रूसी क्रांति 1917 (Russian Revolution 1917) जिसे अक्टूबर क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इस क्रांति ने न केवल रूस के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक नवीन सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के द्वार खोल दिए। इस क्रांति ने रूस में साम्राज्यवाद का अंत करके सोवियत संघ की स्थापना की और समाजवादी विचारधारा को दुनिया भर में फैलाया। इस लेख में हम रूसी क्रांति 1917 के कारण, घटनाक्रम, टाइमलाइन, व्लादिमीर लेनिन की भूमिका और खूनी रविवार की घटना तथा इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

Russian Revolution | रूसी क्रांति 1917 के मुख्य कारण
रूसी क्रांति 1917 वास्तव में किसी एक कारण या घटना का परिणाम नहीं थी बल्कि इसके पीछे कई कारण थे जैसे- आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण थे। यह क्रांति कोई अचानक हुई घटना नहीं है, बल्कि यह रूसी समाज में लंबे समय से चली आ रही तमाम समस्याओं का परिणाम थी। इन कारणों को नीचे क्रमवार जानते हैं-
आर्थिक कारण
रूसी क्रांति 1917 से पूर्व रूस की अर्थव्यवस्था अत्यंत कमजोर थी। किसानों और मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उनके ऊपर भारी करों का बोझ था जिन्हें हर हालत में भरना पड़ता था और जबकि आमदनी बहुत काम थी। इसके अलावा, प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने रूस की अर्थव्यवस्था को और भी कमजोर बना दिया था।
रूस में कृषि संकट और किसानों की दयनीय स्थिति
- रूस की 70% से ज्यादा जनता कृषि से जुडी थी और कृषि रूस की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार थी, लेकिन किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी। सबसे खराब बात यह थी कि किसान मेहनत करता था मगर जमीन का मालिकाना हक़ सामंतों और चर्च के पास थी, जबकि किसानों के पास नाममात्र की जमीन थी। जबकि रुसी समाज से 1861 में दास प्रथा का अंत हो चूका था, मगर किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था।
- किसानों को भारी करों का बोझ उठाना पड़ता था, और वे लगातार कर्ज में डूबे रहते थे। इससे उनमें असंतोष बढ़ा और वे क्रांति के लिए तैयार हो गए।
2. औद्योगिक क्रांति और मजदूरों का शोषण
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई, जो विश्व के मुकाबले काफी देर से और असंतुलित थी। कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति बेहद खराब थी। काम के घंटे काफी लम्बे और थकाऊ थे, न्यूनतम मजदूरी मिलती थी, और कोई कानूनी सुरक्षा प्राप्त नहीं थी।
- फैक्ट्री मालिकों द्वारा मजदूरों के शोषण ने उन्हें संगठित होने के लिए प्रेरित किया, और वे अपने अधिकारों की मांग करने लगे। इससे श्रमिक आंदोलनों को बल मिला, जो 1917 की क्रांति का एक प्रमुख कारण बना।
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3. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने रूस की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। युद्ध के कारण सरकार ने भारी मात्रा में सैनिकों की भर्ती की, लेकिन उन्हें पर्याप्त हथियार और वेतन नहीं दिया गया। इससे सैनिकों में असंतोष बढ़ा। अन्य देशों के मुलाबले रूस के सैनिक बड़ी संख्या में हताहत हुए।
- युद्ध के दौरान परिवहन के साधनों का उपयोग सैन्य कार्यों में किया गया, जिससे उद्योगों को कच्चा माल नहीं मिल पाया और उत्पादन ठप हो गया। इससे आर्थिक संकट और गहरा गया।
4. बढ़ता खाद्य संकट और महंगाई
- लम्बे खींचते युद्ध के कारण रूस में खाद्यान्न का उत्पादन कम हो गया, और 1916-1917 में भीषण अकाल पड़ा। खाद्य पदार्थों की भारी कमी और बढ़ती महंगाई ने आम जनता को भूख और गरीबी के दलदल में धकेल दिया।
- शहरों में रोटी की कमी के कारण हड़तालें और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, लोग सड़कों पर उतरने लगे, जो क्रांति का तात्कालिक कारण बना।
5. सरकार की अकुशल नीतियाँ
- जार निकोलस द्वितीय की सरकार ने आर्थिक संकट को दूर करने के लिए कोई ठोस और परिणामी कदम नहीं उठाए। सरकार की नीतियाँ भ्रष्ट और अकुशल थीं, जिससे सरकार से जनता का विश्वास उठ गया।
- 1905 की क्रांति के बाद ड्यूमा (संसद) का गठन हुआ, लेकिन इसे कोई वास्तविक शक्ति नहीं दी गई थी। इससे जनता में और अधिक असंतोष पैदा हुआ।
6. विदेशी पूंजी पर निर्भरता
- रूस की अर्थव्यवस्था पूरी तरह विदेशी पूंजी पर निर्भर थी, बढ़ते कर्ज के बोझ ने रूस की जनता में विद्रोह की चिंगारी को जलाने का काम किया। विदेशी पूंजीपतियों ने केवल मुनाफे पर ध्यान दिया, जबकि श्रमिकों और किसानों की स्थिति वद से वद्तर होती चली गई।
2. सामाजिक असमानता
रूसी समाज में जारशाही व्यवस्था के कारण सामाजिक असमानता बहुत अधिक थी। समाज दो वर्गों में बंटा हुआ था – अमीर जमींदार और गरीब किसान। अमीर वर्ग के पास सभी सुविधाएं थीं, जबकि गरीब वर्ग को भुखमरी और गरीबी का सामना करना पड़ता था।
1. सामंती व्यवस्था और किसानों की दयनीय स्थिति
- रूसी समाज में प्रारम्भ से ही सामंती व्यवस्था प्रचलित थी। भूमि का बड़ा हिस्सा सामंतों, जमींदारों और चर्च के पास था, जबकि किसानों के पास नाममात्र की भूमि थी। जबकि करों का अधिकांश बोझ किसानों को ही उठाना पड़ता था और वे गरीबी में जीवन यापन करते थे।
- 1861 में दास प्रथा के समाप्त होने बावजूद, रूस में किसानों की स्थिति में कोई परिणामी सुधार नहीं हुआ। जमींदारों के निरंतर शोषण ने किसानों के भीतर असंतोष को जन्म दिया और यही रूस में क्रांति का कारण बना।
2. श्रमिक वर्ग का शोषण
- रूस में औद्योगिक क्रांति ने बड़े-बड़े पूंजीपतियों को जन्म दिया और शहरों में बड़े पैमाने पर कारखाने स्थापित हुए, लेकिन मजदूरों की स्थिति बेहद खराब थी। उन्हें लंबे समय तक काम करना पड़ता था, इसके बदले में उन्हें न्यूनतम मजदूरी मिलती थी, और कार्यस्थल पर अव्यवस्था पसरी हुई थी।
- मजदूरों के पास कोई राजनीतिक अथवा क़ानूनी अधिकार नहीं थे, और उनकी आवाज़ को दबा दिया जाता था। वे न तो कोई श्रमिक संगठन बना सकते थे और न ही हड़ताल कर सकते थे। इससे उनमें संगठित होने और अपने अधिकारों की मांग करने की भावना पैदा हुई।
3. सामाजिक वर्गों में गहरी खाई
- रूसी समाज तीन प्रमुख वर्गों में बंटा हुआ था: अभिजात वर्ग, मध्यम वर्ग, और निम्न वर्ग। अभिजात वर्ग (जमींदार, सामंत और राजपरिवार) के पास सारे सुख-सुविधाएँ और अधिकार थे, जबकि निम्न वर्ग (किसान और मजदूर) गरीबी और शोषण का शिकार थे।
- मध्यम वर्ग (बुद्धिजीवी, छोटे व्यापारी और पेशेवर) भी असंतुष्ट था, क्योंकि उन्हें राजनीतिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
4. जातीय और धार्मिक भेदभाव
- रूस एक बहुजातीय ( भारत की तरह नहीं ) और बहुधार्मिक साम्राज्य था, लेकिन रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च और रूसी रक्त जाति को प्राथमिकता दी जाती थी। अन्य जातियों और धर्मों के लोगों के साथ भेदभाव किया जाता था।
- यहूदियों, पोल्स, यूक्रेनियन और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को सामाजिक और आर्थिक रूप से काम महत्व दिया जाता था। इससे उनमें भी असंतोष पैदा हुआ।
5. महिलाओं और बच्चों की स्थिति
- महिलाओं और बच्चों की स्थिति भी बहुत दयनीय अवस्था में थी। महिलाओं को कोई राजनीतिक या सामाजिक अधिकार नहीं थे, और उन्हें पुरुषों के समान काम करने के बावजूद कम मजदूरी मिलती थी।
- बच्चों को उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें कारखानों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था, जिससे उनका शोषण होता था।
6. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव
- निम्न वर्ग के लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ न के बराबर थीं। अभिजात वर्ग के लोगों के पास अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ थीं, लेकिन आम जनता को इन सुविधाओं से वंचित रखा गया था। इससे सामाजिक असमानता और ज्यादा बढ़ गई, और लोगों में सरकार के प्रति गुस्सा बढ़ता गया।
7. राजनीतिक अधिकारों का अभाव
- रूस में निरंकुश जारशाही थी, और जनता को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे। 1905 की क्रांति के बाद ड्यूमा (संसद) का गठन हुआ, लेकिन इसे कोई वास्तविक शक्ति नहीं दी गई। इससे जनता में यह भावना पैदा हुई कि उनकी समस्याओं का समाधान केवल क्रांति के माध्यम से ही संभव है।
3. राजनीतिक अस्थिरता
ज़ार निकोलस द्वितीय एक अयोग्य और कमजोर शासक था जसिके कारण नेतृत्व क्षमता और अत्याचारी शासन ने रूस में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी थी। जनता की मांगों को नजरअंदाज किया जाता था और विरोध करने वालों को कड़ी सजा दी जाती थी। इससे जनता में असंतोष बढ़ता गया।
1. जार का निरंकुश शासन
- रूस में जार निकोलस द्वितीय का शासन निरंकुश और जनविरोधी था। जार ने अपनी शक्ति को विकेन्द्रीकृत करने से इनकार कर दिया और लोकतांत्रिक सुधारों को लागू करने से सपष्ट मना कर दिया।
- जार की नीतियाँ जनता की आवश्यकताओं और मांगों के प्रति उदासीन थीं। उन्होंने राजनीतिक विरोध को दबाने के लिए दमनकारी तरीकों का इस्तेमाल किया, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा।
2. 1905 की क्रांति और ड्यूमा की विफलता
- 1905 की क्रांति के बाद, जार ने ड्यूमा (रूसी संसद) का गठन किया, लेकिन इसे कोई वास्तविक शक्ति नहीं दी गई। ड्यूमा केवल एक सलाहकार संस्था के रूप में काम करती थी, और जार किसी भी समय इसे भंग कर सकता था।
- इससे जनता को यह एहसास हुआ कि संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से कोई स्थायी हल नहीं निकल सकता है। इसने राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ावा दिया।
3. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने रूस की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पूर्णतःअस्थिर कर दिया। युद्ध के दौरान सरकार की अकुशल नीतियों और भ्रष्टाचार के कारण जनता का विश्वास टूट गया।
- युद्ध में रूस की कई मोर्चों पर पराजय और सैनिकों की खराब स्थिति ने जार के प्रति असंतोष को और बढ़ा दिया। सैनिकों और आम जनता ने यह महसूस किया कि सरकार उनकी समस्याओं को हल करने में नाकाम रही है।
4. राजनीतिक दलों का उदय
- रूस में कई राजनीतिक दल सक्रिय थे, जैसे कि बोल्शेविक, मेन्शेविक, और सामाजिक क्रांतिकारी। इन दलों ने जार के शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और जनता को संगठित किया।
- बोल्शेविक पार्टी, जिसका नेतृत्व व्लादिमीर लेनिन कर रहे थे, ने जार के शासन को उखाड़ फेंकने और एक समाजवादी सरकार स्थापित करने का आह्वान किया। इन दलों के बीच मतभेद और संघर्ष ने रूस में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया।
5. फरवरी क्रांति और जार का पतन
- फरवरी 1917 में, रूस में एक और क्रांति हुई, जिसके परिणामस्वरूप जार निकोलस द्वितीय को सत्ता से हटना पड़ा। इसके बाद एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ, लेकिन यह सरकार भी अस्थिर और अप्रभावी साबित हुई।
- अंतरिम सरकार युद्ध को जारी रखने और जनता की समस्याओं को हल करने में विफल रही। इससे जनता का विश्वास और टूट गया, और बोल्शेविकों को सत्ता हथियाने का सुनहरा मौका मिल गया।
6. अक्टूबर क्रांति और बोल्शेविकों का उदय
- अक्टूबर 1917 में, बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक समाजवादी सरकार की स्थापना की। इस क्रांति ने रूस की राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया।
- बोल्शेविकों ने जार के शासन और अंतरिम सरकार की विफलताओं का लाभ उठाकर सत्ता हासिल की। उन्होंने “शांति, रोटी और जमीन” का नारा दिया, जो जनता की मुख्य मांगों को पूरा करता था।
4. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव
रूसी क्रांति (1917) में प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव एक निर्णायक कारक था। युद्ध ने रूस की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को पूरी तरह से अस्थिर कर दिया, जिसने क्रांति को जन्म दिया।
1. आर्थिक संकट
- युद्ध के खर्च का बोझ: प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने रूसी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। युद्ध के लिए भारी मात्रा में धन और संसाधन खर्च किए गए, जिससे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। इसका बोझ रूस की गरीब जनता पर पड़ा।
- मुद्रास्फीति और महंगाई: युद्ध के कारण मुद्रास्फीति बढ़ गई, और खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छूने लगीं। आम जनता को रोटी और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी का सामना करना पड़ा।
- उद्योगों का ठप होना: युद्ध के दौरान परिवहन के साधनों का उपयोग सैन्य कार्यों में किया गया, जिससे उद्योगों को कच्चा माल समय पर नहीं मिल पाया और उत्पादन लगभग ठप हो गया।
2. सामाजिक असंतोष
- भूख और गरीबी: युद्ध के कारण खाद्यान्न का उत्पादन कम हो गया, और 1916-1917 में भीषण अकाल पड़ा। शहरों में रोटी की कमी के कारण हड़तालें और लोगों ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन शुरू किये।
- मजदूरों और किसानों की दयनीय स्थिति: मजदूरों को लंबे समय तक काम करना पड़ता था, और उन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती थी। किसानों को भी युद्ध के लिए अनाज और संसाधन देने के लिए मजबूर किया गया, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो गई।
3. सैन्य विफलताएँ
- युद्ध में हार: रूसी सेना युद्ध में लगातार पराजय का सामना रही थी। सेना के पास पर्याप्त हथियार, वर्दी और भोजन नहीं था, जिससे सैनिकों का मनोबल टूट गया।
- सैनिकों का असंतोष: सैनिकों को लगातार युद्ध में झोंका जा रहा था, लेकिन उन्हें कोई वेतन या सुविधाएँ नहीं मिल रही थीं। इससे उनमें जार के प्रति गुस्सा बढ़ गया।
4. राजनीतिक अस्थिरता
- जार की अकुशल नीतियाँ: जार निकोलस द्वितीय की सरकार ने युद्ध को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई। सरकार की नीतियाँ भ्रष्ट और अकुशल थीं, जिससे जनता का विश्वास टूट गया।
- अंतरिम सरकार की विफलता: फरवरी 1917 की क्रांति के बाद अंतरिम सरकार का गठन हुआ, लेकिन यह सरकार भी युद्ध को जारी रखने और जनता की समस्याओं को हल करने में विफल रही। इससे जनता का विश्वास और टूट गया।
5. क्रांति का तात्कालिक कारण
- युद्ध से थकी हुई जनता: युद्ध के कारण जनता थक चुकी थी और शांति चाहती थी। अंतरिम सरकार ने युद्ध को जारी रखा, जिससे जनता में गुस्सा बढ़ गया।
- बोल्शेविकों का प्रभाव: बोल्शेविक पार्टी, जिसका नेतृत्व व्लादिमीर लेनिन कर रहे थे, ने युद्ध को समाप्त करने और जनता की समस्याओं को हल करने का वादा किया। इससे उन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला।
6. अक्टूबर क्रांति और युद्ध का अंत
युद्ध का अंत: इस संधि के बाद रूस प्रथम विश्व युद्ध से बाहर हो गया, लेकिन इसकी कीमत रूस को भारी जनहानि और आर्थिक क्षति के रूप में चुकानी पड़ी।
बोल्शेविकों की सत्ता: अक्टूबर 1917 में, बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक समाजवादी सरकार की स्थापना की। उन्होंने युद्ध को समाप्त करने के लिए जर्मनी के साथ ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि पर हस्ताक्षर किए।
रूसी क्रांति 1917 का घटनाक्रम
1917 की रूसी क्रांति एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी जिसने रूस में साम्राज्य का अंत करके सोवियत संघ की स्थापना की। यह क्रांति दो चरणों में हुई: फरवरी क्रांति और अक्टूबर क्रांति। यहाँ घटनाक्रम दिया गया है:
फरवरी क्रांति (मार्च 1917)
- पृष्ठभूमि:
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में रूस की पराजयऔर आर्थिक संकट।
- जनता में ज़ार निकोलस द्वितीय के प्रशासन के प्रति भारी असंतोष।
- खाद्य और ईंधन की कमी, मुद्रास्फीति और गरीबी।
- घटनाक्रम:
- 23 फरवरी (8 मार्च): पेत्रोग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) में महिलाओं ने रोटी और शांति के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू किया।
- 26 फरवरी (11 मार्च): ज़ार निकोलस द्वितीय ने सेना को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया, लेकिन कई सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
- 27 फरवरी (12 मार्च): पेत्रोग्राद सोवियत (श्रमिकों और सैनिकों की परिषद) का गठन हुआ।
- 2 मार्च (15 मार्च): ज़ार निकोलस द्वितीय ने सिंहासन छोड़ दिया, और रूसी साम्राज्य का अंत हुआ।
- एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जिसका नेतृत्व प्रिंस लवोव और बाद में अलेक्जेंडर केरेन्स्की ने किया।
अक्टूबर क्रांति (नवंबर 1917)
- पृष्ठभूमि:
- अंतरिम सरकार युद्ध जारी रखने और सुधारों में विफल रही।
- बोल्शेविक पार्टी, जिसका नेतृत्व व्लादिमीर लेनिन ने किया, ने “शांति, रोटी और जमीन” का नारा दिया।
- पेत्रोग्राद सोवियत में बोल्शेविकों का प्रभुत्व बढ़ा।
- घटनाक्रम:
- 24-25 अक्टूबर (6-7 नवंबर): बोल्शेविकों ने पेत्रोग्राद में सरकारी इमारतों, रेलवे स्टेशनों और बैंकों पर कब्जा कर लिया।
- 25 अक्टूबर (7 नवंबर): विंटर पैलेस पर हमला हुआ, और अंतरिम सरकार को गिरफ्तार कर लिया गया।
- 26 अक्टूबर (8 नवंबर): बोल्शेविकों ने सत्ता संभाली, और लेनिन ने नई सरकार का नेतृत्व किया।
- नई सरकार ने जमीन का पुनर्वितरण, युद्ध से हटने और श्रमिकों के अधिकारों की घोषणा की।
रुसी क्रांति में व्लादिमीर लेनिन की भूमिका
व्लादिमीर लेनिन रूसी क्रांति 1917 के मुख्य नेता और बोल्शेविक पार्टी के संस्थापक थे। उनका पूरा नाम व्लादिमीर इलिच उल्यानोव था, लेकिन विश्व में वे लेनिन के नाम से प्रसिद्ध हुए। लेनिन ने रूसी क्रांति को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई और सोवियत संघ के पहले प्रमुख बने।
लेनिन का प्रारंभिक जीवन
लेनिन का जन्म 22 अप्रैल 1870 को रूस के सिम्बीर्स्क शहर में हुआ था। उनके पिता एक शिक्षक थे और माता एक गृहिणी थीं। लेनिन ने कानून की पढ़ाई की, लेकिन उनकी रुचि राजनीति और क्रांतिकारी गतिविधियों में थी।
लेनिन की क्रांतिकारी गतिविधियां
- मार्क्सवादी विचारधारा: लेनिन कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित थे और उन्होंने मार्क्सवादी सिद्धांतों को रूसी परिस्थितियों के अनुसार ढाला।
- बोल्शेविक पार्टी की स्थापना: 1903 में लेनिन ने बोल्शेविक पार्टी की स्थापना की, जो रूसी सोशल डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी का एक हिस्सा थी।
- अप्रैल थीसिस: 1917 में लेनिन ने “अप्रैल थीसिस” प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने “शांति, रोटी और जमीन” का नारा दिया। यह नारा रूसी जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ।
- अक्टूबर क्रांति का नेतृत्व: लेनिन ने अक्टूबर 1917 में बोल्शेविकों का नेतृत्व किया और अस्थायी सरकार को हटाकर सोवियत संघ की स्थापना की।
लेनिन का योगदान
लेनिन ने न केवल रूसी क्रांति को सफल बनाया, बल्कि उन्होंने समाजवादी विचारधारा को दुनिया भर में फैलाया। उनके नेतृत्व में रूस में एक नई आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था की शुरुआत हुई।
रूसी क्रांति 1917 की टाइमलाइन
रूसी क्रांति 1917 की घटनाओं को समझने के लिए नीचे दी गई टाइमलाइन महत्वपूर्ण है:
- 1905: रूस में पहली क्रांति (1905 की क्रांति) हुई, जिसे “रक्तीय रविवार” के नाम से जाना जाता है। यह क्रांति असफल रही, लेकिन इसने जनता में असंतोष को बढ़ाया।
- 1914: प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ। रूस ने भी युद्ध में भाग लिया, जिससे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई।
- फरवरी 1917: फरवरी क्रांति हुई। जार निकोलस द्वितीय ने सत्ता छोड़ी और अस्थायी सरकार का गठन हुआ।
- अप्रैल 1917: व्लादिमीर लेनिन रूस लौटे और बोल्शेविक पार्टी ने “शांति, रोटी और जमीन” का नारा दिया।
- अक्टूबर 1917: अक्टूबर क्रांति हुई। बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और अस्थायी सरकार को हटा दिया।
- 1918: रूस ने प्रथम विश्व युद्ध से हटने की घोषणा की और सोवियत संघ की स्थापना हुई।
रूसी क्रांति 1917 के परिणाम
रूसी क्रांति 1917 के परिणाम न केवल रूस, बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण थे। इस क्रांति ने रूस की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदल दिया और वैश्विक स्तर पर समाजवाद और कम्युनिज्म को बढ़ावा दिया। यहाँ रूसी क्रांति के प्रमुख परिणामों को विस्तार से समझाया गया है:
1. राजनीतिक परिणाम
- जारशाही का अंत: रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप जार निकोलस द्वितीय का शासन समाप्त हो गया। जुलाई 1918 में जार और उसके परिवार को बोल्शेविकों ने गोली मार दी।
- समाजवादी सरकार की स्थापना: बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक समाजवादी सरकार की स्थापना की। व्लादिमीर लेनिन नए सरकार के प्रमुख बने।
- सोवियत संघ का गठन: 1922 में रूस और अन्य सोवियत गणराज्यों को मिलाकर सोवियत संघ (USSR) का गठन हुआ।
2. आर्थिक परिणाम
- निजी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण: बोल्शेविक सरकार ने निजी संपत्ति, जमीन, और उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इससे पूंजीवादी व्यवस्था का अंत हुआ।
- समाजवादी अर्थव्यवस्था: एक समाजवादी अर्थव्यवस्था स्थापित की गई, जिसमें उत्पादन और वितरण पर सरकार का नियंत्रण था।
- किसानों को जमीन: किसानों को जमींदारों की जमीन दी गई, जिससे उनकी स्थिति में सुधार हुआ।
3. सामाजिक परिणाम
- सामाजिक समानता: क्रांति के बाद सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया गया। अभिजात वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ: सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को सभी के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया।
- महिलाओं की स्थिति में सुधार: महिलाओं को राजनीतिक और सामाजिक अधिकार दिए गए, और उनकी स्थिति में सुधार हुआ।
4. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव
- समाजवाद और कम्युनिज्म का प्रसार: रूसी क्रांति ने दुनिया भर में समाजवाद और कम्युनिज्म को बढ़ावा दिया। कई देशों में क्रांतिकारी आंदोलन शुरू हुए।
- शीत युद्ध की नींव: रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ा, जिसने शीत युद्ध की नींव रखी।
- वैश्विक राजनीति पर प्रभाव: रूसी क्रांति ने वैश्विक राजनीति को प्रभावित किया और दुनिया भर में समाजवादी सरकारों के गठन को प्रेरित किया।
5. सांस्कृतिक परिणाम
- कला और साहित्य में बदलाव: क्रांति के बाद कला और साहित्य में समाजवादी विचारधारा को बढ़ावा मिला। कई कलाकारों और लेखकों ने समाजवादी विषयों पर काम किया। इनके लेखन और कला ने नवीन विचारों को जन्म दिया।
- शिक्षा का प्रसार: सरकार ने शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया, जिससे रूस की जनता में साक्षरता की प्रगति हुई।
6. नकारात्मक परिणाम
- गृहयुद्ध: क्रांति के बाद रूस में गृहयुद्ध (1917-1922) छिड़ गया, जिसमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए।
- आर्थिक संकट: क्रांति के बाद आर्थिक संकट गहरा गया, और देश को भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी।
- सत्ता का केंद्रीकरण: बोल्शेविक सरकार ने सत्ता को केंद्रीकृत कर दिया, जिससे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ। यह भी एक तरह से निरंकुश सहस्न का ही प्रतीक हुआ।
निष्कर्ष
इस प्रकार रूसी क्रांति 1917 (Russian Revolution 1917) एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने न केवल रूस, बल्कि पूरी दुनिया में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी और कितने ही देशों में निरंकुश शासकों को गद्दी छोड़नी पड़ी। इस क्रांति ने निरंकुश साम्राज्यवाद का अंत किया और समाजवादी विचारधारा को प्रोत्साहन दिया। व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में हुई इस क्रांति ने रूस में एक नए युग की शुरुआत की। आज भी रूसी क्रांति 1917 के परिणाम हमें सामाजिक न्याय और समानता के महत्व को समझाते हैं। यह क्रांति इतिहास के पन्नों में हमेशा अमर रहेगी।
रूसी क्रांति 1917 से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q. रूसी क्रांति के मुख्य कारण क्या थे?
Ans. आर्थिक संकट, सामाजिक असमानता, राजनीतिक उत्पीड़न, और प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव।
Q. खूनी रविवार की घटना क्या थी?
Ans. 22 जनवरी, 1905 को सेंट पीटर्सबर्ग में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर सैनिकों ने गोलियाँ चलाईं, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए।
Q. प्रथम विश्व युद्ध ने रूसी क्रांति को कैसे प्रभावित किया?
Ans, युद्ध ने आर्थिक संकट पैदा किया, सैनिकों और जनता में असंतोष बढ़ाया, और राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया।
Q. जार निकोलस द्वितीय की नीतियाँ क्रांति का कारण कैसे बनीं?
Ans. जार का निरंकुश शासन, जनता की मांगों को अनसुना करना, और राजनीतिक सुधारों से इनकार करना।
Q. रूस में सामाजिक असमानता कैसे क्रांति का कारण बनी?
Ans. किसानों और मजदूरों का शोषण, अभिजात वर्ग का विशेषाधिकार, और गरीबी ने असंतोष पैदा किया।
Q. फरवरी क्रांति क्या थी?
Ans. फरवरी 1917 में जार निकोलस द्वितीय का पतन हुआ, और एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
Q. अक्टूबर क्रांति क्या थी?
Ans. अक्टूबर 1917 में बोल्शेविकों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और एक समाजवादी सरकार की स्थापना की।
Q. बोल्शेविक कौन थे?
Ans. बोल्शेविक व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व वाली एक क्रांतिकारी पार्टी थी, जिसने समाजवादी सरकार स्थापित की।
Q. मेन्शेविक और बोल्शेविक में क्या अंतर था?
Ans. मेन्शेविक धीरे-धीरे सुधार चाहते थे, जबकि बोल्शेविक तेजी से क्रांति के पक्ष में थे।
Q. लेनिन ने क्रांति में क्या भूमिका निभाई?
Ans. लेनिन ने बोल्शेविक पार्टी का नेतृत्व किया और “शांति, रोटी और जमीन” का नारा देकर जनता का समर्थन हासिल किया।
Q. रूसी क्रांति के बाद किस प्रकार की सरकार स्थापित हुई?
Ans. एक समाजवादी सरकार स्थापित हुई, जिसे बोल्शेविकों ने संचालित किया।
Q. ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि क्या थी?
Ans. 1918 में बोल्शेविक सरकार ने जर्मनी के साथ यह संधि की, जिसके तहत रूस प्रथम विश्व युद्ध से बाहर हो गया।
Q. रूसी क्रांति ने विश्व को कैसे प्रभावित किया?
Ans. इसने समाजवाद और कम्युनिज्म को बढ़ावा दिया और दुनिया भर में क्रांतिकारी आंदोलनों को प्रेरित किया।
Q. रूसी क्रांति के बाद जार और उसके परिवार का क्या हुआ?
Ans. जुलाई 1918 में जार निकोलस द्वितीय और उसके परिवार को बोल्शेविकों ने गोली मार दी।
Q. रूसी क्रांति के बाद अर्थव्यवस्था में क्या बदलाव आए?
Ans. निजी संपत्ति का राष्ट्रीयकरण किया गया, और एक समाजवादी अर्थव्यवस्था स्थापित की गई।
Q. ट्रॉट्स्की कौन थे और उनकी भूमिका क्या थी?
Ans. लियोन ट्रॉट्स्की बोल्शेविक नेता थे, जिन्होंने लाल सेना का गठन किया और क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Q. रूसी क्रांति में महिलाओं की भूमिका क्या थी?
Ans. महिलाओं ने हड़तालों और प्रदर्शनों में सक्रिय भाग लिया, खासकर रोटी की कमी के विरोध में।
Q. रूसी क्रांति में किसानों की भूमिका क्या थी?
Ans. किसानों ने जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया और बोल्शेविकों को समर्थन दिया।
Q. रूसी क्रांति के दौरान अखबारों और प्रचार की क्या भूमिका थी?
Ans. बोल्शेविकों ने अखबारों और प्रचार के माध्यम से जनता को संगठित किया और अपने विचारों को फैलाया।
Q. रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का गठन कैसे हुआ?
Ans. सोवियत संघ का गठन (1922)
1922 तक बोल्शेविकों ने रूसी साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
30 दिसंबर 1922 को सोवियत समाजवादी गणराज्यों का संघ (USSR) का गठन हुआ।
शुरुआत में इसमें चार गणराज्य शामिल थे:
रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य (RSFSR)
यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य
बेलारूसी सोवियत समाजवादी गणराज्य
ट्रांसकॉकेशियन सोवियत समाजवादी गणराज्य (जॉर्जिया, आर्मेनिया और अजरबैजान का संघ)
बाद में अन्य गणराज्य भी शामिल हुए, और USSR 15 गणराज्यों का संघ बन गया।
5. संविधान और सरकार
1924 में USSR का पहला संविधान लागू हुआ।
सोवियत संघ एक समाजवादी संघीय गणराज्य था, जिसमें केंद्रीय सरकार और गणराज्यों को कुछ स्वायत्तता दी गई।
सत्ता कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में केंद्रित थी, और पार्टी का नेतृत्व पोलित ब्यूरो करता था।
6. लेनिन की मृत्यु और स्टालिन का उदय (1924)
1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद सत्ता संघर्ष शुरू हुआ।
जोसेफ स्टालिन ने अपने प्रतिद्वंद्वियों (विशेषकर लियोन ट्रॉट्स्की) को हराकर सत्ता पर कब्जा कर लिया।
स्टालिन ने USSR को एक शक्तिशाली औद्योगिक और सैन्य महाशक्ति बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं और सामूहिकीकरण लागू किया।