ष की पृष्ठभूमि:

  • मारवाड़ का महत्व: मारवाड़ (जोधपुर) राजपूताना का एक प्रमुख राज्य था, जो अपनी वीरता और स्वाभिमान के लिए प्रसिद्ध था। मुग़ल साम्राज्य ने राजपूत राज्यों को अपने अधीन करने की कोशिश की, लेकिन राजपूतों ने हमेशा अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने का प्रयास किया।
  • औरंगज़ेब की नीतियाँ: औरंगज़ेब ने राजपूतों को अपने अधीन करने और उनकी स्वतंत्रता को समाप्त करने की नीति अपनाई। उसने राजपूत राजाओं को अपने दरबार में बंधक बनाकर रखा और उन्हें मुसलमान बनने को बाध्य किया।

दुर्गादास राठौड़ और औरंगज़ेब का संघर्ष:

जसवंत सिंह की मृत्यु और मारवाड़ की स्थिति: 1678 में मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद, औरंगज़ेब ने मारवाड़ को मुग़ल साम्राज्य में मिलाने का प्रयास किया। जसवंत सिंह के कोई पुत्र नहीं थे, लेकिन उनकी विधवा रानी ने दो पुत्रों (अजीत सिंह और दलथंभन) को जन्म दिया। औरंगज़ेब ने इन शिशुओं को मुग़ल दरबार में बंधक बनाने की कोशिश की, ताकि मारवाड़ पर उसका नियंत्रण स्थापित हो सके।

दुर्गादास की भूमिका: दुर्गादास राठौड़, जो जसवंत सिंह के एक वफादार सेनापति थे, ने औरंगज़ेब की इस नीति का विरोध किया। उन्होंने अजीत सिंह और दलथंभन को सुरक्षित निकालकर मारवाड़ लाने की योजना बनाई। दुर्गादास ने कई वर्षों तक औरंगज़ेब की सेना के साथ संघर्ष किया और अजीत सिंह को सुरक्षित रखा। उन्होंने मारवाड़ की स्वतंत्रता को बचाने के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई।

संघर्ष और युद्ध: दुर्गादास ने औरंगज़ेब की विशाल सेना के विरुद्ध छापामार युद्ध लड़ा। उन्होंने मुग़ल सेना को कई बार पराजित किया और मारवाड़ की स्वतंत्रता को बचाए रखा। इस संघर्ष में दुर्गादास को अन्य राजपूत राज्यों, जैसे मेवाड़ और अम्बेर, का भी समर्थन मिला। राजपूतों ने एकजुट होकर औरंगज़ेब की कट्टर नीतियों का विरोध किया।

अजीत सिंह का राज्याभिषेक: दुर्गादास के प्रयासों से अजीत सिंह को सुरक्षित रखा गया और उन्हें 1707 में मारवाड़ का राजा घोषित किया गया। इसके साथ ही मारवाड़ की स्वतंत्रता को बहाल किया गया।

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सतनामियों का विद्रोह

सतनामी विद्रोह (Satnami Rebellion) 17वीं शताब्दी में मुग़ल शासन के खिलाफ हुआ एक महत्वपूर्ण जन-विद्रोह था। यह विद्रोह 1672 में हरियाणा और उसके आसपास के क्षेत्रों में हुआ था। सतनामी एक धार्मिक समुदाय थे, जो समाज के निचले तबके (मुख्यतः किसान, शिल्पकार और मजदूर) से आते थे। यह विद्रोह मुग़ल शासन की अत्याचारी नीतियों, सामाजिक अन्याय और धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ एक जन-आंदोलन था।

धार्मिक विश्वास: सतनामी समुदाय एक धार्मिक संप्रदाय था, जिसकी स्थापना संत बिरभान (Birbhan) ने की थी। यह समुदाय भक्ति आंदोलन से प्रभावित था और ईश्वर के प्रति समर्पण, सादगी और सामाजिक समानता पर जोर देता था। सतनामी मुख्यतः निचली जातियों और गरीब वर्ग से आते थे। वे मुग़ल शासन के अधीन सामाजिक और आर्थिक शोषण का शिकार थे।

विद्रोह की शुरुआत और घटनाक्रम:

  • विद्रोह की शुरुआत: 1672 में, नारनौल (हरियाणा) के पास एक पैदल मुग़ल सैनिक ने एक सतनामी किसान के साथ दुर्व्यवहार किया। इस घटना ने सतनामी समुदाय को एकजुट कर दिया और उन्होंने मुग़ल शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
  • विद्रोह का विस्तार: सतनामी विद्रोहियों ने नारनौल और उसके आसपास के क्षेत्रों में मुग़ल अधिकारियों और सैनिकों पर हमला किया। उन्होंने मुग़ल सेना को कई बार पराजित किया और क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

औरंगज़ेब की प्रतिक्रिया:

  • औरंगज़ेब ने सतनामी विद्रोह को गंभीरता से लिया और एक बड़ी सेना भेजकर विद्रोह को दबाने का प्रयास किया। मुग़ल सेना ने सतनामी विद्रोहियों के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ीं। अंततः, मुग़ल सेना ने अपनी संख्यात्मक और सैन्य शक्ति के बल पर विद्रोह को दबा दिया। मुग़ल सेनापति रदनदाजखाँ ने इस विद्रोह को काबू में किया।

गोकुल का विद्रोह

गोकुल का विद्रोह (Gokula’s Rebellion) 17वीं शताब्दी में मुग़ल शासन के खिलाफ हुआ एक महत्वपूर्ण किसान विद्रोह था। यह विद्रोह 1669-1670 के दौरान मथुरा और आगरा के आसपास के क्षेत्रों में हुआ था। इस विद्रोह का नेतृत्व तिलपत के जमींदार गोकुला (Gokula) नामक एक जाट नेता ने किया था। यह विद्रोह मुग़ल शासन की अत्याचारी नीतियों, भारी करों और धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ एक जन-आंदोलन था।

विद्रोह की शुरुआत: 1669 में, गोकुला ने मथुरा और आगरा के आसपास के क्षेत्रों में किसानों और जाट समुदाय को एकजुट किया और मुग़ल शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। गोकुला की मृत्यु, 1670 में, गोकुला को मुग़ल सेना ने पकड़ लिया और उन्हें मार डाला गया। उनकी मृत्यु के साथ ही विद्रोह का अंत हो गया। इस विद्रोह में 5000 जाट और 4000 मुग़ल सैनिक मारे गए।

लेकिन मथुरा के नए फौजदार ने भी अब्दुलनवी की तरह जनता पर अत्याचार करने शुरू किये तो एक बार फिर 1686 में राजाराम के नेतृत्व में विद्रोह शुरू हो गया। 1688 में सिंकन्दरा के निकट अकबर को मकबरे को लूटा। राजाराम युद्ध में मारा गया और 1691 में जाटों की रियासतों पर कब्जा कर लिया गया मगर जाटों ने चूड़ामन के नेतृत्व में औरंगज़ेब की मृत्यु तक संघर्ष जारी रखा।

औरंगजेब और बुंदेले

औरंगज़ेब (Aurangzeb) और बुंदेलों (Bundelas) के बीच का संघर्ष मुग़ल साम्राज्य और बुंदेलखंड क्षेत्र के स्थानीय शासकों के बीच एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। बुंदेले राजपूत वंश के थे और उन्होंने बुंदेलखंड (वर्तमान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों) में अपना शासन स्थापित किया था। औरंगज़ेब के शासनकाल (1658-1707) में बुंदेलों ने मुग़लों के खिलाफ कई विद्रोह किए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी के साथ मिलकर किया गया संघर्ष था।

पृष्ठभूमि:

बुंदेलखंड का महत्व: बुंदेलखंड एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र था, जो मुग़ल साम्राज्य और दक्कन के बीच स्थित था। यह क्षेत्र अपनी सैन्य शक्ति और स्वतंत्रता के लिए प्रसिद्ध था। बुंदेले शासकों ने लंबे समय तक अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी और मुग़लों के विस्तारवादी प्रयासों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया।

औरंगज़ेब और बुंदेलों का संघर्ष:

चंपत राय का विद्रोह: चंपत राय (Champat Rai) बुंदेले शासक थे, जिन्होंने औरंगज़ेब के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने मुग़लों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई और मुग़ल सेना को कई बार पराजित किया। चंपत राय ने छत्रपति शिवाजी के साथ मिलकर मुग़लों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने मुग़लों की आपूर्ति लाइनों को निशाना बनाया और उन्हें कमजोर करने का प्रयास किया। चम्पतराय ने आत्महत्या कर अपने प्राण दे दिए।

छत्रसाल का उदय: छत्रसाल (Chhatrasal) चंपत राय के पुत्र थे और अपने पिता की चार संतानों में से एक था, पिता की मृत्यु के समय वह 11 वर्ष का था। उन्होंने बुंदेलखंड में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने औरंगज़ेब के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष किया और बुंदेलखंड की स्वतंत्रता को बचाए रखा। छत्रसाल ने मराठों के साथ मिलकर मुग़लों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने मुग़ल सेना को कई बार पराजित किया और बुंदेलखंड में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और पूर्वी मालवा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।

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औरंगज़ेब और सिक्ख

औरंगज़ेब (Aurangzeb) और सिक्खों के बीच का संघर्ष मुग़ल साम्राज्य और सिक्ख पंथ के बीच एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। यह संघर्ष मुख्य रूप से धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और राजनीतिक स्वायत्तता के लिए लड़ा गया था। औरंगज़ेब के शासनकाल (1658-1707) में सिक्खों ने मुग़लों के विरुद्ध कई विद्रोह किए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध गुरु तेग बहादुर और गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में किए गए संघर्ष थे।

पृष्ठभूमि:

सिक्ख पंथ का उदय: सिक्ख पंथ की स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में की थी। यह पंथ समानता, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित था। औरंगज़ेब ने गैर-मुस्लिमों पर जज़िया कर लगाया और हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की नीति अपनाई। इससे सिक्ख समुदाय में असंतोष पैदा हुआ।

औरंगज़ेब और सिक्खों का संघर्ष:

गुरु तेग बहादुर का बलिदान: गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) नौवें सिक्ख गुरु थे, जिन्होंने औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कश्मीरी पंडितों की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 1675 में, औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, लेकिन गुरु जी ने इनकार कर दिया। इसके बाद, औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में फांसी दे दी। यह घटना सिक्ख इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।

गुरु गोबिंद सिंह का नेतृत्व: गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) दसवें सिक्ख गुरु थे, जिन्होंने औरंगज़ेब के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो सिक्खों को एक सैन्य और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में संगठित करता था। गुरु गोबिंद सिंह ने मुग़ल सेना के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें भंगानी की लड़ाई (1688) और नादौन की लड़ाई (1691) शामिल हैं। उन्होंने मुग़लों को कई बार पराजित किया। गुरु के दो पुत्रों को निर्दयता के साथ मार डाला गया। 7 अक्टूबर, 1708 में एक अफगान ने गुरु गोविन्द सिंह को छुरा घोंपकर मारा डाला।

गुरु गोबिंद सिंह के बाद भी सिक्खों ने मुग़लों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा। बंदा सिंह बहादुर (Banda Singh Bahadur) ने सिक्खों का नेतृत्व किया और मुग़लों के खिलाफ कई सफल अभियान चलाए। बंदा सिंह बहादुर ने सिरहिंद के गवर्नर वज़ीर खान को हराया और सिक्ख राज्य की स्थापना की। हालांकि, 1716 में उन्हें मुग़लों ने पकड़ लिया और मार डाला।

औरंगजेब की दक्षिण नीति और अभियान

औरंगज़ेब (Aurangzeb) की दक्षिण नीति और अभियान मुग़ल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय है। औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल (1658-1707) के दौरान दक्षिण भारत को मुग़ल साम्राज्य में शामिल करने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए। हालांकि, यह नीति मुग़ल साम्राज्य के लिए अत्यधिक खर्चीली और अंततः हानिकारक साबित हुई।

औरंगज़ेब की दक्षिण नीति के मुख्य उद्देश्य:

  1. साम्राज्य का विस्तार: औरंगज़ेब का मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत के समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को मुग़ल साम्राज्य में शामिल करना था।
  2. मराठों का दमन: मराठा शक्ति का उदय मुग़ल साम्राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती था। औरंगज़ेब ने मराठों को दबाने और उनके प्रभाव को कम करने की कोशिश की।
  3. धार्मिक कट्टरता: औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता ने भी उसकी दक्षिण नीति को प्रभावित किया। वह दक्षिण में इस्लामिक प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था।

दक्षिण अभियान के मुख्य चरण:

  1. बीजापुर और गोलकुंडा का विजय:
    • बीजापुर: 1686 में, औरंगज़ेब ने बीजापुर सल्तनत पर आक्रमण किया और उसे मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया। सिकंदर अली शाह बीजापुर का शासक था। बीजापुर की राजधानी विजयपुर को घेर लिया गया और अंततः सुल्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया।
    • गोलकुंडा: 1687 में, औरंगज़ेब ने गोलकुंडा सल्तनत पर आक्रमण किया। अब्दुल हसन गोलकुंडा का शासक था। गोलकुंडा की राजधानी हैदराबाद को घेर लिया गया और अंततः सुल्तान अबुल हसन कुतुब शाह ने आत्मसमर्पण कर दिया। गोलकुंडा को भी मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया।

औरंगजेब और मराठे

औरंगजेब और शिवाजी के बीच संघर्ष 17वीं सदी में मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच हुए संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। यह संघर्ष मुख्य रूप से धार्मिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मतभेदों के कारण हुआ था। शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की और हिंदवी स्वराज्य (हिंदू स्वराज) के लिए संघर्ष किया, जबकि औरंगजेब एक कट्टर मुस्लिम शासक था जिसका उद्देश्य भारत में इस्लामी शासन को मजबूत करना था।

संघर्ष के मुख्य कारण:

  1. धार्मिक मतभेद: औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम था और उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया तथा कई हिंदू मंदिरों को नष्ट किया। शिवाजी एक हिंदू शासक थे और उन्होंने हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
  2. राजनीतिक प्रभुत्व: औरंगजेब ने पूरे भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की, जबकि शिवाजी ने स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की और मुगलों के विस्तारवादी नीतियों का विरोध किया।
  3. सैन्य संघर्ष: शिवाजी ने गुरिल्ला युद्ध नीति का इस्तेमाल करके मुगलों को कई बार चुनौती दी। उन्होंने कई किलों पर कब्जा किया और मुगल सेना को परेशान किया।

प्रमुख घटनाएँ:

  • पुरंदर की संधि (1665): औरंगजेब ने अपने सेनापति राजा जय सिंह को शिवाजी के खिलाफ भेजा। शिवाजी को पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया, जिसमें उन्हें अपने कई किले मुगलों को सौंपने पड़े।
  • आगरा में कैद (1666): शिवाजी को औरंगजेब ने आगरा बुलाया, जहाँ उन्हें नजरबंद कर दिया गया। हालांकि, शिवाजी चतुराई से वहाँ से भाग निकले और वापस महाराष्ट्र लौट आए।
  • शिवाजी का राज्याभिषेक (1674): शिवाजी ने 1674 में खुद को मराठा साम्राज्य का राजा घोषित किया और औपचारिक रूप से मुगलों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा।
  • दक्कन अभियान: औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में दक्कन में मराठों के खिलाफ लंबा अभियान चलाया, लेकिन वह शिवाजी के उत्तराधिकारियों को पूरी तरह से हराने में असफल रहा।

औरंगजेब और संम्भाजी

औरंगजेब और संभाजी के बीच संघर्ष मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच लंबे संघर्ष का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। संभाजी, शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया। औरंगजेब, जो एक कट्टर मुस्लिम शासक था, ने संभाजी को अपने साम्राज्य के लिए एक बड़ा खतरा माना और उन्हें हराने के लिए कड़े कदम उठाए।

संघर्ष के मुख्य कारण:

धार्मिक और राजनीतिक मतभेद: औरंगजेब ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया और कई हिंदू मंदिरों को नष्ट किया। संभाजी ने हिंदवी स्वराज्य (हिंदू स्वराज) की रक्षा के लिए संघर्ष किया। औरंगजेब ने पूरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, जबकि संभाजी ने स्वतंत्र मराठा राज्य की स्थापना की और मुगलों के विस्तारवादी नीतियों का विरोध किया। संभाजी ने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध नीति का इस्तेमाल किया और उन्हें कई बार चुनौती दी।

प्रमुख घटनाएँ:

संभाजी का उदय: शिवाजी की मृत्यु (3 April 1680) के बाद, संभाजी ने मराठा साम्राज्य का नेतृत्व संभाला। उन्होंने मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा और कई सफलताएँ हासिल कीं। संभाजी ने मुगलों के खिलाफ कई सैन्य अभियान चलाए और उन्हें कई बार परेशान किया। उन्होंने मुगलों के कई किलों पर कब्जा किया और उनकी सेना को चुनौती दी।

संभाजी की गिरफ्तारी और मृत्यु (1689): औरंगजेब ने संभाजी को पकड़ने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया। 1689 में, संभाजी को मुगलों ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें क्रूर यातनाएँ दी गईं और अंततः उनकी हत्या (11 मार्च, 1689 को तुलापुर में फांसी) कर दी गई।

औरंगज़ेब की दक्षिण नीति के परिणाम

औरंगज़ेब की दक्षिण नीति (Deccan Policy) मुगल साम्राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय है। उसने अपने शासनकाल (1658-1707) के दौरान दक्षिण भारत पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए लंबे और व्यापक अभियान चलाए। हालांकि, इस नीति के परिणाम मुगल साम्राज्य के लिए विनाशकारी साबित हुए और इसने साम्राज्य के पतन की नींव रखी।

औरंगज़ेब की दक्षिण नीति के मुख्य उद्देश्य:

दक्षिण भारत पर नियंत्रण: औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत के राज्यों, जैसे बीजापुर, गोलकुंडा और मराठा साम्राज्य, को अपने अधीन करने का प्रयास किया।

संसाधनों पर कब्जा: दक्षिण भारत धनी और संसाधनों से भरपूर था, और औरंगज़ेब इसका उपयोग मुगल साम्राज्य को मजबूत करने के लिए करना चाहता था।

मराठों का दमन: मराठों की बढ़ती शक्ति को रोकने के लिए औरंगज़ेब ने दक्षिण में लंबे समय तक सैन्य अभियान चलाए।

औरंगज़ेब की दक्षिण नीति के परिणाम:

सैन्य और आर्थिक खर्च:

औरंगज़ेब के दक्षिण अभियान ने मुगल साम्राज्य के संसाधनों को भारी नुकसान पहुँचाया। लंबे और खर्चीले युद्धों ने मुगल खजाने को खाली कर दिया।

सैन्य अभियानों के कारण करों में वृद्धि हुई, जिससे जनता में असंतोष फैला।

प्रशासनिक अक्षमता:

औरंगज़ेब ने अपने शासन के अंतिम 25 वर्ष दक्षिण में बिताए, जिसके कारण उत्तर भारत में प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर हो गया।

दूरस्थ क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था ढीली पड़ गई, और भ्रष्टाचार बढ़ गया।

मराठों का उदय:

औरंगज़ेब ने मराठों को कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन इसके विपरीत, मराठों ने अपनी शक्ति को और मजबूत किया।

संभाजी और बाद में राजाराम और शाहू के नेतृत्व में मराठों ने मुगलों के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया।

बीजापुर और गोलकुंडा का पतन:

औरंगज़ेब ने 1686 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को जीत लिया, लेकिन इन विजयों ने मुगल साम्राज्य को स्थिरता नहीं दी।

इन राज्यों के पतन के बाद, मुगलों को मराठों के साथ सीधे संघर्ष करना पड़ा, जो अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।

साम्राज्य का विस्तार और अति-विस्तार:

औरंगज़ेब ने मुगल साम्राज्य का विस्तार किया, लेकिन यह विस्तार अति-विस्तार (overextension) साबित हुआ।

दक्षिण में मुगलों का नियंत्रण कमजोर था, और विद्रोहों और असंतोष के कारण साम्राज्य की स्थिरता खतरे में पड़ गई।

औरंगज़ेब की मृत्यु और मुगल साम्राज्य का पतन:

औरंगज़ेब की मृत्यु 1707 में हुई, और उसके बाद मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन शुरू हो गया।

उसकी दक्षिण नीति ने साम्राज्य को आर्थिक और सैन्य रूप से कमजोर कर दिया, जिससे उत्तराधिकारियों के लिए इसे संभालना मुश्किल हो गया।

औरंगजेब के साम्राज्य में सूबों की संख्या

औरंगज़ेब के शासनकाल में मुगल साम्राज्य 21 सूबों (प्रांतों) में विभाजित था। यह मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा विस्तार था, जिसमें उत्तर भारत, दक्षिण भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल में दक्षिण भारत पर विजय प्राप्त करके साम्राज्य का और विस्तार किया, जिससे सूबों की संख्या में वृद्धि हुई।

औरंगज़ेब के समय मुगल साम्राज्य के प्रमुख सूबे:

  1. दिल्ली
  2. आगरा
  3. अवध
  4. अजमेर
  5. बंगाल
  6. बिहार
  7. गुजरात
  8. कश्मीर
  9. लाहौर
  10. मुल्तान
  11. काबुल
  12. मालवा
  13. बरार
  14. खानदेश
  15. बीजापुर (1686 में जीता गया)
  16. गोलकुंडा (1687 में जीता गया)
  17. अहमदनगर
  18. बुरहानपुर
  19. औरंगाबाद
  20. हैदराबाद
  21. दक्कन

औरंगजेब का व्यक्तिगत जीवन और परिवार

पूरा शाही खिताब

औरंगज़ेब का नाम “औरंगज़ेब” का अर्थ है ‘सिंहासन का आभूषण’। उनका चुना हुआ खिताब “आलमगीर” है, जिसका अर्थ है ‘दुनिया का विजेता’

औरंगज़ेब का पूरा शाही खिताब: अल-सुल्तान अल-आज़म वाल खाकान अल-मुकर्रम हज़रत अबुल मुज़फ्फर मुही-उद-दीन मुहम्मद औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर I, बादशाह ग़ाज़ी, शहंशाह-ए-सल्तनत-उल-हिंदिया वाल मुग़लिया।

औरंगज़ेब को अन्य खिताबों से भी नवाजा गया, जैसे:

  • रहमान के खलीफा
  • इस्लाम के सम्राट
  • ईश्वर के जीवित संरक्षक

परिवार

पत्नियाँ

औरंगज़ेब की हरम में कम से कम 4 पत्नियाँ थीं, जिनसे उनके 6 बेटे और 6 बेटियाँ हुईं:

पत्नी का नामविवरण
दिलरस बानो बेगमसफ़वी राजकुमारी, शहज़ादा मिर्ज़ा बदी-उज़-ज़मान सफ़वी की बेटी, औरंगज़ेब की पहली पत्नी।
नवाब बाईऔरंगज़ेब की दूसरी पत्नी, राजा ताजुद्दीन खान की बेटी।
औरंगाबादी महलऔरंगज़ेब की पहली उपपत्नी।
उदयपुरी महलऔरंगज़ेब की दूसरी उपपत्नी; हरम में आने से पहले एक नर्तकी थीं।

संतान

बेटे (पुत्र)

बेटे का नामजन्म तिथिमृत्यु तिथिविवरण
शहज़ादा मिर्ज़ा मुहम्मद सुल्तान30 दिसंबर 163914 दिसंबर 1676पिता द्वारा कैद किए गए; नवाब बाई के साथ।
बहादुर शाह I14 अक्टूबर 164327 फरवरी 1712मुगल सम्राट, अपने छोटे भाई को हटाने की साजिश रची; नवाब बाई के साथ।
मुहम्मद आज़म शाह28 जून 165320 जून 1707अपने बड़े सौतेले भाई द्वारा हटाए गए; दिलरस बानो बेगम के साथ।
शहज़ादा मिर्ज़ा मुहम्मद अकबर11 सितंबर 165731 मार्च 1706सफ़वी साम्राज्य में निर्वासित; दिलरस बानो बेगम के साथ।
शहज़ादा मिर्ज़ा मुहम्मद काम बख्श7 मार्च 166714 जनवरी 1709बीजापुर के शासक; उदयपुरी महल के साथ।

बेटियाँ

बेटी का नामजन्म तिथिमृत्यु तिथिविवरण
शहज़ादी जेब-उन-निसा15 फरवरी 163826 मई 1702कवयित्री, पिता द्वारा कैद की गईं; उन्होंने कभी शादी नहीं की। दिलरस बानो बेगम के साथ।
शहज़ादी जीनत-उन-निसा बेगम5 अक्टूबर 16437 मई 1721मुगल साम्राज्ञी (पादशाह बेगम) बनीं; दिलरस बानो बेगम के साथ।
शहज़ादी बद्र-उन-निसा बेगम17 नवंबर 16479 अप्रैल 1670कभी शादी नहीं की; नवाब बाई के साथ कोई संतान नहीं।
शहज़ादी जुबदत-उन-निसा बेगम2 सितंबर 165117 फरवरी 1707एक बार शादी की और एक बेटा हुआ; दिलरस बानो बेगम के साथ।
शहज़ादी मिहर-उन-निसा बेगम28 सितंबर 16612 अप्रैल 1706एक बार शादी की और 2 बेटे हुए; औरंगाबादी महल के साथ।

मृत्यु से पूर्व औरंगजेब के अंतिम शब्द (Final Words) क्या थे?

औरंगज़ेब के अंतिम शब्द उनके जीवन और शासनकाल की गहरी पश्चाताप और आध्यात्मिक चिंतन को दर्शाते हैं। उनकी मृत्यु से पहले के अंतिम शब्दों को उनकी वसीयत और पत्रों में दर्ज किया गया है। उन्होंने अपने अंतिम समय में अपने जीवन की गलतियों और पापों के लिए पश्चाताप किया और अपने बेटे को सलाह दी।


औरंगज़ेब के अंतिम शब्द:

“मैंने जो कुछ भी किया, वह सब व्यर्थ हो गया।” औरंगज़ेब ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में यह स्वीकार किया कि उसके सभी कार्य और उपलब्धियाँ उसे शांति नहीं दे पाईं।

“मैं अकेला आया था और अकेला जा रहा हूँ। मैंने अपने पापों को पहचान लिया है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।” यह वाक्य औरंगज़ेब की गहरी आध्यात्मिक चिंतन और पश्चाताप को दर्शाता है। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत से पाप किए हैं, लेकिन अब उन्हें सुधारने का समय नहीं बचा है।

“मेरे पास जो कुछ भी है, वह केवल कुछ कपड़े और कुछ किताबें हैं।” औरंगज़ेब ने अपने अंतिम दिनों में सादगी और तपस्या का जीवन जिया। उन्होंने अपने पास मौजूद धन और संपत्ति को त्याग दिया और केवल आवश्यक वस्तुओं को रखा।

“मैंने अपने बेटे को एक विशाल साम्राज्य दिया, लेकिन मैंने उसे एक खाली खजाना और एक अस्थिर राज्य भी दिया।” औरंगज़ेब ने अपने उत्तराधिकारी बहादुर शाह I को एक विशाल साम्राज्य सौंपा, लेकिन उन्हें एहसास था कि उनकी नीतियों ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया है।

“मैंने अपने जीवन में बहुत से पाप किए हैं। मैं अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करता हूँ।” औरंगज़ेब ने अपने अंतिम समय में अल्लाह से क्षमा याचना की और अपने पापों के लिए पश्चाताप किया।


औरंगज़ेब की वसीयत:

औरंगज़ेब ने अपने बेटे को एक वसीयतनामा लिखा, जिसमें उसने अपने जीवन के अनुभवों और गलतियों से सीख देने की कोशिश की। उसने लिखा:

  • “धन और सत्ता के पीछे मत भागो। यह सब नश्वर है।”
  • “न्यायपूर्ण शासन करो और अपने लोगों की देखभाल करो।”
  • “अल्लाह से डरो और उसकी इबादत करो।”

औरंगज़ेब की मृत्यु और दफ़न

औरंगज़ेब, मुगल साम्राज्य का छठा शासक था, की मृत्यु 3 मार्च 1707 को हुई। उसकी मृत्यु दक्षिण भारत में हुई, जहाँ वे अपने जीवन के अंतिम 25 वर्षों तक सैन्य अभियानों में व्यस्त रहा। उसकी मृत्यु के बाद, उसे एक साधारण तरीके से दफ़नाया गया, जो उनकी सादगी और धार्मिक निष्ठा को दर्शाता है।


मृत्यु का कारण

  • औरंगज़ेब की मृत्यु बुखार और बढ़ती उम्र के कारण हुई।
  • उसे उसके अंतिम दिनों में कई बीमारियों से जूझना पड़ा, जिनमें शारीरिक कमजोरी और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ शामिल थीं।
  • उनकी मृत्यु के समय उनकी उम्र 88 वर्ष थी, जो उस समय के लिए एक लंबी आयु मानी जाती थी।

अंतिम समय

  • औरंगज़ेब ने अपने अंतिम दिनों में पश्चाताप किया और अपने जीवन की गलतियों के लिए खुद को दोषी ठहराया।
  • उन्होंने अपने बेटे आज़म शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य में उत्तराधिकार संघर्ष शुरू हो गया।
  • उन्होंने अपने अंतिम समय में सादगी और धार्मिक अनुशासन को प्राथमिकता दी।

दफ़न

  • औरंगज़ेब को खुल्दाबाद, महाराष्ट्र में दफ़नाया गया। यह स्थान औरंगाबाद के पास स्थित है।
  • उनकी कब्र एक साधारण मकबरे में बनाई गई, जो उनकी सादगी और धार्मिक निष्ठा को दर्शाती है।
  • उनकी कब्र पर कोई भव्य स्मारक नहीं बनाया गया, जो मुगल शासकों की परंपरा के विपरीत था।
  • उनकी कब्र के पास ही उनके आध्यात्मिक गुरु, शेख ज़ैनुद्दीन की कब्र भी स्थित है।

औरंगज़ेब की कब्र का विवरण

  • औरंगज़ेब की कब्र एक खुले आंगन में स्थित है।
  • कब्र पर कोई महंगा पत्थर या सजावट नहीं है, बल्कि यह एक साधारण मिट्टी की कब्र है।
  • कब्र के पास एक छोटा मस्जिद भी है, जहाँ लोग नमाज़ अदा करते हैं।
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औरंगज़ेब के निर्माण कार्य

औरंगज़ेब ने अपने शासनकाल (1658-1707) के दौरान कई निर्माण कार्य करवाए, हालांकि उसके निर्माण कार्य उसके पूर्ववर्ती मुगल शासकों जैसे अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ की तुलना में कम भव्य और धार्मिक रूप से प्रेरित थे। उसके निर्माण कार्यों में मस्जिदों, किलों और सार्वजनिक इमारतों का निर्माण शामिल है। नीचे औरंगज़ेब के प्रमुख निर्माण कार्यों की सूची दी गई है:


निर्माण कार्यस्थानविवरण
बीबी का मकबराऔरंगाबाद, महाराष्ट्रऔरंगज़ेब की पत्नी दिलरस बानो बेगम का मकबरा। इसे “ताजमहल की नकल” कहा जाता है।
बादशाही मस्जिदलाहौर, पाकिस्तान1673 में निर्मित, यह मस्जिद मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मोती मस्जिदलाल किला, दिल्ली1659-1660 में निर्मित, यह मस्जिद संगमरमर से बनी है और औरंगज़ेब के निजी उपयोग के लिए थी।
जामा मस्जिदमथुरा, उत्तर प्रदेश1661 में निर्मित, यह मस्जिद मथुरा में स्थित है।
जामा मस्जिदबनारस (वाराणसी), उत्तर प्रदेश1664 में निर्मित, यह मस्जिद बनारस में स्थित है।
शाही मस्जिदठट्टा, पाकिस्तान1647-1649 में निर्मित, यह मस्जिद औरंगज़ेब के शासनकाल में बनी।
लाल बाग किलाबीजापुर, कर्नाटकऔरंगज़ेब ने इस किले को जीतकर मरम्मत करवाई और इसे मुगल साम्राज्य में शामिल किया।
गोलकुंडा किलाहैदराबाद, तेलंगानाऔरंगज़ेब ने 1687 में गोलकुंडा को जीतकर इस किले पर कब्जा किया।
औरंगाबाद किलाऔरंगाबाद, महाराष्ट्रऔरंगज़ेब ने इस किले का निर्माण करवाया, जो उसके दक्षिण अभियान का केंद्र था।
ज़ीनत-उल-मस्जिददिल्लीऔरंगज़ेब की बेटी ज़ीनत-उन-निसा के नाम पर बनी यह मस्जिद दिल्ली में स्थित है।
शाही किलाऔरंगाबाद, महाराष्ट्रऔरंगज़ेब ने इस किले का निर्माण करवाया, जो उसके दक्षिण अभियान का मुख्य केंद्र था।
मक्का मस्जिदहैदराबाद, तेलंगानाऔरंगज़ेब ने इस मस्जिद का निर्माण पूरा करवाया, जिसकी नींव कुतुब शाही वंश ने रखी थी।
सफ़ा मस्जिदपन्हाला किला, महाराष्ट्रऔरंगज़ेब ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया, जो पन्हाला किले के अंदर स्थित है।

औरंगजेब के विषय में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न- (FAQs)

Q. औरंगज़ेब कौन था?

Ans. औरंगज़ेब मुगल साम्राज्य का छठा शासक था, जिसने 1658 से 1707 तक शासन किया। वह शाहजहाँ का तीसरा बेटा था और अपने भाइयों को हराकर सिंहासन पर बैठा।

Q. औरंगज़ेब का पूरा नाम क्या था?

Ans. औरंगज़ेब का पूरा नाम अबुल मुज़फ्फर मुही-उद-दीन मुहम्मद औरंगज़ेब था। उन्हें आलमगीर के नाम से भी जाना जाता है।

Q. औरंगज़ेब ने कितने साल तक शासन किया?

Ans. औरंगज़ेब ने 49 वर्ष (1658-1707) तक शासन किया, जो मुगल शासकों में सबसे लंबा शासनकाल है।

Q. औरंगज़ेब की मृत्यु कब हुई?

Ans. औरंगज़ेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को हुई।

Q. औरंगज़ेब को कहाँ दफ़नाया गया?

Ans. औरंगज़ेब को खुल्दाबाद, महाराष्ट्र में एक साधारण कब्र में दफ़नाया गया।

Q. औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर जजिया कर क्यों लगाया?

Ans. औरंगज़ेब ने जजिया कर इस्लामी कानून के अनुसार गैर-मुस्लिमों पर लगाया, जो उनकी धार्मिक नीतियों का हिस्सा था। इसका उद्देश्य राजस्व बढ़ाना और इस्लाम को बढ़ावा देना था।

Q. औरंगज़ेब ने कितने मंदिर तोड़े?

Ans. औरंगज़ेब ने कई मंदिर तोड़े, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर और केशव राय मंदिर प्रमुख हैं। हालांकि, उसने कुछ मंदिरों को संरक्षित भी किया।

Q. औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियाँ क्या थीं?

Ans. औरंगज़ेब ने इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए कई धार्मिक नीतियाँ अपनाईं, जैसे जजिया कर लगाना, मंदिर तोड़ना, और इस्लामी कानून (शरिया) को लागू करना।

Q. औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहाँ को क्यों कैद किया?

Ans. औरंगज़ेब ने अपने पिता शाहजहाँ को सत्ता हथियाने के लिए कैद किया। शाहजहाँ ने औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह को अपना उत्तराधिकारी चुना था, जिससे औरंगज़ेब नाराज़ था।

Q. औरंगज़ेब की सेना कितनी बड़ी थी?

Ans. औरंगज़ेब की सेना लगभग 5 लाख सैनिकों से युक्त थी, जो उस समय की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक थी।

Q. औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत पर कब्जा क्यों किया?

Ans. औरंगज़ेब ने दक्षिण भारत पर कब्जा करने के लिए साम्राज्य विस्तार और संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करने की नीति अपनाई।

Q. औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का क्या हुआ?

Ans. औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया और धीरे-धीरे इसका पतन शुरू हो गया।

Q. औरंगज़ेब ने कितने युद्ध लड़े?

Ans. औरंगज़ेब ने कई युद्ध लड़े, जिनमें उत्तर भारत और दक्षिण भारत के अभियान शामिल हैं। उसने मराठों, राजपूतों और सिखों के साथ लंबे संघर्ष किए।

Q. औरंगज़ेब की धार्मिक सहिष्णुता कैसी थी?

Ans. औरंगज़ेब को कट्टर मुस्लिम शासक माना जाता है, लेकिन उसने कुछ हिंदू मंदिरों को संरक्षित भी किया और हिंदू अधिकारियों को नौकरी दी।

Q. औरंगज़ेब ने कितने बच्चे थे?

Ans. औरंगज़ेब के 6 बेटे और 6 बेटियाँ थीं।

Q. औरंगज़ेब की सबसे बड़ी गलती क्या थी?

Ans. औरंगज़ेब की सबसे बड़ी गलती दक्षिण भारत में लंबे युद्ध और धार्मिक असहिष्णुता की नीतियाँ थीं, जिसने मुगल साम्राज्य को कमजोर किया।

Q. औरंगज़ेब ने कितने मकबरे बनवाए?

Ans. औरंगज़ेब ने कोई भव्य मकबरा नहीं बनवाया। उसकी कब्र एक साधारण मकबरे में है।

Q. औरंगज़ेब ने कितने साल दक्षिण भारत में बिताए?

Ans. औरंगज़ेब ने अपने जीवन के 25 वर्ष दक्षिण भारत में बिताए।

Q. औरंगज़ेब की मृत्यु के समय उसकी उम्र क्या थी?

Ans. औरंगज़ेब की मृत्यु के समय उसकी उम्र 88 वर्ष थी।

Q. औरंगज़ेब की विरासत क्या है?

Ans. औरंगज़ेब की विरासत विवादास्पद है। उसे एक कुशल शासक और कट्टर मुस्लिम शासक दोनों के रूप में याद किया जाता है। उसके शासनकाल ने मुगल साम्राज्य को चरम पर पहुँचाया, लेकिन उसकी नीतियों ने इसके पतन की नींव भी रखी।


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