प्रस्तावना
नवपाषाण काल, जिसे “नया पाषाण युग” अंग्रेजी में Neolithic Age, नवीन पत्थर युग भी कहा जाता है, मानव जीवन के प्रारम्भिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण है। यह काल मानव समाज के विकास में एक क्रांतिकारी परिवर्तन था, जब मनुष्य ने खानाबदोश जीवन को त्यागकर स्थायी बस्तियों में रहना शुरू किया और कृषि एवं पशुपालन प्रांरम्भ कर एक आधुनिक जीवन की शुरुआत की। इस लेख में हम नवपाषाण काल के प्रमुख स्थलों, इसके अर्थ, प्रारम्भ, विशेषताओं और भौगोलिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, इस लेख में एक FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न) सेक्शन भी शामिल किया गया है, जो इस विषय से जुड़े सामान्य प्रश्नों के उत्तर प्रदान करेगा।

नवपाषाण काल का अर्थ-Meaning of Neolithic Age
अगर नवपाषाण काल के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका शाब्दिक अर्थ है “नया पाषाण युग” यह शब्द यूनानी भाषा के शब्द “निओ” (नया) और “लिथोस” (पत्थर) से बना है। इस काल को “नया” इसलिए कहा गया क्योंकि इसमें पत्थर के औजारों के निर्माण में नई तकनीकों का विकास हुआ, जैसे पत्थरों को घिसकर चमकदार और धारदार बनाना। यह काल मानव समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल था, जहाँ मनुष्य सिर्फ उपभोक्ता नहीं रहा बल्कि अब वह खाद्य संग्रहण से खाद्य उत्पादन भी करना सीख चुका था।
नवपाषाण काल को मानव इतिहास में एक चमत्कारिक और क्रन्तिकारी परिवर्तन माना जाता है क्योंकि इस दौरान मनुष्य ने प्रकृति पर निर्भरता कम करके अपने जीवन को सुव्यवस्थित करना शुरू किया। इस काल में मनुष्य ने पहली बार कृषि और पशुपालन जैसी परिवर्तनकारी गतिविधियों को अपनाया, जिससे उसके जीवन में स्थिरता आई। अब उसने फसलों को उगाकर एक उत्पादक का जीवन शुरू किया। मास के स्थान पर भोजन के रूप में अनाज और फल शब्जियों को ग्रहण करना शुरू किया।
नवपाषाण काल का प्रारम्भ-Beginning of the Neolithic period
अगर विष में नवपाषाण काल के प्रारम्भ की बात करें तो इसकी शुरुआत लगभग 10,000 ईसा पूर्व मध्य पूर्व में हुई थी। यह काल पुरापाषाण और मध्यपाषाण काल के बाद आया और इसे “नवपाषाण क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है। इस नवीन चरण में मनुष्य ने ऐसे परिवर्तन किये जिनसे उसका जीवन अधिक प्रगतिशील और स्थायी हो गया। उसने अब कृषि का विकास, पशुपालन की शुरुआत और स्थायी बस्तियों का निर्माण करके आधुनिक जीवन की नीव रखी। यह परिवर्तन बहुत तेजी से नहीं हुआ बल्कि यह धीरे-धीरे हुआ और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर इसका प्रसार हुआ।
मध्य पूर्व में नवपाषाण काल की शुरुआत के बाद यह संस्कृति धीरे-धीरे यूरोप, एशिया और अफ्रीका में फैल गई। अगर हम भारत में नवपाषाण काल की शुरुआत की बात करें तो यह विश्व के अन्य क्षेत्रों से काफी बाद में शुरू हुआ और भारत में नवपाषाण काल की शुरुआत लगभग 7000 ईसा पूर्व में हुई, जो इसके प्रारम्भिक नवपाषाणकालीन स्थल मेहरगढ़ जैसे स्थलों से प्रमाणित होती है।
भारत में नवपाषाण काल के प्रारम्भिक चरण-Neolithic period in India
भारत में नवपाषाण काल का प्रारम्भ लगभग 7000 ईसा पूर्व से प्रारम्भ हुआ। यहाँ इस काल के प्रमुख स्थल नवपाषाणकालीन स्थलों के रूप में मेहरगढ़, बुर्जहोम, कोल्डिहवा और चिरांद हैं को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। मेहरगढ़ (बलूचिस्तान, पाकिस्तान ) में कृषि और पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 7000 ईसा पूर्व के हैं। यहाँ गेहूँ और जौ की खेती के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के भी साक्ष्य मिले हैं।
भारत में नवपाषाण काल के प्रारम्भिक चरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
कृषि का विकास: भारत में नवपाषाण काल के दौरान गेहूँ, जौ, चावल और बाजरा जैसी खाद्य फसलों की खेती शुरू हुई।
पशुपालन: इस काल में भेड़, बकरी, गाय और सूअर जैसे जानवरों को पालतू बनाया गया। कुत्ता मनुष्य का प्रथम पालतू पशु था।
स्थायी बस्तियाँ: मनुष्य ने स्थायी घर बनाना शुरू किया, जो मिट्टी की ईंटों और कहीं-कहीं पत्थरों के बने होते थे।
मिट्टी के बर्तनों का निर्माण: मिट्टी के बर्तनों का निर्माण शुरू हुआ, जो भोजन और पानी के भंडारण के लिए उपयोगी थे। यह काम चाक पर किया जाता था।
नवपाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं-Main features of Neolithic period
कृषि का विकास: नवपाषाण काल में मनुष्य ने जंगली खाद्य पौधों को फसल के रूप में उगना शुरू कर दिया जिससेआधुनिक खेती का प्रारम्भ हुआ। गेहूँ, जौ, चावल और बाजरा, मसूर जैसे फसलों का उत्पादन इस काल की मुख्य विशेषता थी।
पशुपालन: इस काल में मनुष्य ने भेड़, बकरी, गाय और सूअर जैसे जानवरों को पालतू बनाया। यह भोजन, दूध और चमड़े का एक नया स्रोत बना।
स्थायी बस्तियाँ: नवपाषाण काल में मनुष्य ने स्थायी घर बनाना शुरू किया। ये घर मिट्टी की ईंटों से बने होते थे और इनमें भंडारण के लिए अलग स्थान होता था।
मिट्टी के बर्तनों का निर्माण: इस काल में वर्तन बनाने के लिए चाक का अविष्कार हुआ और यह मिट्टी के बर्तनों का निर्माण में सहायक हुआ, वर्तनों का उपयोग भोजन और पानी के भंडारण के लिए किया गया।
सामाजिक संगठन: नवपाषाण काल में स्थायी बस्तियों के विकास ने सामाजिक संगठन की शुरुआत की। कुछ लोग शासक या पुजारी बन गए, जबकि अन्य किसान या शिल्पकार थे।
नवपाषाण कालीन प्रमुख स्थल-Major Neolithic Sites
मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) पाकिस्तान : यह नवपाषाण काल का सबसे प्राचीन स्थल है, जहाँ से गेहूँ और जौ की खेती के प्रारम्भिक साक्ष्य मिले हैं। यहाँ से मिट्टी के बर्तनों और पशुपालन के भी प्रमाण हैं।
बुर्जहोम (कश्मीर): यहाँ गर्त्त-आवास ( गड्ढे बनाकर उनके ऊपर छप्पर बनाकर ), पत्थर के औजार और कुत्ते के दफनाने के साक्ष्य मिले हैं। यह स्थल नवपाषाण कालीन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
कोल्डिहवा ( इलाहबाद, उत्तर प्रदेश): यहाँ चावल की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं, जो लगभग 6000 ईसा पूर्व के हैं।
चिरांद (बिहार): यहाँ हड्डी के औजार और टेराकोटा की मूर्तियाँ मिली हैं, जो नवपाषाण कालीन कला और शिल्प का प्राचीनतम प्रमाण हैं।
गुफ्कराल (कश्मीर): यहाँ गर्त्त-आवास और मिट्टी के बर्तनों के साक्ष्य मिले हैं, जो नवपाषाण कालीन जीवनशैली को दर्शाते हैं।
प्रमुख नवपाषाण कालीन स्थल
नवपाषाण स्थल का नाम | स्थिति | समय अवधि | मुख्य विशेषताएँ |
---|---|---|---|
मेहरगढ़ | बलूचिस्तान, पाकिस्तान | 7,000 ई.पू. | कपास और गेहूँ का उत्पादन करते थे और मिट्टी-ईंट के घरों में रहते थे। यहाँ कृषि और पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। |
बुर्जहोम | कश्मीर | 2,700 ई.पू. | लोग झील के किनारे गड्ढों में रहते थे। पालतू कुत्तों को भी उनके मालिकों के साथ कब्र में दफनाया जाता था। पॉलिश किए गए पत्थर और हड्डियों के औजार इस्तेमाल होते थे। |
गुफकराल | कश्मीर | 2,000 ई.पू. | कृषि और पशुपालन दोनों का अभ्यास किया। पॉलिश किए गए पत्थर और हड्डियों से बने औजारों का इस्तेमाल किया। |
चिरांद | बिहार | 2,000 ई.पू. | हड्डियों से बने औजार और हथियार का प्रयोग किया जाता था। टेराकोटा की मूर्तियाँ और मिट्टी के बर्तन भी यहाँ पाए गए हैं। |
पिकलिहल, ब्रह्मगिरी, मास्की, हल्लूर, टक्कलकोटा, टी. नरसीपुर, कोडेकल, संगनकल्लू | कर्नाटक | 2,000-1,000 ई.पू. | पिकलिहल के लोग मवेशी चराने वाले थे। वे भेड़, बकरी और मवेशी पालते थे। राख के ढेर पाए गए हैं, जो संभवतः अंतिम संस्कार के प्रमाण हैं। |
पैयम्पल्ली | तमिलनाडु | 2,000-1,000 ई.पू. | यहाँ कृषि और पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं। मिट्टी के बर्तन और पत्थर के औजार भी पाए गए हैं। |
दचेपल्ली | आंध्र प्रदेश | 2,000-1,000 ई.पू. | यहाँ कृषि और पशुपालन के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के भी प्रमाण मिले हैं। |
बैलगाड़ी और चाक का प्रयोग: मानव जीवन में क्रांति
इस काल में मनुष्य ने नई तकनीकों और उपकरणों का आविष्कार किया, जिसने उसके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण आविष्कार थे बैलगाड़ी और चाक। इनके प्रयोग ने न केवल यात्रा और परिवहन को सुगम बनाया, बल्कि मिट्टी के बर्तनों के निर्माण में भी क्रांति ला दी।
बैलगाड़ी का प्रयोग
नवपाषाण काल में बैलगाड़ी के आविष्कार ने मानव जीवन में एक नई यातायात क्रांति को जन्म दिया। इससे पहले, मनुष्य को लंबी दूरी की यात्राएँ करने में बहुत समय लगता था और भारी सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में कठिनाई होती थी। बैलगाड़ी के प्रयोग से यह समस्या सुलझ गई।
यात्रा और परिवहन: बैलगाड़ी की मदद से मनुष्य लंबी दूरी की यात्राएँ करने लगा। इससे व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला।
कृषि में सहायता: बैलगाड़ी का उपयोग फसलों को खेतों से घर तक लाने के लिए किया जाने लगा। इससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई।
चाक का प्रयोग
चाक के आविष्कार ने मिट्टी के बर्तनों के निर्माण में प्रगतिशील क्रांति ला दी। इससे पहले, बर्तन हाथ से बनाए जाते थे, जो समय देखने में भद्दे और कमजोर होते थे लेकिन अब वह टिकाऊ और सुन्दर वर्तन बनाने लगा। चाक के प्रयोग से बर्तन बनाने की तेज तेज और प्रक्रिया सरल हो गई।
मिट्टी के बर्तन: चाक की मदद से समान आकार और मजबूत बर्तन बनाए जाने लगे। ये बर्तन भोजन और पानी के आलावा अन्न भंडारण के लिए उपयोगी थे। दूध, छाछ और घी को वर्तनों में एकत्र किया जाने लगा।
कला और संस्कृति: चाक पर बनाए गए बर्तनों पर सजावट और चित्रकारी की जाने लगी, जो नवपाषाण काल की कलात्मक उपलब्धियों को दर्शाता है।
वस्त्रों का विकास
नवपाषाण काल से पहले, मनुष्य शरीर को ढकने के लिए पशुओं की खाल, पत्तों और पेड़ों की छाल का उपयोग करता था। हालाँकि, नवपाषाण काल में वस्त्रों के निर्माण में एक बड़ा बदलाव आया, क्योंकि उसने धागा बनाना सीख लिया और उससे वस्त्र बनाने लगा।
ऊनी और सूती वस्त्र: इस काल में मनुष्य ने ऊन और सूती कपड़े बनाना शुरू किया। ये वस्त्र न केवल आरामदायक थे, बल्कि टिकाऊ भी थे।
रंगाई और सजावट: वस्त्रों को रंगकर और कलात्मक रूप से सजाकर पहना जाने लगा, जो नवपाषाण कालीन समाज के सौंदर्यबोध को दर्शाता है।
औजार और हथियार
नवपाषाण काल में औजार और हथियारों के निर्माण में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इस काल के मनुष्य ने पत्थर, हड्डी और लकड़ी से विभिन्न प्रकार के औजार और हथियार बनाए।
कुल्हाड़ियाँ: इस काल में कुल्हाड़ियों का प्रयोग हथियार और औजार दोनों के रूप में किया जाता था। उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में घुमावदार किनारों वाली आयताकार कुल्हाड़ियाँ, दक्षिणी भाग में अंडाकार किनारों वाली कुल्हाड़ियाँ और उत्तर-पूर्वी भाग में पॉलिश पत्थर की कुदाल वाली कुल्हाड़ियाँ प्रचलन में थीं।
माइक्रोलिथिक ब्लेड: पत्थर के औजारों के अलावा, माइक्रोलिथिक ब्लेड का भी प्रयोग किया जाता था।
हड्डी के औजार: हड्डियों से बने औजार और हथियार भी इस काल की प्रमुख विशेषता थे। बुर्जहोम (कश्मीर) और चिरांद (बिहार) में ऐसे औजार पाए गए हैं।
धातु का प्रयोग
नवपाषाण काल के अंतिम चरण में मनुष्य ने धातु के प्रयोग की कला सीख ली। तांबा पहली धातु थी, जिसका उपयोग मनुष्य ने किया।
तांबे के औजार: तांबे से बने औजार और हथियार अधिक मजबूत और टिकाऊ थे।
धातुकर्म का विकास: धातु के प्रयोग ने नवपाषाण कालीन समाज को एक नई दिशा दी और यह कांस्य युग की ओर संक्रमण का आधार बना।
मनोरंजन के साधन
नवपाषाण काल में मनोरंजन के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता था।
नृत्य और नाट्य कला: नृत्य और नाट्य कला मनोरंजन का प्रमुख साधन था।
आखेट: आखेट भी मनोरंजन का एक प्रमुख साधन था, हालाँकि इसका महत्व कृषि और पशुपालन के विकास के साथ कम हो गया।
अंत्येष्टि संस्कार
नवपाषाण काल में अंत्येष्टि संस्कार के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं।
सिस्ट समाधि: ब्रह्मगिरि में पाई गई एक समाधि, जिसमें मृतक के शव के साथ हथियार, औजार और आभूषण रखे जाते थे।
पिट सर्कल: इस प्रकार की समाधि में शव को पहले लकड़ी की अर्थी पर रखा जाता था और बाद में अस्थियों को समाधि में रख दिया जाता था।
कैर्नसर्कल: इस प्रकार की समाधि में अस्थि पात्र और भस्मपात्र रखे जाते थे।
नवपाषाण काल की भौगोलिक स्थिति
नवपाषाण कालीन सभ्यता भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई थी। उत्तर-पश्चिमी भारत में मेहरगढ़ और बुर्जहोम, उत्तर-पूर्वी भारत में कोल्डिहवा और चिरांद, और दक्षिणी भारत में ब्रह्मगिरि और मास्की जैसे स्थल प्रमुख हैं। ये स्थल नवपाषाण कालीन संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, जैसे कृषि, पशुपालन, और स्थायी बस्तियाँ।
उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र: प्रारंभिक कृषि का पालना
उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र, जिसमें वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान सम्मिलित हैं, नवपाषाण काल की प्रगति के सबसे प्रारंभिक केंद्रों में से एक हैं। इस क्षेत्र में पुरातात्विक खोजों से 7000 ईसा पूर्व के पशुपालन और कृषि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
मेहरगढ़: पाकिस्तान के क्वेटा के पास स्थित, मेहरगढ़ सबसे प्रमुख नवपाषाणकालीन स्थलों में से एक है। यहां की खुदाई से गेहूं और जौ की खेती के साथ-साथ तांबा गलाने के प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं। इस स्थल को अक्सर “बलूचिस्तान की रोटी की टोकरी” कहा जाता है, क्योंकि यह कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल था। मेहरगढ़ नवपाषाण से हड़प्पा सभ्यता तक के सांस्कृतिक इतिहास को दर्शाता है।
2. उत्तरी क्षेत्र: कश्मीर की नवपाषाण विरासत
उत्तरी क्षेत्र, विशेष रूप से कश्मीर घाटी, दो प्रमुख नवपाषाण स्थलों का केंद्र है: बुर्जाहोम और गुफकराल।
बुर्जाहोम: यह स्थल 1935 में खोजा गया, बुर्जाहोम अपने गड्ढे वाले ( गर्त वाले आवास ) आवासों और प्रारंभिक कृषि के प्रमाण के लिए जाना जाता है। यह स्थल शिकारी-संग्रहकर्ता जीवनशैली वाले मानव को, स्थायी कृषि निवास वाले समुदाय में परिवर्तन को दर्शाता है। यहाँ की अनूठी खोजों में तांबे के तीर के नोक और कुत्ते को उसके मालिक के साथ दफनाने के प्रमाण शामिल हैं, जो पशुपालन के महत्व को दर्शाते हैं।
गुफकराल: जिसका शाब्दिक अर्थ है “कुम्हार की गुफा,” गुफकराल तीन अलग-अलग चरणों में प्रारंभिक मानव बस्ती के साक्ष्य प्रदान करता है। यह स्थल हड्डी के उपकरण और धूसर मिट्टी के बर्तनों के उपयोग को दर्शाता है, जो उस समय की तकनीकी प्रगति को दर्शाता है।
3. मध्यवर्ती क्षेत्र: गंगा के मैदान और विंध्य पठार
मध्यवर्ती क्षेत्र, जिसमें गंगा के मैदान और विंध्य पठार शामिल हैं, कोल्डीहवा, महगदा और चोपानी मांडो जैसे नवपाषाण स्थलों वाले प्रमुख क्षेत्र है।
कोल्डीहवा: इलाहाबाद ( वर्तमान प्रयागराज ) उत्तर प्रदेश के पास स्थित, यह स्थल 6000 ईसा पूर्व के चावल की खेती के प्राचीनतम प्रमाण के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे दुनिया में चावल की खेती के सबसे पुराने स्थलों में से एक सिद्ध करता है।
महगदा : यहां की खुदाई से गोलाकार झोपड़ियों और पशुपालन के प्रमाण मिले हैं, जो उस समय की कृषि प्रणालियों को दर्शाते हैं।
चोपानी मांडो: अपने प्राचीन मिट्टी के बर्तनों के लिए जाना जाने वाला यह स्थल मध्यपाषाण से नवपाषाण काल में परिवर्तन की के साक्ष्य दर्शाता है।
4. पूर्वी क्षेत्र: बिहार और पूर्वोत्तर भारत
पूर्वी क्षेत्र, जिसमें बिहार और पूर्वोत्तर भारत शामिल हैं, यहाँ से कुछ महत्वपूर्ण नवपाषाणकालीन स्थल मिले हैं-
चिरांद: बिहार में स्थित, चिरांद उन्नत उपकरण निर्माण और चावल की खेती के प्रमाण के साथ एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह स्थल हिरण के सींगों से उपकरण बनाने लिए प्रसिद्ध था।
दावोजली हाडिंग: असम में स्थित, यह स्थल प्रारंभिक कृषि और पशुपालन के प्रमाण प्रदान करता है, जो नवपाषाण प्रथाओं के पूर्वोत्तर भारत में विस्तार को दर्शाता है।
5. उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र: राजस्थान के नवपाषाण स्थल
राजस्थान कई महत्वपूर्ण नवपाषाण स्थलों का क्षेत्र है, जिनमें बागोर और बालाथल शामिल हैं।
बागोर: यहाँ से प्रारंभिक कृषि और पशुपालन के प्रमाण वाला बागोर एक प्राचीन स्थल है, जो पशुपालन और कृषि अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
बालाथल: यह स्थल नवपाषाण से लौह युग तक की निरंतर बस्तियों की बसावट को दर्शाता है, जिसमें हड़प्पा सभ्यता के समान तांबे के उपकरण और मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं।
6. दक्षिणी क्षेत्र: दक्कन का पठार
दक्षिणी क्षेत्र, विशेष रूप से दक्कन का पठार, अपनी अनूठी नवपाषाण संस्कृति के लिए जाना जाता है।
संगनकल्लू और नागार्जुनकोंडा: ये स्थल प्राचीनतम बाजरा की खेती और शिकार से कृषि में परिवर्तन के साक्ष्य प्रस्तुत करता हैं। सूक्ष्म पत्थर के उपकरण और पॉलिश किए गए पत्थर के औजार उस समय की तकनीकी प्रगति के प्रमाण हैं।
उतनूर और कोडेकल: यह नवपाषाणकालीन स्थल राख के टीलों के लिए जाने जाते हैं, जो पालतू पशुओं के बाड़ों के अवशेष माने जाते हैं, जो पशुपालन के महत्व को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
नवपाषाण काल मानव इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसने मानव समाज को खानाबदोश जीवन से स्थायी बस्तियों की ओर ले जाया। इस काल में कृषि, पशुपालन, और मिट्टी के बर्तनों के निर्माण जैसी महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हुईं। भारत में नवपाषाण कालीन स्थलों की खोज ने इस काल के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ये स्थल हमारे प्राचीन इतिहास की एक जीवंत झलक प्रदान करते हैं और मानव सभ्यता के विकास की कहानी को समझने में मदद करते हैं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. नवपाषाण काल का अर्थ क्या है?
नवपाषाण काल का अर्थ है “नया पाषाण युग”। यह काल मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल था, जब मनुष्य ने खाद्य उपभोक्ता से खाद्य उत्पादन की ओर कदम बढ़ाया।
2. नवपाषाण काल की शुरुआत कब हुई?
नवपाषाण काल की शुरुआत लगभग 10,000 ईसा पूर्व मध्य पूर्व में हुई थी। भारत में इसकी शुरुआत लगभग 7000 ईसा पूर्व हुई।
3. भारत में नवपाषाण काल के प्रमुख स्थल कौन-कौन से हैं?
भारत में नवपाषाण काल के प्रमुख स्थल मेहरगढ़, बुर्जहोम, कोल्डिहवा, चिरांद और गुफ्कराल हैं।
4. नवपाषाण काल की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
नवपाषाण काल की मुख्य विशेषताएं हैं: कृषि का विकास, पशुपालन, स्थायी बस्तियों का निर्माण, मिट्टी के बर्तनों का निर्माण और सामाजिक संगठन।
5. नवपाषाण काल में कौन-कौन सी फसलें उगाई जाती थीं?
नवपाषाण काल में गेहूँ, जौ, चावल और बाजरा जैसी फसलें उगाई जाती थीं।
6. नवपाषाण कालीन स्थलों का क्या महत्व है?
नवपाषाण कालीन स्थल मानव सभ्यता के विकास की कहानी को समझने में मदद करते हैं। ये स्थल कृषि, पशुपालन और स्थायी बस्तियों के प्राचीनतम साक्ष्य प्रदान करते हैं।